वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस को समर्पित “विशेष श्रृंखला” का पांचवां  लेख -प्रस्तुतकर्ता OGGP की दो समर्पित सम्मानीय बहिनें- पुष्पा सिंह और सुजाता उपाध्याय 

  

10 फ़रवरी 2025, सोमवार को,सप्ताह के प्रथम दिन को  लिखी जा रही यह पंक्तियाँ ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के किसी भी साथी को ऊर्जावान किये बिना नहीं रह सकतीं क्योंकि आज हमारी दो सम्मानीय बहिनों  की अनुभूति तो प्रस्तुत की ही जा रही है, साथ में ही गुरु की महिमा का बखान करता प्रज्ञागीत अपनेआप में ही दिव्यता की छटा बिखेर रहा है। 

आज के ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ करने से पहले हम आद. बहिन सुमनलता जी से क्षमाप्रार्थी हैं कि हम आद. अरुण वर्मा जी वाली जानकारी शनिवार वाले विशेषांक में परिवार में शेयर करना भूल गए। बहिन जी ने बताया था कि अरुण जी ने उनको  सभी धन राशि वापिस लुटा दी है। साथिओं को स्मरण होगा कि बहिन सुमनलता जी ने अरुण जी को बिना किसी शर्त के 75000 रुपए देकर ऐसे समय में सहायता की थी जब सभी द्वार बंद हो चुके थे। अरुण जी ने 4 मार्च 2024 को अपनी अनुभूति में यह सब जानकारी दी थी। दोनों साथिओं ने तब भी और आज भी हमारा ही धन्यवाद् करते हैं लेकिन इसका श्रेय हमारे गुरुदेव को जाता है जिन्होंने ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जैसी  यूनिक Entity की रचना करके हम सब पर कृपा की है। दोनों का कहना है कि इस परिवार से जुड़ना, ऐसे दिव्य कृत्य करना, अवश्य ही किसी दिव्य सत्ता के निर्देश पर ही हुआ होगा। आज के युग में बैंक की बात ही छोड़ दें,कोई अपना सगा सम्बन्धी भी, बिना जान पहचान के, एक दमड़ी भी ऋण देने से पूर्व सौ बार सोचता है। बहिन जी ने कैसे अरुण जी पर विश्वास कर लिया, इतनी बड़ी राशि कुछ ही मिनटों में ट्रांसफर कर दी, सोच कर विश्वास ही नहीं होता। इसीलिए तो इस परिवार में आश्चर्यजनक,अविश्वसनीय, अद्भुत किन्तु सत्य घटनाएं हो रही हैं। नमन करते हैं दोनों देवात्माओं को और उनके गुरुवर को।    

चलते चलते यह भी बताना उचित समझते हैं कि हमारे  23 वर्षीय गुरु-वनवास एवं पांच वर्षीय पात्रता-मूल्यांकन वाली अनुभूति लगभग तैयार ही है, आने वाली दिनों में इसे भी परिवार और गुरुचरणों में भेंट करने का मन है।          

वर्ष 1926 की वसंत पंचमी का दिन परम पूज्य गुरुदेव के जीवन का एक अति विशिष्ट  दिन था। यही वोह दिन था जब परम पूज्य गुरुदेव के हिमालयवासी गुरु (जिन्हें हम सब दादा गुरु के नाम से सम्बोधन करते हैं) के साथ,आंवलखेड़ा गाँव,(आगरा) स्थित हवेली की कोठरी में, दिव्य साक्षात्कार हुआ था, उनके तीन जन्मों की कथा एक फ़िल्म की भांति दिखाई गयी थी। उसी दिन से,आज लगभग 100 वर्ष (2026 में 100 वर्ष) बाद भी पूज्यवर ने इस दिन को अपना  आध्यात्मिक जन्म दिन घोषित करते हुए,अपने सभी क्रियाकलापों को वसंत पंचमी के दिन ही आरम्भ करने का संकल्प लिया और उसे पूर्ण भी किया।  

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों संकल्पों में एक ही ध्वनि चरितार्थ होती है और वोह ध्वनि है, “क्या हम सही मायनों में अपनेआप को  गुरुवर के चरणों को समर्पित कर पाए हैं?”  साथिओं द्वारा हमारे सभी प्रयासों को पर्याप्त सम्मान मिलना गुरुवर के प्रति समर्पण का मूल्यांकन है, लेकिन सर्वश्रेष्ठ मूल्यांकन तो वसंत पर्व पर ही होता है जब परिजन गुरुवर के चरणों में अपनी अनुभूतियाँ समर्पित करके उनके  विशेष अनुदान प्राप्त करते हैं।

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार  के मंच से 2021 की वसंत पंचमी से आरम्भ हुए “अनुभूति विशेषांक” का सिलसिला आज  2025 में भी अनवरत चल रहा  है।

उसी प्रथा और संकल्प का पालन करते हुए,हमारी दोनों सम्मानीय बहिनें गुरुचरणों में अपनी अनुभूतियाँ प्रस्तुत करके दिव्य गुरु-अनुदान प्राप्त कर रही हैं।

