वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

हम बिछुड़ने के लिए नहीं जुड़े हैं- भाग 1 

अपने साथिओं के समय को ध्यान में रखते हुए,प्रज्ञागीत के स्थान पर गुरुदेव के अंतिम सन्देश वाली वीडियो प्रकाशित की गयी है।   

आज के आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ परम पूज्य गुरुदेव की निम्नलिखित “अंतिम सन्देश) की पंक्तियों से कर रहे हैं। यह पंक्तियाँ हमारे साथिओं ने युगतीर्थ शांतिकुंज प्रांगण में साइन बोर्ड पर अवश्य देखी  होंगीं, पढ़ी भी होंगीं, रुक कर मनन भी क्या होगा (हमने तो इसकी फोटो अपनी Quick library में सेव करके रखी है)  कि गुरुदेव अंतिम सन्देश में क्या कहना चाहते हैं एवं अपने बच्चों से क्या आशा रखते हैं:    

उपरोक्त पंक्तियाँ  “अंतिम सन्देश” का केवल एक छोटा सा भाग ही हैं, पूरा सन्देश आज के इस ज्ञानप्रसाद लेख के साथ संलग्न वीडियो में दर्शाया गया है। उसी वीडियो के Description box में यह सन्देश Text form में भी उपलब्ध है। 

अगर हम गुरुदेव के सच्चे भक्त हैं, आज्ञाकारी शिष्य हैं एवं उनकी बात मानते  हैं तो  इस संदेश का स्क्रीनशॉट लेकर अपने पास सेव करके रखना उचित होगा, उसमें व्यक्त एक-एक शब्द को बार-बार पढ़कर, समझकर, उनकी आज्ञा का पालन करने के इलावा और कोई विकल्प नहीं है।

हम बार-बार कहते आ रहे हैं कि वर्ष 1990, पूज्यवर का महाप्रयाण वर्ष था, पूज्यवर अपनी स्थूल काया को समेटने और सूक्ष्म में विलीन होने से पहले अपने बच्चों से,हम सब से संकल्प लेते हुए वोह दिव्य ज्ञान  का अनुदान प्रदान करना चाहते थे जिससे हम सब लाभान्वित हों। अखंड ज्योति का अप्रैल 1990 वाला अंक इसी दृष्टि से प्रकाशित किया गया था। इस अंक में “इस बार का वसंत पर्व एवं उसकी उपलब्धियां -विशेष लेख माला 1” शीर्षक से प्रकाशित लेख बहुत ही दिव्य है।  हमने इसको आधार मान कर और “ब्रह्मकमल” पुस्तक की सहायता से ब्रह्मकमल-ब्रह्मबीज शीर्षक से दो लेख आप सभी के लिए प्रस्तुत किये। अखंड ज्योति के इस अंक में विशेष लेखमाला के अंतर्गत 19 लेख प्रस्तुत किये गए हैं, सभी लेख एक से बढ़कर एक हैं। 

आज प्रस्तुत हुआ ज्ञानप्रसाद लेख उसी लेखमाला के अंक 2 जिसका शीर्षक “हम बिछुड़ने के लिए नहीं मिले हैं” एवं “ब्रह्मकमल” पुस्तक पर आधारित  है। यही मार्मिक शब्द गुरुवर के अंतिम सन्देश में भी अंकित हैं । 

हम समझ सकते हैं कि हमारे साथिओं को आज के ज्ञानप्रसाद के आधार की बैकग्राउंड समझने में कठिनाई आ रही होगी लेकिन आशा करते हैं कि अलग-अलग पुस्तकों से, वीडियोस से एवं अन्य सोर्सेज से इक्क्ठा किया गया ज्ञानप्रसाद लाभदायक सिद्ध होगा। 

इसी भूमिका के साथ हम गुरुचरणों में समर्पित होकर गुरुकुल की आज की दिव्य आध्यात्मिक गुरुकक्षा की ओर रुख करते हैं। आशा करते हैं कि गुरुज्ञान के अमृतकलश से छलक रही कुछ बूँदें अवश्य ही हमें नवजीवन प्रदान करेंगीं। 

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ब्रह्मबीज के जागरण एवं ब्रह्मकमल के प्रस्फुटन की यह प्रक्रिया परम पूज्य गुरुदेव के एक दिव्य स्वप्न के उन्हीं के द्वारा बताये जाने  से आरंभ हुई। मार्च 1990 का अंतिम सप्ताह था, पिछले वर्ष (1989) के वसंत से आरम्भ हुई एकान्तसाधना के कारण कुछ वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं के अतिरिक्त गुरुदेव किसी से बहुत ही कम मिलते थे और वोह भी दिन में केवल एक ही बार। एक दिन उन्होंने प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में अपने लगभग 20 अंग अवयवों को बुलाया और कहा :

