वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

जनवरी माह के अंतिम शनिवार का विशेषांक- क्या हम अपनेआप को साथिओं से ऋण मुक्त कर पायेंगें ?

25 जनवरी 2025

हमारे समर्पित साथिओं ने माह का अंतिम शनिवार हमारे लिए फिक्स किया हुआ है जिसके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं। आज प्रस्तुत किए गए स्पेशल सेगमेंट में हम चार “सैंपल कॉमेंट” के बारे में चर्चा कर रहे हैं। ऐसे अनेकों कॉमेंट्स जिन्हें हमारे साथी समयदान, श्रमदान,ज्ञानदान करके हमारे ऊपर ऋण का बोझ डाले जा रहे हैं, क्या हम अपनेआप को ऋणमुक्त कर पाएंगे। समर्पण, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की सबसे बड़ी विशेषता है, हम नतमस्तक हैं। 

आज के विशेषांक के पीछे गुरुदेव के विचार ही Driving force हैं।अभी- भी समापन हुई लेख श्रृंखला “गुरुदेव से हमारे सम्बन्ध” के दूसरे  लेख  में परम पूज्य गुरुदेव उन लोगों की बात कर रहे थे जिन्होंने उनके  संकेतों के अनुसार बड़े से बड़े त्याग करने में भी कभी संकोच नहीं किया, जिधर मोड़ा उधर मुड़ते रहे, जो कहा सो मानते रहे,जिधर चलाया उधर चलते रहे। 

हमारा और हमारे समर्पित साथिओं का सम्बन्ध भी कुछ ऐसा ही है जिस पर हमें बहुत गर्व है।  

गुरुदेव बड़े ही  द्रवित ह्रदय से लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि हम अपनेआप को इन  बच्चों द्वारा हमारे ऊपर लादे गए ऋण से मुक्त कर लें।

जितने दिन हम यह चार लेख लिखते रहे, हमारे मन में अपने समर्पित साथिओं के प्रति ऐसी ही भावनाएं उठती रहीं। 

ऐसे अनेकों साथियों के हम ऋणी हैं क्योंकि ऐसे विस्तृत कॉमेंट लिख पाना कोई सरल कार्य नहीं हैं। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि कॉमेंट लिखने में नीरा जी कितना समय, श्रम और विवेक का दान कर रही हैं।

निवेदन करते हैं कि प्रस्तुत किये गए चार कमैंट्स को ध्यान से पढ़ें, समर्पण का अनुमान स्वयं ही हो जायेगा।  

*****************

1.आद रेणु श्रीवास्तव जी: 

हम सब गुरुदेव के परिवार के होते हुए भी अलग-अलग थे लेकिन  सभी को एक माला में पिरोने का‍ श्रेय त्रिखा भाई जी को जाता है। एक दूसरे से अनजान होते हुए भी अब हम-सब एक हैं । यह अपनापन, स्नेह इस परिवार के अलावा कहीं और संभव नहीं है।

इस छोटे परिवार का आरंभ त्रिखा भाई जी ने गुरुदेव ‌की प्रेरणा से किया और अब यह वृहत परिवार ‌बनता जा रहा है। 

आज प्रस्तुत किया गया ज्ञानप्रसाद यह लेख नहीं, मेरे सहयोगी भाई के मन की भावनाएं हैं जो समर्पण और अपनत्व दर्शाती हैं। हम-सब एक‌ ही राह पर चलने वाले सहयात्री हैं और हमारी मंजिल अनंत है। हमारा अनुपम परिवार गुरुदेव के बताए मार्ग पर सतत् आगे बढ़ते हुए अपनी क्षमता अनुसार समर्पित होकर कार्य कर रहा है। यहां सभी बराबर हैं  तथा सबको बराबर सम्मान प्राप्त होता है। 

गुरु साहित्य ही सबसे बड़ा उपहार,धन-सम्पदा है,उसका अथाह ज्ञान सागर है जिसमें जिसकी जितनी क्षमता है, ज्ञान रूपी रत्न प्राप्त कर अपना और समाज को परिष्कृत करने का पुनीत कार्य कर सकता है। यह गुरु मंदिर का ज्ञान रूपी प्रसाद है जिसे स्वयं ग्रहण करें तथा जन-जन में वितरण करें,अपना श्रम, समय और सेवा ‌लोक कल्याण में लगाएं। 

