वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

वर्ष 1958 का दिव्य सहस्र कुंडीय यज्ञ-पार्ट 21  

वर्ष 1958 में मथुरा में  सहस्र कुंडीय यज्ञ सम्पन्न हुआ, इस यज्ञ पर आधारित लेख श्रृंखला के अंतर्गत गुरुदेव द्वारा चयनित महान विभूतिओं द्वारा ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर  दिव्य विवरण एक Live commentary की भांति  दर्शाया जा रहा है, सभी साथी इस विवरण को एक धारावाहिक टीवी सीरियल की भांति न केवल देख रहे हैं बल्कि सीरियल की ही भांति अगले एपिसोड की उत्सुकता से प्रतीक्षा भी कर रहे हैं।

आज का दिव्य लेख उन चार आत्मदानियों का  संक्षिप्त विवरण दे  रहा है जिन्होंने अपनेआप को सदा सदा के लिए माँ गायत्री के चरणों में अर्पित कर दिया। मात्र 30 वर्ष  Age group के यह युवक सही मायनों में युगसैनिक कहाने के हकदार हैं। हमारा विश्वास है कि आज के लेख का अमृतपान करने के बाद  अनेकों को प्रेरणा मिलेगी और कल वाले लेख की पंक्तियाँ सीधे उनके अंतकरण में उतरती जायेंगीं:

“महायज्ञ में सैंकड़ों लोगों के चौबीस घण्टा सहयोग की आवश्यकता है। आप जिस प्रकार चाहें और जो समय निकाल सकें उसी में सेवा कर सकते हैं।”

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से किसी बड़ी छलांग लगाने का आग्रह नहीं किया जा रहा, यदि हम नियमितता पूर्वक,निश्चित समयदान, श्रमदान, ज्ञानदान करके इतना सा भी त्याग एवं समर्पण का प्राकट्य कर पाएं तो युगनिर्माण में बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। गुरुदेव ने बार-बार श्रद्धावान,समर्पित युगसैनिकों की बात की है, न कि केवल भीड़ इक्क्ठी करने की। 

इस तथ्य के बावजूद कि हर चैनल पर Audience retention  दिनोदिन कम  होता जा रहा  है, कल शुक्रवार को एक फुल लेंथ वीडियो ही प्रस्तुत की जाएगी। व्यूज पाने की दृष्टि से केवल शार्ट वीडियो बनाना भी तो उचित नहीं है। 

तो आइये विश्वशांति की कामना करें, संकल्प लें कि हम अपने जीवन को यज्ञमय बनाकर, त्याग करके संसार में व्याप्त दुष्प्रवृतियों का नाश करने में सहयोग देंगे।  

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!

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गायत्री माता और यज्ञ पिता का, सद्भावना और सत्प्रवृत्तियों का सन्देश घर-घर पहुँचाने के लिये गायत्री-परिवार को अधिकाधिक त्याग, बलिदान करने को अग्रसर होना पड़े। कुछ आत्माओं को तो अपना अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित करना होगा। यज्ञ में बलिदान आवश्यक है। बलिदान के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होते। इस दृष्टि से इस महायज्ञ में चार बड़े बलिदान किये गये हैं।

आज अक्सर देखा जा रहा है कि अधिकाँश साधु-संत भक्ति की पूँजी जमा करने में लगे हैं; पण्डित-पुरोहित, दक्षिणा बटोरने में लगे हैं और धर्म प्रचार जो उनका प्रधान कार्य था,एक प्रकार से रुका पड़ा है, वरिष्ठ  रिटायर्ड लोग नाती-पोतों का मोह छोड़कर घर से बाहर निकलना नहीं चाहते।  ऐसी स्थिति में सच्चे गृहस्थों को ही अपने बच्चों के निर्वाह का जोखिम उठा कर भी उस धर्म-प्रचार के महान कार्य में लगना होगा।

