14 अप्रैल 2025 सोमवार का आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद – सोर्स अखंड ज्योति जनवरी 1958
आज सप्ताह का प्रथम ऊर्जावान दिन सोमवार है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की प्रथा के अनुसार सप्ताह के प्रथम दिन एक नई आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला का शुभारम्भ होता है। हमारे साथी इस बात से परिचित हैं कि नई लेख शृंखला का शुभारम्भ करने से पूर्व एक संक्षिप्त भूमिका सी प्रस्तुत की जाती है जो आने वाले लेखों को समझने के साथ-साथ उसे रोचक बनाने में बड़ी सहायक होती है। आज प्रस्तुत की गयी भूमिका, नार्मल से बड़ी होने का कारण “विशाल विषय” ही है
परम पूज्य गुरुदेव का आदेश कहें यां अपनी व्यक्तिगत जिज्ञासा, पिछले 6 माह से हम जिस विषय का स्वाध्याय कर रहे थे, अब जाकर कुछ-कुछ समझ में आया है जिसे हम इस मंच पर प्रस्तुत करने के योग्य हुए हैं।
गायत्री परिवार का शायद हो कोई परिजन होगा जिसने 1958 के सहस्र कुंडीय यज्ञ का नाम नहीं सुना होगा। 22 से 26 नवंबर 1958 में आयोजित इस महायज्ञ का स्वाध्याय करते-करते हम कहाँ से कहाँ पंहुच गए, कैसे खो से गए, शब्दों में वर्णन करने में पूर्णतया असमर्थ एवं अयोग्य हैं क्योंकि इस विषय पर केवल अखंड ज्योति के पन्नों में ही प्रकाशित विशाल एवं असीमित ज्ञान ने ही हमें चकरा दिया, बाकी तो हमने अभी छुए भी नहीं हैं।
दिसंबर 1958 वाले अंक के सारे के सारे 40 पन्नें, पूरी तरह इसी महायज्ञ को समर्पित थे। जिस तरह गुरुदेव की लेखनी हमें प्रभावित कर रही थी, हमने सोचा चाहे जितना भी समय लग जाए, अपने साथिओं को भी साथ लेकर चलना उचित होगा, हम इतने स्वार्थी तो हैं नहीं कि जीवनदान दे रहे इस कंटेंट का अमृतपान अकेले ही कर लें।
इन 40 पन्नों में समाहित ज्ञान को समझने के लिए न जाने कितनी ही बार पढ़ा होगा लेकिन सहस्र कुंडीय यज्ञ/महायज्ञ/ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान/होताओं/याज्ञिक/महासमारोह जैसे Interchangeable शब्दों के प्रयोग ने यही संकेत दिया कि ऐसे जल्दबाज़ी में काम नहीं चलेगा। एक-एक शब्द को पूरी तरह समझा जाए। इस उद्देश्य से अखंड ज्योति अंकों की Back research करनी शुरू कर दी। नवंबर,अक्टूबर, सितम्बर आदि कोई ही ऐसा अंक होगा जिसमें इस महायज्ञ के बारे में लेख न प्रकाशित हुआ होगा। आखिरकार जनवरी 1958 के अंक पर हमें रुकना उचित लगा क्योंकि इस में प्रकाशित लेख में आरंभिक जानकारी प्रकाशित हुई थी, इस लेख का शीर्षक था “वह कार्य जिसे किये बिना काम न चलेगा? हर परिजन के सामने एक चुनौती के रूप में सामने आ गया।”
तो साथिओ आने वाली लेख श्रृंखला का शुभारम्भ इसी लेख से होना उचित समझा जा रहा है। यह लेख शृंखला कितने दिन तक चलेगी, विशालता को देखते हुए,अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है।
गुरुदेव ने जिस बारीकी से एक-एक बात प्रस्तुत की है,किसी को भी छोड़ना उचित नहीं होगा। आदरणीय अरुण जी एवं आदरणीय सरविन्द जी के लिए ऐसे कंटेंट बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकते हैं। हमने सरविन्द जी को प्रत्येक छोटी से छोटी बात (यज्ञ कुंड बनाने, पंडाल लगाने, भोजन की व्यवस्था आदि) नोट करने का निवेदन किया था। गुरुदेव ने ऐसी (एवं इनसे भी छोटी) बातों का वर्णन करके यह बता दिया है कि वोह हम सबसे कितना प्यार करते हैं, हमारा कितना ख्याल रखते हैं, किसी का भी योगदान Unnoticed न जाए, यह सुनिश्चित करते हैं ।
