वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

2024 की सर्जरी के बाद ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रकाशित होने वाला सातवां   Full length लेख- रामानंद सागर एवं गुरुदेव के मिलन के पल 

आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है और आज प्रस्तुत किया गया ज्ञानप्रसाद लेख हमारी  रिसर्च के आधार पर,एक फेसबुक पोस्ट पर आधारित है  जिसमें प्रसिद्ध बॉलीवुड डायरेक्टर स्वर्गीय  रामानंद सागर और परमपूज्य गुरुदेव  के मिलन के अविस्मरणीय पल वर्णित किये गए हैं। श्री चिन्मय देशपांडे,पंडित देवेन्द्र भारद्वाज और श्यामाक्ष गोस्वामी जी की यह  रचना फेसबुक पर 15 अप्रैल 2020 को प्रकाशित हुई थी। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर 22 जनवरी 2024 को प्रकाशित हुई रचना को कुछ एडिटिंग के साथ पुनः प्रकाशित करने में हम स्वयं को अति सौभाग्यशाली मानते हैं क्योंकि अमृतरूपी ऐसी रचनाएँ जितनी बार भी प्रकाशित की जाएँ लाभदायक ही रहेंगीं   

15 अप्रैल 2020 की  रचना अनेकों बार अलग-अलग सोशल मीडिया साइट्स पर प्रकाशित एवं शेयर हुई और सभी ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार इस पोस्ट में तोड़ मरोड़ किया। इसी पोस्ट पर आधारित कई वीडियोस भी बनीं, कुछ कम्पलीट, कुछ incomplete, किसी में आवाज़ भी गायब हुई है लेकिन कोई परवाह नहीं की गयी, किसी ने अपनी तरफ से ही कुछ का कुछ कह दिया, 2023 में एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई, हमने इस पुस्तक के भी कुछ पन्ने  पढ़े, दैनिक जागरण आगरा  में प्रकाशित 17 जनवरी 2024 की न्यूज़ आइटम भी देखी,बहुत कुछ हुआ। इसी स्थिति को देखते हुए हमने सावधानी बरतने का प्रयास किया है कि कहीं हमसे  भी  कुछ गलत न प्रकाशित हो जाए। इतनी सावधानी के बावजूद भी अगर कुछ गलत प्रकाशित हुआ होगा तो वह अनजाने में ही हुआ होगा जिसके लिए हम आप सबके पढ़ने से पहले ही क्षमाप्रार्थी हैं।

आज आदरणीय अरुण वर्मा जी ने उनकी अनुपस्थिति में घर पर हो रहे गायत्री यज्ञ के कुछ क्लिप्स भेजे हैं जिन्हें आने वाले शनिवार को साप्ताहिक विशेषांक में प्रकाशित करने की योजना है। हमारे स्वास्थ्य की गाड़ी धीरे-धीरे अग्रसर हो रही है और जहाँ तक सम्भव हो पायेगा गुरु चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करने का प्रयास करेंगें। 

अब चलते हैं आज के दिव्य ज्ञानप्रसाद लेख की ओर।     

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ऐसा नहीं है कि श्री रामानंद सागर ने “रामायण धारावाहिक” से पहले सिनेमा जगत में कदम नहीं रखा था। उससे पहले भी वह अनेकों बेहतरीन फिल्में, लोकप्रिय धारावाहिक आदि का सफलतापूर्वक निर्माण कर चुके थे। ऐसा भी नहीं है कि रामायण पहला और अंतिम धार्मिक धारावाहिक था। उससे पहले और बाद में भी अनेकों व्यक्तियों द्वारा धार्मिक सिनेमा का निर्माण और प्रदर्शन किया गया। तो फिर ऐसा क्या था जो “उस रामायण” को भव्य और दिव्य बनाता है । श्री चिन्मय देशपांडे लिखते हैं कि सागर जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें कई बार यह अहसास हुआ कि 

