29 जनवरी 2025 का ज्ञानप्रसाद-सोर्स, काया में समाया प्राणग्नि का जखीरा
परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य रचना “काया में समाया प्राणाग्नि का जखीरा” मात्र 43 पन्नों की कोई साधारण सी पुस्तक नहीं है। किसी भी युग में मनुष्य को उत्कृष्ट मार्गदर्शन प्रदान करने वाली इस पुस्तक को “सुखद जीवन का रामबाण” कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी।
2010 में प्रकाशित हुए रिवाइज्ड एडिशन के अध्ययन से जो ज्ञानप्राप्ति होती है, उसे शब्दों में वर्णन कर पाना लेखक की सामर्थ्य से परे है। कल ही आरम्भ हुई दिव्य लेख श्रृंखला का आज दूसरा लेख प्रस्तुत है ।आज के लेख में जानने का प्रयास है कि प्राणवान होना जन्मजात है यां प्रयास का प्रभाव।
आइये अपने गुरु के गुरुकुल के ज्ञानमंदिर में गुरुचरणों में समर्पित होकर आज की आध्यात्मिक गुरुकक्षा का शुभारम्भ करें।
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मानवी प्राणशक्ति का विकास और परिपाक(पकना) इस बात पर निर्भर है कि उसमें पूर्वसंचित संस्कारों का समूह था या नहीं। गर्भधारण करते समय माता पिता के रज-वीर्य में अभीष्ट उत्कृष्टता या परिपक्वता थी या नहीं? गर्भ को आरंभिक पोषण मिला या नहीं? प्राण प्रक्रिया के अनुदान समुचित मात्रा में मिले या नहीं? यह सब भ्रूणावस्था ( Embryonic stage) में पूरी की जाने वाली आवश्यकताएं हैं। भ्रूण प्राणी की आरंभिक अवस्था को कहते हैं एवं तीन माह की गर्भावस्था में भ्रूण को गर्भ कहते हैं। इसके बाद जब परिपक्व शिशु संसार के खुले वातावरण में सांस लेता है और समीपवर्ती लोगों द्वारा बनाए गए वातावरण का प्रभाव ग्रहण करता है, तब भी उस स्थिति में “मनुष्य शरीर/स्थूल शरीर” का ही विकास होता है किन्तु “प्राण शरीर” समीपवर्ती लोगों की “चेतना” से ही उपलब्ध होता है।
चेतना शब्द ऐसे मनुष्यों के लिए प्रयोग किया जाता है जो जीवित, जाग्रत, जागरूक, ज्ञानी और समझदार हैं। खोटे और ओछे लोगों के सम्पर्क से व्यक्ति, स्तर की दृष्टि से ऊंचा नहीं उठ सकता। मांसलता(Muscles) की दृष्टि से वह मोटा,पतला सुन्दर, कुरूप हो सकता है लेकिन व्यक्ति में जो प्रतिभा देखी जाती है, विशिष्ट स्तर की विशेषता देखी जाती है वह इस बात पर निर्भर रहती है कि “सम्पर्क-वातावरण” में किस स्तर की पराक्रम एवं क्षमता विद्यमान थी।
अन्न-जल से रक्त/मांस बनता है किन्तु व्यक्तित्व विकसित कराने की क्षमता केवल उन लोगों में होती है जो अपने वर्षों के अनुभव से, जीवन के उतार चढ़ाव से, जीवन के सुख दुःख से, लोहार के हथौड़ों की पिटाई से परिपक्व होने के कारण छोटों पर प्रभाव छोड़ते हैं। मनुष्य के व्यक्तित्व विकास (Personality development) में स्वयं का चिन्तन, मनन भी बहुत काम करता है। वह अपनी इच्छाशक्ति और संकल्पशक्ति से भी स्वयं को प्रभावित करता है। पूर्वसंचित संस्कार भी अनुकूल वातावरण पाकर स्वतः ही उभरते हैं। ग्रीष्म ऋतु में घास सूख जाती है फिर भी जमीन के अन्दर उसकी जड़ों में किसी प्रकार नमी बनी ही रहती है। वर्षा होते ही वे जड़ें अनायास ही अंकुरित हो चलती हैं और तेज़ी से अपना विस्तार करती हुई जमीन पर फैलकर हरीतिमा बिखेरती हैं।
