19 मई 2025 का ज्ञानप्रसाद
नवंबर 1958 में सम्पन्न हुए विशाल सहस्र कुंडीय यज्ञ पर आधारित लेख श्रृंखला के अंतर्गत ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से 21 लेख प्रस्तुत किये गए। 13 अप्रैल के प्रथम लेख से लेकर 14 मई के 21वें लेख को लिखते समय एक ही प्रश्न बार-बार सामने आकर खड़ा हो जाता था कि इतने विशाल यज्ञों के आयोजन से लेकर बिलकुल ही संक्षिप्त बलिवैश्व यज्ञ करवाने के पीछे परम पूज्य गुरुदेव का क्या उद्देश्य था? यज्ञों के माध्यम से समाजिक क्रांति, पर्यावरण सुधार, आत्मिक सुधार जैसे शब्दों के अर्थ तो समझ आते थे,लेकिन यज्ञ करने से यह सब सुधार कैसे संभव हैं, इसी जिज्ञासा ने आज के ज्ञानप्रसाद की उत्पति की है।
हमारा पूर्ण विश्वास है कि हमारे योग्य साथी इन सभी सुधारों एवं परिणामों को ध्यान में रखकर ही यज्ञ करते होंगें लेकिन अनेकों ऐसे भी होंगें जिनके लिए हमारा आज का प्रयास लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
हर लेख का शुभारम्भ विश्वशांति की कामना से करना भी “एक दैनिक यज्ञ” ही है:
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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भारतीय संस्कृति में यज्ञ का विशेष स्थान है। यज्ञ न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह वैज्ञानिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। त्याग, समर्पण और सेवा की भावना से किये गए कार्य को “यज्ञ” का नाम दिया गया है । आदरणीय ओंकार जी का सुप्रसिद्ध प्रज्ञागीत “हे प्रभु जीवन हमारा यज्ञमय कर दीजिए” इसी सेवा भावना की ओर संकेत करता है।
ब्रह्मुहुर्त में साथिओं के द्वार खटखटा कर डिलीवर किया जाने वाला दिव्य ज्ञानप्रसाद भी त्याग, समर्पण और सेवा की भावना लेकर आता है जो न केवल भौतिक नींद से जगाता है बल्कि रोज़मर्रा जीवन में आ रही समस्याओं से जूझने और जगाने का प्रयास भी करता है।
24 घंटे के अंदर ही उस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करके, एक परिश्रमी परीक्षार्थी की भांति, समर्पित साथी कमैंट्स के माध्यम से होने वाला ज्ञानप्रसार भी त्याग, समर्पण और सेवा को ही दर्शाता है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ने इस प्रक्रिया को “ज्ञानयज्ञ” के विशेषण देकर सम्मानित किया है। कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स की प्रक्रिया को “ज्ञानयज्ञ” में आहुतियां प्रदान करना कहा गया है। इस दिव्य प्रक्रिया ने ज्ञानदान के साथ-साथ विश्व के अनेकों अशांत परिवारों को शांति एवं सुख-समृद्धि प्रदान करते हुए नवीन ऊर्जा का संचार किया है जिससे प्रेरित होकर असंख्य साथिओं ने गुरुवर की लाल मशाल को आगे ले जाने का संकल्प लिया है।
“यही है त्याग,समर्पण,सेवा आदि का संकल्प,यही है विश्वशांति में निस्वार्थ योगदान। इस परिवार में प्रत्येक व्यक्ति “लेने” की प्रवृति के बजाय, “देने” की प्रवृति से आता है। यह दैनिक यज्ञ, इस नन्हें से परिवार का एक अद्भुत यज्ञ है।”
यज्ञ यानि ब्रह्म का कर्म :
ऋग्वेद में यज्ञ को “ब्रह्मा का कर्म” कहा गया है। आइये देखें वोह कैसे।
“यज्ञ को ब्रह्मा का कर्म” इसलिए कहा जाता है कि जिस प्रकार ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु जी सृष्टि का पालन करते हैं, ठीक उसी प्रकार “यज्ञ” सृष्टि की रचना, पालन और संतुलन का एक महत्वपूर्ण साधन है। निम्नलिखित पॉइंट्स इसे और अधिक क्लियर करते हैं :
- वैदिक मान्यताओं के अनुसार, यज्ञ के माध्यम से देवताओं को संतुष्ट किया जाता है, जिससे वर्षा, अन्न, और जीवन के अन्य साधन उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया सृष्टि के संतुलन और विकास को बनाए रखती है, जो ब्रह्मा जी का मूलकार्य है।
- ब्रह्मा जी को वेदों में छिपे ज्ञान का गायक का माना जाता है,वैदिक मंत्रों और विधियों के अनुसार किये गए यज्ञ से ब्रह्मा जी के ज्ञान को ही प्रैक्टिकल रूप देना होता है।
आदरणीय महेंद्र जी एक वीडियो में पूछ रहे थे कि बताओ किस-किस ने वेदों के दर्शन किये हैं?किस-किस घर में वेदों का स्थापन हुआ है ? यदि हुआ भी है तो कितनों ने इनको पढ़ा भी है? यदि पढ़ा भी है तो कितने लोग वेदों के अंदर छिपे ज्ञान को समझ पाए हैं ? यदि ठीक से समझ भी पाए हैं तो कितनों ने अपने जीवन में उतारा है ?
