वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

2026 में होने वाले अविस्मरणीय कार्यक्रमों की श्रृंखला 

परम पूज्य गुरुदेव के तप साधना के 100 वर्ष, परम वंदनीय माता जी के अवतरण के 100 वर्ष एवं अखंड दीप के प्राकट्य के 100 वर्ष, अलग-अलग दिखने वाले ये तीन घटनाक्रम ठीक वैसे ही एक हैं, जैसे गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी, प्रयाग में एक धारा हो जाती हैं। इस त्रिवेणी में डुबकी लगा कर अपने जीवन को कृतार्थ करने का सौभाग्य अनेकों महाकुम्भ के समान है। आदरणीय पुष्पा सिंह बहिन जी की भांति,OGGP के अनेकों साथी इन कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए उत्सुक होंगें। प्रत्येक कार्यक्रम में बहिन जी की उपस्थिति,इस परिवार के लिए गर्व का विषय है।     

आज का ज्ञानप्रसाद, फ़रवरी 2025 की अखंड ज्योति में  “अविस्मरणीय,अद्भुत एवं अलौकिक कार्यक्रमों की शृंखला” शीर्षक से प्रकाशित लेख पर आधारित है। आज के लेख का समापन अति दिव्य निम्नलिखित पंक्तियों से हो रहा है:

शब्द सीमा सीधा लेख की और जाने का संकेत कर रही है, आज प्रज्ञागीत से स्थान पर ज्योति कलश वीडियो लगाई गयी है।  

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परमपूज्य गुरुदेव की शतवर्षीय अर्थात 100 वर्षीय (1926-2026) तप-साधना की ये घड़ी, अखण्ड ज्योति को प्रचंड ज्वाला में बदलने की घड़ी है। नई  उमंगों की, प्रेरणाओं की, प्रकाश के अवतरण की घड़ी है ।

पूज्य गुरुदेव ने कहा था कि अखंड दीपक के प्राकट्य के साथ उनके जीवन में सौभाग्य की तरंग आई। 12 फरवरी, 1978 के अपने क्रांतिकारी उद्बोधन में पूज्य गुरुदेव ने कहा: 

वर्ष 2026 की घड़ी वैसे ही आँधी-तूफान के तरीके से हर गायत्री परिजन के जीवन में आई है। इस वर्ष  को ध्यान में रखकर पिछले  2 वर्षों से ज्योति कलश यात्राएँ भारत के समस्त राज्यों से लेकर भारत से बाहर भी सिंगापुर, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका इत्यादि विभिन्न देशों में प्रेरणादायी पुरुषार्थ के साथ संपन्न हो रही हैं।

ज्योति कलश यात्रा के माध्यम से सम्पन्न हुई जनजागरण की परीक्षा को पूर्ण कर लेने के उपरांत अब दूसरे महत्त्वपूर्ण चरण में प्रवेश का क्रम सम्पन्न  किया जाना है। यह मात्र एक संयोग नहीं है कि पूज्य गुरुदेव की शतवर्षीय तप-साधना का प्रारंभ अखंड घृत-दीप की पावन उपस्थिति में प्रकट हुआ। उनकी मार्गदर्शक सत्ता द्वारा उनको गायत्री महाशक्ति के चौबीस  वर्ष के 24  महापुरश्चरण एवं समय-समय पर क्रमबद्ध मार्गदर्शन के लिए हिमालय यात्रा का निर्देश प्रदान किया ।

परम पूज्य गुरुदेव ने इन 24 शक्तिधाराओं को हरिद्वार स्थित ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के प्रथम तल पर शक्तिपुंज के रूप में प्रतिष्ठित किया। इन शक्तिधाराओं के नाम निम्नलिखित हैं : आदिशक्ति ब्राह्मी, वैष्णवी, शांभवी,वेदमाता,देवमाता, विश्वमाता, ऋतंभरा, मंदाकिनी, अजपा, ऋद्धि-सिद्धि, वैदिकी, सावित्री, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, कुंडलिनी, प्राणग्नि,भवानी, भुवनेश्वरी,अन्नपूर्णा,महामाया,पयस्विनी और त्रिपुरा शक्तिधाराओं को 

न यह संयोग था कि गायत्री मंत्र के 24 अक्षर पूज्य गुरुदेव की साधना के 24 महापुरश्चरणों का आधार बने और न यह संयोग है कि वर्ष 2026 के बाद इस सदी के पूर्वार्द्ध (21वीं सदी का प्रथम Half-2050) में ठीक 24 ही वर्ष शेष हैं। सन् 1926 से वर्ष 2050 के 24 वर्षों ने विश्व की भौगोलिक रूपरेखा को परिवर्तित करने का कार्य किया था तो यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि यह 24 वर्ष (2026 से 2050) विश्व की आध्यात्मिक रूपरेखा को लिखने का आधार बनने वाले हैं ।