“मैंने एक विलक्षण स्वप्न देखा। मैंने देखा कि एक ब्रह्मकमल हिमालय से अवतरित हुआ और  बड़ा होता चला गया। यह ब्रह्मकमल अगणित ब्रह्मबीजों में बदल गया जो समस्त विश्व में फैल गए हैं । अब तक का जिया गया 80 वर्षीय “मेरा ऋषि जीवन” उसी ब्रह्मकमल का स्वरूप है। मेरे जीवन के 80  ब्रह्मकमल खिले हैं। अब इन्हें, ब्राह्मणत्व के बीजों को अंकुरित एवं पल्लवित करने का कार्य तुम सभी का है। आज के युग में “ब्राह्मण” समाप्त हो गया है। सच्चे “ब्राह्मण” को आप जैसे “ब्रह्मबीज” ही जिन्दा रख पायेंगें । तुम सभी मेरे जीवन से शिक्षा लेना एवं उन ब्रह्मकमलों की फसल उगाना, बढ़ाना, पुष्पित-पल्लवित करना। विश्वास रखना कि ऐसा करने से ही भाव संवेदना से भरा पूरा स्वर्गीय वातावरण धरती पर आकर रहेगा। इक्कीसवीं सदी में साकार रूप में युग परिवर्तन दृष्टिगोचर होता दिखाई देगा।

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथी जो इस समय, 2025 में इन पंक्तियों का अमृतपान कर रहे हैं, समझ सकते हैं कि वर्ष 2100 तक, आने वाले 75 वर्षों में कैसे-कैसे परिवर्तन देखने को मिलेंगें। भविष्य को तो केवल परम पूज्य गुरुदेव जैसे युगदृष्टा,भविष्यदर्शा ही देख सकते हैं। हम जैसे साधारण एवं अल्प बुद्धि  वाले व्यक्ति केवल प्रतिक्रिया एवं शंका ही व्यक्त कर सकते हैं लेकिन भूतकाल के मात्र 10 वर्षों को ही देखने से क्लियर हो जायेगा कि सम्पूर्ण विश्व में कैसी-कैसी क्रांतियां हुई हैं, सबसे बड़ी क्रांति तो तकनिकी क्षेत्र की क्रांति है जिसने हमारे हाथों में एक ऐसा  उपकरण (हमारा मोबाइल फ़ोन) थमा दिया जिससे हम दिन रात, सोते जागते, खाते पीते, ड्राइव करते, पार्टी करते, नहाते आदि तक  चिपके रहते हैं। यह हमारे विवेक पर, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की कृपा पर, सद्बुद्धि की देवी माँ गायत्री पर निर्भर करता है कि हम इस उपकरण से क्या करना चाहते हैं।       

इस लेख के माध्यम से ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी संकल्पित, परिश्रमी सहकर्मी अपने गुरु को आश्वासन देना चाहते हैं कि उनका स्वप्न साकार होगा। हम सब ब्रह्मबीज को ब्रह्मकमल में विकसित होने का, मनुष्य में देवत्व के जागरण का, जन-जन में सोई हुई  सुसंस्कारिता को उभारने की परम्परा को जारी रखने का संकल्प लेते हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि इससे कम में काम बनने वाला नहीं है, हमारी सबकी परीक्षा की घड़ी है, गुरुदेव द्वारा रचा गया दिव्य साहित्य, उस पर आधारित दैनिक ज्ञानप्रसाद लेख, लॉन्ग/शार्ट वीडियोस, दैनिक दिव्य सन्देश, कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स सभी इक्क्ठे होकर Catalyst का कार्य करेंगें। दावानल की भयंकर आग के लिए एक छोटी सी चिंगारी ही काफी होती है।  

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक साथी, सतयुग की वापसी को संकल्पित अभियान, जिसे युगनिर्माण योजना का नाम दिया गया है, का एकजुट सिपाही है। 