यह सब वोह कारण हैं जिनके बलबूते विशेष साधन न बन पड़ने पर भी मनुष्य का “आत्मबल (Will power, Initiative)” विकसित स्थिति में देखा जा सकता है और उसमें भी सिद्धपुरुषों जैसी विभूतियां अनायास ही दृष्टिगोचर हो सकती हैं। कई व्यक्ति योग, तप, साधना,अनुष्ठान जैसे कृत्य प्रयास न करने पर भी सूक्ष्म विशेषताओं से सम्पन्न पाये जाते हैं। यह उपहार उन्हें जन्म से ही मिलता है
ऐसी विशेषताओं का होना भी केवल संयोगवश ही नहीं होता। उसके पीछे ऐसे “अदृश्य और अविज्ञात कारण” होते हैं जिनके कारण कुछ विशेष व्यक्ति चमत्कारी क्षमताएं प्रकट करते हैं। ऐसा हर किसी के लिए संभव नहीं होता क्योंकि यह पूर्वसंचित कर्मों के कारण होता है। ऐसी अद्भुत विशेषताओं वाले साहित्यकार, संगीतज्ञ, शिल्पकार, चिकित्सक, इंजीनियर आदि से इतिहास भरा पड़ा है।
यह भी सत्य है कि पहलवान व्यायामशालाओं में, विद्वान पाठशालाओं में, शिल्पी कारखाने में आवश्यक अभ्यास करते हुए समयानुसार सुयोग्य बनते हैं लेकिन आश्चर्य तब होता है जब प्रशिक्षण के अभाव में अथवा बहुत ही कम प्रशिक्षण के सहारे किसी-किसी की अद्भुत प्रतिभा अनायास ही फूट पड़ती है।
उदाहरण के लिए Austria में जन्में मोजार्ट 5 वर्ष की अल्पायु में ही संगीतज्ञ बन गये थे। मात्र 35 वर्ष के छोटे से जीवन में मोजार्ट वेस्टर्न म्यूजिक के लगभग सभी Genre की 800 कम्पोज़िशन्स के मालिक बन गए। हमारे सुप्रसिद्ध एवं अतिसम्माननीय AR Rahman जी को मद्रास का मोजार्ट कहा जाता है। मात्र 39 वर्ष के छोटे से जीवन वाले फ्रांसीसी Blaise Pascal प्रख्यात गणितज्ञों की श्रेणी में गिने जाते हैं। मराठी संत ज्ञानेश्वर का जीवन मात्र 21 वर्ष का ही था,उन्होंने 16 वर्ष की आयु में गीता की व्याख्या कर दी थी। सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव 10 वर्ष की छोटी अवस्था से ही भावपूर्ण सबद की रचना करने लगे थे। स्वामी विवेकानंद मात्र 39 वर्ष जिए,गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस का जीवनकाल केवल 50 वर्ष का था। इन हस्तियों के बारे में जानने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। विश्व में ऐसे अनेक व्यक्ति हुए हैं जिनमें यह प्रतिभा जन्मजात रूप में विकसित पाई गई है। हालैण्ड का क्रोसेट नामक बालक बचपन से ही भविष्यवाणियां करने के लिए विख्यात था उसके द्वारा किये गये भविष्य कथन शत प्रतिशत सही उतरते थे। नौस्ट्राडोमस तो अपनी भविष्यवाणियों के लिए विश्वविख्यात ही हैं। फ्लोरेंस स्टर्न फेल्स नामक 8 वर्षीय बालिका में दिव्य दर्शन की क्षमता अनायास ही फूट पड़ी थी। इसका पता लोगों को तब लगा जब उसने सदियों पुरानी टूटी-फूटी एक कब्र के खोदे जाने की न केवल तिथि व समय बता दिया था बल्कि उसमें सोये हुये व्यक्ति का नाम भी बता दिया था। वह कब्र विलियम जान्सन की थी, जिस पर किसी का नाम तक नहीं खुदा हुआ था और न किसी को उसकी जानकारी थी। रजिस्टर के पुराने पन्नों को पलटने पर फ्लोरेंस द्वारा दी गई जानकारी सही निकली।
