25 मार्च 2025 का ज्ञानप्रसाद-सोर्स काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकुल स्थित पावन यज्ञशाला में ज्ञानयज्ञ की आहुतियां देने के लिए परम पूज्य गुरुदेव के हम सब समर्पित बच्चे आज मंगलवार को गुरुचरणों में समर्पित हो रहे हैं। माँ गायत्री एवं गुरुदेव से निवेदन करते हैं कि हमें विवेक का दान दें। वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती से निवेदन करते हैं कि अपने बच्चे को इतना योग्य बना दो एवं उसके सिर पर हाथ धरो माँ ताकि उसकी लेखनी सदैव चलती रहे।
आज प्रस्तुत किया गया आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख इस तथ्य की चर्चा कर रहा है कि प्राण ऊर्जा परमाणु ऊर्जा से कम नहीं है अर्थात Life energy is stronger than Atomic energy
परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित पुस्तक “काया में समाया प्राणाग्नि का ज़खीरा” का छठा एवं अंतिम चैप्टर प्राण ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा की तुलना के विषय की चर्चा का रहा है। आज इस विषय का पहला भाग प्रस्तुत किया गया है और कल इस लेख श्रृंखला का समापन लेख प्रस्तुत करने की योजना है।
हम ब्रह्माण्ड से लाइफ एनर्जी अर्थात ऑक्सीजन Inhale करते हैं, जो ह्रदय में हमारे रक्त को शुद्ध करती है, यह शुद्ध रक्त शरीर के हर भाग में ऊर्जा का संचार करता है। शरीर की हर गतिविधि में शुद्ध रक्त का बहुत बड़ा योगदान है। भोजन को ही ले लें; कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, फैट आदि सब ऑक्सीजन द्वारा एनर्जी पैदा करते हैं जो शरीर के प्रत्येक Cell में पहुँचती है , हम जानते हैं कि हमारे शरीर में खरबों Cells होते हैं।
तो आइये देखें आज का लेख क्या पढ़ा रहा है।
******************
हमारा सारा शरीर ऊर्जा से परिपूर्ण है। यह ऊर्जा जीवन को संचालित करती है और इसके अभाव में जीवन नष्ट हो जाता है। इस बात से वैज्ञानिक भी सहमत हैं कि हमारा शरीर ऊर्जा का भंडार है। जिस प्रकार परमाणु बम में ऊर्जा के परमाणु होते हैं और जिसके हरेक परमाणु में भयंकर विस्फोट की संभावना छिपी रहती है उसी प्रकार हमारे शरीर में “ऊर्जा का विशाल सागर” समाया है। अगर एक परमाणु इतना बड़ा विध्वंस कर सकता है तो मानव शरीर की शक्ति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है जहाँ खरबों की गिनती में परमाणु समाहित हैं
पिछले कई लेखों में हम प्राणअग्नि,प्राणऊर्जा,प्राणशक्ति,जीवनीशक्ति आदि अनेकों Interchangeable शब्दों से मानवी काया को समझने का प्रयास कर रहे हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से अब तक प्रकाशित हुए 12 लेखों में प्राणऊर्जा को अलग-अलग पहलुओं से जानने एवं समझने का प्रयास किया गया है। प्राणवायु, जिसे विज्ञान की भाषा में ऑक्सीजन कहा गया है उसे ही “ऊर्जा यानि एनर्जी” कहते हैं। इस संसार में आने से पहले, माँ के गर्भ में ही ईश्वर ने इस ऊर्जा को हमारे शरीर में एकत्र किया हुआ है। हमारे शरीर की व्यवस्था (Make up) इतनी वैज्ञानिक है कि ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया एनर्जी का यह भंडार तब तक कार्यशील नहीं होता जब तक उसे स्पंदित (कंपन,हलचल आदि) न प्रदान की जाए। संसार में शायद ही कोई इंसान/प्राणी/वनस्पति होगा जिसमें हलचल न होती हो। हलचल के बिना तो हम एक मृतक शरीर हैं। इसीलिए इस शक्ति को प्राण के साथ जोड़कर कर प्राणशक्ति यानि Life energy कहा जाता है।
