11 मार्च 2025 का ज्ञानप्रसाद-काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा
आज के लेख को लिखते समय ओरिजिनल और रिसर्च किये गए कंटेंट में इतना कुछ टेक्निकल और मेडिकल था कि हमारे लिए भी समझ पाना कठिन हो रहा था। हमने वह सारी मेडिकल शब्दावली को एक किनारे रख कर वही कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो ज़रूरी था।
साथिओं की पूर्व सम्मति से अपने बाल्यकाल की एक मृत्यु तुल्य घटना का वर्णन किया गया है जिसका ह्यूमन इलेक्ट्रिसिटी से सम्बन्ध है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ विएना की रिसर्च स्टडी भी प्राणशक्ति से सम्बंधित है।
सारा कंटेंट इतना सरल बनाने का प्रयास किया गया है कि किसी को भी समझने में कोई कठिनाई न हो।
तो आइए चलें गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा में और हो जाएँ गुरुचरणों में समर्पित, करें प्राणशक्ति प्रदान करता अमृत (अ-मृत अर्थात अमर)
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मेडिकल डॉक्टरों ने भांति भांति के अध्ययन/प्रयोगों से पाया है कि योगी अपने हृदय पर नियन्त्रण करके हृदय की धड़कन बन्द कर लेते हैं और नियन्त्रण हटा देने पर यह धड़कन नॉरमल हो जाती है। योगी अपनी इच्छा के अनुसार ह्रदय की वोल्टेज कम/अधिक कर सकते हैं ।
“यह प्रयोग योगी की प्राणशक्ति को अपनी इच्छानुसार नियंत्रण करने को प्रमाणित करता है।”
विज्ञान द्वारा पाया गया है कि श्वास से खींची गयी ऑक्सीजन, फेफड़े की महीन नालिकाओं में खींची जाती है जिससे यह “यौगिक कण्ट्रोल” हो पाता है। योगी को तो शरीर विज्ञान की कोई भी जानकारी नहीं होती है, इसके बावजूद वह इस तरह की शारीरिक क्रियाओं पर पूर्ण नियन्त्रण कर लेते हैं, पूर्ण स्वस्थ रहते हैं और सुख शान्ति से भरपूर रहते हैं। यदि वे शारीरिक नियमों का पालन न करते तो उनका स्वस्थ रहना असंभव था।
“प्राणशक्ति” का मुख्य स्रोत सूर्य की Short wave Electromagnetic radiations हैं। यही radiations समस्त पदार्थों की प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) है। इसका दूसरा प्रमुख स्रोत ब्रह्माण्डीय किरणें हैं जो लगातार दिन रात हम तक पंहुचती हैं। हमें तो लगता है कि रात को सूर्य की किरणे धरती पर नहीं पंहुच रही हैं लेकिन ऐसा नहीं है।
पानी की लहरों में हलचल से और वाष्पीकरण( Evaporation) से भी “प्राणशक्ति” उत्पन्न होती है। इसी “प्राणशक्ति” के कारण सागर के आस-पास की हवा अति उत्साहवर्द्धक होती है। सागर तट एवं सागर में “हम प्राण से स्नान करते हैं” और इससे हमारे क्रियाशील एवं अति सम्वेदना वाले अंग अधिक पुष्ट होते हैं। चिड़चिड़ेपन से ग्रस्त एवं Neurological बीमारीओं वाले लोगों के लिए सागर की वायु बहुत लाभप्रद होती है। प्राणायाम का उद्देश्य भी इस क्रियाशील शक्ति को ग्रहण करना, उन्हें अन्यान्य अंगों में भेजना एवं शक्ति अर्जित करना है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ विएना के शोध परिणाम :
यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के एनवायर्नमेंटल साइकोलॉजी ग्रुप की सैंड्रा जेइगर की अगवाई में हुए नए अध्ययन में सागर तट के माहौल का लोगों के स्वास्थ्य पर असर का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन की Findings में पाया गया कि सागर के पास रहने का बेहतर सेहत की सकारात्मकता से संबंध है और इसका किसी देश या किसी व्यक्ति की आय के स्तर से कोई लेना देना नहीं है।