यह सभी प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, यही कारण है कि इस भागदौड़ की दुनिया में हम जैसों के लिए,परम पूज्य गुरुदेव ने बहुत ही सरल मार्ग प्रदान करा दिया है ,और तो और, आज के ही युग के लोगों के लिए जहाँ नैनो टेक्नोलॉजी शब्द प्रयोग करने में गर्व महसूस किया जाता है, नैनो यज्ञ काफी प्रचलित हो रहा है।
- जिस प्रकार हम यज्ञ के माध्यम से स्वच्छ वस्त्र धारण कर ,स्वस्थ स्थान आदि जैसी भौतिक शुद्धि को सुनिश्चित करते हैं ठीक उसी प्रकार यज्ञ आध्यात्मिक शुद्धि का भी साधन है। यही कारण है कि यज्ञ को “ब्रह्मा का कर्म” कहा गया है क्योंकि हम उस परम तत्व (सृष्टि) का संरक्षण ( ही करते हैं।
यज्ञ से वातावरण शुद्धि:
यज्ञ के माध्यम से वातावरण की शुद्धि होती है। जब वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ घी, जड़ी-बूटियाँ और अन्य प्राकृतिक पदार्थ अग्नि में डाले जाते हैं, तो उससे उत्पन्न धूम्र वातावरण को विषैले तत्वों से मुक्त करता है। यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक प्राचीन भारतीय योगदान है।
आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों ने यह प्रमाणित किया है कि यज्ञ में अर्पित की जाने वाली हवन सामग्री (जैसे गाय का घी,औषधीय जड़ी-बूटियाँ, कपूर, गुग्गुल, चंदन आदि), जब अग्नि में अर्पित की जाती हैं, तो उससे उत्पन्न गैसें वातावरण को शुद्ध करती हैं। यह प्रक्रिया वातावरण में उपस्थित हानिकारक बैक्टीरिया, विषाक्त और दूषित तत्वों को नष्ट करती है।
इतना ही नहीं, यज्ञ द्वारा वातावरण में ओज़ोन गैस का भी उत्पादन होता है जो सूर्य की हानिकारक UV किरणों से रक्षा करती है। इस प्रकार, यज्ञ केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी पर्यावरण संरक्षण का सशक्त उपाय है।
यज्ञ से समाजिक एकजुटता:
सामाजिक दृष्टि से यज्ञ लोगों को “एकजुट” करता है। सामूहिक यज्ञों में सभी वर्ग, जाति और धर्म के लोग एकत्र होकर सामूहिक कल्याण की भावना से कार्य करते हैं। यह समरसता और एकता को बढ़ावा देता है, जो विश्व शांति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यज्ञ का आयोजन प्राचीन काल से ही “सामूहिक रूप” में होता आया है। “जब लोग एक साथ बैठकर मंत्रोच्चार करते हैं, एक ही उद्देश्य के लिए आहुति देते हैं, तो उनके बीच मतभेद मिटते हैं और एकता की भावना बलवती होती है।”
यह एक ऐसा अवसर होता है जहाँ सभी वर्ग, जाति, लिंग या समुदाय के लोग बिना भेदभाव के एक मंच पर आते हैं।
सामूहिक यज्ञों से सामाजिक समरसता, भाईचारे और पारस्परिक सहयोग की भावना विकसित होती है। यही वह आधार है, जिस पर स्थायी विश्वशांति की नींव रखी जा सकती है।
यज्ञ से विश्वशांति:
किसी भी समाज या राष्ट्र में शांति तभी संभव है, जब व्यक्ति के भीतर शांति हो।
यज्ञ एक साधना है जो व्यक्ति को आत्मनियंत्रण, संयम और सत्पथ की ओर प्रेरित करती है। जब मनुष्य यज्ञ में भाग लेता है, मंत्रों का उच्चारण करता है, तो उसकी मानसिक स्थिति स्थिर, शांत और सकारात्मक होती है।
यज्ञ की अग्नि व्यक्ति के भीतर की नकारात्मकता, विकार और अहंकार को जलाकर उसे “आध्यात्मिक रूप से ऊँचा” उठाने का कार्य करती है। इस प्रकार, “यज्ञ आत्मिक शुद्धि का एक साधन” बनकर व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
आज का युग भौतिकता, स्वार्थ और हिंसा से ग्रस्त है। राष्ट्रों के बीच संघर्ष, युद्ध और आतंकवाद ने विश्व को अस्थिर बना दिया है। ऐसे समय में यज्ञ की प्राचीन विधि, उसकी भावना और उसका दर्शन हमें यह सिखाता है कि “त्याग और समर्पण ही सच्चा मार्ग है”।