गुरुदेव ने अपना सारा जीवन तप में लगाकर मानवता को  समर्पित किया। अतः गुरु का आदेश कहें या अन्तर्वेदना,जन-जन तक उनके साहित्य, उनके विचारों को फैला कर लोकहित में  लोकमंगल के लिए सहयोग करें। यदि गुरुदेव से आपकी अपेक्षाएं हैं तो गुरु चरणों की भक्ति, श्रद्धा, समर्पण, संकल्प और नियमितता का दान मांगे, लेकिन गुरु के प्रति  हमारा भी कुछ कर्तव्य है उसे पूरा करें। गुरु साहित्य ही हमारी विरासत और ‌वसीयत है।

“गुरु के चरणों में शरण जो पा गया उसके जीवन में सुमंगल आ गया।”जय मां गायत्री। 

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2.आद संध्या जी: 

आपने सही लिखा है कि हम सभी परिजनों को परम पूज्य गुरूदेव की वेदना को समझते हुए पूर्णतः संकल्पित होकर अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए गुरुवर के दिव्य साहित्य को घर-घर, जन-जन तक पहुँचाना चाहिए।आपके द्वारा लिखित एक एक शब्द  परिजनों को जागृत करने में सक्ष्म है। आपने कितना सही  लिखा है कि  हमारा और आपका संबंध मामूली दुकानदार और बाज़ारू  ग्राहक का नहीं है। हम कागज छाप कर बेचने वाले और आप वक्त काटने के लिये सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वाले नहीं हैं।  हम और आप महान पथ के पथिक के रुप में एक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर चुके हैँ, हम सबने अपनी एक अलग दुनिया, एक अलग सा परिवार बसाया हुआ है जो अन्यत्र दुर्लभ है I हम सब केवल भाई, साथी, मित्र ही नहीं है इससे कुछ अधिक हैं। सूर्य की एक किरण का दूसरी किरण से जो सम्बन्ध होता है वैसा ही संबंध हमारा और आपका है। भाई जी आपने,क्या उमदा उदाहरण दिया है। आप आगे लिखते हैं कि हम और आप अलग-अलग होते हुए भी आपस में पूर्णतया का  अनुभव करते हुए एक नयी दुनिया, एक नया परिवार बसाए हुए हैं, अपने गुरु का परिवार, जिसका नाम है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार।  इस परिवार के समस्त परिजनों का एक ही उद्धेश्य है, गुरु का नाम रोशन करना एवं गुरुवर के दिव्य विचारों को घर-घर पहुंचाना l 

ये पँक्तियाँ अंदर तक झंकृत कर गयीं। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ऐसे जिज्ञासु,ज्ञान पीपासु और आनन्द खोजी पथिकों का जखीरा बनना चाहता है जो स्वयं आनन्द प्राप्त करते हुए अनेकों का मार्गदर्शन करने के लिये उत्सुक हों।  आगे की इन पन्क्तियों ने सच्चाई स्पष्ट कर दी है कि 

भाई साहिब, अति उत्तम विचार हैं। आपकी भाषा, शैली एवं उत्तम भावनाओं में गुरुवर की लेखनी का आभास मिलता है।  वैसा ही आनन्द एवं ज्ञान प्राप्त हो रहा है (बटरीग Buttering  न समझा जाए। आपकी लेखनी की जहाँ आत्मीयत से  भाव विभोर कर आंखें नम कर रहीं है  वहीँ सुप्त पड़ी ऊर्जा को जागृत भी कर रहीं हैं।  अति उत्तम विचार हैं। इस स्पेशल सेगमेंट के बारे में आपको उत्तम सुझाव देने के लिए  आदरणीय सुमनलता बहन जी को बारम्बार सादर नमन l  

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3.आद सुमनलता जी: 

