वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अखंड ज्योति में 1964 और 1966 में  प्रकाशित हुए  दो लेखों पर आधारित लेख श्रृंखला की पृष्ठभूमि एवं उत्तरधिकारिओं की तलाश भाग 1

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक संकल्पित सहकर्मी इस प्रक्रिया से भलीभांति परिचित है कि जब भी किसी नवीन लेख श्रृंखला का शुभारम्भ होता है,उससे पहले उसकी पृष्ठभूमि की चर्चा अवश्य की जाती है। फ़िल्म की रिलीज़ से पहले, कुछ मिंटों के ट्रेलर सार्वजानिक करने की प्रथा बहुत ही पुरानी है। फिल्मी क्षेत्र में तो यह व्यवसाय की दृष्टि और पब्लिसिटी के लिए किया जाता रहा होगा लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच में पब्लिसिटी,विज्ञापन आदि की कोई बात नहीं है। इस मंच पर प्रकाशित होने वाला समस्त कटेंट गुरुभक्ति, गुरुनिष्ठा को सामने रख कर ही किया जाता है। लेख शृंखला से पहले पृष्ठभूमि का  उद्देश्य आने वाली लेख श्रृंखला के कंटेंट की जानकारी देते हुए साथिओं में लेख की रोचकता का बीजारोपण करना होता है ताकि ज्ञान चाहे जितना भी साधारण हो, लेख चाहे जितना भी छोटा हो,अगर साथिओं के ह्रदय को छूता हुआ उनके अंतःकरण को न झकझोड़ दे, तो लेखक की आत्मा तृप्त नहीं होती। ज्ञानप्रसाद लेखों को किस निष्ठा से ग्रहण किया जाता है, उसका मूल्याङ्कन तो कमैंट्स से हो ही जाता है लेकिन लेखक की आत्मा की तृप्ति को वर्णन करने के लिए शब्दों का दुर्भिक्ष तो आड़े आता ही है । 

दिसंबर 1964 की अखंड ज्योति में “युग निर्माण आंदोलन की प्रगति” शीर्षक से प्रकाशित पांच पृष्ठों के लेख में परम पूज्य गुरुदेव अपने उत्तराधिकारियों का चयन करने की प्रक्रिया का वर्णन कर रहे हैं। वर्ष 1964 अखंड ज्योति का रजत जयंती वर्ष था और 25 वर्ष पूरे होने पर गुरुदेव अपने कन्धों का भार उन योग्य हाथों में सौंपना चाहते थे जिन पर उन्हें पूर्ण विश्वास था। गुरुदेव ने इस भार सौंपने की प्रक्रिया को “सत्ता हस्तांतरण”  और “उत्तराधिकारी घोषणा” कहते हुए यह भी सुनिश्चित किया कि कौन से कार्यकर्ता ज्ञान मशाल को अपना हाथ प्रदान कर सकते हैं। 

1964 की अखंड ज्योति पर आधरित दो भागों में प्रकाशित होने वाली लेख श्रृंखला का प्रथम भाग आज प्रकाशित  किया गया है। दूसरा एवं अंतिम भाग कल प्रकाशित किया जायेगा। 

जुलाई 1966 में प्रकाशित लेख का शीर्षक “हमारे और आपके सम्बन्ध आगे क्या हों -इसका अंतिम निर्णय इसी मास  हो जाना चाहिए” स्वयं ही बहुत कुछ कह रहा है। लगभग 10 पृष्ठों के इस लेख ने, जिसमें परम पूज्य गुरुदेव अपना  ह्रदय खोलकर बता रहे हैं, हमें इतना प्रभावित किया है कि आने वाले दिनों में दैनिक दिव्य सन्देश भी इसी से बनाने की योजना है। सच में ऐसा गुरु किसी सौभाग्यशाली को ही प्राप्त हो पाता है। 

