वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गायत्री परिवार का समुद्र-मन्थन कितना प्रभावशाली ? 

आज के आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख के शीर्षक से ही संकेत हो रहा है कि आज ही समापन होने वाला यह  लेख कितना रोचक और ज्ञानवर्धक हो सकता है। 

अखंड ज्योति 1958 के अक्टूबर अंक में “इस विष से सावधान रहिये” शीर्षक से प्रकाशित लेख में गुरुदेव गायत्री परिवार की योजनाओं की  सफलता के लिए पौराणिक अमृत-मन्थन का उदाहरण दे रहे हैं। जब भी कोई उत्कृष्ट कार्य किया जाता है, शत्रुओं द्वारा उसे असफल करने के बहुत शक्तिशाली प्रयास किये जाते हैं। ऋषि विश्वामित्र के तप को भंग करने के लिए असुरों ने ऐसे  प्रयास किये कि ऋषिवर स्वयं घबरा गए और राजा दशरथ से सहायता मांगने के लिए दौड़ पड़े। 

युगनिर्माण योजना कोई छोटी मोटी योजना नहीं है। युग को  बदल देने वाली योजना जितनी विशाल है, विरोध भी उतना ही बड़ा होगा। विरोध करने वालों को डर था कहीं अपनी दुकानदारी न बंद हो जाये। गायत्री परिवार की रचना केवल दो वर्ष पहले 1956 में ही हुई थी, शक्ति कम  थी लेकिन सत्य की राह पर चलने वालों के साथ सदैव ईश्वर होते हैं। गुरुदेव के इस अटूट विश्वास ने आज गायत्री परिवार को जिस स्थान पर पंहुचा दिया है उस पर चर्चा करना न तो हमारी योग्यता है न ही समर्था। हाँ इतना विश्वास ज़रूर है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जैसे छोटे से परिवार  के समर्पित साथिओं के कारण यह परिवार दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की कर रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण संपर्क-साधना एवं साप्ताहिक विशेषांक का  विचार-मंथन ही है।

आज के लेख में दुर्बुद्धि,दुर्भावना,स्वार्थपरता,पाखण्ड जैसे अनेकों विषरुपी प्रवृतियों  को हमारे अंतकरण से निकाल फेंकने और “आध्यात्मिक ज्ञानरूपी अमृत” का पयपान कराने का दिव्य सन्देश है। जब हम दुर्बुद्धि से सद्बुद्धि की ओर अग्रसर होंगें तो निश्चित ही  ज्ञान का अमृत हमें अमर कर देगा। जिस प्रकार ज्ञान का Oppositeअज्ञान होता है उसी प्रकार मृत का Opposite अमृत (अमर) होता है।

आइये इसी सन्देश को धारण करते हुए, गुरुचरणों में समर्पित हो, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती एवं सद्बुद्धि की देवी माँ गायत्री से आशीर्वाद प्राप्त करते आज के दिव्य आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ करें।      

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जब समुद्र-मन्थन  हुआ था तो उसमें से सबसे पहले विष, फिर मदिरा उसके बाद अन्य रत्न निकले थे। युगनिर्माण के सपने  को सार्थक करने के लिए, मूर्छित समाज को जागृत करने के लिए, गायत्री संस्था द्वारा “अमृत” निकालने के लिए समुद्र-मन्थन का कार्य हो रहा है, जिसका पयपान करने से यहाँ के निवासी इस देवभूमि को भूसुरों (भूमि के असुर) की निवास-स्थली (मथुरा) प्रत्यक्ष रूप में दिखा सकें। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार मथुरा में असुरों का वास था जहाँ लवणासुर और कंस जैसे असुरों का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि शत्रुघ्न ने मधुवन में लवणासुर का वध किया था। सभी जानते हैं कि कंस भगवान कृष्ण के मामा और मथुरा के  राजा को असुर के रूप में जाना जाता है। मधु नाम के दानव ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर त्रिशूल मांगा था जिससे अत्याचार बढ़ने लगे थे। उग्रसेन को मथुरा का राजा बताया जाता है, जो कंस के पिता थे।  सुरसेन को कंस की बहन के ससुर के रूप में जाना जाता है 

गुरुदेव बताते हैं कि यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह समुद्र-मन्थन ठीक प्रकार से चल रहा है या नहीं। इसकी प्रारम्भिक परीक्षा तो यही है कि इस मन्थन में  कितना विष निकलता है। जब सड़ी हुई कीचड़ की नाली साफ की जाती है तो उसमें से नाक फाड़ने वाली बदबू उड़ती है। 

