वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

2024 की सर्जरी के बाद ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रकाशित होने वाला पांचवां Full length लेख-श्री रामप्रकाश जेसलानी जी एवं उनकी पत्नी श्रीमती शालिनी जेसलानी की कथा

हमारी सर्जरी के कारण वर्ष 2024 के अंतिम पल ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार निर्धारित टाइम टेबल की  अवहेलना करते बीत रहे हैं जिसके लिए हम अपने समर्पित साथिओं से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। 

कल वाला शनिवार दिसंबर माह का अंतिम शनिवार है, हमारे साथिओं ने हर माह का अंतिम शनिवार हमारे लिए फिक्स किया हुआ है जहाँ हम स्पेशल सेगमेंट के माध्यम से  अपने ह्रदय को खोल कर रखने का प्रयास करते हैं। यह शनिवार वर्ष 2024 का भी अंतिम शनिवार है। अब तो हम अपने ह्रदय की बात 25 जनवरी 2025 को ही कर पायेंगें। 

पूर्वप्रकाशित लेखों का पुनः प्रकाशन करते हुए जिस लेख को आज प्रस्तुत किया जा रहा है वोह ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से 28 मार्च 2021 को प्रकाशित हुआ था। पशुपति बिस्कुट कंपनी कानपूर के श्री रामप्रकाश जेसलानी जी एवं उनकी पत्नी श्रीमती शालिनी जेसलानी की कथा  इतनी आश्चृर्यजनक ,अविश्वसनीय परन्तु सत्य है कि हम परम पूज्य गुरुदेव की शक्ति पर एक बार फिर मोहर लगा सकते हैं। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं द्वारा हमारे स्वास्थ्य लाभ के लिए किए जा रहे सभी प्रयास एवं हमारे गुरु की शक्ति से हमारे अंदर उठ रही आंतरिक ऊर्जा के प्रवाह के  शब्दों में वर्णन करना असंभव है। सभी का बहुत बहुत धन्यवाद् करते हैं। व्हाट्सप्प पर प्राप्त हुए अनेकों संदेशों से यह भी पता चल रहा है कि बहुत सारे साथी हमारे लेखों को Dustbin में फेंक कर Garbage भी कर रहे हैं। ऐसा हमें विवशतावश इसलिए लिखना पड़  रहा है कि इतने बड़े “Eye catching शीर्षक” के बावजूद उन्हें अभी तक हमारी  स्थिति का भी ज्ञान नहीं है। करबद्ध निवेदन है कि मेरे गुरु का इतना बड़ा अनादर न किया जाये, गुरु साहित्य ही मेरा साक्षात् गुरु है।            

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कानपुर के श्री रामप्रकाश जेसलानी जी कहते हैं कि मैं, सन् 1995 में गायत्री परिवार के सम्पर्क में आया। सन् 1998 में मुझे विचित्र प्रकार की तकलीफ हुई। मुझे अचानक ही खून की उल्टियाँ होने लगीं। मेरा पूरा परिवार घबरा गया कि अचानक यह क्या हो गया? दिन में चार- पाँच बार मुझे खून की उल्टी हो जाती थी। मेरा मुँह कड़वा होता और एकाएक लगभग आधा गिलास खून निकल जाता। मेरी तकलीफ देखकर हमारे तीनों बच्चों ने पूजा घर में अनवरत् गायत्री महामंत्र का जप प्रारंभ कर दिया। यह क्रम चलते हुए जब तीन दिन हो गये तो मुझे लगने लगा कि अब शायद मेरा अंतिम समय आ गया है। मैंने पत्नी से कहा कि मुझे अस्पताल में भर्ती करा दो, शायद खून की जरूरत पड़े। हमने हमारे पड़ोसी मित्र जो कि डॉक्टर हैं, उनसे चर्चा की। उन्होंने मेरे खून की जाँच की। मेरा हीमोग्लोबिन ठीक था। वह हैरान हो कर कहने लगे  ऐसा कैसे हो सकता है? इतने दिन से खून की उल्टी हो रही है और हीमोग्लोबिन नार्मल है? मुझे खून की उल्टियाँ बराबर हो रही थीं, सो अगले दिन हम दिल्ली में एम्स अस्पताल में दिखाने गये।