आज के लेख का शुभारम्भ करने से पहले अपनी तीनों आदरणीय बहिनों सुजाता जी, रेणु जी एवं सुमनलता जी के स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं और आदरणीय अनिल मिश्रा जी की प्रयागराज में महाकुम्भ में भागीदारी की बधाई देते हैं। भाई साहिब ने बहुत ही दिव्य फोटो और वीडियो भेजकर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में भागीदारी सुनिश्चित  की है। धन्यवाद् भाई साहिब।

तो आइए गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा में गुरुज्ञान के लिए गुरुचरणों में नतमस्तक हो जाएँ।  

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धर्म प्रचार करते हुए,जन-जागरण का शंख  बजाते हुए  “अखण्ड ज्योति” को पूरे 25  वर्ष बीत गये । इस अंक  के साथ “अखण्ड ज्योति” अपने जीवन काल के पूरे 25  वर्ष समाप्त करती है ।

पच्चीस वर्ष की एक अवधि पूरी करके उसने प्रचार एवं सङ्गठन का कार्य पूरा किया है। भारतीय संस्कृति के  अनुरूप जन-मानस विनिर्मित करने के स्वल्प साधनों के द्वारा घनघोर प्रयत्न किया है। लाखों नहीं, करोड़ों व्यक्तियों तक अपना सन्देश पहुँचाया है। नव-निर्माण की विचारधारा से प्रभावित किया है। अगणित व्यक्तियों की जीवन दिशाओं को मोड़ा है। लोक निर्माण के लिए सहस्त्रों जन-सेवी उत्पन्न किये हैं और एक ऐसे सुसङ्गठित परिवार की रचना की है जिसमें 30000  व्यक्ति मधु मक्खियों के छत्ते में रहने वाले अण्डे -बच्चों की तरह एक सुदृढ़ आस्था अपना कर बहुत कुछ करने की तैयारी में संलग्न हैं ।

किन्तु हमारा, इन पंक्तियों के लेखक का शरीर दिन-दिन थकता जाता है। कार्य करने के 7  वर्ष जो और शेष हैं, वे अब धीरे-धीरे घटते चले जा रहे हैं । आगे हमें राष्ट्र को  नई शक्ति दे सकने वाली प्रचण्ड तपश्चर्या भी करनी है। ऐसी दशा में अब वह समय आ पहुँचा जब कि हम अपना उत्तरदायित्व उन कन्धों पर डालना आरम्भ कर दें जिन्हें समर्थ और सामर्थ्यवान् देखें हैं। हम अपनी आँखों से यह देखकर सन्तुष्ट और आश्वस्त होना चाहते हैं कि जो मशाल जलाई गई थी, उसे आगे ले चलने का क्रम ठीक प्रकार चल रहा है । अगले 7  वर्ष इसी प्रक्रिया  को पूर्ण करने में लगाने का निश्चय कर लिया है। इसे “सत्ता-हस्तान्तरण कार्यक्रम” कह सकते हैं । दूसरे शब्दों में इसे “उत्तराधिकार घोषणा” भी कह सकते हैं । “अखण्ड- ज्योति” के जीवन के 25  वर्ष इसी दिसम्बर में पूरे हो रहे हैं । रजत जयन्ती की शानदार अवधि उसने पूरी कर ली। अब वह स्वर्ण जयन्ती वाले दूसरे अध्याय में प्रवेश करती है । अतएव इस सन्धि-वेला में उसे तदनुरूप कार्यक्रम भी बनाना पड़ रहा है। इन पंक्तियों में उसी की चर्चा की जा रही है। 