आज का दिन हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मुखिया,निर्माता, और संचालक आ. त्रिखा भाई साहब के मन की बात के लिए सर्वसम्मति के साथ नियत किया गया है ।आज भाई साहब ने अपना दिल खोल कर परिवार के समक्ष रख दिया है। यह सत्य है और हम भी अनुभव करते हैं कि यह परिवार एक अलग ही सूत्रों में बंधा हुआ परिवार है,जो अखिल विश्व गायत्री परिवार की  ही एक इकाई है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक बड़े परिवार में कुछ बेटे हैं, बेटियां हैं। फिर उनके परिवार बन गए। लेकिन मूल परिवार एक ही है। हमारे परमपूज्य गुरुदेव के गायत्री परिवार का एक छोटा-सा परिवार। एक बड़े समुद्र का छोटा सा तालाब। जो समुद्र से अलग अवश्य है लेकिन,उसमें पानी उसी समुद्र का है।हम सब दूर-दूर रह कर भी एक दूसरे के साथ है। अनजान होते हुए भी अपने सगे से बढ़ कर हैं। यहां जब भी  कोई मुश्किल  आन पड़ती है तो, समाधान के लिए गुरुश्रेष्ठ का  साहित्य ही ढूंढा जाता है, क्योंकि वही तो हमारी विरासत है जो हमारे गुरुदेव से वसीयत में मिली है। इस वसीयत और विरासत में  सभी की हिस्सेदारी बराबर की है,न किसी की ज्यादा,न किसी की कम । ऐसा दिव्य मंच, ऐसा प्लेटफार्म सबको नसीब नहीं होता है।

हम जानते हैं कि जब आ. त्रिखा भाई साहब ने ये कार्य आरंभ किया था तब कभी सोचा  नहीं होगा कि यह इतना विस्तार पा जाएगा । वो अपनी श्रद्धा और लगन से अपना कार्य करते रहे,जिसका परिणाम यह हम सबका एक साथ होना। जैसे एक किसान खेत में बीज बोते समय यह अनुमान नहीं लगा पाता है कि उसकी फसल कितनी होगी। लेकिन वह बस अपना काम करता है, मेहनत करता है। उसकी मेहनत और कर्तव्यनिष्ठा से जो फसल तैयार होती है वह उसे अनिर्वचनीय आनंद देती है, सुख और शांति देती है।हम तो इस परिवार के वो सदस्य हैं जिन्हें घर बैठे पकी पकाई मिल जाती है। यदि किसी के मुँह तक एक भी टुकड़ा पंहुच नहीं पाता  तो यह उनका दुर्भाग्य ही है। यहां तो –

“साथी हाथ बढ़ाना”  वाला हिसाब है। एक हाथ दे एक हाथ ले।

आ. भाई साहब के मन की बात पढ़ते-पढ़ते ,हम भी बह गए। इसके साथ ही अब विचारों की बाढ़ को बांध लगाते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा चाहते हैं। 

जय गुरुदेव 

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4.आद सरविन्द पाल जी:

आज का लेख,लेख नहीं,आदरणीय अरुण भैया  जी के अंतर्मन के उद्धार हैं जो कि अंतःकरण की गहराईयों को छू रहे हैं। सचमुच में आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार,अखिल विश्व गायत्री परिवार की एक इकाई है जिससे हम सबको बहुत कुछ सीखने व समझने को मिल रहा है। यह हम सबका परम सौभाग्य है कि इससे जुड़कर हम सबका भाग्य बदल गया और इस दिव्य परिवार से न जुड़ने वालों का दुर्भाग्य है तभी तो वह लोग अध्यात्म से कोसों दूर हैं। इस दिव्य परिवार को संचालित करने की दिव्य प्रेरणा परम पूज्य गुरुदेव की ही है और यह अहम जिम्मेदारी आदरणीय अरुण भैया  जी को मिली जिसे वह निस्वार्थ भाव से बहुत ही सक्रियता के साथ पूरी कर रहे हैं। यह संपूर्ण समर्पण उनके पूर्व कर्मों का फल है और इस दिव्य कर्मों में हम सभी सहकर्मियों को सहभागिता सुनिश्चित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

