ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में शनिवार का दिन एक उत्सव की भांति होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब हम सब सप्ताह भर की कठिन पढाई के बाद थोड़ा Relaxed अनुभव करते हैं और अपने साथिओं के साथ रूबरू होते हैं, उनकी गतिविधिओं को जानते हैं। हर कोई उत्साहित होकर, अपना योगदान देकर पुनीत गुरुकार्य का भागीदार बनता है एवं अपनी पात्रता के अनुसार गुरु के अनुदान प्राप्त करता हुआ अपने को सौभाग्यशाली मानता है।यह एक ऐसा दिन होता है जब सभी साथी कमेंट करने का महत्वपूर्ण कार्य भी थोड़ा Relax होकर ही करते हैं, आखिर वीकेंड और छुट्टी जैसा वातावरण जो ठहरा। हम बहुत प्रयास करते हैं कि शनिवार के दिन फ़ोन उपवास करें लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए है कि हमारे साथी/सहकर्मी इस परिवार की “सबसे बड़ी सम्पति” हैं, उनके साथ बातचीत करना हमारे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात होती है क्योंकि गुरुदेव के सूत्र के अनुसार “सम्पर्क टूटा, सम्बन्ध छूटा” जैसी स्थिति का आना हमारे लिए जानलेवा होता है लेकिन फिर भी अनेकों के ह्रदय इतने निष्ठुर होते हैं कि अचानक अंडरग्राउंड होने में एक क्षण भी नहीं लगाते। ऐसे साथिओं के लिए इतना ही कहना उचित होगा कि हम में ही कहीं अयोग्यता होगी कि हम उन्हें वोह सब कुछ प्रदान न कर सके जिसकी आशा लेकर वोह इस परिवार में आये थे। गुरुदेव की भांति हमारी भी सबसे बड़ी सम्पति “प्यार, प्यार और प्यार ही है।”
आज के स्पेशल सेगमेंट में लगभग सारा ही योगदान हमारे सबके वरिष्ठ आद चंद्रेश बहादुर जी का है।
अमेठी के 251 कुंडीय यज्ञ से सम्बंधित जो जो कंटेंट चंद्रेश जी ने हमारे साथ शेयर किया हम परिवार के समक्ष रख रहे हैं। इनमें से कुछ कंटेंट शांतिकुंज एवं युग सृजन समाचार यूट्यूब चैनल से भी शेयर हुआ था जिसके लिए हम अपना आभार व्यक्त करते हैं।
अमेठी से सम्बंधित कंटेंट अधिक होने के कारण, साथिओं के समय का ध्यान रखते हुए हम लिखित कंटेंट को बहुत ही सीमित रख रहे हैं लेकिन आदरणीय चंद्रेश जी के बारे में निम्नलिखित पंक्तियाँ लिख कर अपने साथिओं को आभास दिलाने का प्रयास कर रहे हैं कि परम गुरुदेव ने जिस परिवार की रचना की है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार उसी का प्रारूप है। जिन मानवीय मूल्यों को हम बार-बार स्मरण कराते रहते हैं उसका एक न एक उदाहरण हमारे परिवार में से प्रकट हो ही उठता है :
जय गुरुदेव
वैसे तो चंद्रेश भाई साहिब हमें व्हाट्सप्प पर परिवार की, हमारी Knee सर्जरी का अपडेट लेते ही रहते हैं लेकिन इस बार जब उन्हें मालूम हुआ कि नीरा जी हॉस्पिटल में हैं तो उनकी तरफ से एकदम जिज्ञासा भरा प्रश्न आया कि उनको क्या हुआ। जब हमने बताया तो उनसे वहीँ पर रुका नहीं गया, उनका अगला प्रश्न था कि इस ट्रीटमेंट से किस बिमारी का इलाज होता है। इसके बाद भी अभी कल ही उन्होंने नीरा जी के स्वास्थ्य के बारे में फिर से पूछा था।
तो साथिओ यह है “गुरुदेव के परिवार की परिभाषा”, मात्र “परिवार” शब्द लिखने से कोई परिवार नहीं बन जाता, उसमें भावना, संवेदना आदि की जन्म घूटी होना अति अनिवार्य है। इस परिवार को सींचने के लिए हमारे गुरुदेव ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया तब कहीं जाकर हमें ऐसे हीरे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कमेंट-काउंटर कमेंट की प्रक्रिया का इसमें बहुत बड़ा योगदान है, इसलिए करबद्ध निवेदन है कि इस प्रक्रिया की शक्ति को हल्के में न लें और निष्ठापूर्वक इसमें योगदान देते हुए, काउंटर कमेंट को पढ़ना न भूलें। आज के विशेषांक का यही मूलमंत्र है
