17 मार्च 2025 का ज्ञानप्रसाद- सोर्स काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकुल स्थित पावन यज्ञशाला में ज्ञानयज्ञ की आहुतियां देने के लिए परम पूज्य गुरुदेव के हम सब समर्पित बच्चे आज सप्ताह के प्रथम दिन सोमवार को गुरुचरणों में समर्पित हो रहे हैं। गुरुवर से निवेदन करते हैं कि हमें विवेक का दान दें। वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती से निवेदन करते हैं कि अपने बच्चे को इतना योग्य बना दो एवं उसके सिर पर हाथ धरो माँ ताकि उसकी लेखनी सदैव चलती रहे।
आज के लेख का शुभारम्भ करें, उससे पहले हम कमैंट्स से सम्बंधित एक नवीन Research finding की बात करना चाहेंगें जिससे कुछ हद तक आशा की किरण दिखाई दे रही है। इस Research finding में हमारी तीन महिला सहकर्मियों का प्रयास है जिसके लिए हम उनका धन्यवाद् करते हैं।
आज सुबह आँख खुलते ही आदरणीय नीरा जी ने हमें बताया कि लेख के नीचे कमैंट्स की गणना के दाईं तरफ तीन लाइन्स को क्लिक करने पर दो options मिलती हैं , Top comments और Newest first ; Top comments वाले Tab को क्लिक करने से यां तो कमेंट दिखते ही नहीं हैं यां कम दिखते हैं। पूरे कमैंट्स देखने के लिए Newest first वाले Tab को क्लिक करना चाहिए। हमने उसी समय लगभग सभी कमैंट्स को दोनों स्थितिओं में (Top और Newest ) एक-एक करके चेक करना शुरू कर दिया, नीरा जी की बात सत्य होती देखी, होती भी क्यों न, वोह सारा दिन कमैंट्स और काउंटर कमैंट्स से ही तो युद्ध करती रहती हैं। हमें आवाज़ें देते अवगत भी करती रहती हैं। इस फील्ड में हमारा अनुभव उनसे कम ही है। उन्होंने उसी समय सुझाव दिया कि आज के लेख की Main body में इस विषय पर चर्चा करनी बहुत ही लाभदायक रहेगी। जब हम इस सम्बन्ध में लिख रहे थे तो उसी समय हमारी बड़ी बहिन आदरणीय रेणु श्रीवास्तव जी का कमेंट पोस्ट हुआ जिसमें नीरा जी द्वारा बताई गयी बात का समर्थन था। थोड़ी देर के बाद ही आद सुमनलता बहिन जी ने भी चेक करके इस Finding की Validity व्यक्त की।
नारी शक्ति ने एक बार फिर अपना सिक्का तो जमा ही दिया है लेकिन विचारों की सूक्ष्म शक्ति पर भी मोहर लगा दी क्योंकि एक ही समय पर तीनों के विचार एक जैसे होना केवल संयोग तो हो नहीं सकता। आजकल इसी शक्ति की तो बात हो रही है।
तो आइए आज के लेख का अमृतपान करें।
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आज के लेख का शुभारम्भ हमारे शरीर में उठ रही तरंगों से हो रहा है जिसे आम भाषा में आभा, Aura, तेज आदि से जाना जाता है। आदरणीय चिन्मय जी ने गुरुदेव की आभा का अनेकों बार वर्णन करते हुए कहा है कि गुरुदेव के समक्ष खड़े होना, उनके साथ आँख में आँख डाल कर देख पाना संभव नहीं होता था। इसी सन्दर्भ में एक वीडियो भी संलग्न की है।
मूर्धन्य परामनोविज्ञानियों (Parapsychologists) ने अपने अनुसंधानों के आधार पर यह पाया है कि सामान्य मनुष्य के सूक्ष्म शरीर से उठने वाली इलेक्ट्रिक तरंगें उसके स्थूल शरीर से छह इंच बाहर तक फैली रहती हैं। पूर्ण स्वस्थ एवं पवित्र अंतःकरण वाले व्यक्ति के शरीर से निकलने वाली इन तरंगों की Radiations तीन फुट दूर तक फैली रहती हैं। इसे इन्होंने “मानवी तेजोवलय” की संज्ञा दी है ।
