वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस को समर्पित “विशेष श्रृंखला” का दसवां एवं समापन लेख -प्रस्तुतकर्ता अरुण त्रिखा 

पुनर्जन्म तो ही तो है क्योंकि 2012 से 2017 तक लगातार हम दोनों गुरुशरण पाने के लिए कहां कहां नहीं भटके, क्या-क्या कुछ नहीं किया, शब्दों में वर्णन करना कठिन  है। आत्मिक शांति के लिए मंदिरों में जाना तो साधारण सी बात थी लेकिन गुरद्वारों में, मस्जिदों में, तथाकथित धर्मगुरुओं के प्रवचन सुनने हेतु जाने से भी गुरेज़ नहीं किया। हमने स्वयं को तो 3-4 कार्यों में Volunteer करके व्यस्त रखा हुआ था लेकिन कोई हॉबी न होने के कारण नीरा जी की स्थिति कठिन थी।

शांतिकुंज ,गुरुदेव, गायत्री परिवार तो जैसे भूले विसरे गीत की भांति हो गए थे। तभी तो हम अक्सर कहते रहते हैं :  

इस पुनर्जन्म के संबंध में यदि हम कहें कि परम पूज्य गुरुदेव ने हाथ पकड़ कर, संसार के दलदल में से खींच कर अपने चरणों में स्थान दिया तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। गुरुवर का तो पता नहीं उन्होंने कुछ कहा कि नहीं (क्योंकि उनसे बात करने के लिए बहुत ही उच्चकोटि की पात्रता चाहिए, जिसके हम आसपास भी नहीं हैं) लेकिन उन्हीं के भेजे हुए दूत( आदरणीय राकेश शर्मा जी) ने यह शब्द जरूर कहे थे,

Guelph नगर, Canada में स्थित Centennial college में शांतिकुंज से आई टोली द्वारा गुरुपूर्णिमा आयोजन का अवसर था। आदरणीय प्रोफेसर त्रिपाठी जी टोली को Lead कर रहे थे। हमारे लिए कनाडा में गायत्री परिवार द्वारा किए गए किसी आयोजन में उपस्थित होने का प्रथम अवसर था। आदरणीय जितेंद्र वर्मा जी का धन्यवाद करते हैं जिनके निमंत्रण  पर हमें इस आयोजन में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जितेंद्र जी Guelph city में हिंदू सोसायटी के वाइस प्रेसिडेंट थे और गायत्री परिवार से जुड़े थे। समारोह में हमें अगली पंक्ति में बिठाना, सम्मान देना, बहुत ही अच्छा लगा। मंच पर त्रिपाठी जी के इलावा कनाडा के गायत्री परिवार के मनहर जी, उत्पल जी, इशानी बहिन आदि गुरुदेव का गुणगान कर रहे थे। राकेश शर्मा जी हमारे साथ ही बैठे थे। हमारे लिए सब नए ही थे, सभी से पहली बार ही मिल रहे थे। लगभग दो घंटे के अति दिव्य एवं ऊर्जावान वातावरण में स्वयं को पाकर ऐसे लग रहा था जैसे हमारे हाथ  कोई बहुत बड़ा खजाना  लग गया हो।

ऐसा अनुभव होने  का कारण और स्वयं को भटका हुआ मानव कहने का विशेष  कारण है जिसको आगे वर्णन करते हैं।

त्रिपाठी जी से इंट्रोडक्शन में जब हमने अपना नाम बताया तो कहने लगे हम भी जम्मू के एक त्रिखा भाई साहिब और बहिन छाया दुबे को जानते हैं। उन्होंने जब पूरा नाम बताया तो हमने कहा कि वह तो हमारे स्वर्गीय पिताजी हैं और छाया दुबे हमारी स्वर्गीय बहिन जी हैं। साथियों को स्मरण होगा कि हमारी बहिन जी ने ही हम सभी को गायत्री परिवार से जोड़ा था।

यहां पर एक बात वर्णन करने योग्य है कि पूरे विश्व में गायत्री परिवार में संलग्न त्रिपाठी जी को न केवल हमारे पिताजी और बहिन जी का नाम ही याद था बल्कि जम्मू में हमारा मोहल्ला भी याद था। शायद गुरुदेव की शक्ति त्रिपाठी जी में भी स्थानांतरित हो गई होगी।

समारोह के बाद गायत्री परिवार की प्रथा एवं वंदनीय माताजी के निर्देश अनुसार भोजन प्रसाद प्रदान किया गया। यहां यह बताना बहुत ही महत्वपूर्ण  है कि माता जी के चौके का आयोजन स्वयंसेवक बहिनों द्वारा ही किया गया था, इतने अधिक लोगों के लिए, इतना स्वादिष्ट भोजन परोसना, यह बहिनें कैसे सब कर लेती हैं, वोह ही जानती हैं। जिज्ञासावश पूछने पर एक ही उत्तर मिलता रहा है, “यह सब गुरुदेव की कृपा है, वही कर रहे हैं।”

