20 फ़रवरी 2025 का ज्ञानप्रसाद
आज आरम्भ हुई “आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला” की भूमिका (Preface) कल वर्णन की थी, एक बार फिर से बता देते हैं कि आने वाले कुछ दिनों के ज्ञानप्रसाद लेख, अप्रैल 1990 की अखंड ज्योति में प्रकाशित हुए लेखों पर आधारित होंगें। हमारे साथी जानते हैं कि वर्ष 1990 परम पूज्य गुरुदेव का महाप्रयाण वर्ष है और उस वर्ष में प्रकाशित हुआ विशाल साहित्य हमारे लिए अति वंदनीय है लेकिन यह अंक वोह ज्ञान लेकर आया है जिसका अमृतपान करना गुरुवर से प्यार करने वाले प्रत्येक बेटे-बेटी का परम कर्तव्य है।
इस अंक में प्रकाशित हुई विशेष लेखमाला के 19 टॉपिक्स के गहरे महासागर में से डुबकी मारकर हम कितने रत्न खोज पाते हैं, यह हमारी अल्पबुद्धि और साथिओं के जिज्ञासा भरे कमेंट का सामूहिक प्रयास रहेगा।
आज प्रस्तुत किया गया लेख, उस लेख का आधा भाग है जिसका शीर्षक है “इस बार का वसंत पर्व एवं उसकी उपलब्धियां।” इस लेख का दूसरा भाग शुक्रवार यानि 21 फ़रवरी को प्रकाशित किया जाना ही उचित रहेगा। शुक्रवार वाली वीडियो कक्षा के स्थान पर इसी आध्यात्मिक लेख का दूसरा भाग प्रस्तुत करने का कारण यही है कि सोमवार तक पहुँचते पंहुचते सब भूल जायेगा।
गुरुदेव बता रहे हैं कि वर्ष 1990 की वसंत पंचमी को शांतिकुंज में मिशन के साथ जुड़े हुए परिजन इतनी अधिक संख्या में आये जितने कि विगत 10 वर्षों में कुल मिलाकर भी नहीं आये थे। गुरुदेव ने उनके ठहरने आदि की व्यवस्था के लिए क्या कुछ किया वोह इसी लेख में पढ़ने को मिल रहा है। इतने अधिक लोग क्यों आये एवं उनका क्या स्वार्थ/लोकहित था, युगदृष्टा, भविष्यदृष्टा से कहाँ छुपा था। आज और कल के लेखों में ऐसे सभी जिज्ञासाभरे प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना है।
तो आइये चलें, गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा में, हो जाएँ समर्पित गुरुचरणों में, कर लें अमृतपान गुरुज्ञान का, आखिर यही तो है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक विद्यार्थी का परम उद्देश्य।
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लम्बी मंजिल लगातार चल कर पार नहीं की जाती। बीच में सुस्ताने के लिए विराम भी देना पड़ता है। रेलगाड़ी जंक्शन पर खड़ी होती है,पुराने यात्री उतरते हैं, अपना सामान उतारते हैं, नये यात्री चेक करके चढ़ाये जाते हैं, गाडी का पायलट ईंधन आदि भरता है, सफाई कर्मचारी सफाई करते हैं, पैंट्री वाले खाने-पीने का सामान चढ़ा कर रसोई को भरते हैं, ऐसे कितने ही अन्य कार्य हैं जिन्हें उस समय पूरा किया जाता है जब गाड़ी स्टेशन पर खड़ी होती है। इसी तरह आर्थिक वर्ष (Financial year) के समापन पर पुराना हिसाब-किताब, अकाउंट बुक्स इत्यादि जाँची जाती हैं और नया बजट बनता हैं। माँ के गर्भ में रहकर भ्रूण अपने अंग प्रत्यंगों को इस योग्य बना लेता है कि शेष लंबे जीवन भर उससे काम में लाया जा सके। किसान हर वर्ष नई फसल बोने और काटने का क्रम जारी रखता है।
ऊपर दिए गए सभी कृत्य लगातार,बिना रुके कभी भी नहीं चलते, इनके बीच में विराम के क्रम भी चलते रहते हैं। सेना की टुकड़ी भी कूच के समय रुक कर में बीच-बीच में सुस्ताती है।
ब्रह्मकमल की एक फुलवारी 80 वर्ष तक “हर वर्ष एक नया पुष्प” खिलाने की तरह अपनी मंजिल का एक विराम निर्धारण पूरा कर चुकी।
आगे चलने से पहले आइये ज़रा ब्रह्मकमल की बात कर लें।