युग-निर्माण योजना, शत सूत्री कार्यक्रमों में बंटी हुई है।  वे कार्यक्रम  यथा-स्थान, यथा-स्थिति, यथा-सम्भव कार्यान्वित भी किये जा रहे हैं लेकिन  एक कार्यक्रम अनिवार्य है और वह यह कि इस विचारधारा को जन-मानस में अधिकाधिक गहराई तक प्रविष्ट कराने, उसे अधिकाधिक व्यापक बनाने का कार्यक्रम पूरी तत्परता के साथ जारी रखा जाय । हम थोड़े से व्यक्ति युग को बदल डालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।  धीरे- बीरे समस्त मानव समाज को सद्भावना सम्पन्न एवं सन्मार्ग मार्गी  बनाना होगा और यह तभी सम्भव है जब यह विचारधारा गहराई तक जन मानस में प्रविष्ट कराई जा सके । इसलिए अपने आस-पास के क्षेत्र में इस प्रकाश को व्यापक बनाये रखने का कार्य तो परिवार के प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति को करते ही रहना होगा । अन्य कोई कार्यक्रम कहीं चले या न चले लेकिन  यह कार्य तो अनिवार्य है कि इस विचारधारा से अधिकाधिक लोगों को प्रभावित करने के लिए निरन्तर समय, श्रम, तन एवं मन लगाया जाता रहे । जो ऐसा कर सकते हैं, जिनमें ऐसा करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई है, उन्हें हम “अपना उत्तराधिकारी” कह सकते हैं। धन नहीं, लक्ष्य हमारे हाथ में है, उसे पूरा करने का उत्तर-दायित्व भी हमारे उत्तराधिकार में किसी को मिल सकता है । उसे लेने वाले भी कोई बिरले ही होंगे। इसलिए उनकी खोज तलाश आरम्भ करनी पड़ रही हैं ।

जन साधारण की विचारणा एवं प्रेरणा नियमित रूप से देते रहने का कार्य सब  से पहला है। यह प्रबन्ध हो जाता है, तो अन्य सार्वजनिक प्रवृत्तियाँ पनपती रहती हैं जिनमें स्वयं का स्थायी उत्साह हो वे ही दूसरे शिथिल लोगों में नव-जीवन संचार करते रह सकते हैं । जो स्वयं ही शिथिल हो रहे हैं उन्हें दूसरों की शिथिलता के कारण प्रगति रुक जाने का बहाना ढूंढ़ना व्यर्थ है । एक वेश्या सारे मुहल्ले में दुर्बुद्धि पैदा कर देती है, तो एक प्रेरणाशील प्राणवान् व्यक्ति भी दीपक की तरह अपने क्षेत्र को प्रकाशवान बनाये बिना  नहीं रह सकता। आग जहाँ रहेगी, वहाँ गर्मी पैदा करेगी ही । भावनाशील व्यक्ति जहाँ भी रहें वे वहीं भावनाओं का प्रवाह करने ही लगेंगे । इसमें न तो सन्देह की गुंजायश है और न आश्चर्य की।  प्राणवान् व्यक्तियों द्वारा दूसरों में प्राण फूंका जाता है, यह एक सुनिश्चित तथ्य है ।

आजकल हम ऐसे ही अपने प्राणवान् उत्तराधिकारी हूँढ़ने में लगे हैं । जहाँ भी “अखण्ड ज्योति” के सदस्य हैं उन सभी स्थानों में अपने प्रतिनिधि नियुक्त करना चाहते हैं । इन प्रतिनिधियों पर युग-निर्माण के अनुरूप चेतना उत्पन्न करते रहने का उत्तरदायित्व रहेगा । हमारे जीवन का अधिकतर  कार्यक्रम भी यही रहा है। हमारे उत्तराधिकारी भी अपनी परिस्थितियों के अनुसार इन्हीं गतिविधियों को अपनाएंगें । वे अपनी रोजी-रोटी कमाते हुए भी अपने निजी आवश्यक कार्यों की तरह जन-जीवन में चेतना उत्पन्न करने के लिए यदि थोड़ा भी प्रयास करते रहेंगे तो निश्चय हो उस क्षेत्र में आशाजनक प्रकाश जलता और बढ़ता रहेगा ।

अगला भाग कल प्रस्तुत किया जायेगा। 

जय गुरुदेव 

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कल वाले  लेख  को 366  कमेंट मिले, 11 संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।


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