दुर्बुद्धि की, दुर्भावनाओं की स्वार्थपरता और पाखण्ड की कीचड़ बहुत दिनों से  हमारे धार्मिक एवं साँस्कृतिक क्षेत्र में पड़ी सड़ रही है। उस पाखंड की कीचड़ को निकाल फेंकने से अनेकों लोगों के स्वार्थों को हानि पहुँचती है, स्वाभाविक है कि ऐसे लोग  विरोध करेंगे। विश्व में जब कभी भी असुरता को नष्ट करने वाले अभियान हुए हैं, उनके प्रतिरोध के लिए असुरों ने पूरी शक्ति से प्रत्याक्रमण किये हैं। त्रेतायुग  में इस प्रकार के अभियान में संलग्न ऋषियों को कच्चा चबा-चबा कर असुरों ने हड्डियों के पहाड़ लगा दिये थे। विश्वामित्र के अभियान के विरुद्ध मारीच, सुबाहु, ताड़का की पूरी सेना संघर्ष में रत हुई। वह आक्रमण इतने प्रचण्ड थे कि विश्वामित्र घबरा गए,अपने लक्ष्य  की असफलता का प्रभाव  अनुभव करने लगे। अन्त में राजा दशरथ के यहाँ जाकर उनके पराक्रमी पुत्रों को सहायता के लिए माँग कर लाए।

क्रिया की महत्ता प्रतिक्रिया से ही जानी जाती है। बुखार की गर्मी को थर्मामीटर से नापा जाता है। गायत्री-परिवार का समुद्र मन्थन कितना शक्तिशाली एवं प्रभावपूर्ण है इसकी एक ही पहचान है कि विरोधी आसुरी तत्व इससे कितने परेशान हुए और उन्होंने इसे असफल बनाने का कितना प्रयत्न किया है। जहाँ तक सूचनाएं प्राप्त हुई हैं विरोध, निन्दा, आक्रमण के समाचार जगह-जगह से आ रहे हैं। यह बड़े सन्तोष के समाचार हैं । गुरुदेव विरोध, निन्दा, आक्रमण के समाचारों को सन्तोष के समाचार इसलिए कह रहे हैं कि उन्हीं के आधार पर पता चल सकता है कि हमारा कार्य कितनी उच्च स्थिति में है । यदि कोई कार्य नगण्य होगा तो उसका विरोध भी नगण्य ही होगा। यदि कार्य में कुछ गहराई है तो उसे असफल बनाने के लिए शत्रु अथक प्रयास करेंगे। ऐसी ही स्थिति में कार्यकर्त्ताओं की श्रद्धा का मूल्यांकन होता  है। यदि कार्यकर्ता ढीले मन के, अस्थिर विचारों के, अधूरे विश्वास के होंगे तो वे आसानी से बहक जायेंगे। उनकी बुद्धि भ्रम में उलझ कर इस दिव्य अवसर से हाथ खिंचवा लेगी। कोई-कोई तो सहयोग करने के बजाए विरोधी भी बन जाएंगे। जिन साथियों को गुरुदेव ने पात्रता के आधार पर जंजीरों से जकड़  कर  अपने परिवार में शामिल किया है, वही सच्चे होंगे, वही ऐसी स्थिति में काम आने वाले सच्चे मित्रों की तरह अन्त तक मोर्चे पर अड़े रहेंगे।

कार्य की महत्ता तथा साथियों की श्रद्धा की परीक्षा, विरोधी आक्रमणों के अतिरिक्त और किसी भी प्रकार नहीं हो सकती क्योंकि सच्चाई में हज़ार हाथियों के बराबर जैसा बल होता है । यही वोह स्थिति होती है जब सत्यरूपी प्रह्लाद की रक्षा भगवान नृसिंह स्वयं करते हैं। नृसिंह (नर-सिंह) मनुष्यों में जो सिंह स्वरूप वीर पुरुष हैं वे धर्मवृक्ष को गिरने से बचाने  के लिए अपना पूरा सहयोग देते हैं। विश्वामित्र रूपी प्रह्लाद के लिए राम और लक्ष्मण नृसिंह ही थे। जब कभी भी धर्म को नष्ट करने वाले कठोर अधर्मी आक्रमण होते हैं  तब संरक्षक नृसिंह भी सामने आ ही जाते हैं और धर्म की नैया डूबते-डूबते बचा लेते हैं।

