वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

वर्ष 2026 गायत्री परिवार के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समक्ष प्रस्तुत किया गया आज का आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख, कल वाले लेख के साथ दो भाग में एक विशेष सन्देश लेकर आया है। इस परिवार का शायद ही कोई सदस्य हो जो वर्ष 2026 के महत्व से परिचित न हो। युगतीर्थ शांतिकुंज से पिछले एक वर्ष से इस महान पर्व के बारे में, “ज्योति कलश की दिव्यता” के बारे में बताया जा रहा है। 

परम पूज्य गुरुदेव के तप साधना के 100 वर्ष, परम वंदनीय माता जी के अवतरण के 100 वर्ष एवं अखंड दीप के प्राकट्य के 100 वर्ष, अलग-अलग दिखने वाले ये तीन घटनाक्रम ठीक वैसे ही एक हैं, जैसे गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी, प्रयाग में एक धारा हो जाती हैं।

फ़रवरी 2025 की अखंड ज्योति में प्रकाशित हुए दो दिव्य लेख आज और कल के लेख की आधारशिला बना रहे हैं। पहले लेख का शीर्षक “ज्योति अब ज्वाला  बनेगी” और दूसरे लेख का शीर्षक “अविस्मरणीय,अद्भुत एवं अलौकिक कार्यक्रमों की शृंखला”, दोनों ही अपने अंदर वह ज्वाला लेकर आये हैं कि जिन्होंने भी इन  लेखों का  पहले अमृतपान किया है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रकाशित होने वाले दोनों लेख (आज और कल) पढ़े बिना रह नहीं पायेंगें, ऐसा हमारा अटूट विश्वास है। इस अटूट विश्वास का आधार वोह दिव्य कंटेंट है जो इन लेखों में समाहित है। श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने इन लेखों के संपादन में जिस दिव्यता का प्राकट्य किया है, उसके लिए हम नतमस्तक हैं। 

अगर गुरुदेव का आदेश मिला तो इन दोनों लेखों के समापन के बाद, पीडीऍफ़ फॉर्म में, एक लघु पुस्तिका के रूप में इंटरनेट आर्काइव में भी शेयर करेंगें ताकि आने वाले समय में शतशताब्दी को समर्पित यह महत्वपूर्ण कंटेंट पाठकों के ह्रदय में एक विशेष स्थान बनाये रखे। 

सभी परिवारजनों से सादर आग्रह करते  हैं कि वर्तमान लेख एवं कल वाले लेख का अमृतपान  अधिक श्रद्धा/भक्ति से  करें क्योंकि जहाँ आज का लेख गुरुदेव द्वारा समय-समय पर दिए गए उद्बोधनों की हाइलाइट्स लिए हुए है वहीं कल वाला लेख आगे के 24 वर्षों की (2026 से  2050 तक) की आध्यात्मिक रूपरेखा लिए हुआ है। 

इसी संक्षिप्त सी भूमिका के साथ,विश्वशांति की कामना के साथ,सभी परिवारजनों को आज के ज्ञानामृत के  पयपान के लिए सूक्ष्म सादर निमंत्रण है, आइये गुरुचरणों में समर्पित हो जाएँ। 

**************************           

अखण्ड ज्योति की  दैवी ऊर्जा से अनुप्राणित पृष्ठों पर 1988 में लिखे गए उपरोक्त वाक्य, 36 वर्ष पूर्व जब पूज्य गुरुदेव की कलम से क्रांतिरूप में प्रवाहित हुए तो वो समय उनकी सूक्ष्मीकरण साधना का समय था। साधना चरम पर थी, लेखनी ज्वाला का रूप ले चुकी थी, गायत्री परिवार मत्स्यावतार के रूप में विश्व-वसुधा को अपने अंदर  समेटने के लिए व्यग्र नजर आ रहा था और इन्हीं उल्लेखनीय घटनाक्रमों के बीच  पूज्य गुरुदेव धीरे-धीरे  अपनी भौतिक शरीर यात्रा को समेटते हुए भी नजर आ रहे थे ।