इतने वर्ष कनाडा में रहने के बाद जब पहली बार गायत्री परिवार द्वारा आयोजित साधारण सा समारोह देखा तो हमारी आंखें चुंदिया सी गयी। हर वर्ग का कार्यकर्ता अपना कार्य इतनी श्रद्धा से निभा रहा था कि साक्षात् गुरुदेव का देवदूत ही हो। बुक स्टाल से लेकर, बाल संस्कार शाला के नन्हें मुन्हें एवं युवा, लड़के-लड़कियां आदि सब को देखकर कार्यकर्ताओं के लिए हमारे मुँह से यही शब्द निकले, 

हमारा दुर्भाग्य तो देखिये, हमारे ही नगर Guelph में 2016 में 108 कुंडीय यज्ञ करवाया गया लेकिन हमें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। इस दुर्भाग्य का  केवल एक ही अर्थ निकाला जा सकता है, 

तभी तो हम कहते फिरते हैं कि गुरुदेव की आज्ञा के बिना शांतिकुंज में प्रवेश कर पाना भी संभव नहीं है।  

2017 के जिस आयोजन की चर्चा यहाँ पर हो रही है, वहां खड़े हमने न जाने कितनी ही बार अपनेआप को कोसा लेकिन क्या किया जाए, गुरुकृपा ऐसे ही नहीं मिल जाती। बार-बार ऐसा आभास हो रहा था कि गुरुवर प्यार से डाँटते हुए कह रहे हों,

यहाँ साथिओं को  बताना आवश्यक समझते हैं कि 1994 में कुरुक्षेत्र अश्वमेध यज्ञ में भागीदारी के बाद जैसे हम गायत्री परिवार, शांतिकुंज, गुरुवर आदि सभी को भूल ही गए थे। शायद गुरुवर की ही इच्छा होगी कि मेरा बेटा  एवं उसका परिवार अपनी पारिवारिक और व्यावसायिक जिम्मेदारिओं में व्यस्त है तो इसे अब डिस्टर्ब करना उचित न होगा। हम उन दिनों की बात कर रहे हैं जब हमारे दोनों बेटे 7 और 10 वर्ष के थे, यूनिवर्सिटी की जॉब में कुछ बहुत ही ऊँचा कर लेने का भूत सवार था (बहुत कुछ किया भी) लेकिन गुरु से दूर रह कर कुछ भी कर पाना बहुत ही घाटे का सौदा था जिसका दंड हमें 23 वर्ष (1994 से 2017) तक भुगतना पड़ा। इस दंड का एक कारण,परिवार से ,माता पिता  से दूर रहना भी हो सकता है। जम्मू में तो सभी परिवारजन नियमितता से गायत्री साधना करते थे, शांतिकुंज भी जाते थे लेकिन हम अभागे, बड़ा बनने की दौड़ में न जाने कहाँ खो गए। 

लेकिन विज्ञान के अति निम्नस्तर के विद्यार्थी होने के कारण, तर्कशील होने  के साथ-साथ माता पिता द्वारा दिए गए  आध्यात्मिक संस्कार भी अंतःकरण में अपने  स्थान पर डटे  बैठे थे। सारी ड्यूटियां निभाते हुए साधारण सी उपासना तो नियमितता से प्रतिदिन करते ही रहे। ईश्वर में अविश्वास तो कभी भी नहीं हुआ, शायद यही कारण होगा कि

गुरुवर से 23 वर्ष  के लिए दूर रहकर वनवास काटने के पीछे निम्लिखित अंग्रेजी की पंक्तियां शायद कुछ कह दें:

2017 से 2025 तक गुरुवर ने हमसे इतना कार्य करवा लिया,इतने 108 कुंडीय यज्ञों में भागीदारी करवा दी, दो बार शांतिकुंज, तपोभूमि, आंवलखेड़ा में तीर्थसेवन करवा दिया, आदरणीय चिन्मय जी, श्रद्धेय डॉक्टर साहिब,श्रद्धेय जीजी,आद त्रिपाठी जी, आद ओ पी शर्मा जी, आद  ईश्वर शरण  पांडे जी, शिष्य शिरोमणि शुक्ला बाबा,उनकी बेटी सुनैना तिवाड़ी, उनके नाति मृतुन्जय तिवाड़ी और न जाने कौन कौन सी विभूतियों से पारिवारिक सम्बन्ध बना दिए कि ऐसा प्रतीत होता है कि गुरुवर ऊँगली पकड़ कर एक अबोध बालक की भांति ले जा रहे हों। शुक्ला बाबा से मिलन का सम्पूर्ण श्रेय हमारे चि. बेटे बिकाश को जाता है, यूट्यूब का एक कमेंट ही इतना शक्तिशाली था कि क्या कहा जाये। 

