ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में शनिवार का दिन एक उत्सव की भांति होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब हम सब सप्ताह भर की कठिन पढाई के बाद थोड़ा Relaxed अनुभव करते हैं और अपने साथिओं के साथ रूबरू होते हैं, उनकी गतिविधिओं को जानते हैं। हर कोई उत्साहित होकर, अपना योगदान देकर पुनीत गुरुकार्य का भागीदार बनता है एवं अपनी पात्रता के अनुसार गुरु के अनुदान प्राप्त करता हुआ अपने को सौभाग्यशाली मानता है।
यह एक ऐसा दिन होता है जब सभी साथी कमेंट करने का महत्वपूर्ण कार्य भी थोड़ा Relax होकर ही करते हैं, आखिर वीकेंड और छुट्टी जैसा वातावरण जो ठहरा। हम बहुत प्रयास करते हैं कि शनिवार के दिन फ़ोन उपवास करें लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए है कि हमारे साथी/सहकर्मी इस परिवार की “सबसे बड़ी सम्पति” है, उनके साथ बातचीत करना हमारे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात होती है क्योंकि गुरुदेव के सूत्र के अनुसार “सम्पर्क टूटा, सम्बन्ध छूटा” जैसी स्थिति का आना हमारे लिए जानलेवा होता है लेकिन फिर भी अनेकों के ह्रदय इतने निष्ठुर होते हैं कि अचानक अंडरग्राउंड होने में एक क्षण भी नहीं लगाते। ऐसे साथिओं के लिए इतना ही कहना उचित होगा कि हम में ही कहीं अयोग्यता होगी कि हम उन्हें वोह सब कुछ प्रदान न कर सके जिसकी आशा लेकर वोह इस परिवार में आये थे। गुरुदेव की भांति हमारी भी सबसे बड़ी सम्पति “प्यार, प्यार और प्यार ही है।”
आज के साप्ताहिक विशेषांक में आदरणीय बड़ी बहिन रेणु जी,आदरणीय सुमनलता जी और आदरणीय चंद्रेश जी का योगदान शामिल किया गया है। दोनों बहिनों ने हमारे निवेदन का सम्मान किया है जिसके लिए ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। अमेठी में होने वाले यज्ञ की जानकारी प्रदान करने के लिए आदरणीय चंद्रेश जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
आदरणीय अरुण जी एवं राकेश शर्मा जी द्वारा भेजी गयी वसंत/महाशिवरात्रि के सुन्दर क्लिप्स अगली बार शेयर करेंगें जिसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
अपनी दोनों बहिनों की दिव्य बातचीत का शुभारम्भ करने से पहले हम निम्नलिखित कहना चाहेंगें:
आदरणीय सुमनलता बहिन जी की अनुभूति में गाड़ी की टक्कर वाला वृतांत शायद आंवलखेड़ा वाले वृतांत से अलग है, ऐसा हमारा विचार है। हम पूर्ण आशा करते हैं कि बहिन जी कॉमेंट करके इसकी Clarification कर ही देंगे।
आदरणीय रेणु बहिन जी ने अपनी अनुभूति में गुरुदेव की शक्ति को सराहते हुए लिखा है कि गुरुदेव अपने हर बच्चे की इच्छा पूर्ण करते हैं, बिल्कुल सत्य है बहिन जी लेकिन गुरुदेव ने इस कृपा के साथ एक शर्त भी जोड़ी हुई है “तू मेरा काम कर, मैं तेरा काम करूंगा।” यह शर्त बिल्कुल उसी तरह की है जैसा कभी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।” ऐसे ही समर्पण की आशा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच सिरों का बलिदान मांग कर की थी। हमारे गुरुदेव न तो खून मांगते हैं और न ही सिर, वोह अपने बच्चों से केवल एक ही आग्रह करते हैं:
मुझे (मेरे साहित्य को) घर-घर में स्थापित कर दो, मुझे 10000 हीरों का हार पहना दो। हीरक जयंती पर गुरुदेव का 10000 हीरों का यानि 10000 समर्पित बच्चों वाला बहुचर्चित उद्बोधन हमारे साथियों ने अवश्य सुना/देखा होगा।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से गुरुकार्य के लिए हमारा बार-बार आग्रह करना कहीं भी स्वार्थ को नहीं दर्शाता। गुरुवर की भांति, हमारा भी एकमात्र स्वार्थ यही है कि विश्व में कोई भी प्राणी दुःखी,चिंतित न हो। दुःख, चिंता का एकमात्र,पूरी तरह से Effective एवं हम सबका जांचा,परखा और मोहर लगाया हुआ (Tried, tested and certified TTC) रामबाण है-हमारे गुरु द्वारा घोर साधना और तप से रचा गया दिव्य साहित्य।