आइए देखें वोह क्या कह रही हैं।

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जय गुरुदेव जी कोटि-कोटि प्रणाम। आपके अध्यात्मिक जन्मदिवस का पावन पर्व बसंत पंचमी का दिन आ गया है

सर्वविदित है कि  आपके लिए यह  दिन एक विशेष दिवस के रूप आया था, दादागुरु आपकी खोज करते हुए आपके सम्मुख दिव्य ज्योति रूप में प्रकट हुए,आपको अपने विशेष प्रयोजन से अवगत कराया,आपने मात्र 15  वर्ष की आयु में उनको अपना गुरु मानते हुए उनकी हर आज्ञा का पालन किया। आपने उसी दिन से अखंड दीप जलाकर, प्रतिज्ञा के साथ दादागुरु की आज्ञा का पालन किया, 24-24 लाख के 24  महापुरश्चरण किये और  साधारण से बालक से भगवान श्रीराम बन गये। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार समेत समस्त विश्व को गुरु के रूप में भगवान मिल गये।  जय गुरुदेव जी जय माता जी। 

स्वयं भगवान् हमारे गुरु,परम सौभाग्य हमारा है। 

अब हम सभी परिवारजनों की  बारी है कि हम आपके बताए रास्ते पर चलें “करिष्ये वचनं तव” आपके विचारों को अपनाएं एवं अनेकों को इसके लिए प्रेरित, “एक से अनेक” के सिद्धांत का पालन करें। तभी  कुछ बदलाव हो पायेगा, इससे कम  में बात बनना असंभव है। हम बदलेंगे,युग बदलेगा का जयघोष केवल बोलने से नहीं बल्कि करने से ही  सार्थक हो पायेगा।

यह सच है कि हर कोई श्रीराम और माता भगवती देवी तो नहीं बन सकता लेकिन उनके  बताए मार्ग पर चलकर कुछ न कुछ करते हुए, Minimum ही करके,एक अच्छे, सुसंस्कृत परिवार,उत्कृष्ट  समाज, बनाने में अपना योगदान तो दे ही सकता है। गुरुदेव ने तो दिन के 24 घंटों का पूरा-पूरा विवरण देते हुए हम बच्चों के लिए 4 घंटे बचा दिए हैं जिन्हें गुरुकार्य में लगाया जा सकता है।  Minimum करते हुए भी बहुत कुछ  हो सकता है, बहुत बड़ा बदलाव सुनिश्चित हो सकता है।  

गुरूदेव जी, आपसे प्रार्थना है कि जैसे आपके गुरु ने जो चाहा आपसे करवाया, आप भी हामरे अंदर  अपनी तप-शक्ति का संचार करके वो सब करने को बाध्य कर दें जो आप चाहते हैं।  हम सबसे जितना बन  पा रहा है, कर ही रहे हैं लेकिन आप जैसी  तप-त्याग-तपस्या तो हमारे  लिए संभव नहीं है, फिर भी कोशिश तो कर ही रहे हैं। आपने  अनेकों  बार हमें अपनी दिव्य उपस्थिति का अनुभव कराया है जिसके लिए हम ह्रदय से आभारी रहेंगें। आपकी उपस्थिति के अनुभव ने हमारे ह्रदय में एक श्रद्धा एवं समर्पण का आशा उजागर कर दी कि आप सदैव हमारे साथ  हैं। हमें विश्वास है कि हमें जब भी आपकी जरूरत हुई आपने किसी न किसी रूप में आकर सहायता की है। जिस  गायत्री परिवार एवं उसमें समाहित ज्ञान को सुनकर जहाँ हम कोई महत्व नहीं देते थे, अनसुना कर देते थे, नकार देते थे, अब उसी  ज्ञान के महत्व को समझने लगे हैं। यह परिवर्तन इसलिए संभव हो पाया है कि आपने वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान करके अनेकों जटिल ज्ञान गुत्थियों को प्रमाण के साथ समझाया है और बताया है कि अध्यात्म का ज्ञान कोई अन्धविश्वास नहीं है,यह वैज्ञानिक अध्यात्मवाद (Scientific spirituality)है, वैज्ञानिक पूजा-पद्धती (Scientific method of worship है ),आपके विचार क्रांति अभियान से लोगों में बदलाव आने लगा है इसमें कोई संदेह नहीं है।  

गुरुदेव जी, एक प्रज्ञागीत याद आ रहा है “बदलेगी बदलेगी निश्चित दुनिया बदलेगी”

आपके अध्यात्मिक जन्मदिवस पर, इस वसंत पंचमी पर हम प्रतिज्ञा लेते हैं कि आपके बताए मार्ग पर चलते हुए 2026 में अखंड दीपक, आपकी साधना एवं  वंदनीय माता जी की जन्म शताब्दी  के उपलक्ष्य में आयोजित हो रहे कार्यक्रम को सफल बनायेगें। प्रतिज्ञा लेते हैं कि सभी सत-संकल्प पूर्ण हों , पूर्ण हों , पूर्ण हों।   यही मंगलकामना है, शुभकामना संकल्प है।  साथ आपका आशीर्वाद हो जय गुरुदेव माता जी कोटि-कोटि प्रणाम,ॐ शांति