इस प्रकार, यज्ञ न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन, सामाजिक एकता और आत्मिक शुद्धि का माध्यम बनकर विश्व शांति की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि मानव समाज पुनः यज्ञ की भावना को अपनाए, तो विश्व में स्थायी शांति संभव हो सकती है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, जब मानवता युद्ध, तनाव, पर्यावरणीय असंतुलन और मानसिक अशांति से जूझ रही है, यज्ञ जैसे शाश्वत सिद्धांतों की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है।
यज्ञ से विश्व शांति के उदाहरण:
नीचे कुछ ऐतिहासिक, आधुनिक और प्रतीकात्मक उदाहरण दिए गए हैं:
1. अश्वमेध यज्ञ (प्राचीन भारत)
राजा युधिष्ठिर और अन्य वैदिक राजाओं द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञ केवल शक्ति-प्रदर्शन के लिए नहीं थे, बल्कि राजकीय एकता, प्रजा के कल्याण और शांति स्थापना का माध्यम भी थे। यज्ञ के अंतर्गत सभी पड़ोसी राज्यों को आमंत्रित किया जाता था जिससे आपसी सहयोग और मैत्री बढ़ती थी।
2. विश्व मंगल यज्ञ (आधुनिक युग)
परम पूज्य गुरुदेव द्वारा आयोजित 1958 का सहस्र कुंडीय यज्ञ “विश्व शांति यज्ञ” का एक अनूठा उदाहरण है। तब से लेकर आज तक अनेकों यज्ञ सम्पन्न हो चुके हैं जिनमें विश्व भर से लोग एकत्र होते हैं। ऐसे सामूहिक यज्ञों के माध्यम से विश्वशांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आहुति दी जाती है। इन्हीं यज्ञों से प्रेरित होकर कई देशों में यज्ञ-आधारित शांति आंदोलन शुरू हुए।
आज 2025 में, जब हम इन पंक्तियों को लिख रहे हैं तो “गृहे-गृहे गायत्री यज्ञ” के उद्घोष ने घर-घर में गायत्री यज्ञ को [प्रचलित कर दिया है।
3. अपदाओं के समय यज्ञ (आपदा के बाद शांति हेतु)
जब भी भूकंप, महामारी या युद्ध जैसी घटनाएं होती हैं, भारत और नेपाल जैसे देशों में सामूहिक यज्ञ करके वातावरण की शुद्धि और मानसिक सांत्वना देने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए, नेपाल भूकंप (2015) के बाद काठमांडू में बड़े स्तर पर यज्ञों का आयोजन हुआ, जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही कोरोना महामारी के बीच जब सामूहिक यज्ञ कराने संभव नहीं थे इंटरनेट का सहारा लेकर कितने ही सार्थक प्रयास किये गए थे।
4. अंतरराष्ट्रीय यज्ञ (ग्लोबल यज्ञ प्रोग्राम्स)
आजकल कई आध्यात्मिक संस्थाएं जैसे आर्ट ऑफ लिविंग, गायत्री परिवार, इस्कॉन आदि अलग-अलग देशों में यज्ञ का आयोजन करती हैं। इनमें अमरीका, रूस, जर्मनी, जापान जैसे देशों के लोग भी भाग लेते हैं। इससे धार्मिक सद्भाव, अंतरसंस्कृतिक मेलजोल और शांति का संदेश फैलता है।
5. प्रतीकात्मक यज्ञ: सेवा और सहयोग
जब कोई व्यक्ति या संगठन समाज सेवा करता है—जैसे भोजन वितरण, वृक्षारोपण, शिक्षा आदि, तो वह भी “यज्ञ की भावना” को दर्शाता है। यह त्याग और सेवा का रूप है, जो सामाजिक संतुलन और शांति लाने का मार्ग है। जैसे: “नर सेवा ही नारायण सेवा”,अनेक संतों द्वारा प्रतिपादित यज्ञ-भावना का ही विस्तार है।
निष्कर्ष:
यज्ञ केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की वह अमूल्य धरोहर है, जो हमें समग्र जीवन के प्रति संतुलन, सेवा और शांति का संदेश देती है। यह न केवल हमारी आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि पूरे वातावरण और समाज को भी सकारात्मक दिशा में प्रभावित करता है।
यदि मानव समाज यज्ञ की इस भावना को आत्मसात कर ले, तो विश्व शांति कोई दूर की बात नहीं, बल्कि एक साकार वास्तविकता बन सकती है।
समापन, जय गुरुदेव
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