वर्तमान युग में संघ-शक्ति  का ही बोलबाला/प्रभाव है । अन्य युगों में शरीरबल, धनबल, मनोबल आदि से भी आवश्यक लक्ष्य का समाधान हो जाता था लेकिन  इस युग में संघ-शक्ति ही वह साधन है जिसके द्वारा सामूहिक उद्देश्यों को पूर्ण किया जाना संभव है। इसीलिए तो कहा गया है Union is strength.  वैदिक काल में देवासुर संग्राम में परास्त होने पर ब्रह्मा जी ने माँ दुर्गा को सब देवताओं की संघ-शक्ति के रूप में उत्पन्न किया था। रावण के समय में असुरता का शमन करने के लिए ऋषियों के रक्तघट से माँ सीता का जन्म हुआ था ।

वर्तमान समय की विषाक्तता का शमन भी एक ऐसे ही 24 वर्षीय संघ-शक्ति के आध्यात्मिक प्रयोग से संभव है और इस हेतु यह आवश्यक समझा जा रहा है कि जिस तरह माँ गायत्री के पंचमुख, पंचकोश, गायत्री साधना का मूलाधार हैं, उसी तरह वर्ष 2026 से लेकर आगामी 4 वर्षों में भारत के चार कोनों,उत्तर में शांतिकुंज की पावन भूमि में, दक्षिण,पूर्व और पश्चिम में घोषित चार स्थानों पर तपोनुष्ठान को संपन्न करने के बाद भारत के हृदयांचल दिल्ली में एक कार्यक्रम “पंचम पुरुषार्थ” के रूप में संपन्न हो ।

इन कार्यक्रमों को 24 वर्षीय तप-अभियान का प्रारंभ माना जाए, समापन नहीं। भारत के इन चार कोनों पर किए जाने वाले कार्यक्रमों का आधार दिव्यता होगा, भव्यता नहीं । परमपूज्य गुरुदेव ने कहा था:

ऐसा सोचा गया है कि भारत के चार कोनों पर होने वाले प्रत्येक कार्यक्रम में 24,000 गायत्री साधकों की 30 या 40 दिवसीय तप साधना की पूर्णाहुति संपन्न हो। गायत्री साधना,पूज्य गुरुदेव द्वारा निर्दिष्ट साधनात्मक अनुशासनों के साथ ही संपन्न हो । इस अवधि में ब्रह्मचर्य आवश्यक है। जिनके लिए जितना संभव हो, उपवास करें। बालक, वृद्ध या दुर्बल प्रकृति के व्यक्ति,फलाहार या अस्वाद भोजन का प्रयोग कर सकते हैं। चमड़े की वस्तुओं का पूर्णरूपेण त्याग आवश्यक है। इस अवधि में साधनात्मक कार्यों हेतु इसी उद्देश्य एवं भावना से निर्मित वस्तुओं (माला, आसन, हवन सामग्री आदि) का   उपयोग किया जाए जिन्हें शांतिकुंज हरिद्वार के स्वावलंबन केंद्र में अहर्निश गायत्री मंत्र की ध्वनि के उच्चारण में निर्मित किया गया है। अनुष्ठान की अवधि में अपने शरीर के लिए दूसरों की सेवा कम-से-कम लेना ही उत्तम रहता है।

जो लोग “अध्यात्मवाद की महत्ता” को स्वीकार करते हैं, पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जिनके हृदय में स्वतः संकल्प उभरता है, मात्र ऐसे ही साधकों को यह संकल्प लेना चाहिए, दिखावे के लिए नहीं। केवल युगतीर्थ शांतिकुंज,हरिद्वार में गायत्री तीर्थ होने के कारण 2,40,000 साधकों की आहुति का क्रम रखा गया है, शेष तीनों स्थानों पर 24,000 साधकों की आहुतियाँ दिए जाने का क्रम रखा गया है।

शास्त्रों में भगवान का एक नाम “यज्ञपुरुष” भी है। शतपथ ब्राह्मण की उक्ति: यज्ञो वै विष्णुः का अर्थ इसी रूप में लिया जाता रहा है।  यज्ञस्य मन्त्रः वेदस्य विषयः कहने का अर्थ भी यही  है कि सामान्य जीवन के हर महत्त्वपूर्ण कृत्य का आधार यज्ञ माना गया है ।