सतयुग का सीधा संबंध ऋषि परम्परा से है। सतयुग को ही ब्रह्मयुग भी कहते हैं अर्थात् ऐसे व्यक्तियों का युग जिसमें सभी ब्रह्मपारायण होकर, सर्वहित का (न कि स्वार्थहित का) जीवन जीते हों, अपने पर कड़ा अंकुश लगाकर अपनी समस्त विभूतियाँ, समय, उपार्जन, यहाँ तक कि जीवन भी जो समाज के उत्थान के लिए नियोजित करने की चाह रखते हों। ऐसे ऋषिकल्प महामानवों को, देवमानवों को ही “ब्राह्मण” कहा जाता  है। ब्राह्मण न जाति है, न वंश, न वेश है, न वर्ण बल्कि वही ब्राह्मण है जिसका जीवन कर्म से ब्राह्मणोपम है । ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मण वर्ग ही सबसे पहले आर्यावर्त ब्रह्मवर्त में अवतरित हुआ, “एकोऽहम् बहुस्याम्” अर्थात ब्रह्म ने अभिलाषा की कि मैं एक से अनेक हो जाऊं। इस प्रकार आर्यावर्त  फैलता ही गया और आर्यावर्त से निकला “ब्राह्मण समुदाय” पूरे भारतवर्ष में और  फिर पूरे विश्व में फैल गया। उसी ने अनगढ़ों को सुगढ़,सुसंस्कृत बनाया और सारा वातावरण सतयुगी हो गया। 

हिमालय क्षेत्र में दुर्लभ वनौषधियाँ जो कभी चमत्कारी कायाकल्प करती थीं, धीरे-धीरे लुप्त होती चली जा रही हैं। गुजरात स्थित गिर राष्ट्रीय वन के सिंह की बड़ी ख्याति है किन्तु उसका वंश भी धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। लगभग यही स्थिति “ब्राह्मण वर्ग” की हो गयी है। कभी तैंतीस कोटि (33 प्रकार न कि 33करोड़) भारतवासी ब्राह्मण जीवन जीने वाले ही देवता कहलाते थे। आज वह परम्परा लुप्त हो गयी है। दैवी सम्पदा को लेकर जीवित रह लेने वाले कम रह गए। आसुरी संपदा (लोभ, मोह, अहंकार) पर ही अपना निर्वाह चलाने वाले व्यक्ति बढ़ते चले गए हैं। 

यदि सतयुग की वापसी करनी है तो हमें लुप्त हुई “ब्राह्मण परम्परा” को पुनः जागृत करना होगा। इसी से देवमानवों की वह बेल उगायी, बढ़ायी और विकसित की जा सकती है, जो ब्रह्मबीज से ब्रह्मकमल का रूप लेने, ब्राह्मणत्व के विस्तार की प्रक्रिया को साकार रूप देने की भूमिका निभा सके।

इक्कीसवीं सदी निश्चित ही नवयुग के आगमन का शुभ संकेत लेकर आ रही है। इसमें ब्रह्मपारायण व्यक्तित्व उभरेंगे। जो जीवन हमारे गुरुदेव ने जिया वही सतयुग का आधार बनेगा। जो विचार उन्होंने  दिए, उन्हीं  से सतयुगी वातावरण धरती पर आएगा। इसको सात्विकता,सद्भावना और सहकार से भरी पूरी परिस्थितियाँ एक बार फिर से  दृश्यमान होंगी। उत्कृष्ट जीवन जीने वाले, हँसती-हँसाती, खिलती-खिलाती, मिलजुल कर रहने वाली जिन्दगी जीने वाले देवपुरुष धरती पर जी रहे होंगे। दिव्य प्रतिभा सम्पन्न महापुरुषों की एक विलक्षण फसल उगेगी। युवाशक्ति से लेकर प्रतिभा संपन्न नारी शक्ति सभी नवनिर्माण में तत्पर देखे जा सकेंगे। वेश उनका कुछ भी हो लेकिन  मन से यह  सभी ब्राह्मण होंगे। 

यह दिव्य स्वप्र साकार होने को है। गुरुवर की ही अभिव्यक्ति कवि की पंक्तियों से हुई है:

 “ब्रह्मतेज से चमक उठे फिर से  भारत देश हमारा।

 और विश्व को आत्मज्ञान का फिर से दिया उजाला ।।

  मेरे ब्रह्मकमल ने खिलकर, यह उद्घोष लगाया।

  मैंने जीवन त्याग, तितीक्षा, तप में सतत गलाया ।।”

ये पंक्तियाँ हम सबके लिए भावी जीवन हेतु मार्गदर्शक हैं। इसमें गुरुसत्ता का जीवनदर्शन है।

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कल के ज्ञानप्रसाद लेख को 642   कमेंटस मिले,19 संकल्पधारी  साथिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का इस अद्भुत सहयोग  के लिए ह्रदय से धन्यवाद  करते हैं ,आज फिर एक कीर्तिमान स्थापित हुआ है। सभी का धन्यवाद्। कमैंट्स संख्या, कमैंट्स क्वालिटी, साथिओं की गणना ही इस परिवार की रीढ़ की हड्डी है।


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