आदरणीय चंद्रेश जी का “प्राण ऊर्जा” के प्रति कमेंट:
“प्राण ऊर्जा” पर लेख श्रृंखला से सम्बंधित आद भाई साहिब ने मोबाइल पर मिलने वाले दैनिक ज्ञानप्रसाद को “प्राण ऊर्जा” का ही स्वरूप बताया है, बिल्कुल सत्य लिखा था । ऐसा कहना इसलिए उचित हो जाता है कि यदि हमें इस ज्ञानप्रसाद के स्रोत का थोड़ा सा भी ज्ञान हो जाए तो शंका का कोई कारण ही नहीं रहता। परम पूज्य गुरुदेव ने जिस घोर एवं कठिन तप साधना से इस विराट साहित्य की रचना की है, अवश्य ही उनकी साधना की तपग्नि इस साहित्य में समाहित है। जिस गुरु के दिव्य तेज के सामने खड़े होने का कोई साहस नहीं कर सकता था, जिन पर चाकू और रिवॉल्वर के हमले भी कुछ न कर पाए, वोह गुरु कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं और उनका साहित्य सोए हुओं को जगाने का, जगे हुओं को चलाने का और चलते हुओं को दौड़ाने का कार्य करता है।
ब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति की सभी शक्तियां अपने उच्चतम शिखर पर होती हैं, ऐसे में ऊर्जा से भरपूर ज्ञानप्रसाद एक चिंगारी की भांति Sparking करके जिस ऊर्जा को गति देता है उसी ऊर्जा का नाम “प्राण शक्ति” है।
हम सबको पूर्ण विश्वास है कि गुरुवर द्वारा रचित दिव्य ज्ञानप्रसाद के अमृतपान से उनकी तपाग्नि का कुछ अंश तो हमें अवश्य ही प्राप्त हो रहा है।
यही कारण है कि गुरुदेव ने अनेकों बार कहा है “यह कोई घाटे का सौदा नहीं है”, साथिओ अगर कमेंट की दो चार पंक्तियाँ लिख कर, कुछ काउंटर कमेंट करके, अपने परिवारजनों से संपर्क करके स्वर्णरूपी गुरु तपाग्नि का अंश प्राप्त हो सकता है तो यह घाटे का सौदा कैसे हो सकता है, ज़रा विचार कीजिये। इस परिवार में साथिओं द्वारा प्रदान किया गया छोटे से छोटा योगदान भी बहुत बड़ा अनुदान लेकर आता है ऐसा हमारा अटूट विश्वास है, इस विश्वास को अनेकों बार try किया जा चुका है, टेस्ट किया जा चुका है और certify हो चुका है।
चलते चलते अब बेटी संजना की भी बात करना उचित रहेगा। बेटी ने गोपाल सर की पॉजिटिव साइकोलॉजी की कक्षा में प्राण शक्ति की हुई चर्चा का वर्णन किया जो उस दिन के ज्ञानप्रसाद का विषय था। क्या यह मात्र सयोग था यां एकात्मता यानि विश्व के सभी गुरु शिष्यों की आत्मा के एक ही ओर अग्रसर होने का अद्भुत उदाहरण था ?
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आज के विशेषांक की अंतिम पंक्तियाँ लिख ही रहे थे कि आदरणीय सरविन्द भाई साहिब ने सूचित किया है कि बेटे आयुष के मेडिकल Re-exam की रिपोर्ट उसके favour में नहीं आयी है लेकिन सीनियर कोच ने बेटे के favour में लाने का आश्वासन दिया है। अब देखने की बात है कि गुरुदेव की शक्ति एवं बेटे का विश्वास, कौन सा फैक्टर कार्यरत होगा। हम सब परिवारजन बेटे के साथ हैं। हम समझ सकते हैं कि ऐसी स्थिति में बेटे की स्थिति क्या होगी लेकिन आदरणीय सरविन्द जी द्वारा “मातम” शब्द का प्रयोग करना अनुचित है। यही कारण है कि हम “संसार है एक नदिया, दुःख सुख दो किनारे हैं” बार-बार रिपीट करते रहते हैं। आज फिर से वही प्रज्ञागीत रिपीट कर रहे हैं, आशा करते हैं कि भाई साहिब बेटे को हमारी भावनाएं प्रकट कर पायेंगें।
इसी मैसेज में आद सरविन्द जी ने उनके गाँव से 4 किलोमीटर दूर शक्तिपीठ की स्थापना की बात शेयर की है, इसे अगले अंक तक स्थगित करना उचित समझते हैं।
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कल वाली वीडियो को 416 कमेंट मिले हैं एवं 7 साथिओं ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया है।