तटों के पास रहने के फायदे नए नहीं हैं बल्कि सदियों पहले इन फायदों को प्रोत्साहित किया जाता था लेकिन 20वीं सदी में इस पर से ध्यान हट गया था। कहते हैं कि आप जितना अधिक प्रकृति के पास रहेंगे उतने ही अधिक सेहतमंद भी होंगे। लोग प्रकृति के पास शांति,अपनी ऊर्जा लौटाने के लिए, रिलैक्स होने के लिए या रिजार्च होने के लिए समय बिताना पसंद करते हैं। इनमें समुद्र तटों के पास समय बिताना भी शामिल है। ऐसे में लगता है कि इन इलाकों में रहने वाले लोग कितने खुशकिस्मत रहते होंगे। सागर का दृश्य, शांति का अनुभव कराती लहरों की ध्वनि और नमकीन हवाओं ने वैज्ञानिकों का ध्यान भी अपनी और खींचा है। नए अध्ययन में पाया गया है कि सागर तट के पास रहना या कुछ समय बिताना सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है।
महासागरों के आसपास की धारणा बेहतर स्वास्थ्य को Certify करती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह धारणा पूरी तरह से नई नही है, यह विचार 1660 के आसपास भी प्रचलित था,जब अंग्रेज फिजीशियन ने “सागर स्नान” और तटों पर सैर को अच्छी सेहत के लिए प्रोत्साहित करने पर बल देना आरम्भ किया। 19वीं सदी के मध्य में यूरोप के अमीरों के बीच सागर की हवा में सांस लेना कई सेहत उपचारों के तौर पर अपनाया जाता था लेकिन 20वीं सदी में इससे लोगों का ध्यान हटने लगा।
अब चिकित्सा विज्ञान ने फिर से इस पर ध्यान देना शुरू किया है।
वर्तमान रिसर्च स्टडी में Vienna, Exeter, Birmingham,Belgium यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की टीम ने यूरोपीय देशों और ऑस्ट्रेलिया के 15000 से अधिक प्रतिभागियों को सर्वे में शामिल किया और उनसे उनकी निजी सेहत और समुद्र से जुड़ी गतिविधियों के प्रश्न पूछे। अध्ययन के चौंकाने वाले नतीजों से पता चला कि सभी देशों में स्पष्ट और एक सी ही धारणाएं हैं। सभी को सागर के निकट रहने के लाभ मिले थे और शोधकर्ताओं ने पाया कि तटों के पास रहने वालों की सेहत पर उनके माहौल का काफी अच्छा असर होता है।
अगर हम सागर की बात कर रहे हैं तो Hill stations को कैसे छोड़ सकते हैं।हर वर्ष लाखों करोड़ों पर्यटक Hill stations पर Holidaying के लिए जाते हैं, परिवार के साथ वहां पर समय बिताते हैं, फ्रेश हवा का आनंद उठाते हैं। व्यस्त जीवन से दूर रहकर कुछ समय ही सही प्रकृति की गोद में कुछ समय बिताने से मानवीय बैटरी अवश्य चार्ज होती है, पर्यटक एक नवीन ऊर्जा लेकर घर वापिस लौटते हैं। तपेदिक के रोगियों को सैनिटोरियम के वातावरण में समय बिताने से मिलने वाले लाभ से भला कौन परिचित नहीं है। शुद्ध वातावरण, चीड़ के वृक्षों से निकलने वाले Oil vapours का तो अपना योगदान है ही लेकिन उस वातावरण में व्याप्त “प्राण ऊर्जा,प्राण शक्ति” के आभास को समझ पाना भी बहुत बड़ी बात है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार मंच से प्रकाशित होने वाले वाली वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है कि गुरुदेव द्वारा रचित साहित्य को हम (हम स्वयं) अच्छे से समझ पाएं, उसको इस स्तर का सरल कर पाएं कि पढ़ने वाला चाहे किसी भी स्तर का हो, किसी भी बैकग्राउंड का हो, इन लेखों को समझने के लिए उसे किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता न पड़े। वर्तमान लेख को लिखते समय ओरिजिनल कंटेंट में इतना कुछ टेक्निकल और मेडिकल था कि हमारे लिए भी समझ पाना कठिन हो रहा था। हमने वह सारी मेडिकल शब्दावली को एक किनारे रख कर वही कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो ज़रूरी था।
“प्राण ऊर्जा-प्राण शक्ति” पर प्रस्तुत किये गए (किये जा रहे) लेखों के बारे में औरों का तो मालूम नहीं, हम अपनी स्वयं की ही बात करें तो हमें इस विषय का बिलकुल ही ज्ञान नहीं था। भला हो हमारी सबकी प्रिय बेटी संजना का जिसने हमारे लिए Bioelectricity जैसे जटिल विषय के प्रति जिज्ञासा की अग्नि भड़काई। अब तो यह स्थिति बन चुकी है कि गायत्री साधना में बैठे गायत्री मंत्र के उच्चारण से साक्षात् विद्युत तरंगों का आभास होता है, शरीर में कुछ ऐसी हलचल अनुभव होती है जिसका वर्णन कर पाना गूंगे के गुड़ जैसा ही है। कई बार तो स्वयं को पूछ बैठते हैं , “ क्या यह सच में हो रहा है ?” अविश्वसनीय, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य।