आज के लेख  में भैया जी ने बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया है कि इस दिव्य मंच में हमारा और आपका संबंध मामूली दुकानदार और बाजारू ग्राहक का नहीं है, हम कागज छापकर बेचने वाले तथा आप वक्त काटने वाले सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वाले नहीं हैं। हम और आप दोनों ही एक “महान पथ के पथिक हैं” जो एक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर चुके हैं जिसका प्रतक्ष्य परिणाम सबके समक्ष है । इस दिव्य परिवार में हर तरह के लोगों की सहभागिता है, कोई अमीर है तो कोई गरीब है,कोई जवान है तो कोई बूढ़ा और कोई स्वस्थ है तो कोई अस्वस्थ है लेकिन सभी की भाव संवेदना एक-दूसरे के प्रति एक ही  है,तभी तो इस दिव्य परिवार को “संचालित संस्था” कहना अनुचित और निंदनीय है।

यह परिवार परम पूज्य गुरुदेव का परिवार है जिसमें उनका सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य अनवरत बना हुआ है। इस दिव्य परिवार में वही स्थान प्राप्त कर पाता है जिसे गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ होता है। यही कारण है कि अनेकों आते हैं और चले जाते हैं,यह उनका दुर्भाग्य ही है। 

आदरणीय अरुण भैया  जी के मन की बात को पढ़कर मन भाव विभोर हो गया और आँखों में आँसू आ गए। ऐसा महसूस हो रहा है कि हम परम पूज्य गुरुदेव का ही उद्बोधन पढ़ रहे हैं, एक-एक शब्द इतना दिव्य है कि  अंतःकरण तक हिल उठा। सच में गुरुदेव ने ही प्रेरणा देकर,उंगली पकड़कर लिखा दिया है जिसे हम सब जीवन में उतारकर, आत्मसात कर अधिक से अधिक लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। इस दिव्य परिवार का यही मुख्य उद्देश्य है जो सफलतापूर्वक संपन्न होकर अंतःकरण को परिष्कृत व पवित्र कर परम पूज्य गुरुदेव के सपने को साकार कर रहा है।

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यूट्यूब की समस्या के बावजूद आद राकेश जी की वीडियो को 369  कमेंट मिले, 7  संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।

जनवरी माह के अंतिम शनिवार का विशेषांक- क्या हम अपनेआप को साथिओं से ऋण मुक्त कर पायेंगें ?

हमारे समर्पित साथिओं ने माह का अंतिम शनिवार हमारे लिए फिक्स किया हुआ है जिसके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं। आज प्रस्तुत किए गए स्पेशल सेगमेंट में हम चार “सैंपल कॉमेंट” के बारे में चर्चा कर रहे हैं। ऐसे अनेकों कॉमेंट्स जिन्हें हमारे साथी समयदान, श्रमदान,ज्ञानदान करके हमारे ऊपर ऋण का बोझ डाले जा रहे हैं, क्या हम अपनेआप को ऋणमुक्त कर पाएंगे। समर्पण, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की सबसे बड़ी विशेषता है, हम नतमस्तक हैं। 

आज के विशेषांक के पीछे गुरुदेव के विचार ही Driving force हैं।अभी- भी समापन हुई लेख श्रृंखला “गुरुदेव से हमारे सम्बन्ध” के दूसरे  लेख  में परम पूज्य गुरुदेव उन लोगों की बात कर रहे थे जिन्होंने उनके  संकेतों के अनुसार बड़े से बड़े त्याग करने में भी कभी संकोच नहीं किया, जिधर मोड़ा उधर मुड़ते रहे, जो कहा सो मानते रहे,जिधर चलाया उधर चलते रहे। 

हमारा और हमारे समर्पित साथिओं का सम्बन्ध भी कुछ ऐसा ही है जिस पर हमें बहुत गर्व है।  

गुरुदेव बड़े ही  द्रवित ह्रदय से लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि हम अपनेआप को इन  बच्चों द्वारा हमारे ऊपर लादे गए ऋण से मुक्त कर लें।

जितने दिन हम यह चार लेख लिखते रहे, हमारे मन में अपने समर्पित साथिओं के प्रति ऐसी ही भावनाएं उठती रहीं। 

ऐसे अनेकों साथियों के हम ऋणी हैं क्योंकि ऐसे विस्तृत कॉमेंट लिख पाना कोई सरल कार्य नहीं हैं। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि कॉमेंट लिखने में नीरा जी कितना समय, श्रम और विवेक का दान कर रही हैं।

