वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

प्राणाग्नि के जखीरे पर आधारित लेख श्रृंखला का नौवां  लेख- प्राण इलेक्ट्रिसिटी से मनुष्य असामान्य शक्ति का स्वामी बन सकता है।

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकुल स्थित पावन यज्ञशाला में ज्ञानयज्ञ की आहुतियां देने के लिए परम पूज्य गुरुदेव के  हम सब समर्पित बच्चे आज मंगलवार   को गुरुचरणों में समर्पित हो रहे  हैं। गुरुवर से  निवेदन करते हैं कि हमें विवेक का दान दें। वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी माँ  सरस्वती से निवेदन करते हैं कि अपने बच्चे को इतना योग्य बना दो एवं उसके सिर पर हाथ धरो माँ  ताकि उसकी लेखनी  सदैव चलती रहे।

प्राणाग्नि पर चल रही वर्तमान लेख श्रृंखला में आज प्रस्तुत किया गया आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद भी अपनेआप में एक अद्भुत, ज्ञानवर्धक लेख है। आज के लेख को समझने के लिए जो-जो आध्यात्मिक/वैज्ञानिक Findings का सहारा  लिया गया है अपनी डेली लाइफ से सम्बंधित हैं। लेख का अंत एक बहुत ही सरल से प्रैक्टिकल से किया गया है जिसे हमारे अनेकों साथी कर ही रहे होंगें। 

इन्हीं  शब्दों के साथ आज के लेख का शुभारम्भ करते हैं। 

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Life electricity से सम्बंधित  घटनाएं भौतिक एवं अंतर्मन शरीर में चल  रहे क्रियाकलापों  के परिणाम स्वरूप घटित होती हैं। कोशिकाओं (Body cells)  में अधिक विद्युत उत्पादन होने पर वह शरीर से बाहर निकलने लगती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर में 37.2 ट्रिलियन Cells होते हैं जिनमें से 330 बिलियन हर दिन मरते और Replace होते रहते हैं। इन Cells  से ही मानव शरीर की अनेकों गतिविधियों का संचालन होता है। प्रत्येक Cell एक जनरेटर का कार्य करता है, इसीलिए मानव शरीर को एक विशाल बिजलीघर कहा गया है। यदि इन Cells में पैदा होने वाली  विद्युत शक्ति के उपयोग  की कला ज्ञात हो सके तो मनुष्य अतीन्द्रिय क्षमताओं का धनी बन सकता है।

विभिन्न प्रयोग-परीक्षणों के आधार पर यह प्रमाणित किया जा चुका है कि मानवी काया के सूक्ष्म केंद्रों के इर्द-गिर्द प्रवाह हो रही विद्युतधारा (आभा) ही सुख की अनुभूति का निमित्त कारण है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इलेक्ट्रिक vibrations के बिना किसी प्रकार की सुख संवेदना का अनुभव नहीं किया जा सकता। 

आधुनिक युग में अधिकतर लोगों ने सुख प्राप्त करने के लिए पदार्थों के भण्डारण को ही सब कुछ समझ लिया है लेकिन सही मायनों में ऐसा है नहीं। परामनोविज्ञान (Parapsychology) की  भी यही मान्यता है कि सुख-दुःख की अनुभूतियां Life electricity तरंगों पर निर्भर करती हैं। Parapsychology को साइंस न होने के कारण Pseudoscience की केटेगरी में रखा गया है एवं अभी तक विश्व की शायद ही कोई यूनिवर्सिटी होगी जो Parapsychology में डिग्री देती हो    

शरीर का परिपुष्ट होना और मन का  उत्कृष्ट होना, दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं, दोनों का अटूट रिश्ता है।  एक के पूर्ण स्वस्थ होने पर दूसरे का स्वस्थ होना सुनिश्चित है। नियमितता से Gym जाना, पौष्टिक भोजन करना, सुबह शाम सैर करना बहुत अच्छी आदतें हैं लेकिन यह सभी भौतिक शरीर (जो हमें दिख रहा है, स्थूल शरीर) से सम्बंधित हैं। इन सभी आदतों का पालन करना, आत्मिक शरीर की उत्कृष्टता से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। बिजली की तार को ज़ंग (Rust) लग जाने से Electric flow यदि बंद नहीं होता है तो प्रभावित तो होता ही है। साधना में कार्यरत बीमार शरीर एकाग्रचित तो क्या होगा, बार-बार अपनी बीमारी की ओर ही खिंचा जायेगा। ऐसी स्थिति में क्या ध्यान लगेगा, क्या साधना होगी, हम सब भलीभांति परिचित हैं। ऐसी अवस्था में अधखुली आँखों से माला जपना किसी ढोंग से अधिक कुछ नहीं हो सकता।   