इस दैवीय योजना के लिए निम्नलिखित विवरण पढ़ने की आवश्यकता है : 

1972 में रिलीज़ हुई  “ललकार” फिल्म  की शूटिंग के लिए लोकेशन की तलाश करने  रामानंद सागर साहब अपने बेटे प्रेम सागर के साथ गुवाहाटी (असम) आए थे। जब वह सुप्रसिद्ध कामाख्या  मन्दिर में देवी के दर्शन करने के बाद परिक्रमा कर रहे थे तो एक छोटी बच्ची उनके पास आई और उनसे कहा कि पेड़ के नीचे  एक साधु महाराज आपको बुला रहे हैं । जब सागर साहब अपने बेटे संग उधर गए तो प्रेम सागर ने पीछे मुड़कर उस बच्ची को देखा कि वह किधर जाती है, तो पाया कि वह गायब हो चुकी थी। जब सागर साहब उस पेड़ के पास  आए तो वहां एक साथ कई साधु महाराज चबूतरे पर बैठे हुए थे। सागर साहब ने साधुओं द्वारा बुलाए जाने का प्रयोजन पूछा तो साधु शांत रहे।  सागर साहब ने कोई सेवा अथवा मदद के लिए पूछा लेकिन  साधुओं में से किसी ने कुछ नहीं कहा तो सागर साहिब  विनम्रता से आज्ञा लेेकर वापस चले आए।

रामानंद सागर और प्रेम सागर इस घटना को भूल चुके थे लेकिन 1980-81 के लगभग  एक और घटना हुई। 

इस समय वह हिमालय में शूटिंग कर रहे थे, अचानक मौसम खराब हो गया और उन्हें पैक अप करना यानि शूटिंग बंद करनी पड़ी। हिमालय क्षेत्र में  पास ही एक साधु की कुटिया थी, रामानंद सागर  ने यूनिट की महिलाओं और पुरुषों के लिए शरण मांगने हेतु एक व्यक्ति को कुटिया में साधु महाराज के पास भेजा। जब साधु महाराज को बताया गया कि हम कुटिया में कुछ समय बिताना चाहते हैं तो साधु महाराज यह सुनकर  आगबबूला हो गए। साधु महाराज ने चिल्ला कर उस व्यक्ति को  बाहर निकाल दिया लेकिन जब साधु महाराज  ने उस व्यक्ति से पूछा कि फिल्म डायरेक्टर कौन है और उन्हें बताया गया, रामानन्द सागर तो यह नाम सुनते ही साधु महाराज के व्यवहार में परिवर्तन हो गया। साधु महाराज ने  सबको सम्मानपूर्वक  कुटिया में बुलाया और जड़ी-बूटी का काढ़ा भेंट किया। आवभगत के बाद जब साधु महाराज ने  सागर साहब से गुवाहाटी  की घटना के बारे में पूछा तो सागर साहब आश्चर्यचकित हो गए कि हिमालय के इन साधु महाराज का  गुवाहाटी की उस घटना से क्या कनेक्शन है।  साधु महाराज  ने कहा कि जिस बच्ची ने उन्हें पेड़ के तले साधु महाराज के पास भेजा था वह “स्वयं एक देवी” थी और वह साधु महाराज महावतार बाबाजी हैं जो किसी को दर्शन नहीं देते। सागर साहब को आज  दर्शन इसलिए दिए हैं कि वह आगे चलकर रामायण सीरियल  का निर्माण करने वाले हैं।

यहाँ यह जानना आवशयक है  कि पहले रामानंद सागर  जी रामायण नहीं महाभारत बनाना चाहते थे। रामानंद सागर को  कई बार स्वप्न में और एकांत में “एक तेजस्वी साधक” के दर्शन होते थे जिसका चेहरा  कुछ धुंधला-धुंधला दिखता था। इसके बाद उनके मन में महाभारत को छोड़कर रामायण बनाने का भाव प्रकट हुआ।