निवेदन करते हैं कि प्रस्तुत किये गए चार कमैंट्स को ध्यान से पढ़ें, समर्पण का अनुमान स्वयं ही हो जायेगा।  

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1.आद रेणु श्रीवास्तव जी: 

हम सब गुरुदेव के परिवार के होते हुए भी अलग-अलग थे लेकिन  सभी को एक माला में पिरोने का‍ श्रेय त्रिखा भाई जी को जाता है। एक दूसरे से अनजान होते हुए भी अब हम-सब एक हैं । यह अपनापन, स्नेह इस परिवार के अलावा कहीं और संभव नहीं है।

इस छोटे परिवार का आरंभ त्रिखा भाई जी ने गुरुदेव ‌की प्रेरणा से किया और अब यह वृहत परिवार ‌बनता जा रहा है। 

आज प्रस्तुत किया गया ज्ञानप्रसाद यह लेख नहीं, मेरे सहयोगी भाई के मन की भावनाएं हैं जो समर्पण और अपनत्व दर्शाती हैं। हम-सब एक‌ ही राह पर चलने वाले सहयात्री हैं और हमारी मंजिल अनंत है। हमारा अनुपम परिवार गुरुदेव के बताए मार्ग पर सतत् आगे बढ़ते हुए अपनी क्षमता अनुसार समर्पित होकर कार्य कर रहा है। यहां सभी बराबर हैं  तथा सबको बराबर सम्मान प्राप्त होता है। 

गुरु साहित्य ही सबसे बड़ा उपहार,धन-सम्पदा है,उसका अथाह ज्ञान सागर है जिसमें जिसकी जितनी क्षमता है, ज्ञान रूपी रत्न प्राप्त कर अपना और समाज को परिष्कृत करने का पुनीत कार्य कर सकता है। यह गुरु मंदिर का ज्ञान रूपी प्रसाद है जिसे स्वयं ग्रहण करें तथा जन-जन में वितरण करें,अपना श्रम, समय और सेवा ‌लोक कल्याण में लगाएं। 

गुरुदेव ने अपना सारा जीवन तप में लगाकर मानवता को  समर्पित किया। अतः गुरु का आदेश कहें या अन्तर्वेदना,जन-जन तक उनके साहित्य, उनके विचारों को फैला कर लोकहित में  लोकमंगल के लिए सहयोग करें। यदि गुरुदेव से आपकी अपेक्षाएं हैं तो गुरु चरणों की भक्ति, श्रद्धा, समर्पण, संकल्प और नियमितता का दान मांगे, लेकिन गुरु के प्रति  हमारा भी कुछ कर्तव्य है उसे पूरा करें। गुरु साहित्य ही हमारी विरासत और ‌वसीयत है।

“गुरु के चरणों में शरण जो पा गया उसके जीवन में सुमंगल आ गया।”जय मां गायत्री। 

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2.आद संध्या जी: 

आपने सही लिखा है कि हम सभी परिजनों को परम पूज्य गुरूदेव की वेदना को समझते हुए पूर्णतः संकल्पित होकर अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए गुरुवर के दिव्य साहित्य को घर-घर, जन-जन तक पहुँचाना चाहिए।आपके द्वारा लिखित एक एक शब्द  परिजनों को जागृत करने में सक्ष्म है। आपने कितना सही  लिखा है कि  हमारा और आपका संबंध मामूली दुकानदार और बाज़ारू  ग्राहक का नहीं है। हम कागज छाप कर बेचने वाले और आप वक्त काटने के लिये सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वाले नहीं हैं।  हम और आप महान पथ के पथिक के रुप में एक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर चुके हैँ, हम सबने अपनी एक अलग दुनिया, एक अलग सा परिवार बसाया हुआ है जो अन्यत्र दुर्लभ है I हम सब केवल भाई, साथी, मित्र ही नहीं है इससे कुछ अधिक हैं। सूर्य की एक किरण का दूसरी किरण से जो सम्बन्ध होता है वैसा ही संबंध हमारा और आपका है। भाई जी आपने,क्या उमदा उदाहरण दिया है। आप आगे लिखते हैं कि हम और आप अलग-अलग होते हुए भी आपस में पूर्णतया का  अनुभव करते हुए एक नयी दुनिया, एक नया परिवार बसाए हुए हैं, अपने गुरु का परिवार, जिसका नाम है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार।  इस परिवार के समस्त परिजनों का एक ही उद्धेश्य है, गुरु का नाम रोशन करना एवं गुरुवर के दिव्य विचारों को घर-घर पहुंचाना l 