अध्यामवेदियों ने बार-बार इस तथ्य पर बल दिया है कि गुण, कर्म, स्वभाव,भौतिक स्वास्थ्य/ आत्मिक स्वास्थ्य में उच्चस्तरीय उत्कृष्टता ही मनुष्य के जीवन को सफल बनाते हैं। अंतरात्मा और भौतिक शरीर में  समन्वय होना बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। इन दोनों का समन्वय ही Life electricity को सशक्त बनाता है, जिससे मनुष्य को असीम सुख- शान्ति की अनुभूति होती है। जहां पर भी आत्मा और शरीर का समन्वय टूटता है, वहां जो कुछ होता है हम सब उस से भलीभांति परिचित हैं।

आत्मा एवं शरीर के योग से, आत्मा एवं परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले  परम सुख, Ultimate pleasure,चरम सुख की प्राप्ति ही वर्तमान लेख श्रृंखला का उद्देश्य है। यदि हमारे पाठकों ने इस लेख श्रृंखला के उत्कृष्ट लेखों को उसी भावना से पढ़ा है जिस भावना से गुरुदेव ने रचा है तो कोई कारण नहीं कि हमारा कोई भी सहकर्मी इस Ultimate bliss ( परम आनंद) से वंचित रहेगा।

“योग” का सामान्य अर्थ “जोड़” होता है। गणित की छोटी कक्षाओं से ही पढ़ते आ रहे हैं कि 3 और 4 का योग (जोड़) 7 होता है। आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ देने की प्रक्रिया अध्यात्म की  भाषा में “योग” कहलाती है। इसे आरम्भ करने के लिए जिन क्रिया-कलापों को अपनाना पड़ता है उन्हें “साधन” कहते हैं। साधना अपनेआप में मात्र एक छोटा सा उपकरण है। उसका महत्व इसलिए है कि वह साधना के उद्देश्य को प्राप्त कराने में सहायता करती है, उद्देश्य है परम सुख की प्राप्ति। कई लोग साधन को ही उद्देश्य समझ बैठते हैं और उन उपचारों को ही योग कहने लगते हैं जो साधना प्रयोजन में प्रयोग होते हैं। माला फेरने,धूप बत्ती जलाने, परम पूज्य गुरुदेव,वंदनीय माता जी के चित्र के आगे नाक रगड़ना योग साधना नहीं है क्योंकि गुरुदेव ने स्वयं बार-बार कहा है अरे मूर्ख मुझे मत पूज, मेरे विचारों को पढ़, समझ और ह्रदय में उतार, मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।  

यदि हम परम पूज्य गुरुदेव के कथन  का पालन करते हैं आज से ही( बल्कि अभी से) संकल्प लीजिये, प्रण कीजिये कि आत्मा को परमात्मा से मिला देने के लिए कुसंस्कारों से पीछा छुड़ाकर ही सांस लेंगें  और ईश्वरीय प्रेरणा का पालन करते हुए अपनी आंतरिक और बाहरी स्थिति ऐसी बना लेंगें जो “ब्राह्मी (ब्रह्म जैसी)” कही जा सके। 

यदि हम “ब्राह्मी” शब्द की गूगल सर्च करें तो एक औषधीय पौधे का नाम  उभर कर आता है जिसका वैज्ञानिक नाम Bacopa Monnieri है । जमीन पर फैलने वाले इस पौधे को स्मृति और एकाग्रता को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, साथ ही यह तनाव और चिंता को कम करने में भी मदद करता है । 

जब इस पौधे को आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में देखते हैं तो यह  ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक  है क्योंकि यह याददाश्त और एकाग्रता को बेहतर बनाने में मदद करता है । यह तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है । ब्राह्मी को शरीर और मन को संतुलित करने के लिए भी जाना जाता है जिससे व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण प्राप्त होता है । कुछ आध्यात्मिक परंपराओं में, ब्राह्मी को ब्रह्म अर्थात अंतिम वास्तविकता, Ultimate reality की प्राप्ति के लिए एक उपकरण के रूप में देखा जाता है। 

अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ब्राह्मी में एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो शरीर को नुकसान से बचाने में मदद करते हैं । ब्राह्मी के सक्रिय तत्व, तंत्रिका कोशिकाओं (Body cells) की रक्षा करते हैं और समझ को बेहतर बनाते हैं । कोर्टिसोल,जो एक स्ट्रेस हार्मोन है,ब्राह्मी उसके स्तर को कम करने में मदद करता है।

दूध और पानी एकरस होने से ही घुल सकते हैं। लोहे  और पानी का घुल सकना कठिन है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने भौतिकतावादी स्तर से ऊंचे उठे और ईश्वरीय चेतना के अनुरूप अपनी क्रिया, विचारणा एवं आस्था को ढाले, तभी ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य, परम आनंद प्राप्ति का लक्ष्य पूरा हो सकता है। वियोग का अन्त योग में होना चाहिए,यही ईश्वर की इच्छा है। बच्चा दिन भर खेलकूद और पढ़ने-लिखने में संलग्न रहे लेकिन रात को घर लौट आये,आराम से सो जाये, यही  माता की इच्छा रहती है। परमात्मा भी अपने पुत्र से ऐसी ही अपेक्षा करता है। परमात्मा की  इच्छा पूर्ण करने के लिए, अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए हमें जो “चेतनात्मक पुरुषार्थ एक ऐसा पुरुषार्थ जो चेतना के स्तर का हो” करना पड़ता है, उसी का नाम “योग साधना” है। 