गायत्री परिजनों को न चाहते हुए भी अनुभूति हो रही थी कि गुरुदेव  अपनी लौकिक यात्रा समेट लेंगे। जो परिजन उस सत्य से परिचित होते हुए भी अपरिचित थे, उनके लिए परमपूज्य गुरुदेव ने इसी लेख में आगे लिखा भी कि “शरीर-परिवर्तन की वेला आते ही यों तो हमें साकार से निराकार होना पड़ेगा लेकिन  क्षण भर में ही उस स्थिति से अपने को उबार लेंगे और दृश्यमान प्रतीक के रूप में उसी अखंड दीपक की ज्वलंत ज्योति में समा जाएँगे, जिसके आधार पर “अखण्ड ज्योति नाम” से संबोधन अपनाया गया है। शरीरों के निष्प्राण होने के उपरांत जो चर्मचक्षुओं से हमें देखना चाहेंगे, वे इसी अखण्ड दीप  की जलती लौ में एवं अखंड ज्योति के पन्नों  में हमें देख सकेंगे।’

जिन परिजनों के भीतर, इन  शब्दों के पीछे संदेश को समझ पाने की सामर्थ्य है, वे पूज्य गुरुदेव के इशारे  का अनुमान लगा सकते हैं कि 

यह मात्र एक संयोग नहीं है कि 15 वर्ष की आयु में प्रकाश पुंज के रूप में जब गुरुवर को उनकी अलौकिक मार्गदर्शक सत्ता के दर्शन हुए तो उन्होंने उन्हें अखंड घी के दीप की स्थापना एवं उसी अखंड दीप के प्रत्यक्ष सान्निध्य में महापुरश्चरणों की श्रृंखला को संपन्न करने का निर्देश प्रदान किया ।

अक्सर  लोग गुरुओं को ढूंढते, मारे-मारे फिरते रहते हैं लेकिन  पूज्य गुरुदेव जैसे सुपात्र को ढूँढ़ते हुए उनके गुरु ही उनके पास पहुँचे थे। 

पूज्य गुरुदेव ने इस क्षण को  “सौभाग्य का सूर्योदय” कहकर पुकारा,सच में  वह स्थिति हम सबके सौभाग्य का सूर्योदय था, युगनिर्माण योजना के अविस्मरणीय विस्तार का बीजारोपण था और जिस अखंड दीपक के सान्निध्य में यह सब घटा था, हम सब गायत्री परिवारजन उसी अखंड दीपक के प्राकट्य की शताब्दी को वर्ष 2026 में मनाने जा रहे हैं ।

गणना करने वालों के लिए सौभाग्यों की श्रृंखला में यह एक ऐसा सौभाग्य होगा, जिसका साक्षी बन पाने का अवसर सहस्रों जन्मों के पुण्योदय पर ही मिलता है- पहले नहीं ।

सन् 2026 में परमपूज्य गुरुदेव की तप साधना के एवं परम वंदनीया माताजी के इस धरा धाम पर अवतरण के 100  वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। विगत 100  वर्ष गायत्री परिवार की अलौकिक यात्रा के इतिहास में कुछ ऐसे रहे हैं, जिनके विषय में लिखते हुए स्याही कम पड़  जाएगी लेकिन पृष्ठ तब भी कम पड़ने वाले हैं। 

आँवलखेड़ा स्थित  पूजा की कोठरी से प्रारंभ हुई यात्रा देखते-देखते एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन में परिवर्तित हो गई। बीज देखते-देखते विशाल वृक्ष में बदल गया । इस अवधि में ईंटों ने इमारत का, शब्दों ने शास्त्र का और पुकार ने गूँज का रूप  ले लिया ।

अब समय आ गया है कि विस्तार को समग्रता दी जाये  । इमारत खड़ी हो जाने के बाद शिल्पकार यह देखता है कि कहीं सीमेंट लगना शेष तो नहीं रह गया,कोई कोना बिना रंग-रोगन के, पेंट के नजर आता है तो उसे रँगने-भरने का काम समग्रता देने की दृष्टि से किया जाता है। बस, कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी अब हमारे कंधों पर आई है। पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की योजना की परिधि में मात्र हरिद्वार नहीं बल्कि  संपूर्ण विश्व आता है। 

