वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

वर्ष 1958 का दिव्य सहस्र कुंडीय यज्ञ-पार्ट 3

आज का आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद 1958 के अभूतपूर्व सहस्र कुंडीय यज्ञ की आरंभिक तैयारिओं का तीसरा एवं समापन अंक है। कल ब्रह्मस्त्र अनुष्ठान को समझने का प्रयास रहेगा। परम पूज्य गुरुदेव जैसे दिव्य शिक्षक,  जिस सरलता से हम जैसे निसिखिये बच्चों को छोटी से छोटी बात समझा रहे हैं, शायद ही इन लेखों को स्वयं पढ़कर समझ पाते।

आज के लेख में धर्मफेरी, ज्ञानमंदिर और दैनिक धर्म मुट्ठी को जिस सरलता से समझाया है, उसकी सराहना किये बिना नहीं रहा जा सकता।   

आज तो आदरणीय कुसुम त्रिपाठी बहिन जी ने “विचार-विमर्श का सुझाव” देकर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार को एक और सीढ़ी ऊपर चढ़ा दिया है। अधिकतर सक्रीय साथिओं ने समर्थन करते हुए कमेंट-काउंटर कमेंट प्रक्रिया की सराहना की एवं अधिक से अधिक कमेंट करने, काउंटर कमेंट पढ़ने, उन पर अपने विचार रखने के सुझाव को बल दिया। “जय गुरुदेव” लिखकर पल्ला झाड़ने से कुछ नहीं बनने वाला, ज्ञानप्रसाद लेखों के पीछे छिपी भावना को अंतःकरण में उतारने  के बाद ही परम पूज्य गुरुदेव से आँख मिला सकते हैं। कल वाले लेख में गुरुदेव ने Unified centralization की बात करते हुए यही कहा था कि इतना बड़ा काम तो 10000 साधकों से हो सकता लेकिन उद्देश्य आहुतिओं की गिनती का नहीं, 1 लाख साधकों की निष्ठा और श्रद्धा का है। 

आदरणीय अरुण जी के संकल्प को पूरा कराना हम सब का कर्तव्य है क्योंकि यह  सारे कुटुंब  के गौरव का विषय है। करेंगें तो हमारे श्रीराम ही, हम तो उनके रीछ वानर ही हैं। इस संकल्प तो दर्शाता आदरणीय ओंकार जी की क्रांतिकारी वाणी में बहुचर्चित प्रज्ञागीत “यही संकल्प हमारा” आज के ज्ञानप्रसाद को शोभायमान कर रहा है। 

वर्तमान लेख श्रृंखला में विशाल सहस्र कुंडीय महायज्ञ की बात हो रही है, निम्नलिखित लिंक में  गुरुदेव आज के समय से सरल यज्ञों की बात समझा रहे हैं। 

तो आइये आज की आध्यात्मिक ज्ञानकक्षा का शुभारम्भ,गुरुचरणों में समर्पित होकर विश्वकल्याण  के साथ करते हैं। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो!            

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“धर्मफेरी और ज्ञान मन्दिरों” की स्थापना के दो कार्य प्रत्येक सदस्य को सौंपे गये हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा जनता में गायत्री और यज्ञ की महत्ता का व्यापक प्रसार होगा और उसके फलस्वरूप 1 लाख व्रतधारी याज्ञिक प्राप्त हो सकेंगे। हम सबको अब इसी कार्य में लगना है। ज्ञान मन्दिरों की स्थापना के लिए चार-चार आने मूल्य की 52 पुस्तकों का गायत्री साहित्य छपने दे दिया गया है वह 2 महीने में फरवरी के अन्त तक छपकर तैयार हो जायगा। उसे मँगाने और भेजने की प्रक्रिया दो महीने बाद चलेगी। अभी इसी समय से आज से ही जो कार्य करने वाला है वोह यह है कि सक्रिय परिजन “दो-दो चार-चार की टोली” बनाकर गायत्री प्रचार की तीर्थयात्रा, परिक्रमा, धर्मफेरी करने के लिए समय निकालें। प्रत्येक घर में महायज्ञ की पूर्णाहुति का सन्देश पहुँचाने वाला कार्यक्रम सामने रहे। बड़े  नगर में  गली मुहल्ले, बड़े गांवों, छोटे गांवों के घरों की संख्या देखकर एक दिन में एक या एक से अधिक गाँवों की धर्मफेरी का कार्यक्रम रखा जा सकता है।