ऊर्जा को स्पंदित करने का सरल उपाय है प्राणायाम :
हमारे अनेकों साथी प्राणायाम की प्रक्रिया में एक्सपर्ट हैं यां इस क्रिया को करने का प्रयास कर रहे हैं। प्राणायाम, दो शब्दों के योग से बना है, प्राण और आयाम। प्राण का अर्थ है जीवन एवं आयाम का अर्थ है विस्तार करना ,बढ़ाना ,लम्बा करना आदि। प्राणायाम की क्रिया, ऊर्जा को स्पंदित करने का एक उपाय है। प्राणायाम के माध्यम से हमारे शरीर की सभी प्रकार की ऊर्जाएं संचालित होना आरम्भ होती हैं और यह “संचालित ऊर्जा” एक प्रकार की घर्षण शक्ति (Frictional energy) पैदा करती है, जिसे हम “जीवनीशक्ति” कहते हैं।
व्यायाम और प्राणयाम:
व्यायाम हमारे बाहरी शरीर को क्रियाशील करके सक्रियता प्रदान करता है। इसके माध्यम से हम अपने शरीर को अवरोध मुक्त अर्थात जीवन में आने वाली रुकावटों से मुक्त करते हैं। माँस पेशियों से लेकर मस्तिष्क तक पंहुचने वाले रक्त संचालन में व्यायाम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक-एक अंग सक्रिय बने, उनमें उचित मात्रा में रक्त संचार हो, शरीर के किसी भाग में जकड़न (Stiffness) पैदा न हो, व्यायाम का यही काम है।
लेकिन प्राणायाम आंतरिक शक्ति को विकसित करता है। हम जानते हैं कि हमारा शरीर ऑक्सीजन से ही जीवित है, इसके बिना तो कुछ ही देर में जीवन का अंत हो सकता है। यह ऑक्सीजन शरीर में कितनी मात्रा में जाए, इसकी भी व्यवस्था प्रकृति ने कर रखी है। कठिनाई यह है कि हम कभी पूरी सांस नहीं लेते। पूरी सांस न लेने के कारण हमारे शरीर को पूरी ऑक्सीजन नहीं मिलती है। प्राणायाम के माध्यम से हम इस विधि को अपने जीवन में उतारते हैं कि कैसे शरीर में प्राणवायु को संचालित किया जाए। किन क्रियाओं से हम प्राणवायु को नियंत्रित करते हुए शरीर के एक -एक अंग में लेकर जाएँ। जब हम प्राणायाम के माध्यम से शरीर की प्राणवायु पर नियंत्रण कर लेते हैं तभी हमारा मन एकाग्र हो पाता है।
प्राणायाम से एकाग्रता प्राप्त होने के बारे में विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा का नियंत्रित होना है, जिससे मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है। यह प्रक्रिया मन को शांत करने में सहायक होती है, ध्यान प्रक्रिया में स्थिरता आती है, मन इधर उधर भटकने के बजाए स्थिर होता है।
अनंत शक्ति का द्वार खोल देती है प्राणायाम की साधना :
इम्यूनिटी को मजबूत करने के लिए लोग कई परंपरागत तरीकों को आजमाते हैं जिनमें आयुर्वेद और योग भी हैं लेकिन योग में प्राणायाम एक ऐसा योग है जिसकी अनंत क्षमता से लोग अब भी अपरिचित हैं।
प्राणायाम के द्वारा यह समझा गया है जो लोग लंबी, धीमी और गहरी सांस लेते हैं, उनका जीवन लंबा होता है एवं संसार की ऐसी कोई भी शक्ति नहीं जो प्राणायाम के अधिकार में न आ सके। जब भी कोई सांस या हृदय संबंधित समस्याओं से गुजरता है, तो उसे योग करने की सलाह दी जाती है एवं उसमें भी प्राणायाम की ही सलाह दी जाती है। प्राणायाम, योग के आठ अंगों में से एक अंग है। एक औसत व्यक्ति प्राणायाम को “सांसों का व्यायाम या सांसों की तकनीक” समझता है जबकि प्राणायाम इससे कहीं अधिक है। प्राणायाम एक योग से कहीं आगे बढ़कर है। मनुष्य के लिए यह तकनीक कैसे जीवन का आधार मजबूत करती है, इसको समझने के लिए पहले “प्राण ऊर्जा” जो समझना आवश्यक है।