जिस तरह पाँच आहुतियों से,पंच बलियों से दैनिक बलिवैश्य यज्ञ  की शुरुआत होती है, वैसे ही इन चार स्थानों पर गायत्री साधकों की गायत्री उपासना का अंश जुड़ने के साथ इस 24 वर्षीय तपोनुष्ठान की शुरुआत हो रही है। देशव्यापी गायत्री उपासकों, साधकों को एक सूत्र/श्रृंखला में जोड़कर, उनके मणिमुक्तकों को परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी को समर्पित किया जाए तो इससे बढ़कर उपहार उनकी जन्मशताब्दी पर दूसरा कोई नहीं हो सकता।

चार स्थानों पर होने वाले यज्ञीय अनुष्ठान उन साधकों के द्वारा ही संपन्न होगा जिन्होंने संकल्प पत्र भरे होंगें। अनुष्ठान संपन्न होने के बाद इन्हीं साधकों में से 24,000 ऐसे “समाज निर्माणी ऋत्वजों” का कार्यक्रम भारत के केंद्र दिल्ली में करने की योजना है  जो पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी के विचारों के प्रसार हेतु भ्रमण, परिश्रम, भावना संचार जैसे कठिन भार को अपने कंधे पर उठाने के लिए तैयार हों ।

उनके ज़िम्मे निम्नलिखित कार्य सौंपने का प्रस्ताव है : 

(1) अपने निकटवर्ती केंद्रों में जाकर बिना किसी अपेक्षा के, गुरुसत्ता के आदेशानुसार मूक-साधक तैयार करना ।

( 2 ) नए सदस्य, शाखाएँ, केंद्र बनाने के लिए प्रयत्न करना ।

(3) अपनी गतिविधियों की नियमित जानकारी शांतिकुंज को भेजते रहना एवं

(4) अखण्ड ज्योति स्वयं पढ़कर तथा दूसरों को पढ़ाकर, विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयत्न करना।

पंचबलियों रूपी, इस बलिवैश्य से जो महानुष्ठान प्रारंभ होगा, उसका उद्देश्य 24 वर्षीय तपोशक्ति ऊर्जा को जन्म देना है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए 2026 से प्रारंभ होकर 2050 तक 108 स्थानों पर, केवल  भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने में-ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित करने की योजना है जो उस क्षेत्र के जागरण का आधार बन सकें । उस स्थान की क्षमता, सामर्थ्य को देखते हुए वहाँ भाग लेने वाले साधकों की संख्या 240, 2,400 से लेकर 24,000 तक हो सकती है लेकिन  ध्यान इस बात का रखा जायेगा कि संकल्प नियमपूर्वक पूर्णता के भाव से लिए जाएँ, दिखावे या प्रदर्शन के लिए नहीं। इन स्थानों पर युगचेतना को साधक बनाने के संकल्प को अतिरिक्त परिचय सत्र, प्रेम,आत्मीयता गतिविधि, प्रगति प्रस्ताव पर समीक्षा बैठकों जैसे वे सभी कार्य करने आवश्यक हो जाते हैं जिनके विषय में पहले भी अनेकों बार बोला  गया है/ लिखा गया है।  

अखंड दीपक के प्राकट्य, परम वंदनीय माताजी के अवतरण एवं पूज्य गुरुदेव की तप साधना के 100  वर्ष पूर्ण होने की सौभाग्यशाली घड़ी में, इस त्रिवेणी के लिए,हमारी श्रद्धांजलि इसी रूप में चढ़े, जिस रूप में गुरुसत्ता को हमसे अपेक्षा थी। साधना के आधार पर ही यज्ञाग्नि के प्रवाह में प्रचंडता आती है और वो ही प्रयास यहाँ किया जा रहा है। अपने प्रारंभिक वर्षों में अखण्ड ज्योति 500 प्रतियों के रूप में छपती थी, बढ़ते-बढ़ते वह संख्या लाखों में पहुँच गयी है । जितना कार्य हुआ है उस पर गर्व तो किया जा सकता है, लेकिन पर्याप्त नहीं माना जा सकता है। अकेले भारत की ही जनसँख्या 145 करोड़ है, गायत्री परिवार की सदस्य संख्या को देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि एक बड़ा क्षेत्र अभी भी पूज्य गुरुदेव एव वदनीय माताजी के विचारों को सुनने-पढ़ने-जानने की प्रतीक्षा कर रहा है।  इन आध्यात्मिक आयोजनों का मूल उद्देश्य यही  है कि 

समापन 

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कल वाले लेख को 562 कमेंट मिले हैं एवं 11 साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है, बहुत बहुत धन्यवाद् 


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