धर्मफेरी में वितरण करने वाला गायत्री साहित्य साधकों के  साथ रहना चाहिए और वह घर-घर में निशुल्क दिया जाना चाहिए। पैम्फलेट और पुस्तिकाएं दोनों तरह का वितरण साहित्य छापा गया है। जहाँ कुछ विशेष आशा न हो उस घर में परिपत्र देना पर्याप्त है। जिन घर में कुछ अधिक धर्म-श्रद्धा दिखाई पड़े वहाँ पुस्तक देनी चाहिए। इस प्रकार कई-कई मील के सीमा के घरों तक गायत्री यज्ञ का सन्देश पहुँचाया जाना चाहिए। ऐसे  प्रचार से प्रभावित लोगों से पुनः मिलकर उन्हें गायत्री परिवार का सदस्य एवं यजमान बनाया जाना संभव हो सकेगा। अभी कई महीने यही प्रचार-कार्य जारी रहना चाहिए। ज्ञानमन्दिरों की स्थापना का कार्य दो महीने बाद हाथ में लेना चाहिये।

धर्मफेरी में “धर्मार्थ वितरण योग्य साहित्य” की प्रधान रूप से आवश्यकता होगी। इसलिए उसे बड़ी मात्रा में जुटाया जाना आवश्यक है। यह व्यवस्था परिजनों को ही आपस में मिलकर करनी चाहिए।

साहित्य के लिए प्रत्येक परिजन  कम से कम एक मुट्ठी अन्न या एक पैसा रोज निकाले। एक छोटा सा  बर्तन या डिब्बा रख लेना चाहिए और सोचना चाहिए कि गायत्री माता, यज्ञ पिता, प्रकाश प्रदान करने वाले  आचार्यश्री  को सम्मिलित भोग लगाने के लिए मुझे कम से कम एक मुट्ठी अन्न या एक पैसा अवश्य देना है। देखने में यह योगदान बहुत ही छोटा दिख रहा है (इससे कई गुना खर्च तो घर के चूहे कर देते हैं) लेकिन इस युग के कंजूस से तो इतना सा भार  भी उठाये नहीं बनता, यह कौड़ियाँ भी उसे गिन्नियों (Gold coin) जितनी भारी लगेंगी। वह इसके लिए  बीसियों दलीलें, बीसियों कठिनाइयाँ, बीसियों कुतर्क देने में आपका समय बर्बाद करेंगें। ऐसे कंजूसों को छोड़ देना ही उचित होगा क्योंकि ऐसे लोगों के पैसे यदि यज्ञ में लगे तो विघ्न ही पड़ेगा। हमारा विश्वास है कि अधिकाँश सदस्य इस धर्मभार को आसानी से उठा लेंगे और एक-एक मुट्ठी अन्न/एक-एक पैसे की जगह,कई-कई गुना अन्न उदारतापूर्वक एवं  बड़ी प्रसन्नता से  देने को तैयार हो जायेंगें । गायत्री परिवार के सदस्यों में अनेकों ऐसे मसखरे भी कम नहीं हैं जिन्होंने जिज्ञासावश, वाहवाही लूटने के लिए, लोगों के आगे विज्ञापनबाजी के लिए सदस्यता फार्म तो भर दिया लेकिन ड्यूटी की बात आते  ही किनारा कर लेते हैं। ऐसे लोगों की छंटनी इसी स्टेज पर हो जाएगी और केवल वही परिजन बचे रह जायेंगें जिनके अंतःकरण में श्रद्धा का बीज मौजूद है।  ऐसे परिजन  इतनी छोटी माँग से कभी भी इंकार  नहीं कर सकते। हमारा पूरा और पक्का विश्वास है कि गायत्री परिवार ऐसे श्रद्धावान लोग में  हैं और बड़ी संख्या में हैं।