इस आवश्यकता का अनुभव गायत्री-परिवार की कुछ प्रबुद्ध आत्माओं ने किया है और उनमें से चार साधकों ने अग्रसर होकर भविष्य की सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने का दुस्साहस ठान लिया है, उनके बारे में निम्नलिखित संक्षिप्त जानकारी अनेकों लोगों को प्रेरणा दे सकती है, प्रोत्साहित कर सकती है। 

श्री शम्भुसिंह जी,राजस्थान के कोटा जिले के करवाड़ ग्राम के निवासी इण्टर एस.टी.सी. हैं। रामगंज मंडी हाई स्कूल में सहायक अध्यापक रहकर पिछले सात वर्षों से गायत्री-प्रचार में संलग्न हैं। गत तीन वर्षों से राज्यकार्य से बचा, सभी समय माँ गायत्री के प्रचार में लगाते हैं। पिछले महायज्ञ में ही ये अपने को इस कार्य के लिए अर्पण कर चुके थे। उस समय इनका आत्मदान स्वीकार करके 3 वर्ष की अवधि परीक्षार्थ दी थी। इन वर्षों में इन्होंने अपनी तनख्वाह में से परिवार के भोजन-वस्त्र का खर्च लेकर शेष गायत्री प्रचार के कार्य में ही लगाया है। इनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी ने भी एक पैसे का जेवर न बनवाने का संकल्प करके इन्हें इस मार्ग में बढ़ने का पूर्ण योगदान  देकर प्राचीन क्षत्राणियों का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस वर्ष सहस्र कुँडी यज्ञ का कार्य आरम्भ होते ही उन्होंने संकल्प कर लिया था कि जो कुछ भी पहले का बचा जेवर व पैसा है उसे भी यज्ञार्थ व्यय करके पूर्णाहुति के अवसर पर सिवाय अपने शरीर और वस्त्रों के कुछ न रखेंगे। 

शम्भूसिंह अपने माता-पिता के इकलौते  पुत्र हैं, इनके  इस प्रकार के त्याग से परिवार वालों को चिन्ता होना स्वाभाविक ही है।फिर भी पिछले 6 महीने से छुट्टी लेकर राजस्थान और मध्य-प्रदेश के 14 जिलों में निरन्तर गर्मी/वर्षा सहन करते हुये भ्रमण करते रहे हैं। नींद, भोजन आदि  सबको गौण समझते हुए केवल माता गायत्री और यज्ञ पिता का सन्देश घर-घर पहुँचाना ही इन्होंने अपना एकमात्र ध्येय बना लिया है। इस प्रकार कार्य करते-करते जब इन्हें राजसेवा का बन्धन असह्य जान पड़ने लगा तो हमने भी इनको सब बन्धनों से मुक्त होकर केवल धर्मप्रचार में लग जाने की अनुमति दे दी। 

भाई साहिब अच्छे वक्ता, विचारक और लेखक हैं, जिससे हमारे लगभग सभी परिजन परिचित हैं। इनकी माता ने भी देश-धर्म के लिए अपनी संतान को प्रसन्नता पूर्वक सौंप कर माता सुमित्रा का सा उदाहरण उपस्थित किया है, जो अन्यों के लिये भी अनुकरणीय है। ये अभी 32 वर्ष के युवक ही हैं और भविष्य में गायत्री माता के कार्य की सफलता में इनसे बड़ी-बड़ी  आशायें हैं।