शनिवार के विशेषांक के साथ अटैच की गयी रंग-बिरंगी स्लाइड में माँ गायत्री,माँ सरस्वती, परम पूज्य गुरुदेव की शक्ति के साथ-साथ अपने साथिओं के सहयोग को भी Acknowledge किया था, आज फिर निवेदन कर रहे हैं कि हमारा परिश्रम तभी सार्थक होगा जब हमारे साथी श्रद्धापूर्वक अमृतपान करके, कमेंट/काउंटर कमेंट करके, एक दूसरे के कमेंट से जानकारी प्राप्त करके अपने जीवन को सुखमय बना पायेंगें। हम सभी यज्ञ करते हैं,अभी-अभी मुंबई अश्वमेध यज्ञ में भी भागीदारी की है,क्या इन यज्ञों में समाहित ऊर्जा से हमारा जीवन उज्व्वल हुआ? इस प्रश्न का उत्तर आने वाले लेखों में मिलने की सम्भावना है, इसलिए कोई भी लेख मिस नहीं करना उचित नहीं होगा क्योंकि यह एक Interactive ,प्रश्नोत्तरी कक्षा है, बाद में पढ़ने पर शायद इतना लाभ न मिल सके।
इस भूमिका के साथ आज के आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ होता है।
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“वह कार्य जिसे किये बिना काम न चलेगा?हर परिजन के सामने एक चुनौती के रूप में सामने आ गया।”-श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अखण्ड ज्योति के पिछले अंक में 22 से 26 नवंबर तक होने वाले सहस्र कुंडीय महायज्ञ का वृत्तान्त छप चुका है। 1024 कुण्डों की 128 यज्ञशालाओं (प्रत्येक यज्ञशाला में 8 यज्ञ कुंड ) में 1 लाख याज्ञिकों (यज्ञ करने वाले) द्वारा 240 लाख आहुतियाँ देने तथा सभी आगन्तुकों एवं दर्शकों के लिए निःशुल्क भोजन एवं ठहरने की व्यवस्था होने का यह संकल्प “इस युग का अभूतपूर्व धर्मानुष्ठान” है। इस आयोजन के छोटे-छोटे कार्य भी इतने बड़े हैं कि उनकी पूर्ति एवं व्यवस्था की बात सोचने मात्र से सिर चकराने लगता है। हमारे जैसे तुच्छ मानव के दुर्बल कन्धों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने की बात सोचने से सचमुच ऐसा लगता है कि इसका सम्पन्न एवं सफल होना असंभव जैसा है लेकिन जो लोग “मानवीय शक्ति की तुच्छता एवं अदृश्य शक्तियों की महत्ता” को जानते है, उनके लिए इसमें अचंभे की कोई भी बात नहीं है।
ऐसे विशाल आयोजन की व्यवस्था करना, मनुष्य के लिए सचमुच कठिन एवं असंभव प्रतीत होता है लेकिन “राई को पर्वत और सुमेरु को तृण” बना देने वाली शक्ति के लिए यह सब कुछ ज़रा भी कठिन नहीं है। उसी सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान की प्रेरणा एवं पथ-प्रदर्शन में यह संकल्प लिया गया है। गायत्री तपोभूमि में समय-समय पर ऐसे ही कठिन संकल्प लिए जाते रहे हैं। इन सभी संकल्पों के पीछे किसी व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि “किसी अदृश्य प्रेरक सत्ता” का मार्गदर्शन रहा है और उसी की शक्ति से वे पूर्ण होते रहे हैं।
ऐसे विशाल आयोजन में अत्यधिक जनबल, बुद्धिबल, व्यवस्थाबल, साधनबल, एवं धनबल की जरूरत पड़ेगी जिसे जुटा पाना सामान्य मनुष्य के बस में नहीं है। ऐसा सुनिश्चित है कि प्रेरणा देने वाली सत्ता सब कुछ स्वयं ही सफलता से करा लेगी और हम सभी को भारी श्रेय से मालामाल कर देगी। इसके पूर्ण हुए सफल होने में किसी को भी सन्देह नहीं करना चाहिए।