आदरणीय डॉ त्रिखा भाई साहब जी प्रणाम: 

आपने गुरुदेव जी के अध्यात्मिक जन्मदिवस पर कुछ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने  के लिए प्रेरित किया है तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या लिखूं। जो समझ में आया है अपनी वही अभिव्यक्ति लिखी है। जय गुरुदेव

8 दिसंबर, 2024 का एक  अनुभूति साझा करना चाहती हूँ, जो इस तथ्य को प्रमाणित करती है  कि गुरुदेव अपने बच्चों को कभी भी संकट में नहीं रहने देते।

बात 27 नवंबर, 2024 की है जिस दिन दिव्य ज्योति कलश शांतिकुंज, हरिद्वार से चलकर भुवनेश्वर,ओडिशा पहुंचा था । उद्घाटन समारोह 8 दिसंबर, 2024 को भुवनेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर दूर जगन्नाथ धाम, पुरी में होने वाला था। हालाँकि मेरे इलाके से कोई भी नहीं जा रहा था, मुझे इस आयोजन में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुकता  थी। मेरे पैर में दर्द था और मुझे शामिल होने के लिए कोई संभावित साधन नहीं दिख रहा था।

8 दिसंबर की सुबह पूजा  के समय प्रार्थना करते हुए, मैंने गुरुदेव से अपनी हार्दिक इच्छा व्यक्त की, यह स्वीकार करते हुए कि मैं भाग लेना चाहती हूँ लेकिन ऐसा करने का कोई तरीका नहीं था। उद्घाटन समारोह सुबह 10:00 बजे निर्धारित किया गया था। 

सुबह 8:00 बजे के करीब, मुझे हमारे शक्तिपीठ के प्रमुख से एक अप्रत्याशित कॉल आया, जिसमें मुझे समारोह के लिए पुरी में उनके साथ आने का निमंत्रण दिया गया। एक पल के लिए, मैं पूरी तरह से हैरान रह गई। बिना कुछ सोचे, मैंने तुरंत सहमति दे दी और अपने पतिदेव से पूछी तो उन्होंने भी जाने की अनुमति दे दी l 

हम सुबह 9:00 बजे पुरी (जगन्नाथ धाम)के लिए रवाना हुए, जिसकी यात्रा का अपेक्षित समय दो घंटे था, जिसका अर्थ है कि हम समारोह के निर्धारित समय से एक घंटे बाद सुबह 11:00 बजे पहुँचेंगे। अप्रत्याशित परिस्थितियों के बावजूद इस समारोह में मेरा उपस्थित होना,गुरुदेव का आशीर्वाद ही होगा।  समारोह सुबह 11:00 बजे तक विलंबित हो गया और  हम समय पर पहुँच सके।

जगन्नाथ मंदिर जहां ज्योति  कलश रथ का पूजन  होना था, उद्घाटन समारोह स्थल से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित था और हम गायत्री परिवार के परिजनों के लिए ज्योति कलश रथ के साथ मंदिर तक पैदल जाना था। इस अवसर पर ओडिशा के विभिन्न हिस्सों से हज़ारों गायत्री परिजन एकत्रित हुए थे। मेरे साथ एक और बहन थी जो कमर दर्द के कारण गंभीर असुविधा अनुभव कर रही थी। मेरे पैर में भी दर्द हो रहा था, लेकिन ज्योति कलश रथ के साथ चलने की खुशी ने मेरे दर्द को दबा दिया और मैं इसे अनदेखा कर रही थी। उसी  समय, ज्योति कलश रथ के अंदर बैठे एक भाई ने घोषणा की कि उसे रथ में शामिल होने के लिए दो बहनों की आवश्यकता है। बिना किसी हिचकिचाहट के, मेरे साथ वाली बहन रथ में  चढ़ गई और मुझे अपने साथ शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा,”देखो, गुरुदेव हमारा कितना ख्याल रखते हैं!” हम गुरुदेव की कृपा से अभिभूत थे।

इसके बाद, जगन्नाथ मंदिर में ज्योति कलश रथ का पूजन किया गया जिसके बाद हम रथ से ही उद्घाटन समारोह स्थल पर वापस आ ग़ए। हम ज्योति कलश रथ से उतरे, समापन अनुष्ठानों में भाग लिए और फिर  घर वापस आ गए। 

गुरुदेव की कृपा असीम है, सच कहें तो उनके अनुदान मानवीय समझ से परे हैं। जय गुरुदेव जय महाकाल। 

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शनिवार वाले लेख को 449 कमेंटस मिले, 9 संकल्पधारी  साथिओं 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद  करते हैं। 


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