अनेकों बार आगे भी लिख चुके हैं, आज फिर रिपीट कर रहे हैं कि गायत्री परिवार(OGGP) झूठी वाहवाही, विज्ञापनबाजी का मंच नहीं है, यहाँ केवल त्याग, समर्पण, श्रद्धा की बात होती है, “लेने की नहीं देने” की बात होती है, परम पूज्य गुरुदेव त्याग की साक्षात् मूर्त हैं।    

महायज्ञ की पूर्णाहुति की सफलता  के लिए अब हर श्रद्धालु सदस्य को “दैनिक धर्ममुट्ठी” निकालनी चाहिए। इस अन्न या पैसे को मासिक या साप्ताहिक रूप से इकट्ठा किया जाना चाहिए और इस पैसे से तपोभूमि मथुरा से  धर्मफेरी में वितरण के लिए साहित्य मंगाते रहना चाहिए। पिछले  अंक में प्रकाशित किया  था कि 6 रु. में 108 पुस्तिकाएं मिलेंगी। अब उसमें और भी सुविधा की  गई है।  पुस्तिकाएं कम करके परिपत्र अधिक  संख्या में दिये जा रहे है। 6 रु. में 80 पुस्तिकाएं और 240 परिपत्र भेजे जा रहे हैं जो 108 घरों के बजाए  320 घरों में सन्देश पहुँचाने का कार्य करेंगे। यदि रेल द्वारा अधिक संख्या में यह साहित्य मँगाया जाय तो पोस्टेज की बचत हो सकती है। उपरोक्त साहित्य का मूल्य 5 रु. और पोस्टेज 1 रु. है। यह रेल से कम लगता है और पोस्टेज की बचत होती है। रेल से मँगाने वालों पर थोड़ा रेल भाड़ा तो लगेगा लेकिन  6 रु. वाला साहित्य 5 रु. में मिलने से अन्त में  बचत ही होगी। यह लाभ उन्हीं को है जो कम से कम बीस रुपये का  साहित्य मँगाये और रेलवे स्टेशन जिनके नज़दीक हो।

गुरुदेव के निर्देश अनुसार महायज्ञ पूर्णाहुति के लिए धन संग्रह करने की कोई योजना नहीं है। धर्ममुट्ठी में इक्क्ठा किया गया  अन्न या पैसा पूर्णाहुति खर्च के लिए न लिया जायगा। यह तो केवल प्रचार साहित्य वितरण करने के लिए ही होगा। पूर्णाहुति के इतने महत्व के, इतने पवित्र कार्य में बहुत उच्चकोटी की श्रद्धा से डूबा हुआ पैसा ही लगेगा और वह माँगने से नहीं बिना  माँगे ही आवेगा। इसलिए उसके लिए किसी से कोई याचना या अपील नहीं की जायगी। हाँ, धर्मफेरी के लिए साहित्य वितरण के लिए हर सदस्य पर जोर डाला जा रहा है। वह हर सदस्य को करना ही चाहिए। यह किये बिना धर्मफेरी के लिए समय और साहित्य के लिए धर्ममुट्ठी दिये बिना करोड़ों घरों में गायत्री माता यज्ञ पिता का सन्देश न पहुँचाया जा सकेगा और यदि यह न हो सकेगा तो ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति का संकल्प भी सफल न हो सकेगा।

जो सक्रिय सदस्य हैं,शाखा संचालक हैं, वे अपना निज का काम किसी दूसरे के सुपुर्द करें, नौकरी से कुछ महीने की छुट्टी ले लें, साधु-संन्यासी, आत्मदानी, पारिवारिक जिम्मेदारी से मुक्त, पेंशनर, पूरा समय इस प्रचारकार्य में लगा दें। अपने कुछ और साथी ढूँढ़कर लाएं और  धर्मफेरी के लिए निकल जाएँ, धर्ममुट्ठी को व्यापक बनायें  और उस पैसे से वितरण साहित्य लेकर दूर  क्षेत्रों  में अलख जगाने के लिये संलग्न हो जाएँ । 

हमें आशा और विश्वास है कि सच्चे स्वजन इस परीक्षा के अवसर पर पीछे नहीं हटेंगें और अपनी कर्तव्यपरायणता एवं श्रद्धा का प्रमाण प्रस्तुत करेंगे।

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कल वाले लेख को 468 कमेंट मिले,11 साथिओं ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है, सभी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। 


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