Life electricity का Flow ही एक दूसरे को आकर्षित एवं प्रभावित करता है। सिर और नेत्रों में यह इलेक्ट्रिसिटी सक्रिय रूप में पायी जाती  है। वाणी की मिठास/कड़वापन यही इलेक्ट्रिसिटी अनुभव कराती है। तेजस्वी मनुष्य के विचार ही प्रखर नहीं होते, उनकी आंखें भी चमकती हैं और उनकी वाणी अन्तरमन की गहराई तक घुस जाने वाला विद्युत प्रवाह उत्पन्न करती है। युवावस्था में यही इलेक्ट्रिसिटी शरीर में आकर्षण की भूमिका निभाती है। सदुपयोग होने पर प्रतिभा, प्रखरता, प्रभावशीलता के रूप में विकसित होकर कितने ही महत्वपूर्ण कार्य करती है और दुरुपयोग होने पर मनुष्य फीका,बुझा हुआ एवं अवसादग्रस्त रहने लगता है। ऊर्ध्वरता संयमी, विद्वान, वैज्ञानिक, दार्शनिक, योगी, तपस्वी जैसी विशेषताओं से सम्पन्न व्यक्तियों के बारे में यही कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी प्राण विद्युत का नियंत्रण एवं सदुपयोग किया है।

किस व्यक्ति में कितनी मानवी विद्युत शक्ति विद्यमान है, इसका परिचय उसके चेहरे के इर्द-गिर्द और शरीर के चारों ओर बिखरे हुए तेजोवलय (आभा) को देखकर प्राप्त किया जा सकता है। यह आभा मण्डल खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता बल्कि  सूक्ष्म दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति ही इसे अनुभव कर पाते हैं। अब ऐसे यंत्र भी विकसित कर लिये गये हैं जो मानव शरीर में पायी जाने वाली विद्युत शक्ति और उससे उठ रही Radiations  का विवरण प्रस्तुत करते हैं। किर्लियन फोटोग्राफी तथा आर्गान एनर्जी के मापन को इस संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा सकता है।

हम सब निःसन्देह जानते हैं कि मनुष्य एक जीता जागता बिजलीघर है, किन्तु झटका मारने वाली, बत्ती जलाने वाली सामान्य बिजली की तुलना मानवीय बिजली से  नहीं की जा सकती। जड़ की तुलना में चेतन की जितनी श्रेष्ठता है उतना ही भौतिक और जीवन विद्युत में अन्तर है। “Life electricity”  असंख्य गुनी परिष्कृत और संवेदनशील है। “Life electricity”  के सदुपयोग एवं दुरुपयोग के भले-बुरे परिणामों को ध्यान में रखते हुए यदि प्राण इलेक्ट्रिसिटी  पर नियंत्रण, परिशोधन एवं संचय-अभिवर्धन किया जा सके तो “मनुष्य असामान्य शक्ति का स्वामी बन सकता है।” अभी तो वैज्ञानिक “स्थूल विद्युत” के चमत्कार जानकर ही हतप्रभ हैं। जब वैज्ञानिक मानवी कायपिण्ड में विद्यमान इस Life electricity  के विशाल जखीरे को विस्तार से जान जाएंगे  तो इस अविज्ञात के रहस्य के क्षेत्र में एक नया अध्याय खुलने की संभावना है।

उस नए अध्याय को जानने तक हम जीवित  होंगें कि नहीं, कोई नहीं जानता लेकिन एक सरल सा प्रयोग तो आज ही कर सकते हैं। हम सब जानते हैं कि हमारा मन चंचल (चलता ही रहता है, एक स्थान पर टिक नहीं पाता) है।  अगली बार जब हम पूजा स्थली में प्रवेश करें, गायत्री उपासना करें तो ऐसा प्रयास करें कि सारे शरीर में Life electricity की सूक्ष्म ,सुखदायक तरंगें अनुभव हों। यह कोई कठिन प्रैक्टिकल नहीं है,मात्र स्थिरता, ईश्वर के साथ योग, अंतःकरण से उठ रही पुकार ही बहुत कुछ कर सकती है। पूजा की समस्त अवधि में से, सब कुछ भूल कर, अगर पांच मिंट ही ऐसा समर्पण हो गया तो आप ऐसी ऊर्जा से भर जायेंगें जिसका अनुभव गूँगें के गुड़ जैसा ही होगा। प्रयास करके देखिये, इसका परिणाम ही वर्तमान लेख श्रृंखला का सबसे बड़ा इनाम होगा। 

जय गुरुदेव

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कल वाले लेख  को 530  कमेंटस  मिले, 12   संकल्पधारी  साथिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी का धन्यवाद् करते हैं । 


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