हमारे शरीर में मौजूद “प्राण शक्ति” हमें जीवंत और चलायेमान रखती है और प्राणायाम के जरिए हम उसी प्राण शक्ति को नियमित और नियंत्रित रखते हैं। हमारा शरीर “प्राण ऊर्जा” के कारण ही जीवित और गति में रहता है और अपनी सभी क्रियाएं संपन्न कर पाता है। जब यह “प्राण ऊर्जा” हमारे शरीर को छोड़ देती है, तो मृत्यु हो जाती है यानि हमारा शरीर जीवंत नहीं रहता। जब “प्राण ऊर्जा” कम/नष्ट हो जाती है, तो हमारा शरीर बीमार और कमजोर हो जाता है। अगर हमें स्वस्थ और ऊर्जावान रहना है, तो इसी “प्राण ऊर्जा” को मजबूत रखना होता है। इसका अर्थ यही निकलता है कि प्राण वह शक्तिशाली ऊर्जा है जो हमारे शरीर, मन और सांसों में संतुलन बनाये रखती है।
प्राण ऊर्जा वोह ऊर्जा है जो मनुष्य को जीवित रखती है :
यहाँ यह बताना बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह ऊर्जा जिससे मनुष्य जीवित है, उसे नियंत्रित करने की एक “तकनीक” हमारे पास है और इसे ही प्राणायाम कहते हैं । सांसों के जरिए हम “प्राण वायु, ऑक्सीजन” ग्रहण करते हैं और यह “प्राण वायु”, प्राण ऊर्जा में परिवर्तित होकर शरीर में सुचारु रूप से प्रवाहित होती रहती है। प्राणायाम, प्राण वायु के जरिए इसी “प्राण ऊर्जा” को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है।
“कितनी अदभुत बात है कि प्राणायाम की प्रक्रिया द्वारा हम ब्रह्मांड में मौजूद ऊर्जा को ग्रहण कर उसे अपने शरीर की ऊर्जा में परावर्तित कर सकते हैं और वह भी उस ऊर्जा में जिससे हमारी आत्मा को निवास करने के लिए एक जीवित और स्वस्थ शरीर मिल रहा।”
जो लोग लंबी, धीमी और गहरी सांस लेते हैं, उनका जीवन लंबा होता है:
योग में बताया गया है कि जो लोग लंबी, धीमी और गहरी सांस लेते हैं, उनका जीवन लंबा होता है जबकि जो जल्दी-जल्दी और छोटी सांस लेते हैं, वह अपनी आयु कम कर लेते हैं। Breathe-in/breathe out की ही प्रक्रिया प्राणायाम का आधार है। वैसे तो योग में प्राणायाम के कई प्रकार हैं लेकिन जो सबसे आधारभूत प्रक्रिया है वह निम्नलिखित तीन चरणों में बंटी है:
पहला चरण, जिसमें हम गहरी सांस लेते हैं।
दूसरा चरण, जिसमें हम उसे थोड़ी देर रोककर रखते हैं और
तीसरे चरण में उसी हवा को धीमी गति से बाहर छोड़ते हैं।
जब हम गहरी सांस लेते हैं, तो प्राण वायु को शरीर के प्रत्येक Cell तक पहुंचाते हैं जो इन Cells एक तरह से पुनर्जीवित करता है।
यही कारण है कि Cell is known as the basis of life और हमारे शरीर में तो खरबों Cells हैं। क्या इन Cells को एक-एक करके ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है? नहीं, यहाँ एक Chain reaction स्टार्ट होता है जो Nuclear reaction जैसा ही होता है।
तो हुआ न मानव शरीर एक परमाणु बम ?
स्वामी विवेकानंद के अनुसार प्राणायाम में सिद्ध होने पर मनुष्य अपने लिए “अनंत शक्ति का द्वार” खोल लेता है। यहाँ इस तथ्य को मान लेना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यदि किसी मनुष्य को “प्राण का विषय” पूरी तरह समझ आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी एक्सपर्ट हो गया तो संसार की ऐसी कोई भी शक्ति नहीं, वोह जिसका अधिकारी न बन पाए। हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब हमारे योगियों ने सूर्य-चंद्र आदि को अपनी जगह से हिला दिया है। छोटे से परमाणु से विशालतम सूर्य तक मनुष्य के वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है।
“प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।”
जय गुरुदेव