विश्वकल्याण की दृष्टि से इस “महायज्ञ” का लाभ अत्यधिक है। यह महायज्ञ इस युग का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अभियान है एवं उसका उद्देश्य भी अत्यन्त विशाल है। महायज्ञ की विशालता के कारण पूर्णाहुति भी उतनी ही विशाल रखनी पड़ रही है। जितना बड़ा यज्ञ है उसकी शक्ति का प्रभाव भी उतना ही बड़ा होगा। व्यापक असुरता की कुप्रवृत्तियों का समाधान करके उनके स्थान पर दैवी सत्प्रवृत्तियों की स्थापना के लिए यह एक महाअभियान है। विश्वव्यापी मनुष्यों के शरीर में “आसुरी अस्वस्थता” भर गई है, अस्वस्थता के विष के कारण मानवता के सारे शरीर पर विभिन्न रंग-रूप में अनेकों फोड़े निकल पड़े हैं, अशान्ति और दुःख क्लेशों की अनेकों गुत्थियाँ उत्पन्न हो गई हैं। जिस प्रकार भौतिक शरीर पर मरहम आदि जैसे भौतिक उपचार किये जाते हैं, उसी प्रकार गायत्री परिवार द्वारा यह आध्यात्मिक उपचार आरम्भ किया गया है। यह आध्यात्मिक उपचार, रोगी के रक्त को शुद्ध करने के लिए औषधि-सेवन एवं सर्जरी जैसा ही है। इस यज्ञानुष्ठान एवं साँस्कृतिक पुनरुत्थान के विशाल कार्यक्रम को विश्वशान्ति के लिए, विश्व मानव को रोगमुक्त करने के लिए, औषधि सेवन, आपरेशन एवं “कल्प चिकित्सा जैसा आध्यात्मिक उपचार” कहा जा सकता है। कल्प चिकित्सा आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसका उद्देश्य शरीर को स्वस्थ रखना, बीमारीओं को रोकना और शरीर को पुनः शक्ति प्रदान करना है। यह महायज्ञ लोककल्याण की, मानव जाति की सेवा करने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। इसकी सफलता में सहयोग देना, विश्वमानव की, भगवान की पूजा, भगवान के खेत में बोने का एक विवेकपूर्ण आयोजन है। जो लोग इसमें सहयोग देंगे वे आध्यात्मिक दृष्टि से, परमार्थिक दृष्टि से एक बहुत बड़ा कार्य करेंगे। इतने विशाल धर्मानुष्ठान से जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे प्राप्त करके अपना आत्मबल बढ़ायेंगें, अन्तःकरण शुद्ध करेंगे,आत्मिक उन्नति का द्वार खोलेंगे, साथ ही भौतिक दृष्टि से भी कुछ घाटे में न रहेंगे। वर्ष के अंत में नवंबर माह में पूर्णाहुति के समय उत्पन्न होने वाले “प्रचंड शक्तिशाली वातावरण” में उन्हें अपने कल्याण का बहुत कुछ तत्व मिलेगा। इस यज्ञ में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति वह लाभ प्राप्त कर सकेंगे, जो साधारणतः वर्षों तक कठिन साधना करने पर भी उपलब्ध करना कठिन है। शारीरिक विकारों से ग्रस्त, मानसिक अपूर्णता एवं बीमारीओं से ग्रस्त, चिन्ता और भय से परेशान, आपत्तिग्रस्त व्यक्ति इस दुर्लभ अवसर का भरपूर लाभ उठा सकते हैं। अन्तःकरण पर चढ़े हुए कुसंस्कारों को जलाने के लिए यह अवसर सोने को तपाकर शुद्ध करने जैसा ही है। “भीतर के तमोगुण को हटाकर आत्मा में दिव्य सतोगुण की स्थापना ऐसे अवसरों पर ही होती है।” विश्व शान्ति, साँस्कृतिक पुनरुत्थान एवं देवत्व की अभिवृद्धि के सार्वभौम लाभ तो होंगे ही, साथ ही इस यज्ञ में सम्मिलित रहने वाले व्यक्तिगत सत्परिणामों को भी आशाजनक मात्रा में प्राप्त कर सकेंगे।
इस महायज्ञ से गायत्री परिवार का विशेष लाभ होगा:
एक बहुत बड़ा लाभ गायत्री-परिवार के संगठन का होगा। वह यह कि इस संगठन के सदस्यों की संख्या बहुत बढ़ गई है, उसमें खरे की अनुपात में खोटे सिक्के बहुत भर गये हैं। अब समय आ गया है कि उनकी छाँट-सफाई और परीक्षा कर ली जाय। दूध पीने के लिए लैला के द्वार पर अड़े रहने वाले मजनू कौन हैं और लैला को खून की जरूरत पड़े तो अपनी नस काट कर कटोरा भर देने वाले कौन हैं। इसकी परीक्षा अगले दस महीनों में हो जायगी।
आज के लेख का यहीं पर मध्यांतर होता है, कल वाला लेख लैला मजनू की ऐतिहासिक कथा से करेंगें।
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शनिवार वाले लेख को 522 कमैंट्स मिले एवं 10 साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है।