सरसरी दृष्टि से इन प्रतिभाओं को देखने पर यही समझा जाता है कि सुयोग, संयोग, भाग्य, वरदान आदि से ही यह महापुरुष इतने प्रसिद्ध हुए लेकिन ऐसा है नहीं । भले ही इन प्रतिभाओं के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष घटनाक्रम सामने आया हो या न आया हो,ऐसे अनायास संयोग के पीछे भी अनेकों कारण होते हैं जिनका अनुमान लगाना हम जैसे साधारण मनुष्यों के लिए संभव नहीं है।
इस संसार में अनायास कुछ भी नहीं होता है। हां इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस असाधारण प्रक्रिया/प्रतिभा के पीछे कोई अविज्ञात कारण रहे हैं,अदृश्य शक्ति होगी जिन्हें प्रत्यक्ष रूप में नहीं देखा जा सकता।
जीवन में प्रयास करने का प्रत्यक्ष प्रभाव है:
शायद हो कोई मनुष्य होगा जो प्रतिभाशाली और बड़ा नहीं बनना चाहता हो, इस इच्छा के लिए प्रयास, परिश्रम एवं अभ्यास भी अनेकों करते हैं। क्या सभी का प्रयास सफल हो जाता है ?सभी को अपने परिश्रम का फल मिल जाता है ? अवश्य मिलता है। प्रस्तुत हैं परिश्रम और प्रयास के कुछ उदाहरण:
मनोयोगपूर्वक, कड़ा परिश्रम करने पर कालिदास और वरदराज जैसे मूर्ख समझे जाने वाले व्यक्ति उच्चकोटि के विद्वान बन गये थे। चन्दगी राम ने अपने गये गुजरे स्वास्थ्य को ऐसा बना लिया था कि उनकी गणना विश्व के मूर्धन्य पहलवानों में होने लगी। अमेरिका का जैक ब्लाटिन अंतिम दिनों में कई वर्ष तक कैंसर से पीड़ित रहने के उपरान्त जब किसी तरह रोगमुक्त हुए तो वह पहलवानी पर उतर आये । संकल्प, साहस और अभ्यास के सहारे उन्होंने अपना शरीरबल इस स्तर तक बढ़ा लिया कि ओलंपिक कुश्ती के सुपर हैवीवेट का खिताब जीतकर न केवल अपने राष्ट्रीय गौरव को ऊंचा उठाया बल्कि समूची मानव जाति के लिए एक अनूठा और प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत किया। कनाडा के Terry Fox की एक टांग कैंसर के कारण Amputate करनी पड़ी लेकिन मात्र 22 वर्ष की प्रदान हुई आयु के इस युवक ने World’s largest one-day fundraiser for cancer research का कीर्तिमान स्थापित किया, सितम्बर 2022 के आंकड़ों के अनुसार 850 मिलियन डॉलर इक्कठे किया जा चुके हैं।
प्राणशक्ति की रक्षा
जो भी कहा जाये, मनुष्य के जीवन में प्राणशक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। प्राणशक्ति की मात्रा ही मनुष्य को प्राणवान यां निष्प्राण बनाती है। इसीलिए तो कहा गया है: ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। निष्प्राण, मुर्दादिल मनुष्य अक्सर ऐसे शब्दों से शिकायत करते पाए जाते हैं: यह जीना भी कोई जीना है लल्लू। अरे मुर्ख उस परम पिता द्वारा प्रदान किये गए उत्कृष्ट जीवन उपहार का अनादर करने के बजाये कुछ प्रयास कर, फिर देख कैसे कायाकल्प होता है।