कुछ समय पूर्व हमने इसी मंच से मानवीय विद्युत (Human Electricity) की बात की थी, ऐसी विद्युत जो मानव शरीर के अंदर व्याप्त है। इस विषय पर हमने कुछ ऐसे लेख भी लिखे थे जो मानवी विद्युत को प्रतक्ष्य देखने में समर्थ थे, उदाहरणों से यह भी दिखाया गया था कि मानव शरीर बिजली के झटके मारने में भी समर्थ है। इसी विद्युत, प्राणशक्ति, प्राणऊर्जा को दर्शाती हुई हमारे बाल्यकाल की एक घटना स्मरण हो आयी है जिसे अपने परिवारजनों की पूर्व सम्मति से प्रस्तुत कर रहे हैं। इस घटना का मानव शरीर में व्याप्त ह्यूमन इलेक्ट्रिसिटी से सीधा सम्बन्ध तो नहीं है लेकिन कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य है। गुरुदेव के साहित्य का ही चमत्कार है कि दशकों बाद बाल्यकाल की घटना को कुछ-कुछ समझ पाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस दृष्टिकोण से आज लिख रहे हैं ऐसा तो कभी सोचा तक नहीं था।
घटना के समय हमारी आयु 8 वर्ष के करीब होगी। जम्मू से कुछ किलोमीटर दूर स्थित गाँव के घर में हमारे और हमारी माता जी के सिवा कोई भी नहीं था। पिताजी कुछ दिन पूर्व ही BEd की ट्रेनिंग के लिए श्रीनगर गए थे। आज के समय की भांति फ़ोन तो क्या, घर में लैंडलाइन फ़ोन भी नहीं था। संपर्क का साधन केवल पत्र ही थे जिन्हें आने जाने में 20-25 तो लग ही जाते थे।
लगभग 10 बजे दिन का समय होगा, माता जी रसोई में खाना बना रही थीं, अचानक बिजली बंद हो गयी। दिन का समय था, बिजली को वापिस लाना कोई इमरजेंसी भी नहीं थी लेकिन जिज्ञासाभरा वैज्ञानिक मस्तिष्क जो ठहरा, यां फिर कहें कि जान बूझकर मृत्यु को बुलावा देना था। कुछ भी कहें,लोहे की सरिये वाली खिड़की से Bed switch लटक रहा था। उसी खिड़की से सटी हुई चारपाई थी। चारपाई पर चढ़कर एक हाथ से सरिये की रॉड को पकड़ा, Bed switch को खोल डाला, पता तो कुछ था नहीं, यह भी नहीं पता था कि Bed switch को क्यों खोला। स्विच के अंदर नंगी तारों को हाथ लगते ही इतने ज़ोर से झटका लगा कि धड़ाम से चारपाई पर आ गिरे, ज़ोर से हाय की आवाज़ आई, माता जी भागी-भागी अंदर आईं, हमें बेहोश देखकर रोना चिल्लाना शुरू कर दिया,चारपाई से उठाया, मुँह में पानी डाला, इलेक्ट्रिक शॉक इतना भयानक था कि मुँह तो क्या,सारा शरीर ही नीला पड़ गया था। आज हमें लग रहा है कि शॉक के कारण Arteries, जो शरीर में रक्त लेकर जाती हैं, सिकुड़ गयी थीं। बेहोशी तो वापिस ही नहीं आ रही थी। माता जी गांव में एकमात्र डॉक्टर,डॉक्टर दिलीप सिंह के पास भागी-भागी गईं लेकिन जो उपचार उसने बताया, उस ग्रामीण उपचार का Explanation आज उस गुरु ने दे दिया जो केवल पांचवीं कक्षा तक ही पढ़े थे।
सबसे पहले तो डॉक्टर साहिब ने माता जी को डांटा कि बच्चे को पानी पिला दिया, बहुत गलत किया, मृत्यु भी हो सकती थी। कई घंटे बाद भी चेहरे और शरीर पर नीलापन और बेहोशी अपनी उपस्थिति बनाये बैठे थे। डॉक्टर साहिब ने माता जी को बताया कि बच्चे को धरती पर लिटा दो,2 -3 फुट लम्बी नंगी तार का एक सिरा बच्चे के हाथ से लपेट दो और दूसरा सिरा हैंड पंप से बांध दो। शरीर में प्रवेश की हुई बिजली हैंड पंप के रास्ते धरती में चली जाएगी। माता जी ने यह उपचार किया और कुछ ही समय में चेहरे और शरीर से नीलापन दूर होने लगा, बेहोशी दूर होने लगी। इस उपचार में कुछ घंटे अवश्य लगे होंगें लेकिन 2-3 दिन में सब ठीक हो गया।
इस घटना से और कुछ हो न हो लेकिन एक तथ्य तो प्रमाणित होता ही है कि मानव शरीर में बिजली जा/आ सकती है।
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