हम विश्वास से कह सकते हैं कि गुरुवर के Impression में आते ही Depression का पता ही नहीं चलता कहाँ गायब हो गया है।
हम सब परिवारजनों का बहुत ही बड़ा सौभाग्य है कि हम गिलहरी की भांति, गुरुवर के विशाल युगनिर्माण भवन में बालू के कुछ कण समर्पित कर पा रहे हैं। ऐसी गुरुकृपा सभी को प्राप्त नहीं होती,आदरणीय पूजा सिंह जी की तड़प इस तथ्य का साक्षात प्रमाण है। बहिन जी द्वारा यूट्यूब पर पोस्ट किया कॉमेंट हमें इतना द्रवित कर गया कि क्या लिखें। हमारे समर्पित साथियों (आद.सुजाता जी,निशा जी,संध्या जी,नीरा जी,सरविन्द जी आदि) ने बहिन जी को सांत्वना तो दी लेकिन हम इतना ही कह सकते हैं, “बहिन जी आपको कोई भी कार्य अपनी सेहत की अनुसार ही करना चाहिए। आप घर बैठे ही गुरुकार्य में योगदान दे सकती हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रकाशित हो रहे साहित्य का स्वाध्याय करके,औरों को इस ज्ञान की गंगा में स्नान कराना एक बहुत ही पुण्य का कार्य है क्योंकि ज्ञानदान से बढ़कर कोई दान नहीं है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक कृत्य निस्वार्थ भावना से किया गया गुरु कर्तव्य है, इसमें दिया गया छोटे से छोटा योगदान,अनेकों-अपरिमित अनुदान प्रदान करने की क्षमता रखता है, ऐसा हमारा अटल विश्वास है।
इन्हीं शब्दों के साथ अपनी दोनों बहिनों के साथ सत्संग करते हैं :
आदरणीय सुमनलता बहिन जी:
जय गुरुदेव,हम आंवलखेड़ा जाने की अपनी अनुभूति को अपने सहयोगियों के साथ साझा करना चाहते हैं। हो सकता है यह शायद पहले भी लिखी गई हो लेकिन आपके अनुरोध पर पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।
यह प्रसंग 17 नवंबर 2023 का है। हमने परमपूज्य गुरुदेव से अनुमति लेकर 18 नवंबर को आंवलखेड़ा जाने का कार्यक्रम बनाया था। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर आंवलखेड़ा से संबंधित लेख और विडियो देखे तो बहुत मन हुआ कि हम पूज्यवर की जन्मस्थली जाकर पुण्य लाभ प्राप्त करें। सारी तैयारियां हो चुकी थीं। शाम को बेटे ने बैग दिया और बोला मम्मी आप अपना सामान इस में रख लो । दो दिन का कार्यक्रम बनाया था। हम ने कहा कि मैं गुरुदेव से पूछ लेती हूं।घर से निकलने से पहले हम स्वभावत: हर कार्य पूजा कक्ष में गुरुदेव की अनुमति प्राप्त कर के ही जाते हैं। हमने गुरुदेव के सामने शीश वंदन किया, तब मुस्कुराते हुए परावाणी में गुरुदेव बोले, “और तू कल जा रही है आंवलखेड़ा,?” हमने कहा,”हां गुरुदेव।” वो एकदम से बोले,”कल मत जा ।समय ठीक नहीं है।” हमने पूछा,”गुरुदेव क्यों?” तो कहने लगे, “अभी मत आ।” हमने बालहठ की तरह निराशा से कहा, “गुरुदेव हमने तो पूरी तैयारी कर ली थी।” तब वो कुछ नाराजगी वाली वाणी में कहते हैं कि अगर तू जिद करेगी तो हमें वो छोड़कर आना पड़ेगा,जो हम आजकल कर रहे हैं।
बस, इसके बाद वो कुछ नहीं बोले। तब हमें समझ आ गया कि वो अभी सूक्ष्म शरीर से किसी बड़ी साधना में लीन हैं,जो विश्व कल्याण के लिए है, जिसे हमें बचाने के लिए खंडित करना होगा जो अधिक विनाशकारी होगा।
हमने अपने गुरुपिता की बात मान कर जाना स्थगित कर दिया। दिमाग में चल रहे प्रश्नों का उत्तर सिर्फ गुरुदेव के पास ही है।
हमने यूट्यूब पर कई विडियो देखें हैं,जिनमें परिजनों ने उनकी बात नहीं मानी,उसका दुष्परिणाम उन्होंने स्वयं भी भुगता और उसका कष्ट गुरुदेव और माताजी को भी उठाना पड़ा।
थोड़ी गलती तो हम से भी हो चुकी है। हम घर से निकलते समय उनकी अनुमति नहीं ले पाए। उस दिन हमारी गाड़ी को एक दूसरी गाड़ी ने टक्कर मार दी। हमने लौट कर गुरुदेव को बताया तो कहने लगे कि अभी नहीं जाना था। बचाव तो उनकी कृपा से हो गया लेकिन हमने एक बात गांठ बांध ली है कि उनकी अनुमति के बिना कुछ नहीं करना है।वो जो भी कहते हैं ,हमारे हित के लिए कहते हैं।
