आज के लेख में प्रज्ञागीत के स्थान पर 49 मिंट की वीडियो अटैच है।
परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस को समर्पित “विशेष श्रृंखला” का तीसरा लेख लेख -प्रस्तुतकर्ता आद. सरविन्द पाल
5 फ़रवरी 2025, बुधवार को लिखी जा रही यह पंक्तियाँ ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के किसी भी साथी को ऊर्जावान किये बिना नहीं रह सकतीं क्योंकि वसंत पंचमी का दिन गायत्री परिजनों के जीवन में एक विशेष स्थान बनाये बैठा है।
वर्ष 1926 की वसंत पंचमी का दिन परम पूज्य गुरुदेव के जीवन का एक अति विशिष्ट दिन था। यही वोह दिन था जब परम पूज्य गुरुदेव के हिमालयवासी गुरु (जिन्हें हम सब दादा गुरु के नाम से सम्बोधन करते हैं) के साथ,आंवलखेड़ा गाँव,(आगरा) स्थित हवेली की कोठरी में, दिव्य साक्षात्कार हुआ था, उनके तीन जन्मों की कथा एक फ़िल्म की भांति दिखाई गयी थी। उसी दिन से,आज लगभग 100 वर्ष (2026 में 100 वर्ष) बाद भी पूज्यवर ने इस दिन को अपना आध्यात्मिक जन्म दिन घोषित करते हुए,अपने सभी क्रियाकलापों को वसंत पंचमी के दिन ही आरम्भ करने का संकल्प लिया और उसे पूर्ण भी किया। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों संकल्पों में एक ही ध्वनि चरितार्थ होती है और वोह ध्वनि है, “क्या हम सही मायनों में अपनेआप को गुरुवर के चरणों को समर्पित कर पाए हैं?” साथिओं द्वारा हमारे सभी प्रयासों को पर्याप्त सम्मान मिलना गुरुवर के समर्पण का मूल्यांकन है, लेकिन सर्वश्रेष्ठ मूल्यांकन तो वसंत पर्व पर ही होता है जब हर कोई गुरुवर के चरणों में अपनी अनुभूतियाँ समर्पित करके उनके विशेष अनुदान प्राप्त करता है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से 2021 की वसंत पंचमी से आरम्भ हुए “अनुभूति विशेषांक” का सिलसिला आज 2025 में भी अनवरत चल रहा है।
वर्ष 2025 में इस “अनुभूति विशेषांक” श्रृंखला का शुभारम्भ आदरणीय सरविन्द पाल जी द्वारा संकलित लेख से किया गया था। यह प्रथम लेख सरविन्द जी की व्यक्तिगत अनुभूति तो न थी लेकिन ज्ञान का भंडार समेटे हुए थी। यह प्रस्तुति वसंत ऋतू की दिव्यता को वर्णन कर रही थी। कल वाला दूसरा लेख हमारे अति समर्पित सहयोगी आद. अरुण वर्मा जी द्वारा शांतिकुंज में सम्पन्न किये गए संजीवनी साधना सत्र के अनुभव एवं परम पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और विश्वास की एक झलक दिखा रहा था।
इन लेखों के प्रति साथिओं की उत्सुकता एवं इन्वॉल्वमेंट, उनके द्वारा पोस्ट हुए कमैंट्स से चरितार्थ हो रही थी, जिसके लिए हम धन्यवाद् करते हैं।
इसी कड़ी में एक बार फिर आद सरविन्द पाल जी के तीसरे लेख के माध्यम से परम पूज्य गुरुदेव के ही शब्दों में युगतीर्थ शांतिकुंज की महानता को जानने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। इस लेख से महत्वपूर्ण प्रश्न “शांतिकुंज को महाकाल का घोंसला क्यों कहा जाता है?” का उत्तर मिल रहा है।
यह लेख भी उनकी अपनी व्यक्तिगत अनुभूति न होकर अखंड ज्योति फ़रवरी 2021 के पृष्ठ 12 पर प्रकाशित हुआ था। युगतीर्थ शांतिकुंज अन्य अनेकों तीर्थस्थानों से अलग क्यों है? अखंड ज्योति में “महाकाल का घोंसला है युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार” शीर्षक से प्रकाशित हुए दिव्य लेख में गुरुदेव ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं। विषय को और अधिक रोचक और ज्ञानवर्धक बनाने के लिए हम अपने ही यूट्यूब चैनल पर पांच वर्ष पूर्व प्रकाशित वीडियो भी शेयर कर रहे हैं। साथिओं के समय का ध्यान रखते हुए,आज प्रज्ञागीत के स्थान पर 49 मिंट वीडियो संलग्न की गयी है।