2017 में ही आद चिन्मय जी के साथ रेडियो इंटरव्यू रिकॉर्ड हुए, आद. राकेश जी द्वारा Stoney creek में 108 कुंडीय यज्ञ, Kingston में youth Festival,  मधु भाई द्वारा Mississauga में श्रद्धेय डॉ साहिब की उपस्थिति में 108 कुंडीय यज्ञ हुआ। गुरुपूर्णिमा, गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस, श्राद्ध तर्पण के साथ-साथ अनेकों छोटे बड़े कार्यक्रम होते रहे। 

विशेष वर्णन योग्य बात यह है कि कनाडा के मौसम ( जहाँ लगभग 8-10 महीने सर्दी होती है) के बावजूद हम लगभग सभी आयोजनों में भागीदारी सुनिश्चित करते रहे। कई बार तो बर्फ के मौसम में 400 किलोमीटर तक भी ड्राइव करते रहे। अधिकतर प्रोग्राम राकेश जी द्वारा आयोजित किये जाते थे, वोह मना भी करते थे कि अपना स्वास्थ्य देखकर ही करें लेकिन 23 वर्षों का घाटा और गुरुसेवा की धुन अभी ही सब कुछ करने को कह रही थी। लेकिन गुरु तो गुरु ठहरे, उनकी आज्ञा सर्वोपरि है, 2018 और 2019 में one after the other दो वर्ष शांतिकुंज आने का सौभाग्य प्राप्त हो गया था लेकिन अब 5 वर्ष तक कोई अवसर नहीं मिल रहा। शायद गुरुवर का ही निर्देश है कि जो कार्य सौंपा है उसे ही पूरा करना है। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथी जो  हमसे ऑनलाइन जुड़े हुए हैं जानते हैं कि 2017 में ही हमने गायत्री परिवार से सम्बंधित प्रथम वीडियो अपलोड की थी जिसमें Stoney creek वाले 108 कुंडीय यज्ञ का वर्णन था, उन्हीं दिनों चिन्मय जी के रेडियो इंटरव्यू भी अपलोड किये थे, उसके बाद तो जैसे ताँता ही बंध गया था, गुरुदेव ने इन सात वर्षों में 885  वीडियोस अपलोड करवा दीं। फ़रवरी 2018 में गुरुवर ने लेखन का कार्य भी शुरू करवा दिया, गायत्री साधना का विस्तृत लेख 3 फ़रवरी 2018 को प्रकाशित हुआ और आज की स्थिति से हमारे साथी भलीभांति परिचित हैं,गुरुवर हमारी ऊँगली पकड़ कर,अब तक 1258  आध्यात्मिक ज्ञानप्रसाद लेख लिखवा चुके हैं जिनका अमृतपान करके अनेकों साधक तृप्त हो रहे हैं।

इस पुनर्जन्म की उपलब्धियों के बारे में अगर कोई हमें पूछे तो केवल दो ही शब्दों में कह सकते हैं, “मानसिक शांति” जिसकी की तलाश में अनेकों भटक रहे हैं। 

मानसिक शांति के बारे में यह कहना शायद उचित न हो तो हम बहुत ही बेचैन थे, कुछ प्राप्त करने को भटक रहे थे जो हमें नहीं मिल रहा था।  ऐसा हरगिज नहीं था। सुखी परिवार, आज्ञाकारी बच्चे, अच्छी नौकरी, सब कुछ ही तो था, कभी भी किसी भौतिक वस्तु कमी नहीं लगी थी। हां नींद की थोड़ी समस्या अवश्य थी। अब तो यह स्थिति है कि जिस दिन गुरुकार्य  में नियत टाइमटेबल के अनुसार कार्य नहीं हो पाता उस दिन बेचैनी तो क्या बीमार होने की स्थिति आन पड़ती है, नॉर्मल हालात में बिस्तर तक पहुंचने की देर होती है, लेटते ही पहले 20 मिनट की powernap एकदम फ्रैश कर  देती है जिससे सारा दिन नॉनस्टॉप कार्य करने की शक्ति आ जाती है।

सर्जरी में तो गुरुशक्ति का और भी अधिक प्रभाव देखने को मिल रहा है। नमन है ऐसे गुरु को।

हमारे साथी हमारी फितरत से भलीभांति परिचित हैं, जो हम लिख रहे हैं  वह बिल्कुल वैसा ही है जैसा अंतर्मन से उभर रहा है।

धन्यवाद्, जय गुरुदेव 

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कल के ज्ञानप्रसाद लेख को 448  कमेंटस मिले, 10 संकल्पधारी  साथिओं 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद  करते हैं।


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