तेजोवलय को साधारण भाषा में तेज का घेरा,आभा, Aura कहा गया है। यह एक ऐसा ऊर्जावान क्षेत्र है जो किसी व्यक्ति या वस्तु के चारों ओर होता है, जो उसे विशेष रूप से ऊर्जावान या प्रभावशाली बनाता है। उदाहरण के लिए कहा जा सकता है कि गौतम बुद्ध का तेजोवलय उनके शरीर के चारों ओर 3 मील तक फैला हुआ था, जो उनकी महानता और शक्ति का प्रतीक है।
ऐसा भी कहा गया है कि मनुष्य जिस स्थान पर निवास करता है, साधना,उपासना करता है वहां पर काया से निकल रही प्राण इलेक्ट्रिसिटी का अदृश्य कंपन वहां स्थित जड़ पदार्थों के परमाणुओं में Strong Vibrations पैदा कर देता है। मनुष्य शरीर से निकली Electric waves आस-पास के वातावरण में छा जाती हैं और जड़ चेतन दोनों को प्रभावित, आकर्षित करती हैं।
Bioelectricity के ही विषय पर कहा जा सकता है यह इलेक्ट्रिसिटी मनुष्य के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होती है और स्थूल काया समेत समस्त गतिविधियों को कण्ट्रोल करती है। मस्तिष्क से लेकर अंगुलियों तक इसी का आधिपत्य होता है। नेत्र सहित सभी इन्द्रियां इस शक्ति के प्रमुख Reflection का केन्द्र हैं। सर जान वुडरु ने भी अपनी 558 पन्नों की पुस्तक ‘‘Serpent power अर्थात कुंडलिनी शक्ति” में बताया है कि नेत्र और हाथ/ पैरों की अंगुलियों के Tips पर प्राण इलेक्ट्रिसिटी की रेडिएशन एक विशेष अनुपात में पाई जा सकती है।
अपने पूर्व प्रकाशित लेखों में भी वर्णन कर चुके हैं,आज फिर कहना चाहेंगें कि मनुष्य का शरीर एक अच्छा खासा बिजली घर है। जैसे बिजली घर में से सारे शहर के लिए तार लगे रहते हैं, उसी प्रकार मस्तिष्क में से निकल कर जो पतले-पतले तार समस्त शरीर में जाल की तरह फैले हुए हैं, उन्हें “ज्ञान तंतु” Knowledge fibers कहा जाता है। यह ज्ञान तंतु एक टेलीफोन का काम करते हैं। देह को ज़रा सा भी कहीं छू दो तो यह तार फौरन मस्तिष्क को सूचना देंगे और मस्तिष्क एक आज्ञाकारी अधिकारी की भांति क्षण भर में यह फैसला करेगा कि अब क्या करना चाहिए।इसी तथ्य को निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है :
अगर हमारे पाँव में मधु मक्खी काट खाए तो ज्ञान तंतु तुरंत इसकी रिपोर्ट मस्तिष्क में पहुँचायेंगे और मस्तिष्क बिना एक क्षण का विलंब किए, मधु मक्खी के काटते ही पैर फटकारने का निर्देश देता है ताकि मधु मक्खी छूट जाए और अधिक नुक्सान न कर पाए। मस्तिष्क अगला कार्य, काटे हुए स्थान पर खुजली करने को कहता है। खुजली करने के पीछे यही लॉजिक है कि खुजलाने से विष निकल जाएगा। जिस स्थान पर मधु मक्खी ने काटा था वहां रगड़ करने से खून का प्रसारण (Blood circulation) आरम्भ हो जाता है और अगर घाव हो गया है तो उसे भरने में शीघ्रता हो जाती है।
विज्ञान की भाषा में इस सारी प्रक्रिया को Reflex action कहते हैं जो आटोमेटिक और इंस्टेंट होती है। आंधी के समय आँखों का स्वयं ही बंद हो जाना, गल्ती से गर्म बर्तन को हाथ लगते ही हाथ का स्वयं पीछे खिच जाना, सर्दी में ठिठुरते हाथों को रगड़ कर गर्म करना जैसे Reflex action के हज़ारों उदाहरण दिए जा सकते हैं
तो हुआ न साक्षात् सरल विज्ञान, न कि अन्धविश्वास ?