1987 में रामानन्द सागर हरिद्वार स्थित युगतीर्थ शांतिकुंज में हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से भेंट करने आए। गुरुदेव के कक्ष की ओर जाते समय सीढ़ियों पर चढ़ते समय सागर जी को गुरुदेव में उसी दिव्यरुपी  साधक के  दर्शन हुए, जिसे वे स्वप्न और एकांत में कई बार देख चुके थे। गुरुदेव  से भेंटवार्ता करने के पश्चात रामानंद जी ने  उन्हें अपना प्रेरणास्रोत स्वीकारते  हुए कहा, 

उसके बाद रामायण पर चर्चा करने के बाद गुरुदेव ने रामानन्द सागर से कहा,

1993 में रिलीज़ हुए 221 एपिसोड वाले सीरियल “श्री कृष्णा” से हर कोई परिचित है।  

तब रामानंद सागर बेहद निराश हो गए।  पक्षियों को दाना खिलाना उनका प्रतिदिन का नियम था। वह मुंबई स्थित अपने घर “सागर विला” की छत पर कबूतरों और पक्षियों को सुबह दाना डालते थे। एक दिन सुबह परेशान रामानंद सागर,भविष्य की अनिश्चितता में घिरे छत पर खड़े होकर पक्षियों को दाना खिला रहे थे कि उनके विला में एक साधु महाराज  का  आगमन हुआ। उनके पुत्र प्रेम सागर इस घटना का वर्णन करते हुए अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि वह साधु महाराज अत्यन्त तेजस्वी दिखाई पड़ रहे थे। साधुओं का दान मांगने आना सागर परिवार के लिए कोई नई बात नहीं थी लेकिन वह साधु महाराज  कुछ अलग सी  तेजस्विता लिए हुए थे।  सागर साहब के अनुनय करने पर भी उन साधु महाराज  ने कुछ भी दान आदि  नहीं लिया और सागर साहिब को  संबोधित करके कहा कि

इतना कहकर वह साधु महाराज बिना कुछ लिए वहां से चले गए ।

जब रामानंद सागर शांतिकुंज में हमारे गुरुदेव से मिलने आए तो गुरुदेव के  मुखारविंद से उन  साधु महाराज के बारे में सुनकर रामानन्द सागर बड़े अचंभित रह गए थे। बेटे प्रेम सागर ने बताया कि पापा ने कहा था कि 

1987 में ही रामानंद सागर दूसरी बार गुरुदेव से रामायण सीरियल  के बारे में मार्गदर्शन लेने आए तो गुरुदेव ने कहा था कि 

प्रेम सागर जी लिखते हैं कि उसके बाद पापाजी का मन उत्साह और आनंद से भर गया था। इस प्रकार देव शक्तियों द्वारा वह सम्पूर्ण कार्य संपन्न कराया गया था। उसके बाद “भारतीय धार्मिक सिनेमा” में रामायण और श्रीकृष्ण दोनों धारावाहिक एक अनुपम कृति और लोगों में धार्मिक भावना के जागरण में मील का पत्थर साबित हुए। 

यह अतिशयोक्ति न होगी यदि कहा जाए कि रामानंद सागर कृत रामायण और श्रीकृष्ण जैसे अद्भुत और दिव्य निर्माण न तो हुए हैं और न ही हो सकेंगे। इन धारावाहिकों के बाद सनातन संस्कृति से जुड़े धारावाहिकों और फिल्मों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी। इनके माध्यम से भारतीय जनमानस का अध्यात्म के प्रति न केवल रुझान और झुकाव बढ़ा, बल्कि उनकी समझ और ज्ञान में भी बढ़ोतरी हुई।

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शुक्रवार को प्रकाशित हुई वीडियो  को केवल  219  कमेंट मिले, 5 संकल्पधारिओं ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान की हैं। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।


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