इन्हीं शब्दों के साथ आज “अनुभूति विशेषांक” श्रृंखला के तीसरे लेख का शुभारम्भ होता है जिसमें “गुरुवर और गुजरात से आये कार्यकर्ता के बीच हुए संवाद” का वर्णन है
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सरविन्द जी लिखते हैं:
परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य कृपादष्टि से उनके आध्यात्मिक जन्म दिवस पर लेख प्रकाशित कर रहे हैं। यह लेख अखंड ज्योति पत्रिका फरवरी 2021अंक में पृष्ठ 12 पर प्रकाशित हुआ था। वसंत पंचमी के उपलक्ष्य में प्रकाशित हुए इस लेख का अमृतपान करने से युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार की दिव्यता का आभास होगा। तो आओ चलते हैं इस दिव्य लेख की ओर:
परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि मनुष्य के व्यक्तित्व के तीन ही प्रमुख आयाम हैं-
“विचार, भावनाएं और कर्म। मन का कार्य सोचने और विचारने का है, अंतरंग भावनाओं के उत्पादन का काम करता है तो वहीं शरीर, कर्मों को करने का निमित्त बन जाता है। महापुरुषों के व्यक्तित्व में यह तीनों ही आयाम शिखर पर उपस्थित होते हैं।”
यही कारण है कि परम पूज्य गुरुदेव का सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य पाते ही चंचल से चंचल व्यक्ति का मन भी शांत हो जाता है, भावनाएं सकारात्मक हो उठती हैं एवं कर्म ईश्वर को समर्पित होने की पुकार करने लगता है।
हम विश्वास से कह सकते हैं कि जिन लोगों ने ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के माध्यम से ज्ञानगंगा में डुबकी लगाई उन्हें ऐसा ही नवजीवन प्रदान हुआ है।
ऐसी है परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य महिमा।
अखंड ज्योति में वर्णित है कि गुजरात से आए एक कार्यकर्ता जब गुरुदेव को मिलने उनके कक्ष में पंहुचे तो उन्हें कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। प्रातःकाल का समय था और होली के निकट के दिन थे, अतः वातावरण में कुछ शीतलता विद्यमान थी। परम पूज्य गुरुदेव आधी बाँह का स्वेटर पहने अपनी छत पर एक कुर्सी पर बैठे थे। यह घटना संभवतः 1974/75 की रही होगी। वे कार्यकर्ता परम पूज्य गुरुदेव से उन दिनों से जुड़े हुए थे, जब गुरुदेव ने मथुरा में सहस्रकुंडीय गायत्री महायज्ञ को संपन्न किया था। तब से वह निरंतर परम पूज्य गुरुदेव से मिलने आया-जाया करते थे।
उन कार्यकर्ता ने पूज्य गुरुदेव के दिव्य चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया। अंतिम बार परम पूज्य गुरुदेव से तब मिले थे, जब परम पूज्य गुरुदेव मथुरा में ही थे। उन्हें देखते ही परम पूज्य गुरुदेव ने प्रेम से उनके सिर पर हाथ रखा तथा उनसे घर के सभी सदस्यों की कुशलक्षेम के विषय में पूछा। फिर परम पूज्य गुरुदेव ने प्रेम से पूछा, “बेटा! बहुत दिनों के बाद मिलने आया, घर में सब ठीक तो है न।” कार्यकर्ता बोले,”जी गुरुदेव!आपके आशीर्वाद से सब ठीक हैं और मथुरा से हरिद्वार थोड़ा दूर है, इसलिए जल्दी न आ सका। यह आप मथुरा छोड़कर इतनी दूर हरिद्वार क्यों आ गए गुरुदेव?”