यह “ज्ञान तंतु” ही मनुष्य को सर्दी, गर्मी, हवा, नमी आदि की भी सूचना पहुँचाते हैं, जिसके आधार पर मनुष्य शरीर की रक्षा के लिए कपड़े, छाते आदि का प्रयोग करता है। कुछ तार ज्ञान तंतुओं से मोटे होते हैं और उन्हें “नसें” कहते हैं। कहने को तो नसों को रक्त प्रवाह वाली नालियाँ कहा जाता है लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर यह प्रमाणित होता है कि इन्हीं तारों के माध्यम से शरीर के प्रत्येक भाग में बिजली का प्रसार होता है। यही बिजली आभा के रूप में मनुष्य के चेहरे पर भी दिखती है।
जब यह बिजली मंद पड़ जाती है, रक्त प्रवाह तो चलता रहता है लेकिन शरीर में जड़ता या अकड़न आ जाती है, नसों में दर्द होने लगता है । गठिया की बीमारी में या अन्य नसों संबंधी रोगों में कहीं रक्त का बहना बंद नहीं होता (क्योंकि रक्त न पहुँचने पर तो वह अंग मर ही जाएगा।) बल्कि “नसों की बिजली” मंद पड़ जाने के कारण वे निर्बल और कठोर हो जाती हैं और मनुष्य दर्द का अनुभव करने लगता है।
इस तथ्य का साक्षात् उदाहरण हम अपने परिवारों में ही देखते हैं जब बुज़ुर्ग अक्सर कहते हुए पाए गए हैं कि सुबह आंख खुलते ही सारा शरीर जकड़ा हुआ अनुभव होता है। थोड़ी देर ही बाद जब शरीर में हलचल होती है, दिनचर्या आरम्भ होती है, कुछ कार्य आदि करने लगते हैं तो जकड़न कम तो होती ही है, स्फूर्ति भी आ जाती है। रात पहुँचते-पहुँचते, नार्मल थकावट तो अवश्य होती है लेकिन जकड़न वाली स्थिति नहीं आती, अगर आती भी है केवल उसी समय जब हमारे बुज़ुर्ग काफी समय के लिए एक ही दशा में बैठे रहते हैं यां कुछ करते नहीं हैं।
यहाँ एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठना स्वाभाविक है और वोह प्रश्न है कि हमारे शरीर में कितनी नाड़ियां होती हैं ? तो उत्तर मिलता है कि मनुष्य के शरीर में 72000 नाड़ियाँ होती हैं। इन्हीं 72,000 नाडिय़ों में “ऊर्जा का प्रवाह” होता है और यह इतना सन्तुलनकारी होता है कि शरीर की सारी व्यवस्था इन्हीं के आधार पर होती है। बहुचर्चित संलग्न चित्र में हम इन नाड़िओं
का अनुभव कर सकते हैं। यहाँ एक बात वर्णनयोग है कि 72000 नाड़ियों का अस्तित्व सूक्ष्म स्तर का है, न कि स्थूल स्तर का अर्थात इन्हें देखना संभव नहीं है।
अगर हम इन 72000 नाड़ियों की तुलना एक बहुमंजिली बिल्डिंग की Electric wiring के साथ करें तो शायद अतिश्योक्ति न होगी। जिस प्रकार प्रत्येक घर की बिजली (यहाँ तक कि घर के Equipment भी) मेन स्विच बोर्ड के रास्ते, मोहल्ले के ट्रांसफॉर्मर से कनेक्ट होते हुए नगर के बिजली घर से कनेक्ट हुई होती है, ठीक उसी तरह यह 72000 नाड़ियां मानव शरीर के छोटे से छोटे भाग से जुडी हुई हैं। मानवीय बिजली/ रक्त का प्रवाह/ प्राण शक्ति एक नदी की जलधारा की भांति इन्हीं ज्ञान तंतुओं अर्थात नसों में प्रवाहित होती रहती है। नदी एक निर्मल जलधारा की भांति अनवरत चलती रहती है एवं अनेकों का कल्याण करती है। ठीक उसी प्रकार “हमारे शरीर में स्थित नसों में निर्मल शुद्ध प्राण धारा का प्रवाह जीवनपर्यन्त बिना रुके चलता रहता है।”
यहाँ एक चीज़ देखने वाली है: नदी में जब तक हम कूड़ा करकट, गंद न डालें, उसका जल निर्मल और शुद्ध रहेगा लेकिन यह संभव नहीं है। हम नदी को दूषित न भी करें,नदी अपने मार्ग में आने वाली अनेकों वस्तुओं को ग्रहण करती है जिससे जल की प्रकृति बदल जाती है। ठीक ऐसा ही प्राण के साथ भी होता है। हमारे शरीर में प्राण तो शुद्ध और स्वच्छ प्रवाहित होता है, किन्तु यह कब तक स्वच्छ रहता है, यह मनुष्य पर ही निर्भर है। मनुष्य की जीवन शैली, उसके आन्तरिक गुण,भावनाएं, भोजन का प्रकार,पर्यावरण, समाज आदि कुछ एक parameters हैं जो मनुष्य के जीवन का निर्धारण करते हैं। ऐसे न जाने कितने और parameters हैं जो हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। इस उदाहरण और तथ्य को समझने के लिए एक नवजन्में बच्चे की स्वयं से तुलना करने पर पता चल जाएगा कि कौन निर्मल एवं शुद्ध है और कौन Polluted है। बच्चे से लेकर जीवन यात्रा में हम कहाँ-कहाँ से Pollution का सेवन करते हैं इसकी चर्चा करना उचित न होगा क्योंकि हम सभी भलीभांति जानते हैं।
इससे आगे अगले लेख में।
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वीकेंड विशेषांक को 424 कमेंटस मिले, 10 संकल्पधारी साथिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी का धन्यवाद् करते हैं ।