श्री बालकृष्ण जी झाँसी (यू.पी.) के उच्च परिवार के 32 वर्षीय युवक हैं। सम्पन्न और सम्मिलित कुटुम्ब में अनेक भाई-बहिन, माता-पिता और अन्य सम्बन्धीजन हैं। इनके अपने परिवार में धर्मपत्नी, दो पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ हैं। आपके बड़े भाई ‘इंडस्ट्रियल कालेज’ (झाँसी) में उप-प्रधानाध्यापक हैं। ये स्वयं भी अभी तक सेंट्रल रेलवे में सीनियर ड्राफ्ट्समैन  के पद पर 250 रु. मासिक की नौकरी करते रहे हैं। आपकी रुचि आरम्भिक जीवन से ही समाजसेवा के कार्यों में रही है। देश की सुप्रसिद्ध व्यायाम संस्था “लक्ष्मी व्यायाम-मन्दिर” के संचालन तथा उन्नति के लिये 15-20 वर्ष से प्रयत्न करते आये हैं और कई वर्ष मन्त्री भी रहे हैं। संस्था के उत्थान के लिये संघर्ष करते हुए आप कारावास के लिए भी प्रस्तुत हो गये। गायत्री-मन्दिर की स्थापना के पूर्व ही आप बड़ी लगन व उत्साह से गायत्री-प्रचार व ‘अखण्ड-ज्योति’ के ग्राहक बनाने में लगे रहे। ज्यों-ज्यों आचार्य जी से संपर्क बढ़ता गया आपकी लगन व उत्साह में तीव्रता से वृद्धि होती रही। वर्तमान महायज्ञ के आरम्भिक दिनों से तो आपके हृदय की तड़पन इतनी बढ़ गई कि वह बिना आत्मदान दिये शाँत न हो सकी। इन्होंने अपने कुटुम्बियों की इच्छा के विरुद्ध भी वह साहस किया जो सामान्य भौतिक उन्नति की कामना रखने वालों के लिए असंभव है। इनकी धर्मपत्नी ने भी इस अवसर पर अपूर्व धर्म-प्रेम और सत्साहस का परिचय दिया। जहाँ अन्य कई स्त्रियों की आँखों में आँसू थे वे इनके कार्य की प्रशंसा करके अपने को धन्य मान रही थीं और अन्य बहिनों को भी साहस बंधा रही थी। पिछले वर्ष इन्होंने झाँसी और बुन्देलखण्ड के क्षेत्र में गायत्री-प्रचार का बड़ा भारी कार्य किया है और सहस्रों की संख्या में गायत्री-उपासक बनाये हैं। भयंकर ग्रीष्म की परवाह  न करके आपने कई सौ मील बाइसिकल द्वारा दौरा किया और अनेक नई शाखाओं की स्थापना कराई। गत कई महीने से नौकरी से छुट्टी लेकर तपोभूमि में रहकर यज्ञ की व्यवस्था में दिन-रात संलग्न रहे।

ये एक अच्छे धनवान पंजाबी परिवार के युवक हैं जिनकी आयु लगभग 30 वर्ष की है और अभी तक बरेली के रेलवे दफ्तर  में 175 रु. मासिक की नौकरी करते थे। पिछले दो वर्षों से इन दोनों पति-पत्नि का जीवन गायत्री तथा यज्ञ प्रचार में ही लगा रहा है। गायत्री-परिवार से इनका सम्बन्ध दिसम्बर 1954 में हुआ और जनवरी 1955 के अखण्ड-ज्योति के ‘गायत्री ज्ञान अंक’ की हजारों प्रतियाँ इन्होंने बरेली के घर-घर और दुकान-दुकान में पहुँचा कर उल्लेखनीय प्रचार कार्य किया। स्वयं भी “गायत्री से समाज-सुधार और यज्ञ क्यों करना चाहिए?” नाम की दो पुस्तकें छपा कर लोगों को वेदमाता की उपासना के लिए प्रेरित किया। प्रतिदिन दफ्तर  से घर लौटते ही भोजन करने के पश्चात ये और इनकी पत्नी प्रचार कार्य में लग जाते थे। इनका यह संकल्प था कि जब तक कम से कम एक नया गायत्री-उपासक न बना लेंगे तब तक सोयेंगे भी नहीं। इस प्रकार इनको कई बार रात-रात भर जागरण करना पड़ा है। इस प्रकार इन्होंने केवल बरेली शहर में 1300 गायत्री-परिवार के सदस्य बनाये और बीसियों स्थानों पर यज्ञ कराये। जब से महायज्ञ का आयोजन किया गया इन्होंने बरेली, बदायूँ, पीलीभीत, सीतापुर, लखीमपुर, हरदोई, मुरादाबाद, मेरठ, बुलन्दशहर, बिजनौर, लखनऊ, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, रामपुर, शाहजहाँपुर आदि उत्तर-प्रदेश के अनेक जिलों का दौरा करके नवीन शाखाओं की स्थापना कराई और एक उप-केन्द्रीय संगठन बनाया। ये निरन्तर घूमकर शाखाओं को दृढ़ बनाते रहे और इनके द्वारा यज्ञ कराके स्वयं ही उनका संचालन करते रहे। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुलोचना देवी मैट्रिक पास हैं और इस वर्ष ट्रेनिंग कालेज में अध्ययन कर रही हैं। ये अपने पति के कार्यों में जिस प्रकार पूर्ण रूप से सहयोग कर रही हैं उसे देखते हुए धर्मपत्नी कहलाने की पूर्ण रूप से अधिकारिणी हैं। गत 6 महीने से ये अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर तपोभूमि के दफ्तर  के काम को संभाल रहे थे।