कार्यकर्ता की इस बात पर परम पूज्य गुरुदेव थोड़ा मुस्कराए, फिर गंभीर होकर बोले, “बेटा!भगवान का घर थोड़ा दूर भी हो तो वहाँ पर जाने के लिए कष्ट उठाना सौभाग्य की श्रेणी में गिना जाता है। यह युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार दिखने में बहुत छोटा सा आश्रम है लेकिन सही मायनों में यह भगवान महाकाल का साक्षात निवास स्थान है। यह युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार जो है,यह ऋषि परंपरा के पुनर्जागरण का केंद्र स्थान है। बेटा! जब हम पहली बार हिमालय गए थे और सूक्ष्म शरीरधारी ऋषिसत्ताओं से हमारी भेंट हुई थी तो उनमें से प्रत्येक ने अपनी पीड़ा व्यक्त की थी कि उनके द्वारा प्रारंभ की गई आर्ष परंपराएं लुप्त प्राय हो गई हैं। उन्हीं परंपराओं को पुनः स्थापित करने के लिए इस दिव्य युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार आश्रम का निर्माण हमने कराया है।”
गुरुदेव ने थोड़ा रुक कर कहा:
“तुम्हें याद है न कि गायत्री महामंत्र के मंत्रद्रष्टा कौन हैं?” उन कार्यकर्ता के मुँह से निकला- “जी गुरुदेव! महर्षि विश्वामित्र।” परम पूज्य गुरुदेव बोले, “बेटा! उन्हीं ऋषि विश्वामित्र की तपस्थली है यह युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार और इसी सप्तसरोवर के क्षेत्र में कभी सप्त ऋषियों ने तपस्या की थी। उसी ऋषि परंपरा के आधुनिक प्रतीक के रूप में यह युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार का आश्रम है। “महर्षि विश्वामित्र’ की तरह यहाँ से गायत्री महामंत्र को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है। ऋषि व्यास की परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए ही हमने आर्ष साहित्य का अनुवाद किया और फिर प्रज्ञापुराण भी लिखा। “ऋषि परशुराम” की परंपरा की पुनः स्थापना के क्रम में दुष्प्रवृत्तियों के नाश और सत्प्रवृत्तियों की स्थापना के कार्य यहाँ से चलाए जा रहे हैं। “महर्षि भगीरथ” की तरह से ही युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार आज नवयुग की गंगोत्री बनकर ज्ञानगंगा को घर-घर पहुँचा रहा है।”
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के भी सभी कृत्य ज्ञानगंगा को ही घर-घर पंहुचा रहे हैं।
कार्यकर्ता अवाक् होकर परम पूज्य गुरुदेव की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे । परम पूज्य गुरुदेव अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले:
बेटा! “महर्षि चरक” की आयुर्वेद की परंपरा भी यहाँ प्राण पाती आज दिखती है तो “महर्षि जमदग्नि” की परंपरा का पुनर्जीवन हमने संस्कारों की परिपाटी को पुनः चला कर दिया है। “देवर्षि नारद” द्वारा चलाई गई परंपरा लोकरंजन से लोकमंगल के कार्यों द्वारा बन पायेगी तो तुम यहाँ “आर्यभट्ट व वाराहमिहिर” के ज्योतिर्विज्ञान को, “आदिगुरु शंकराचार्य” के सांस्कृतिक पुनरुत्थान को, “कणाद के अथर्वेदीय” ज्ञान को और “सूत-शौनक” के लोकशिक्षण के प्रयासों को भी मूर्तरूप पाता देख सकोगे।
गुजरात से आए कार्यकर्ता ने तो मात्र यात्रा में बढ़ी दूरी की दृष्टि से वह उत्तर दिया था। उनको अनुमान भी न था कि गुरुदेव उनके इतने छोटे से उत्तर का इतना गंभीर एवं अंतर्चक्षु खोल देने वाला उत्तर प्रदान करेंगे। दिए गए उत्तर को सुनकर वे स्वयं को सौभाग्यशाली अनुभव कर रहे थे।
परम पूज्य गुरुदेव ने अंतिम निर्देश के रूप में आगे कहना आरंभ किया और बोले:
बेटा! युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार में हमारी कार्यपद्धति मथुरा की तुलना में बहुत अधिक बड़ी है, इसलिए यहाँ उतार-चढ़ाव भी अधिक रहेंगे। हो सकता है, हमें मानवता की रक्षा के लिए असुरता का आक्रमण भी अपने ऊपर लेना पड़े।
इन पंक्तियों को पढ़ते समय साथिओं को स्मरण हो आया होगा कि शांतिकुंज में गुरुदेव पर दो बार जानलेवा आक्रमण हो चुका है।
कार्यकर्ता को तब यह भान भी न हुआ होगा कि परम पूज्य गुरुदेव का संकेत बाद की घटनाओं की ओर था। वे तो मात्र युगतीर्थ शांतिकुंज की स्थापना के पीछे छिपी दिव्यचेतना के भाव को जानकार कर ही स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे।
युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार आश्रम महाकाल का घोंसला है, उस दिन इस दिव्य बात का साक्षात अनुभव करने का उनको अवसर मिला। यह उनके लिए बहुत ही सौभाग्य की बात थी।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का जो कोई साथी भी युगतीर्थ शांतिकुंज में तीर्थसेवन कर चुका है,कोई साधना शिविर कर चुका है, मात्र पर्यटक की भांति ही जा चुका है, ऐसा ही अनुभव कर रहा है। इस युगतीर्थ की धरती पर सही भावना से किया गया कोई भी कृत्य साधक का कायाकल्प किये बिना नहीं रह सकता, ऐसा हम सभी परिवारजनों का अटल विश्वास है।
जय गुरुदेव
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कल प्रकाशित हुए लेख को 628 कमेंट मिले, 16 संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। इस प्रभावशाली रिजल्ट के लिए सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद करते हैं।