“ब्रह्मकमल” शीर्षक वाली 300 पन्नों की एक दिव्य पुस्तक के पृष्ठ 7 और 8 पर वर्तमान लेख से सम्बंधित जानकारी देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। परम पूज्य गुरुदेव के जन्म शताब्दी महोत्सव पर रिलीज़ हुई इस पुस्तक के रचनाकार “ब्रह्मवर्चस” के बारे में ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर अनेकों बार चर्चा हो चुकी है, फिर से रिपीट करना अनुचित होगा। वर्तमान सन्दर्भ में निम्नलिखित ही वर्णन करना उचित रहेगा :
मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति परब्रह्म के संकल्प से हुई है। “ब्रह्म संकल्प” के विकास के तथ्य को पौराणिक भाषा में महाविष्णु की नाभि से विकसित “ब्रह्मकमल” कहा गया है। इसी ब्रह्मकमल से, सृजनकर्ता ब्रह्मा विकसित हुए और उन्होंने सृष्टि की रचना की। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने भी अपने ब्रह्मतेज से नूतन सृष्टि की रचना करके ओजस, तेजस, वर्चस से संपन्न महामानवों से धरित्री को शोभायमान किया था।
आज की प्रतिकूलतम परिस्थितियों में वैसा ही प्रखर पराक्रम विश्वामित्र की कार्यस्थली-तपोभूमि, शांतिकुंज हरिद्वार में कठोर तपश्चर्या करके हमारे युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने किया है। ब्रह्मऋषि विश्वामित्र की ही तरह गुरुदेव ने भी सतयुगी वातावरण का स्वप्न देखा व उसकी समग्र पृष्ठभूमि तैयार की। कठोर तप के माध्यम से उनके अंतःकरण से भी वैसा ही ब्रह्मकमल प्रस्फुटित हुआ है जो पूर्ण सुविकसित पुष्पित होकर अनेकानेक ब्रह्मतेज युक्त आत्माओं के रूप में, चरम स्थिति पर पहुँचकर सारे विश्वभर में ब्रह्मबीजों के रूप में फैल चुका है। उनके महाप्रयाण (1990) के बाद से विगत वर्षों में जो वातावरण बना है वह उसका साक्षी है।
गुरुदेव बता रहे हैं कि अब नयी योजना के अनुरूप नयी शक्ति संग्रह करके “नया प्रयास” आरम्भ किया जाना है। यह विराम प्रत्यावर्तन (जिसका अर्थ है रुक कर आगे बढ़ना ) लगभग वैसा ही है जैसे वयोवृद्ध शरीर को त्याग कर नये शिशु का नया जन्म लिया जाता है और “नये नाम” से सम्बोधन किया जाता है। नवसृजन अर्थात नए युग की रचना की सन्धिवेला में भी लगभग ऐसा ही हो रहा है। दो सदियों (20वीं और 21वीं) की संधि को युगसंधि की परिभाषा दी गयी है। 1990 एवं उसके बाद वाले 10 वर्ष, 20वीं सदी का अंत था और 2001 से 21वीं सदी का शुभारम्भ था।
गुरुदेव कहते हैं कि विराम की अवधि 80 वर्ष रहे तो इसे अनहोनी नहीं कहा जाना चाहिए। “नवसृजन अभियान” तथा उसके लिए नियमित रूप से काम करने वाले व्यक्ति (हमारे गुरुदेव) के सम्बन्ध में भी ऐसा ही सोचा जा सकता है।
गुरुदेव के साथ जुड़े हुए लोगों को भूतकाल के आश्चर्यजनक रहस्यों और भविष्य के अभूतपूर्व निर्धारणों के सम्बन्ध में अधिक कुछ जानने की उत्सुकता एवं जिज्ञासा उभरी। समय रहते उन्होंने प्रत्यक्ष पूछताछ करने की आतुरता प्रदर्शित की।
1990 की वसन्त पंचमी 31 जनवरी बुधवार वाले दिन थी। इसके कई माह पहले ही शांतिकुंज में आत्मीयजनों के आने का ताँता सा लग गया। आगमन का उद्देश्य वह लाभ उठाने का था जो “किसी बड़े व्यवसायी के कारोबार में भागीदार” बन जाने वालों को सहज ही मिलने लगता है। यह बिलकुल उसी तरह का लाभ है जैसे एक बड़ी कंपनी के शेयरहोल्डर्स को बिज़नेस की growth से, Dividend मिलता है। अनुसंधान-अन्वेषण भी एक कारण ही रहा है। रहस्यों का पता लगाने की सहज जिज्ञासा भी इस उत्साह का निमित्त कारण हो सकता है।
