वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मन क्या है ?

21 अक्टूबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – हमको मन की शक्ति देना मन विजय करे 

आज का ज्ञानप्रसाद गुड्डी फिल्म की बहुचर्चित प्रार्थना “हमको मन की शक्ति देना मन विजय करे” से आरम्भ कर रहे हैं।  इस लेख में व्यक्त किये गए विचार केवल हमारी अल्पबुद्धि और अल्प-अनुभव पर आधारित हैं। इन विचारों से  सहमत य असहमत होना आप का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन हमारे विचार में यह लेख  तर्कसंगत है, हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपके सूझवान और ज्ञानवान कमेंटस  हमें मार्गदर्शन देने में अवश्य ही सहायक होंगें।  

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मन क्या है ?

मन एक ऐसा शब्द है जिससे हम सब भली भांति परिचित हैं  । मनुष्य का मन ही समस्त शक्तियों का स्रोत  होता है।  मन की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दूसरी  इच्छा शक्ति। मन की कल्पना शक्ति के बढ़ने पर व्यक्ति कवि, वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता, चित्रकार,साहित्यकार बनता है।कल्पना शक्ति का विकास लोगों  को अच्छी कवितायें, अच्छा साहित्य.अच्छे चित्र तथा वैज्ञानिक खोजों से सुख और  सम्पन्नता का विकास होता है। कल्पना शक्ति से ही  तो हमारे मनोरंजन के  लिए टीवी सीरियल ,पिक्चरें  बनाई जाती हैं, हमारी खुशियों में बहार आ जाती है। मन की इच्छा शक्ति का विकास होने  से व्यक्ति अधिकतर कार्यों  को करने में सक्षम हो जाता है  वह चाहे तो अमीर बन सकता है, वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा औरों  को भी स्वस्थ रख सकता है। वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। 

आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे। यदि हम  मानसिक शांति को प्राप्त करना चाहते है तो यह आवश्यक है कि हम मन को वश में करे। हमारे सारे दुख तथा कष्टों का कारण भी है मन पर उचित नियंत्रण न होना। मन हमारा मालिक बन बैठा है तथा हमें यह नचा रहा है जबकि वास्तव में हम मन के मालिक हैं । अक्सर कहा जाता है कि मन तो चंचल है ,यह एक  स्थान पर टिक ही नहीं पाता है तो क्या करें।  इस स्थिति की तुलना तो हम उस नवजात शिशु के साथ कर सकते हैं जिसने अभी-अभी ,नया -नया चलना आरम्भ  किया है। वह तो चाहता है कि सब कुछ आज ही कर लूँ , अभी  सीख लूँ।  लेकिन ज्यों ज्यों समय व्यतीत होता जाता है उसकी इस चंचलता में थोड़ा ठहराव आना आरम्भ हो जाता है। इसका कारण केवल एक ही हो सकता है कि वह  शिशु जब इस संसार में आँख खोलता  है तो वह परमसत्ता उसे अनंत ऊर्जा का वरदान  भी देकर भेजती है।  वह शिशु सोफे पर ऐसी अठखेलियां मारता है जिसे देखकर बूढ़े दादा -दादी ,नाना – नानी ईर्ष्या किये बिना नहीं रहते जो सीढ़ियां पर कदम भी देख -देख  ध्यानपूर्वक  रखते हैं।    

मन की चंचलता को नियंत्रित करके केंद्रित करना और अपनी ऊर्जा को सही राह में channelise  करना अत्यंत आवश्यक है।  अगर हम यह महत्वपूर्ण स्टैप न ले सके तो हमारी दशा एक भटके हुए मानव की भांति होते देर न लगेगी। फिर हम यह भी भूल जायेंगें कि उस परमसत्ता ने हमें वह ऊर्जा एवं अनुदान देकर इस पृथ्वी पर भेजा है जो हमें मानव से महामानव और मानव से देवता बना सकती है।  क्या हमने कभी भी अपने अंदर  छिपी हुई प्रतिभा का विश्लेषण करने का प्रयास किया है ? क्या हमने  कभी भी अपनेआप को जानने का प्रयास किया है ? परमपूज्य गुरुदेव की प्रथम पुस्तक “मैं क्या हूँ”, केवल 50 पन्नों की एक  छोटी से पुस्तिका है। यह पुस्तिका इन  सभी प्रश्नों का समाधान कर सकती है। हम में से बहुत सारे परिजन इस पुस्तक से परिचित हैं ,जिन्हे जानकारी नहीं है वह Internet  archive से पढ़  सकते हैं।  आप केवल इस पुस्तक का नाम ही टाइप कीजिये पुस्तक आपके सामने होगी।    

