वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस को समर्पित “विशेष श्रृंखला” का सातवां लेख योगदानकर्ता-आद.सरविन्द पाल 

12 फ़रवरी 2025,बुधवार को प्रस्तुत किया गया यह लेख अखंड ज्योति फरवरी 2017 के अंक में पृष्ठ 13 पर प्रकाशित हुए “उन चरणों को पूजो,जिनने दुनिया नई बसायी है” शीर्षक वाले 

लेख पर आधारित है। इस लेख को  हम सबके आद.सरविन्द पाल जी ने पढ़ा, समझा और हमने इसका सरलीकरण करते हुए Easy to understand भावना से यथासंभव एडिटिंग ( बिना किसी फेर बदल के) करके आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया है।

इस लेख में श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी और परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य संवाद का वर्णन है। 

लेख के आरम्भ की ही कुछ पंक्तियाँ लिखते समय हमें विचार आया था कि इन्हें हाईलाइट करना उचित होगा लेकिन ज्यों-ज्यों पढ़ते गए ऐसा अनुभव हुआ कि सारा संवाद ही हाईलाइट करने योग्य है।

अपने साथिओं की अनुभूतियाँ अभी भी हमारे पास आ रही हैं,कुछ एक तो बहुत ही छोटी सी, दैनिक जीवन की घटनाएं ही हैं। छोटी होने के बावजूद दिव्यता एवं गुरु के प्रति श्रद्धा/विश्वास से सभी ओतप्रोत हैं। 

आद. अरुण जी (हमारे निवेदन पर)  एवं आद.राजकुमारी जी को उनकी अनुभूतिओं के लिए धन्यवाद् करते हैं।        

शब्द सीमा की बेड़ियाँ आज हमें सीधा इस दिव्य लेख के अमृतपान का निर्देश दे  रही हैं, अतः उस निर्देश का पालन करते हुए,आइये अपनी अंतरात्मा का परिष्कार कर लें।

***********************  

मनुष्य के जीवन की कुछ घड़ियाँ ऐसी होती हैं, जिन पर सौभाग्य स्वयं हस्ताक्षर करता है। बहुत से मनुष्य ऐसे भी हैं जो जीवन में पैसा व पद प्राप्त करने की तुलना, जीवन में मिले सौभाग्य से करते पाए गए हैं। हमारे जीवन का परम सौभाग्य तो वह समय कहा जा सकता है जो  हमने परम पूज्य गुरुदेव के  व्यक्तिगत सानिध्य में गुज़ारा । ऐसे समय का एक-एक पल विश्व-ब्रह्मांड की समस्त स्वर्गीय विभूतियों की तुलना पर भारी पड़ता है। गुरुदेव से  मिला आशीर्वाद,अनंत प्यार और जीवन की सर्वश्रेष्ठ दिशा,जीवन की विपरीत परिस्थितियों में एक शीतल छाँव और स्वर्णिम प्रकाश का आभास कराते हैं। यदि कभी भूल से भी मन में कोई अंधकार व्याप्त होने का प्रयास करने लगे तो सद्गुरू के साथ गुज़ारे गए पलों का संस्मरण याद आते ही पुनः मन उसी उत्साह से भर पड़ता है, जो उनके सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य में अनुभव हुआ करता था। 

उस दिन (शायद 1990 से पहले के किसी वसंत की बात होगी) भी मन में वही उमंग, वही उत्साह छाया हुआ था, जो उनके पास से बुलावा आते ही स्वतः स्फूर्त होने लगता था। प्रातःकाल की मधुर वेला में परम पूज्य गुरुदेव ने कहलवा भेजा था कि वे उस दिन प्रातःकाल ही मिलेंगे। बसंत पर्व की ऋतु ने भी दस्तक देनी आरंभ कर दी थी और उस वासंती वातावरण  को जीव-जंतुओं से लेकर पेड़-पौधों तक  समग्र रूप से देखा जा सकता था। युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के सामने वाली जमीन पर फैले आम के पेड़ों पर चहचहाते पक्षी भी हम सब के मनों में उभर रहे उत्साह को अपनी उल्लसित सहमति दे रहे थे जिससे हम सबका अंतःकरण प्रफुल्लित हो रहा था। 

प्रतीक्षा की वेला समाप्त होते ही कदम तेजी से गुरुवर के  कक्ष की ओर चल पड़े, जहाँ  परम पूज्य गुरुदेव अपने सोफे पर बैठकर लेखनकार्य कर रहे थे। बाहर चाहे तूफानों के या झंझावातों के दौर चल रहे हों लेकिन परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य कक्ष में एक अद्भुत और दिव्य नीरवता हमेशा व्याप्त रहती थी और उनके पास उपस्थित होते ही मन से विचार ऐसे गिर जाते थे, जैसे पतझड़ आने पर वृक्ष से पत्ते गिरकर अपना प्रयोजन खो बैठते हैं। 