ये पँक्तियाँ अंदर तक झंकृत कर गयीं। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ऐसे जिज्ञासु,ज्ञान पीपासु और आनन्द खोजी पथिकों का जखीरा बनना चाहता है जो स्वयं आनन्द प्राप्त करते हुए अनेकों का मार्गदर्शन करने के लिये उत्सुक हों।  आगे की इन पन्क्तियों ने सच्चाई स्पष्ट कर दी है कि 

“माँगना ही है तो गुरुभक्ति, गुरुश्रद्धा,समर्पण, संकल्प, नियमितता का दान मांगीये , फिर उसके चमत्कार का आनंद लीजिए l 

भाई साहिब, अति उत्तम विचार हैं। आपकी भाषा, शैली एवं उत्तम भावनाओं में गुरुवर की लेखनी का आभास मिलता है।  वैसा ही आनन्द एवं ज्ञान प्राप्त हो रहा है (बटरीग Buttering  न समझा जाए। आपकी लेखनी की जहाँ आत्मीयत से  भाव विभोर कर आंखें नम कर रहीं है  वहीँ सुप्त पड़ी ऊर्जा को जागृत भी कर रहीं हैं।  अति उत्तम विचार हैं। इस स्पेशल सेगमेंट के बारे में आपको उत्तम सुझाव देने के लिए  आदरणीय सुमनलता बहन जी को बारम्बार सादर नमन l  

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3.आद सुमनलता जी: 

आज का दिन हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मुखिया,निर्माता, और संचालक आ. त्रिखा भाई साहब के मन की बात के लिए सर्वसम्मति के साथ नियत किया गया है ।आज भाई साहब ने अपना दिल खोल कर परिवार के समक्ष रख दिया है। यह सत्य है और हम भी अनुभव करते हैं कि यह परिवार एक अलग ही सूत्रों में बंधा हुआ परिवार है,जो अखिल विश्व गायत्री परिवार की  ही एक इकाई है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक बड़े परिवार में कुछ बेटे हैं, बेटियां हैं। फिर उनके परिवार बन गए। लेकिन मूल परिवार एक ही है। हमारे परमपूज्य गुरुदेव के गायत्री परिवार का एक छोटा-सा परिवार। एक बड़े समुद्र का छोटा सा तालाब। जो समुद्र से अलग अवश्य है लेकिन,उसमें पानी उसी समुद्र का है।हम सब दूर-दूर रह कर भी एक दूसरे के साथ है। अनजान होते हुए भी अपने सगे से बढ़ कर हैं। यहां जब भी  कोई मुश्किल  आन पड़ती है तो, समाधान के लिए गुरुश्रेष्ठ का  साहित्य ही ढूंढा जाता है, क्योंकि वही तो हमारी विरासत है जो हमारे गुरुदेव से वसीयत में मिली है। इस वसीयत और विरासत में  सभी की हिस्सेदारी बराबर की है,न किसी की ज्यादा,न किसी की कम । ऐसा दिव्य मंच, ऐसा प्लेटफार्म सबको नसीब नहीं होता है।

हम जानते हैं कि जब आ. त्रिखा भाई साहब ने ये कार्य आरंभ किया था तब कभी सोचा  नहीं होगा कि यह इतना विस्तार पा जाएगा । वो अपनी श्रद्धा और लगन से अपना कार्य करते रहे,जिसका परिणाम यह हम सबका एक साथ होना। जैसे एक किसान खेत में बीज बोते समय यह अनुमान नहीं लगा पाता है कि उसकी फसल कितनी होगी। लेकिन वह बस अपना काम करता है, मेहनत करता है। उसकी मेहनत और कर्तव्यनिष्ठा से जो फसल तैयार होती है वह उसे अनिर्वचनीय आनंद देती है, सुख और शांति देती है।हम तो इस परिवार के वो सदस्य हैं जिन्हें घर बैठे पकी पकाई मिल जाती है। यदि किसी के मुँह तक एक भी टुकड़ा पंहुच नहीं पाता  तो यह उनका दुर्भाग्य ही है। यहां तो –