हमारे साथ घटी यह घटना किसी को काल्पनिक लग सकती है लेकिन हमारे लिए स्व: अनुभूति है। हमने गुरुदेव को स्थूल शरीर में नहीं देखा। हम पहली बार शांतिकुंज नवंबर 2016 में गए थे। लेकिन हमारे गुरुदेव हमें बहुत प्रेम करते हैं। स्वप्न में भी तीन चार बार मिल चुके हैं। हमारा सौभाग्य है कि उन्होंने हमें अपना बनाया है। हम उस परमपिता परमात्मा के ऋणी है जिन्होंने हमारा हाथ गुरुदेव के हाथ में पकड़ा दिया। ऐसे प्रेम करने वाले पिता स्वरुप गुरु बहुत सौभाग्य से प्राप्त होते हैं। सौ सौ बार नमन है ऐसे गुरु को।
आदरणीय रेणु श्रीवास्तव बहिन जी :
ऊं श्री गुरुसत्तायै नमः। गुरु चरणों में कोटि कोटि नमन। सहयोगियों की शुभकामनाएं एवं पूज्य गुरुदेव की कृपा से एकादशी के दिन , दिनांक 24 फरवरी को प्रातः छ: बजे अपने निवास लखनऊ से प्रयागराज संगम तट जाकर रात्रि 10.30 बजे वापस घर आ गई। यह सब गुरुदेव की कृपा से ही संभव हो सका अन्यथा अस्वस्थता के कारण मैं तो कहीं जाने की स्थिति में नहीं थी। मन में कसक अवश्य थी कि मैं तो जा नहीं पाऊंगी। छोटी-छोटी बातों के लिए मैं गुरुदेव से आग्रह नहीं करती हूं लेकिन गुरुदेव अन्तर्यामी हैं, मन की भावना समझ कर स्वयं ही पूरा करते हैं। संगम का जल किसी ने दिया था तो वही स्नान के समय जल में मिलाकर नहा लेते थे।
प्रयागराज जाने से दो दिन पहले अचानक मेरे भांजे का फोन आया कि मामी कुम्भ स्नान के लिए जाएगी? मेरे पति ने तो मना कर दिया कि तबियत ठीक नहीं, नहीं जा सकती है। मैंने कहा इससे अच्छा अवसर कभी नहीं मिलेगा। मैने फिर से फोन किया, जाने के लिए हामी भर दी। भांजे की बहु मुख्यमंत्री के साथ सिक्योरिटी ऑफिसर की ड्यूटी में है और स्टाफ को लेकर बस जा रही थी। सोमवार की सुबह घर से अपनी गाड़ी से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक मुझे लेकर गई, वहां बम निरोधक दस्ते वाली बस खड़ी थी । बस से गंतव्य स्थान तक पहुंच कर स्नान कर, थोड़ा पूजा वगैरह कर फिर बस में बैठ गए। गुरुदेव की कृपा ही थी कि बस बिल्कुल संगम के किनारे तक गई, वहां से संगम का किनारा मुश्किल से 150 मीटर रहा होगा। बहु मेरा हाथ पकड़ कर आगे तक ले गई। लौटते समय शान्तिकुंज का शिविर भी दिखा लेकिन अपनी असमर्थता के कारण कहीं न जा सकी। जहां जनता कई-कई किलोमीटर पैदल चल रही थी वहीं गुरुदेव ने बिना किसी परिश्रम के, वहां तक पहुंचाकर मेरी इच्छा पूरी कर दी।
हमें तो ऐसा अनुभव हो रहा था कि गुरुदेव की अपार शक्ति ने हमें घर से उठा कर, पावन महाकुंभ में स्नान करा कर धन्य कर दिया, ऐसे हैं हमारे गुरुदेव।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के जो भी सहयोगी गुरुदेव से जुडे़ हैं उन्होंने अवश्य ही गुरुदेव के अनुदानों का अनुभव किया होगा। गुरुदेव अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करते हैं तथा संकट की स्थिति से उबारते है। मुझे तो हर क्षण गुरुदेव का सान्निध्य महसूस होता है तथा मार्गदर्शन मिलता है।
गुरुदेव द्वारा बरसाई गई इस कृपा का धन्यवाद करने के लिए हमारी कहां योग्यता लेकिन फिर भी निम्नलिखित श्रद्धासुमन भेंट करके समापन करती हूं:
एक तुम्हीं आधार सदगुरु, एक तुम्हीं आधार। जब-तक मिले न तुम जीवन में, शांति कहां मिल सकती मन में। खोज फिरा संसार सदगुरु
जय गुरुदेव
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शुक्रग्रह की मार झेलती हुई कल वाली वीडियो को 397 कमेंटस मिल पाए,9 संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान कर कीं । सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद करते हैं।