ये कार्य हमारी जिम्मेदारी में आया है कि जहाँ-जहाँ तक पूज्य गुरुदेव-वंदनीया माताजी के विचारों की गूँज पहुँचनी शेष रह गई है, हम उसे वहाँ-वहाँ तक उसे पहुँचाने वाले बन जाएँ, ठीक वैसे ही, जैसे इमारत को अंतिम स्वरूप, “फाइनल टच” देने वाला शिल्पकार यह सुनिश्चित करता है कि कहीं कोई कोना बिना रंग-रोगन के, बिना सीमेंट के रह तो नहीं गया ।

परम वंदनीया माताजी और अखंड दीपक दो विभिन्न चेतनाओं के नाम नहीं हैं बल्कि  एक ही चेतना का नाम है। परिजनों  को स्मरण  होगा कि वर्ष  1971 में परम पूज्य गुरुदेव मथुरा में  विदाई संदेश देकर अखंड दीपक को परम वंदनीया माताजी के दिव्य संरक्षण में सुरक्षित रखकर हिमालय यात्रा पर निकल गए  थे । उसका अर्थ ही यह था कि दोनों : चेतनाएँ अभिन्न हैं ।

हर गायत्री परिजन को यह स्मरण रख लेना चाहिए कि पूज्य गुरुदेव की तप साधना के 100  वर्ष, अखंड दीपक के प्राकट्य के 100  वर्ष एवं परम वंदनीया माताजी के अवतरण के 100  वर्ष, अलग-अलग दिखने वाले ये तीन घटनाक्रम ठीक वैसे ही एक हैं, जैसे गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी, प्रयाग में एक धारा हो जाती हैं।

इस दृष्टि से वर्ष 2026, हर गायत्री परिजन के लिए एक आवाहन लेकर उपस्थित होने वाला  है और वो आवाहन यह कि हम गुरुसत्ता के पावन प्रकाश को विश्व के घर-घर तक पहुँचा सकें। जब पूज्य गुरुदेव ने अखण्ड ज्योति को लिखना आरंभ किया था तो अनेकों गणमान्यों ने उनको निरुत्साहित करने का कार्य किया और यह कहना आरंभ किया कि कैसे ये आर्थिक दृष्टि से आत्मघात के समान है। उन्हें प्रत्युत्तर देने के स्थान पर पूज्य गुरुदेव ने अखण्ड ज्योति में ही लिखा कि 

उनकी जलाई हुई ज्योति न केवल जलती रहेगी, बल्कि और प्रचंड होगी । पूज्य गुरुदेव ने वर्ष  1988 की जनवरी की अखण्ड ज्योति में लिखा भी था कि 

कहने का अभिप्राय स्पष्ट है कि हमारा दायित्व अखण्ड ज्योति को और प्रचंड बनाने का है। यह सौभाग्यशाली समय हर गायत्री परिजन के लिए एक ही पुकार लेकर उपस्थित हुआ है कि वे युगसृजेताओं की पंक्ति में अपना नाम सबसे आगे लिखा सकें। सौभाग्य का प्रवाह उमड़ रहा है, क्रांति की ज्वाला दीप्तिमान है, भावनाशीलों को पुकारा गया है, जिन्हें महाकाल की पुकार सुनाई पड़ती हो, वो चुप न बैठें, आगे आएँ और समाज को अभिनव दिशा दिखाने का प्रयत्न करें। अखण्ड ज्योति की प्रचंड ज्वाला क्रांतिदूतों को पुकार रही है कि वो उस मशाल को हाथ देने वाले बन सकें, जिसे स्पर्श करने का सौभाग्य भी सौभाग्यशालियों को ही मिलता है।

क्रमशः जारी- To be continued 

संजना बेटी ने “यज्ञ चिकित्सा”  पुस्तक के बारे में कमेंट किया था, 394 पन्नों की पुस्तक का लिंक यहां दे रहे हैं:

https://archive.org/details/jYci_yagya-chikitsa-hindi-by-brahmavarchas-sri-vedamata-gayatri-trust-haridwar/mode/1up

*************************

कल वाले लेख को 470 कमेंट मिले एवं 10 साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। सभी को हमारा धन्यवाद्। 


Leave a comment