वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनुष्य शरीर में नाभि का महत्व-पार्ट 4 

आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है और लोहड़ी के पावन पर्व के कारण हम सभी सहकर्मी अति ऊर्जावान हैं। सभी को लोहड़ी और मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामना। 

27 नवंबर 2024 को हमारी सर्जरी थी और उसी दिन नाभि ज्ञान की लेख श्रृंखला का तीसरा ज्ञानप्रसाद लेख प्रस्तुत किया गया था। उसी श्रृंखला का आज चौथा और अंतिम लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। 

आज के लेख में नाभि से सम्बंधित निम्नलिखित दिव्य प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना है: 1. नाभि को ब्रह्मस्थान क्यों कहा जाता है?

2. नाभि कुदरत की अद्भुत देन  है। 

3. नाभि शरीर का प्रवेश द्वार है। 

4. नाभि शरीर का प्रथम दिमाग है। 

लेख का समापन “नाभिथेरेपी” से हो रहा है जिसके अंतरगत अनेकों बीमारीओं का इलाज इस प्रवेश द्वार से हो सकता है क्योंकि यही वोह स्थान है जहाँ से जुड़ी 72000 नाड़ियां सारे शरीर में फैली हुई हैं। 

गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा में गुरुचरणों में समर्पित होने से पूर्व दो बातें करना चाहेंगें : 

1.आदरणीय सुमनलता बहिन जी के कमेंट के अनुसार सभी को आग्रह कर रहे हैं कि आज से ज्ञानप्रसाद अपने निर्धारित टाईमटेबल के अनुसार कार्यरत है,कोई आशंका नहीं है कि सप्ताह में केवल दो ही लेख प्रस्तुत होंगें। निर्धारित टाईमटेबल के अनुसार पहले की भांति ही कमैंट्स/काउंटर कमैंट्स की आशा की जा रही है।

2.हमारे स्वास्थ्य के बारे में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, अपडेट के अनुसार Narcotic pain killers, जिनसे सारा दिन नींद आती रहती थी वोह तो बंद हैं लेकिन नार्मल pain killers अभी कुछ देर चलने की सम्भावना है। पूर्ण  रिकवरी में कितना समय लगना है इसका तो कोई अनुमान नहीं है लेकिन शीघ्र ही सब ठीक हो जायेगा। जब कभी भी स्वास्थ्य के कारण ज्ञानप्रसाद में रुकावट आई तो उसके लिए पूर्व क्षमाप्रार्थी हैं।

धन्यवाद्, जय गुरुदेव

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वास्तु शास्त्र में मकान या भूखण्ड के मध्य भाग को ब्रह्मस्थान कहा जाता है। मनुष्य के शरीर में नाभि भी मध्य में होती  है। वास्तु शास्त्र में मकान के मध्य भाग को खुला रहने देने (हाॅल के रूप में) का विधान है जिससे वहां से ऊर्जा सर्वत्र वितरित हो सके।

मनुष्य के शरीर में नाभि का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। माता के गर्भ में उसे गर्भनाल  ( Umbilical cord) से ही पोषण मिलता है। वही गर्भनाल जन्म के पश्चात् कटने के बाद नाभि कहलाती  है।

हमारे धार्मिक चित्रों में भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति को दिखाया गया है। यह इस बात का प्रतीक है कि सृजन एवं पोषण में नाभिस्थान का महत्वपूर्ण स्थान है।

ब्रह्म शब्द का अर्थ परमात्मा होता है, इसका अर्थ बढ़ने वाला भी होता है। ब्रह्मा या प्रजापति से संबंध रखने के कारण मनुष्य ब्रह्मवर्धनशील होते हैं जैसा कि  हर जीवनयुक्त मानव होता है। शरीर की 72000 नाड़ियां नाभिस्थान से जुड़ी रहती है। यह स्थान नाभिचक्र (जिसे मणिपुर चक्र, Third Solar plexus  भी कहते हैं) का है जिसके देवता श्री विष्णु एवं लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु परब्रह्म परमात्मा हैं। ये उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं। अतएव “नाभिस्थान को ब्रह्मस्थान” कहा जाता है। मानव शरीर में यह वह केन्द्र स्थान है जहाँ से मनुष्य की प्रवृति एवं उससे जुड़ी ऊर्जा का निर्धारण होता है। अगर मनुष्य की प्रवृति सात्विक है तो उसकी ऊर्जा ऊर्ध्वगामी यानि ऊपर की ओर  जाने वाली होती है। ऐसे मनुष्य का चिंतन सदैव उच्च विचार की ओर अग्रसर होता है। इसके उल्ट अगर मनुष्य की प्रवृति तामसिक है तो उसकी ऊर्जा अधोगामी यानि निम्न स्तर की होती है, उसका चिंतन एवं विचार Low level के होंगें।  

मानव  शरीर ईश्वर का अद्भुत वरदान है। गर्भ की उत्पत्ति नाभि से ही होती है और गर्भ को  माता के साथ जुडी हुई गर्भनाल से पोषण मिलता है। गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप मानव की रचना होती है। नाभि के द्वारा सभी 72000 नाड़ियों का जुड़ाव  गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभि को मानव शरीर का एक अद्भुत भाग माना गया है।