हमें आता देख परम पूज्य गुरुदेव ने अपने लिखने के पैड को पास के स्टूल पर रख दिया और एक गहन आत्मीयताभरी दृष्टि  से हमारी ओर देखा, उनकी  दिव्य दृष्टि में जो आत्मीयता और प्रेम झलक रहा था, उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना असंभव था और उनके अंतःकरण में यदि कुछ लबालब भरा था तो वह मात्र प्यार ही था जो आज भी स्मरण करते अंतःकरण स्वतः प्रफुल्लित  हो उठता है।

हम अब उनके श्रीचरणों में प्रणाम, नमन वंदन करने के लिए झुक चुके थे और प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने खुद अपना हाथ आशीष व संरक्षण भाव से हमारे माथे पर रखा। बहुत ही सुंदर व दिव्य अनुभूति हुई। 

एक दिन उपरांत ही बसंत पंचमी के पावन महापर्व का शुभ दिन आने वाला था। यह वह दिन है  जब गुरुदेव के अनेकों उल्लेखनीय प्रसंगों ने मूर्त रूप धारण किया था, वोह चाहे गुरुसत्ता से भेंट के पल हों या फिर उनकी गायत्री महापुरश्चरणों की श्रृंखला का शुभारंभ हो, चाहे वह अखंड दीपक का प्रस्फुटन रहा हो या उनके दिव्य विचारों की पाती, अखंड ज्योति का उदय; इन सभी के शुभारंभ के लिए गुरुदेव ने इसी शुभ दिन का चयन किया था। 

“गुरुदेव, कल बसंत पंचमी का पावन महापर्व है। अतः हमारे जीवन में भी आपकी तरह सर्वत्र प्रकाशपुंज प्रवाहित होकर प्रकाश का उदय हो और आपके द्वारा दिए गए कार्यों को जीवनपर्यंत निष्ठा के साथ पूर्ण कर सकें, ऐसा आशीर्वाद दीजिए।”

“हाँ बेटा, कल का दिन अत्यंत शुभ दिन है और हमारे जीवन के सभी महत्वपूर्ण अध्याओं के सूत्र इसी दिन से जाकर के जुड़ते हैं। इस बार की बसंत पंचमी पर भी मैं आने वाले विश्व की समुचित व्यवस्था के लिए सही ताना-बाना बुन रहा हूँ। जो मैं कर रहा हूँ, इसे प्रत्यक्ष रूप लेने में भले ही आधी सदी लग जाए, परंतु इसके बीज कल की बसंत पंचमी से ही बो दिए जायेंगे।”

परम पूज्य गुरुदेव के ऐसा कहते मन प्रफुल्लित होकर प्रश्नों से भर उठा। 

गुरुदेव! कल की बसंत पंचमी से आप भविष्य की क्या आधारशिला रखने जा रहे हैं?” गुरुदेव बोले,“बेटा!आने वाले वर्षों में युग निर्माण योजना की एक मजबूत आधारशिला रखने का मेरा मन है और यह “एक न टाला जाने वाला सत्य” है कि भविष्य में एक नए संसार का सृजन होने जा रहा है तथा ध्वंस के बिना सृजन संभव नहीं है। इस सृजन को जन्म देने से पहले मानवता को कष्ट कठिनाइयों की वेला से गुजरना होगा। दुष्प्रवृत्तियों का जब भरपूर दंड मनुष्य को मिलेगा, तब उसे बदलना ही पड़ेगा और यह कार्य भगवान महाकाल स्वयं संपन्न करेंगे। 

इसे “महाकाल की युग प्रत्यावर्तन-प्रक्रिया” भी कह सकते हैं और इसमें हमारे हिस्से में नवयुग की आस्थाओं और प्रक्रियाओं को अपना सकने योग्य जनमानस का निर्माण करना है, लोगों को यह बताना है कि अगले दिनों संसार का एक धर्म,एक समाज,एक संस्कृति,एक कानून और एक दृष्टिकोण बनने जा रहा है। इसलिए लोगों को संकीर्णताएं छोड़कर “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना को जागृत हेतु स्वीकारने के लिए अपनी मनोभूमि बना लेनी चाहिए। 

गुरुदेव के इन दिव्य शब्दों को सुनकर मन में उठी जिज्ञासा को व्यक्त कर विनम्र स्वर में पूछा:

गुरुदेव, जब महाकाल युग को बदलने की यह व्यवस्था बनाएंगे तो जनमानस को इस हेतु क्या मनोभूमि बनाने की आवश्यकता है? 