जो भी हो पिछले 6 महीने इसी सोच विचार में बीते हैं। इस बीच शांतिकुंज में इतने प्रज्ञापुत्रों का आगमन हुआ जितना कि इस आश्रम के निर्माण से लेकर अब तक के पूर्व वर्षों में कभी भी नहीं हुआ। इतने अधिक परिजनों के आगमन से भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह रही कि जिज्ञासुओं ने आग्रहपूर्वक वह सब उगलवा लिया जिसे आज तक रहस्यमय एवं गुप्त समझा जा रहा था। अक्सर ऐसी धारणा भी है कि चलते समय तो गोपनीयता का, आश्चर्य-असमंजस का समाधान कर ही दिया जाय, फिर पता नहीं कब मिलन होगा, होगा भी कि नहीं। इसलिए कुशल मंगल, अथिति सत्कार के अतिरिक्त ऐसा भी बहुत कुछ पूछा/बताया गया जिनका दूर रहने वालों को अनुभव भी नहीं था।
जो आ नहीं सके उन्हें भी उस रहस्यमयी चर्चाओं की जानकारी प्राप्त करने से वंचित न रहना पड़े, यह विचार करते हुए आवश्यक रहस्यों को लिपिबद्ध कर देना उचित समझा गया ताकि उपयोगी जानकारी से कोई भी वंचित न रहे। यह एक ऐसी जानकारी थी जो अब तक न सही अगले दिनों लोगों के संपर्क में आयेगी और यह लोग भूतकाल की उपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक होंगे।
इस जानकारी का रहस्योद्घाटन करने में ऐसे सभी लोगों का लाभ सन्निहित है जो गुरुदेव जैसे सफल महामानव के सहचरों को मिलता है।
अनुमान सभी को था कि इस तंत्र की प्रायः सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रथम दिन वसंत पंचमी है। सो उस मुहूर्त को विशेष महत्व देने वाले आगन्तुकों की संख्या निश्चय ही पहले दिनों की अपेक्षा निश्चित रूप से अधिक रहेगी। हुआ भी ठीक ऐसा ही।
आश्रम की परिधि और आगन्तुकों के लिए साधनों की तुलनात्मक दृष्टि से कमी होने के कारण शान्तिकुंज के आश्रमवासी इस आपत्तिकालीन समस्या से निपटने में जुट गये। भूमि न मिल सकी तो जितना स्थान पास में था उसे बहुमंजिला और सघन बनाया गया। लगभग सारा काम श्रमदान से हुआ और जितनों के लिए जगह थी उससे प्रायः ढाई-तीन गुना के लिए जगह बना दी गई। भोजन व्यवस्था के लिए बड़े आधुनिक यंत्र-उपकरण नये सिरे से लगाये गये और ऊपरी मंजिल पर बने भोजनालय से नीचे खाद्य पदार्थ लाने के लिए एक गुड्स लिफ्ट को फिट किया गया। विकास होने के बावजूद असुविधा रहने की आशंका थी लेकिन काम किसी प्रकार चल गया, जैसे कि ईश्वर पर आश्रित लोगों का चल जाया करता है। इस बार का वसंत पर्व न केवल आयोजन की दृष्टि से बल्कि स्वजनों के साथ आत्मीयता भरे परामर्श देने की दृष्टि से भी अनुपम रहा। लोगों ने इतना कुछ ऐसा पाया जिसकी आशा या संभावना कदाचित थोड़ों को ही रही होगी।
सुनना अधिक कहना कम, करना-अधिक बताना कम, सिखाना कम-सीखना अधिक जिनकी जीवन शैली रही हो, वे इतने गंभीर प्रसंगों को इतनी सरलतापूर्वक बता देंगे इस स्थिति का प्रावधान पाकर आगन्तुकों में से अधिकांश को भारी संतोष हुआ। प्रश्नों की, जिज्ञासाओं की झड़ी लगी रही। इतनों को एक व्यक्ति इतना कुछ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से बता सकता हैं, यह प्रसंग भी अपने आप में अद्भुत रहा।
इससे आगे की जिज्ञासाएं कल वाले लेख में जानेगें।
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कल के ज्ञानप्रसाद लेख को 668 कमेंटस मिले, 17 संकल्पधारी साथिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का इस अद्भुत कीर्तिमान के लिए ह्रदय से धन्यवाद करते हैं क्योंकि कमैंट्स संख्या, कमैंट्स क्वालिटी, साथिओं की गणना ही इस परिवार की रीढ़ की हड्डी है।