हम सब आये दिन देखते हैं जिस समाज में हम रहते हैं उसमें आर्थिक आदान-प्रदान, शरीरगत सेवा सहयोग,मैत्री, सद्भावना बहुत ही साधारण सी प्रथा है, आखिरकार We human beings are social animals. छोटे और बड़ों में,मित्र और मित्र में, कई कारणों से, कई प्रकार के आदान-प्रदानों का सिलसिला चलता ही रहता है। ऊँचे आर्थिक स्तर के मनुष्यों द्वारा निचले स्तर के मनुष्यों की सहायता करना आये दिन देखने को मिलती है। ऐसा भी देखने को मिलता है कि ज़रूरी नहीं कि आर्थिक स्थिति से सम्पन्न व्यक्ति सदैव यूं ही पैसा लुटाते रहते हैं। लोगों में तो यह भी धारणा है कि जिसके पास जितना अधिक होता है वह उतना ही कंजूस होता है, अपनी जेब का पक्का होता है। क्या करें, जितने मुंह उतनी बातें, बातें बनाने पर कौनसा टैक्स लगता है, कौनसा प्रतिबंध है। इस प्रतिभा के लिए तो मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता है।
लेकिन यह बात अनेकों बार टैस्ट की जा चुकी है कि ऊंचे स्तर वाले (केवल आर्थिक स्तर के उच्च ही नहीं) मनुष्य को ईश्वर ने एक विशेष क्षमता प्रदान की है और वह है प्राणशक्ति। प्राणशक्ति एक प्रकार की लाइव इलेक्ट्रिसिटी है। किसी मनुष्य के जीवन एवं व्यक्तित्व की न्यूनता एवं अधिकता इसी लाइव इलेक्ट्रिसिटी की मात्रा पर आधारित है, उसके अन्तःकरण में 50 वाट का बल्ब प्रकाश कर रहा है यां 500 वाट का।
जिस प्रकार बुद्धि सभी मनुष्यों के पास होती है लेकिन सद्बुद्धि विरलों के पास ही होती है,उसी प्रकार प्राण सभी प्राणधारियों को उपलब्ध है लेकिन प्राणाग्नि की लपटें किसी-किसी के अंदर ही उठती हैं । बैंक बैलेंस तो लाखों करोड़ों का है लेकिन किसी ज़रुरतमंद की सहायता करने की बात आती है कंगाल बन जाते हैं। प्राणवान व्यक्ति इसी प्राणाग्नि से शरीर यात्रा के आवश्यक साधन जुटाते हैं और यथोचित पुरुषार्थ एवं कौशल विकसित करने में सफल रहते हैं।
प्राण ऐसा तत्व है जो हवा की तरह प्रत्येक मनुष्य के भीतर भी भरा है और समस्त ब्रह्माण्ड में भी संव्याप्त है। उसकी अतिरिक्त मात्रा “प्राणायाम प्राणाकर्षण विधान” जैसे उपायों के सहारे अर्जित भी की जा सकती है।
प्राण अपनी All round समर्थता के लिए तो आवश्यक है, उसका प्रयोग दूसरों के हित/अनहित के लिए भी किया जा सकता है। योग के माध्यम से प्राणोपचार का प्रयोग प्रायः सदुद्देश्यों के लिए ही होता है किंतु “तांत्रिक अभिचार” से इसे दूसरों को परास्त करने के लिए प्रहार रूप में भी किया जाता है। शक्ति तो शक्ति ही रहेगी। उसका उपयोग किसने किस प्रकार किया यह दूसरी बात है।
शेष कल वाले लेख में।
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