बेटा,समझने लायक एक ही बात है कि विवेक को जगाएं और घिसी-पिटी मान्यताओं को तिलांजलि दें। जो उचित और उपयुक्त है, उसे स्वीकार लेना ही समय की मांग है। अगले दिनों व्यक्तिगत संपदाएं नहीं रहेंगी, धन पर समाज का स्वामित्व होगा। लोग अपने श्रम व अधिकार के अनुरूप सीमित साधन ले सकेंगे, दौलत और अमीरी, दोनों ही संसार से विदा हो जाएंगी। इसलिए धन के लालची लोग, बेटे-पोतों के लिए जोड़ने वाले अपनी मूर्खता को समझें और समय रहते अपनी शक्तियों को संचय व उपभोग से बचाकर लोकमंगल की दिशाओं में लगाने की आदत डालें। ऐसी बहुत सी बातें लोगों के गले उतारनी हैं,जो आज भले ही अनर्गल लगती हों लेकिन कल वे ही सत्य सिद्ध होंगी।

परम पूज्य गुरुदेव के इन क्रांतिकारी दिव्य शब्दों को सुनकर हमारे मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे, जिनमें से एक को व्यक्त करना उचित जान पड़ा और हमने गुरुदेव से पूछा:

गुरुदेव! यह सब करने से भारत को क्या उपलब्ध होगा? 

बेटा,यह सारी व्यवस्था भारत को केंद्र बना करके ही तो जुटाई जा रही है। विगत दिनों महर्षि अरविंद,महर्षि रमण एवं स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दिव्य साधनाएं “भारत के भाग्य-परिवर्तन” के लिए हुईं लेकिन इनसे अभी केवल भाग्य निर्माण का अधिकार ही मिला है। अभी बहुत कुछ  और करने लायक बचा है। भारत को अपना घर ही नहीं संभालना है बल्कि हर क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करना है। इसके लिए ऐसे महामानवों की आवश्यकता है जो स्वतंत्रता संग्राम करने वालों से भी अधिक तेजस्वी मनःस्थिति के हों। अगले दिनों जिस व्यवस्था को हम सूक्ष्म से संपादित करने जा रहे हैं उसका उद्देश्य ऐसे ही महामानवों को तैयार करना है जो अपने उज्जवल प्रकाश से वातावरण को प्रकाशित कर सकेंगे। 

गुरुदेव का मुख तप-तेज से आलोकित हो रहा था। मन ने अपनी अंतिम जिज्ञासा व्यक्त की और

गुरुदेव, जब आप इन ऐतिहासिक घटनाक्रमों को साकार रूप देने के लिए तपस्यारत होंगे, तब सामान्य व्यक्ति किस तरह अपनी भूमिका का निर्वाहन कर सकता है?

 बेटा,अभी तो उनके करने योग्य एक ही बात है कि वे उन्हें प्राप्त संपदा व विभूतियों को लोकहितैषी कार्यों में लगाएं और समाज का धन समाज को लौटा दें, उसे लोकमंगल के पुण्यकार्यों में नियोजित करें। समाज के प्रति यदि प्रत्येक व्यक्ति की आत्मीयता इतनी गहन हो जाए कि उसे सबकी आवश्यकताएं अपनी जैसी दिखने लगें और “आत्मवत सर्वभूतेषु” अर्थात दूसरों को अपने समान समझने की भावना, सबके चिंतन और व्यवहार में समान रूप से आ जाए, तब ऐसा कर पाना सहजता से संभव हो सकेगा। दिखने में यह “एक सामाजिक क्रांति (Social revolution)” लगती है लेकिन इसके पीछे का भाव आध्यात्मिक है। हमारे हाथ समाज की उन्नति के लिए तभी जुट पाते हैं, जब हम प्रत्येक प्राणी में उसी परमेश्वर को विद्यमान देखते हैं। हमारे स्वयं के जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य यही रहा है। अतः आप सभी इसी लक्ष्य व उद्देश्य से पूर्ण श्रद्धा-विश्वास और समर्पण के साथ निस्वार्थ भाव से मनोयोगपूर्वक महाकाल के दिव्य कार्यों में शामिल होकर अपने जीवन का कायाकल्प कर अपनेआप को कृतार्थ करें और

आदरणीय ओंकार भाई साहिब की दिव्य वाणी में, आज का प्रज्ञागीत भी संकल्प की ही बात कर रहा है  

उस बसंत पर्व पर परम पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रतिपादित किए गए शब्द न केवल वर्तमान में घटते घटनाक्रमों के परिप्रेक्ष्य में शत-प्रतिशत सत्य सिद्ध हो रहे हैं और हम सबके लिए एक सर्वश्रेष्ठ व सही जीवनशैली की ओर संकेत भी हैं तथा सौभाग्य इसी में है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक साथी आपस में मिलजुल कर परम पूज्य गुरुदेव (जो साक्षात महाकाल हैं), के बताए हुए पथ पर बढ़ चलें और अपना व अपने परिवार का कल्याण करें।

जय गुरुदेव 

*******************

कल  वाले लेख को 542   कमेंटस मिले, 13  संकल्पधारी  साथिओं 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद  करते हैं।


Leave a comment