जिस प्रकार कोई फल एक डंठल के द्वारा वृक्ष से जुड़ा होता है और फल बनाने के लिए वृक्ष की जड़ों से सम्पूर्ण संसाधन  उसी डंठल के द्वारा फल में आता है,उसी प्रकार गर्भ में शिशु के शरीर के विकास के लिए सम्पूर्ण तत्व और संसाधन नाभि से जुड़ी  लगभग 2 फुट लम्बी गर्भनाल (umbilical cord) के द्वारा माँ के शरीर से आता है। डंठल से फल तोड़ने के बाद फल में नाभि की तरह एक छोटा गड्ढा सा शेष रह जाता है, उसी तरह गर्भनाल अलग हो जाने पर नाभि के रूप में एक छोटा गड्ढा सा शेष रह जाता है। 

नाभि ही वह प्रवेश द्वार है, जिससे जन्म से पहले हमारे शरीर के लिए आवश्यक समस्त संसाधन माँ के गर्भ से आता है। मणि का अर्थ होता है मणि, रत्न यां धन दौलत। मणिचक्र /नाभिचक्र के द्वारा मनुष्य जीवन के सभी भौतिक संसाधन ब्रह्माण्ड से आकर्षित होते हैं । 

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नाभि को मनुष्य जीवन का ऊर्जा केंद्र कहा गया है। कहा जाता है  कि मृत्यु के बाद भी मनुष्य की नाभि प्नाभि में 6 मिनट तक प्राण का वास रहता है। नाभि की महिमा में यहाँ तक कहा गया है की नाभि का स्थान दिमाग से भी अधिक महत्वपूर्ण  है। नाभि ही “शरीर का प्रथम दिमाग” होता है जिसे प्राणवायु से संचालित करती  है।

नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है, उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को “कर्मयोगी”  कहते हैं।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं, उनमें से एक है नाभि स्पंदन से रोग की पहचान। नाभि स्पंदन से यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर का कौन-सा अंग खराब हो रहा है या रोगग्रस्त है। नाभि  में गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से अनेकों  शारीरिक दुर्बलताओं  का उपाय हो सकता है। जब हम जानते हैं कि नाभि के साथ 72000 नाड़ियां जुड़ी हैं जो मानव शरीर के एक-एक अंग तक जा रही हैं तो ऐसा कहना कोई अंधविश्वास नहीं है। हमारी नाभि  को मालूम रहता है कि हमारी कौन सी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है। जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हमारी दादी नानी  हिंग और पानी या तेल  का मिश्रण उसके पेट और नाभि  के आसपास लगाती थीं  और दर्द तुरंत गायब हो जाता था। बस यही काम तेल का है ।

नाभि के संचालन और इसकी चिकित्सा के माध्यम से अनेकों  प्रकार के रोग ठीक किए जा सकते हैं जिनमें से कुछ एक का निम्नलिखित विवरण दिया गया है : 

1. आँखों का शुष्क हो जाना, दृष्टि का  कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय: 

सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द घी और नारियल का  तेल नाभि  में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।

2. घुटने के दर्द में उपाय:

सोने से पहले तीन से सात बूंद इरंडी (Castor oil) का तेल नाभि  में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।

3. शरीर में कंपन तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद सरसों का तेल नाभि  में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।

4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभि  में डालें।

5. आपके चेहरे पर मुँहासे है तो एक रुई का छोटा सा टुकड़ा लीजिए और उसे नीम के तेल में भिगोकर नाभि पर लगा लीजिए, ऐसा कुछ दिन कीजिए. आपके मुहांसे  ठीक हो जायेंगे।

6. अगर आपके होंठ फटे हुए हैं काले पड़ गए है तो सुबह नहाने से पहले सरसों का तेल नाभि में लगाएं , फिर नहाएं, अगर आप ऐसा करते हैं तो आपके होंठ कभी नहीं फटेंगे।

7. अगर आप अपने चेहरे का ग्लो और चमक वापिस पाना चाहते हैं तो अपनी नाभि में बादाम का तेल लगाएं।

8. कई बार चेहरा कठोर हो जाता है, अक्सर ऐसा मौसम में हुए बदलाव के कारण होता है, चेहरे को मुलायम रखने के लिए नाभि में शुद्ध देशी घी लगाएं।

9. अगर चेहरे पर दाग़ धब्बे हो गए है तो उनको मिटाने के लिए नाभि में नींबू का रस लगाएं।

10. महिलाओं को पीरियड्स में बहुत ही परेशानीयों से दो चार होना पड़ता हैं। अगर किसी भी लड़की को पीरियड्स के दिनों में बहुत ही ज्यादा दर्द होता हैं तो वो अपनी नाभि के जरिये अपने पीरियड्स के दर्द को मिटा सकती हैं। एक रुई में थोड़ी सी ब्रांडी भिगोकर  अपनी नाभि में लगा लेना चाहिए,थोड़ी ही देर में दर्द बिल्कुल  खत्म हो जायेगा।

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पिछले लेख  को 431  कमेंट मिले, 10  संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।


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