ये बानपुर (जिला झाँसी) के निवासी हैं और पाँच भाइयों के संपन्न परिवार में सबसे छोटे हैं। इनकी आयु इस समय 31 वर्ष की होगी। इनके धर्मपत्नी ,3 पुत्र और एक पुत्री है। सेंट्रल रेलवे में एक अच्छी जगह पर गत 12 वर्ष से कार्य कर रहे हैं। आपका प्रारम्भिक जीवन तो बड़ा सात्विक था लेकिन  नौकरी में आते ही बड़ा भोग-लिप्सा का और तामसिक प्रवृत्तियों से युक्त हो गया।  गत 3 वर्ष से, जब से आचार्य जी के संपर्क में आये हैं और गायत्री परिवार के सदस्य बने हैं तब से साधुओं का सा त्यागमय जीवन व्यतीत करने लगे हैं और निरन्तर दिन-रात एक करके गायत्री-प्रचार में लगे रहते हैं। जब कभी इनको देखा गया इसी कार्य में संलग्न पाया। झाँसी में झोला टाँगे सदैव परिवार के कार्यों से घूमते ही दिखलाई पड़ते थे। जहाँ कहीं यज्ञ का समाचार पाया दौड़कर वहाँ पहुँचे और उसके संचालन में सब तरह का योग दिया। छुट्टियों के दिनों में तो सदैव कहीं न कहीं बाहर जाकर यज्ञ कराते रहे और शाखाओं की स्थापना करते रहे। झाँसी नगर के गायत्री-परिवार को संगठित करने और उसे व्यवस्थित रूप से संचालित करने में आपने बड़ा परिश्रम किया है। आप श्री बालकृष्ण जी के अन्यतम सहयोगी हैं और गत ग्रीष्म ऋतु में आपने उनको साथ लेकर बाइसिकलों पर 500 मील का दौरा किया था। इसमें दतिया, झाँसी, टीकम-गढ़, छतरपुर, हमीरपुर, बाँदा, कानपुर एवं इटावा तक जाकर आपने गायत्री और महायज्ञ का संदेश सुनाया जिसका परिणाम महायज्ञ के अवसर पर प्रत्यक्ष दिखाई  पड़ रहा था। गत 6-7 मास से आप अपनी नौकरी की परवाह न करते हुए  लगातार तपोभूमि में रहकर विविध यज्ञ सम्बन्धी  लेन−देन की बहुत बड़ी जिम्मेदारी के कार्य को रात-दिन परिश्रम करके इस प्रकार संभाला कि कहीं कोई गड़बड़ी न हो सकी। आपकी धर्मपत्नी तथा बच्चे भी इनकी इच्छानुसार चलकर धर्मकार्य में सहयोग देने वाले हैं।

समापन, जय गुरुदेव 

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