मन की एकाग्रता , मन का कण्ट्रोल  ही है जो हमें एक दूसरे  से भिन्न बनाता  है  तथा कार्य करने की क्षमता में अंतर ला देता  है।  यही वह अंतर् है  जिससे कोई व्यक्ति तो जीवन में सफलता प्राप्त कर लेता है  जबकि कोई असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाता है। यदि हम मन को केंद्रित कर लें , नियंत्रित कर लें तो हमारा पूरे का पूरा  व्यक्तित्व ही बदल सकता है और  मानसिक शांति प्राप्त होगी। जो  व्यक्ति एकाग्र ( concentration ) मन से, नियंत्रित (controlled ) मन से किसी भी  कार्य को  करेगा उसमें उसे  सफलता प्राप्त होने की सम्भावना अधिक है।

हमारे शरीर में “मन” नाम का कोई भी अंग नहीं है , हाँ हम कई बार ऐसा अवश्य कह देते हैं -आज काम करने को मन ( दिल ) नहीं कर रहा।  इस “दिल” का अर्थ ह्रदय से नहीं हैं जिसको हम heart कहते हैं।  ह्रदय को तो और  बड़े काम करने  हैं  जैसे रक्त को साफ़ करना , शरीर के हर हिस्से में एनर्जी देना आदि आदि।  वह कैसे देखेगा कि आपकी मर्ज़ी ,इच्छा ,रूचि काम करने की है कि नहीं। तो कौन है जो हमें यह सब मार्गदर्शन दे रहा है , कौन है जो हमारे “मन” को नियंत्रित कर रहा है।  बहुत से परिजन कहेंगें कि यह मस्तिष्क का काम है , हमारा दिमाग हमारे “मन” को  गाइड कर रहा है, लेकिन मन तो कहीं है ही नहीं। 

मन हमारे अंदर की एक शक्ति  है जो इन्द्रियों (senses) एवं मस्तिष्क के द्वारा देखती  है,सुनती  है,सूंघती  है , है,स्वाद लेती  है तथा स्पर्श की अनुभुति करती  है। हमने यहाँ 5 senses की ही बात की है ,आजकल तो sixth sense की भी बात हो रही है।  मन ही शरीर को सुख-दुख का आभास  करवाता  है। हम जीभ के द्वारा स्वाद का अनुमान तो लगा ही सकते है लेकिन अकेली जीभ कुछ नहीं कर सकती , उस परमसत्ता ने हमें taste buds दिए , स्वाद की इन्द्रियां दीं जिन्होंने हमें स्वाद को अनुभव करने की क्षमता दी। हम अक्सर  मस्तिष्क को  “मन” समझ लेते है लेकिन वह गलत है।  मस्तिष्क एक कम्पयूटर की तरह का उपकरण है जिसके द्वारा मन शरीर पर नियंत्रण रखता है। मस्तिष्क शरीर व मन को जोड़ने का कार्य करता है। व्यक्ति जब बेहोशी की अवस्था में होता है तो   मन का  शरीर से संपर्क  टूट  जाता है ,हम बेहोशी की अवस्था में होते हैं। यही  कारण है कि  ऑपरेशन करने के लिए बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाता है  क्योंकि उस समय  दर्द महसूस( feel ) ही  नहीं होता। यह feeling  इन्द्रियों के माध्यम से ही होती हैं 