गायत्री-परिवार के कार्यक्रमों के पीछे “सत्य की दिव्य शक्ति” मौजूद है। इसलिए हममें से किसी को रत्ती भर भी विचलित होने की जरूरत नहीं है लेकिन प्रह्लाद की तरह कठिन परीक्षा देने को तैयार रहना ही होगा। 

गुरुदेव ने अखंड ज्योति के अक्टूबर 1958 अंक में निम्नलिखित अपडेट के बारे लिखा:

सभी शाखाएं तथा गायत्री उपासक इस माह अपने कार्यों की  सूचनाओं के साथ-साथ यह समाचार पूरे विस्तार से लिखें कि उनके धर्मकार्यों को असफल बनाने के लिए आसुरी तत्वों ने क्या-क्या कार्य किये।

आज के युग में तलवार से सिर काटने का असुरता का हथियार काम में नहीं आता,अब तो इसका प्रचार अस्त्र बुद्धिभ्रम पैदा करना, बेसिर पैर की बातें कहकर, बेजड़-मूल के लाँछन लगाकर लोगों के नव-अंकुरित धर्मोत्साह को समाप्त कर देना ही है। असुरता का यह अस्त्र कहाँ कितनी तेज से घूम रहा है, इसका पूरा विवरण इस माह प्रत्येक गायत्री उपासना केन्द्र से लिखा हुआ आना चाहिए। साथ ही यह भी उल्लेख रहना चाहिए कि उस आक्रमण से अपनी सेना के कितने साथी घायल हो गये, कितने पीठ दिखाकर भाग गये तथा कितनों ने उनका मुकाबला किया। नृसिंह का कार्य किन-किन वीर पुरुषों ने कितनी सीमा तक पूर्ण किया।

युग निर्माण के लिये हमें इस बात की जांच करनी है कि “आध्यात्मिक अमृत” निकालने के प्रयोजन से जो समुद्र मन्थन हो रहा है, उसकी शक्ति अब तक किस सीमा तक पहुँच चुकी है।

सभी परिजन अपने क्षेत्र के आसुरी आक्रमणों, उसके परिणामों तथा उनसे स्वयं को बचा लेने के प्रयत्नों की पूर्ण सूचना दें। आगे भी समय-समय पर इस प्रकार के विवरण माँगे जाते रहेंगे ताकि वस्तुस्थिति का पता चलता रहे। ऐसा अक्सर देखने में आता रहा है कि किसी संस्था की धर्मसेवाएं जितनी ही तीव्र होती चलेंगी, आसुरी शक्तियां भी उतनी ही प्रबल होंगी। ऐसे संघर्षों का भी एक बड़ा ही मनोरंजक एवं उत्साहवर्धक इतिहास बन जाता है। 

विश्व में जब-जब युग निर्माण के प्रयास हुए, प्रत्येक अवसर पर भारी संघर्ष हुए हैं। इस बार भी ऐसे संघर्ष होने अनिवार्य है, अन्तर केवल अस्त्रों का है। इस संघर्ष में विरोधी पक्ष तलवार के बजाय बुद्धिभ्रम फैलाने वाले गोले दागेगा। आत्मरक्षा के लिए हम में से हर एक को सतर्क रहना चाहिए। आज के धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में इस “संघर्षात्मक महाभारत” का जो सूत्रपात हो रहा है उसमें हर परिजन को अपना कार्य यथासंभव व्यवस्थित रहकर पूरा करना है।

समुद्र मन्थन का विष निकल रहा है। जैसे जैसे यह मन्थन तीव्र होगा, विष और भी वेग के साथ उफनेगा। इससे साधारण श्रेणी के दुर्बल परिजनों को बचाया जाना चाहिए क्योंकि उनके द्वारा विष को समेटने के लिए स्वयं को खतरों में डालने की संभावना हो सकती है। अगर इस अमृत मंथन से  नृसिंह और राम-लक्ष्मण न निकले तो यह प्रह्लाद- विश्वामित्र का प्रतीक आन्दोलन संकटपूर्ण स्थिति को पहुँच सकता है। रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ-साथ हमें बचाव के सुरक्षा मोर्चे का भी ध्यान रखना होगा। तभी इस “चतुर्मुखी संघर्ष के चक्रव्यूह” को पार करना सम्भव हो सकेगा।

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कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख को 500 कमैंट्स/काउंटर कमैंट्स मिले एवं 11 साथिओं ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् 


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