“साथी हाथ बढ़ाना”  वाला हिसाब है। एक हाथ दे एक हाथ ले।

आ. भाई साहब के मन की बात पढ़ते-पढ़ते ,हम भी बह गए। इसके साथ ही अब विचारों की बाढ़ को बांध लगाते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा चाहते हैं। 

जय गुरुदेव 

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4.आद सरविन्द पाल जी:

आज का लेख,लेख नहीं,आदरणीय अरुण भैया  जी के अंतर्मन के उद्धार हैं जो कि अंतःकरण की गहराईयों को छू रहे हैं। सचमुच में आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार,अखिल विश्व गायत्री परिवार की एक इकाई है जिससे हम सबको बहुत कुछ सीखने व समझने को मिल रहा है। यह हम सबका परम सौभाग्य है कि इससे जुड़कर हम सबका भाग्य बदल गया और इस दिव्य परिवार से न जुड़ने वालों का दुर्भाग्य है तभी तो वह लोग अध्यात्म से कोसों दूर हैं। इस दिव्य परिवार को संचालित करने की दिव्य प्रेरणा परम पूज्य गुरुदेव की ही है और यह अहम जिम्मेदारी आदरणीय अरुण भैया  जी को मिली जिसे वह निस्वार्थ भाव से बहुत ही सक्रियता के साथ पूरी कर रहे हैं। यह संपूर्ण समर्पण उनके पूर्व कर्मों का फल है और इस दिव्य कर्मों में हम सभी सहकर्मियों को सहभागिता सुनिश्चित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

आज के लेख  में भैया जी ने बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया है कि इस दिव्य मंच में हमारा और आपका संबंध मामूली दुकानदार और बाजारू ग्राहक का नहीं है, हम कागज छापकर बेचने वाले तथा आप वक्त काटने वाले सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वाले नहीं हैं। हम और आप दोनों ही एक “महान पथ के पथिक हैं” जो एक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर चुके हैं जिसका प्रतक्ष्य परिणाम सबके समक्ष है । इस दिव्य परिवार में हर तरह के लोगों की सहभागिता है, कोई अमीर है तो कोई गरीब है,कोई जवान है तो कोई बूढ़ा और कोई स्वस्थ है तो कोई अस्वस्थ है लेकिन सभी की भाव संवेदना एक-दूसरे के प्रति एक ही  है,तभी तो इस दिव्य परिवार को “संचालित संस्था” कहना अनुचित और निंदनीय है।

यह परिवार परम पूज्य गुरुदेव का परिवार है जिसमें उनका सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य अनवरत बना हुआ है। इस दिव्य परिवार में वही स्थान प्राप्त कर पाता है जिसे गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ होता है। यही कारण है कि अनेकों आते हैं और चले जाते हैं,यह उनका दुर्भाग्य ही है। 

आदरणीय अरुण भैया  जी के मन की बात को पढ़कर मन भाव विभोर हो गया और आँखों में आँसू आ गए। ऐसा महसूस हो रहा है कि हम परम पूज्य गुरुदेव का ही उद्बोधन पढ़ रहे हैं, एक-एक शब्द इतना दिव्य है कि  अंतःकरण तक हिल उठा। सच में गुरुदेव ने ही प्रेरणा देकर,उंगली पकड़कर लिखा दिया है जिसे हम सब जीवन में उतारकर, आत्मसात कर अधिक से अधिक लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। इस दिव्य परिवार का यही मुख्य उद्देश्य है जो सफलतापूर्वक संपन्न होकर अंतःकरण को परिष्कृत व पवित्र कर परम पूज्य गुरुदेव के सपने को साकार कर रहा है।

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यूट्यूब की समस्या के बावजूद आद राकेश जी की वीडियो को 369  कमेंट मिले, 7  संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।


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