शरीर पॉच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना हुआ है।  जिस प्रकार हमारा शरीर  एक निर्जीव पुतला है उसी प्रकार मस्तिष्क भी निर्जीव है “परन्तु जब  इस शरीर में  मन या आत्मा प्रवेश करती है तो शरीर व मस्तिष्क जीवित हो उठते है तथा व्यक्ति में  सोचने, महसूस  करने, कल्पना करने,तर्क करने इत्यादि कार्य सम्पन्न होते है।” मन( mind ),चेतना ( consciousness)  या आत्मा( soul ) को अमर कहा गया है “उसे” कोई भी नष्ट नहीं कर सकता इसी को ही शब्द भी कहा गया है जब कोई भी नहीं था तब भी यह था आज भी ये है तथा कोई भी नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा।

जब शिशु  जन्म लेता है उसका मन निश्चल( अचल, स्थिर  ) होता है परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है मन के ऊपर धूल जमा होने लगती है।  यदि हमें उस शिशु  की तरह  निश्चल मन को प्राप्त करना है तो मन पर जमीं धूल को साफ करना होगा। किसी सरोवर के तले में देखना तभी संभव है जब पानी  की लहरें  स्थिर ( निश्चल )  हो जाएँ । जब पानी की लहरें  स्थिर हो जाती हैं ,रुक जाती हैं तो  हमें उसके  तले  में पड़े कंकड़ भी दिखाई देने लगते हैं।  “इसी प्रकार जब मन में विचारों की लहरें  स्थिर हो जाती हैं तो  मन निर्विकार, दोष मुक्त और विकार मुक्त  हो जाता है।”

हमारे मन में बहुत सी इच्छाएं उठती हैं लेकिन सोचने की बात है कि सारी  इच्छाएं  पूरी क्यों नहीं होतीं।  प्रत्येक व्यक्ति अव्यक्त ब्रहम है अर्थात परमात्मा का अंश है फिर भी केवल 10  प्रतिशत लोग ही अपनी इच्छाओं को पूरा  कर पाते है। इसका कारण यह है कि इच्छाएं तो अनगनित हैं ,उनमें से कोई एक पूरी न हुई तो हमारा मन टूट  जाता है और हमें निराशा घेर लेती है। हम धारणा बना लेते हैं कि हम किसी काम के नहीं हैं – I am a failed person.  कई लोग ऐसा भी कहते सुने गए हैं कि “ इस इच्छा का पूरा होना मेरे भाग्य में नहीं था  य ईश्वर की इच्छा नहीं थी”  इसका अर्थ ऐसा कदापि नहीं है कि हम कर्म करना ,कोशिश करना छोड़ दें। लेकिन प्रारब्ध , भाग्य ,नियति ,नियंता और नियत जिस विषय पर हमने कुछ समय पूर्व ही लेख लिखा उसको भी ध्यान में रखना चाहिए। आज सुबह ही प्रेरणा बिटिया से बात कर रहे थे कि हर मनुष्य एक छिपी प्रतिभा का खजाना है जिसका ज्ञान केवल उसी को है जिसने हमें यह अनुदान देकर इस संसार में भेजा है।  तो अगर  हमारी प्रतिभाओं का ज्ञान केवल परमपिता परमात्मा को ही है तो उसी पर क्यों नहीं छोड़ देते , हम केवल निष्ठां और श्रद्धा से कर्म करें और कर्मफल उसी के हाथ में दे दें। हाँ कर्म करना हमारे हाथ में है , इसे समझदारी से निभाएं – एक -एक इच्छा को बारी बारी पूर्ण करने का प्रयास करें और जब एक पूरी हो जाती है तो दूसरी पूरी करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दें। जैसे-जैसे छोटी -छोटी इच्छाएं पूरी होती जायेंगीं, आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप बड़ी इच्छाओं को पूरा करने में समर्थ होंगें। 

यही है इस इच्छा तृप्ति का , इच्छा प्राप्ति का सरलतम मार्ग 

कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को  ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से  चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें। 

जय गुरुदेव


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