इस बीच हमारे घर पर अखण्ड जप भी चलता रहा। कानपुर के गायत्री परिवार के बहुत से भाई बहनों ने अपने घर पर ही मेरे लिये जप प्रारंभ कर दिया। शक्तिपीठ पर भी मेरी जीवन रक्षा के लिये जप होने लगा।

मुझे एम्स में भर्ती करा दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाक्टर ने मेरा ब्रॉन्कोस्कोपी टैस्ट किया। सप्ताह भर बाद रिपोर्ट आई, पर रिपोर्ट के आने के बाद मुझे दुबारा टैस्टिंग के लिये बुलाया गया और दुबारा मेरे टैस्ट हुए। दुबारा टेस्ट करने का करण पता करने पर मालूम हुआ, दोनों ही बार मेरी रिपोर्ट नार्मल थी।

वहाँ के सबसे बड़े डाक्टर ने मेरी सभी रिपोर्ट पर एम्स के बड़े डाक्टरों की मीटिंग बुलाकर चर्चा की, फिर मुझसे मेरी सारी तकलीफ के बारे में चर्चा की। मेरी सारी जाँच रिपोर्ट नार्मल थी, अतः डाक्टरों ने मुझे स्वस्थ घोषित कर दिया।

लगभग 24 दिन तक मुझे खून की उल्टियाँ आती रहीं फिर अकस्मात् 24वें दिन खून की उल्टियाँ बंद हो गईं। किन्तु मेरी सब रिपोर्ट नार्मल कैसे आई। 

क्योंकि जैसे ही मेरी तबीयत बिगड़ी तो हमारे परिवार में सबने मिलकर अखण्ड जप प्रारंभ कर दिया। जेसलानी जी कहते हैं कि मैं अन्तर्हृदय से समझ रहा था कि

उसके बाद मैं सक्रिय हो गया। जो कोई भी नया आफिसर कानपुर आता, मैं उन्हें दो गायत्री मंत्र की कैसेट देता था। एक घर में सुनने के लिए, दूसरी वाहन में। कुछ वर्षों में समर्पण का भाव परिपक्व हुआ, और अपनी “पशुपति बिस्किट” की पूरी फैक्टरी बंद करके फरवरी, 2006 में हरिद्वार, शान्तिकुञ्ज में सेवा के लिए आ गया। सभी मित्रों, सम्बन्धियों ने कहा, ‘तुम पागल हो गये हो क्या? दिमाग सरक गया है क्या? जो तुम अपनी जमी जमायी फैक्टरी बन्द कर रहे हो।” लेकिन मेरी अंतर्-स्थिति  को कोई कहाँ समझ सकता था? और जब परमपूज्य गुरुदेव का बुलावा और आदेश आया है तो उसे कौन रोक सकता है। 

फरवरी 2006 में हम हरिद्वार आ गये और शान्तिकुञ्ज में अपना पूरा समय देने लगे। दो- तीन माह बाद हम अपनी कम्पनी के सेल टैक्स- इन्कम टैक्स के मामले निपटाने के लिए कानपुर गये। 5 जून 2006 को हम अपने सब मामले निपटाकर, अपनी कार द्वारा सपत्नीक हरिद्वार लौट रहे थे कि दिन में 12:30 बजे के लगभग अलीगढ़ से 15 किलोमीटर  पहले जशरथपुर कस्बे में हमारी कार का एक्सीडेण्ट हो गया। इस जबर्दस्त एक्सीडेंट में मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि हमें पूज्यवर ने ही नया जीवन दिया है।

मैं गाड़ी चला रहा था और मेरी पत्नी मेरे बगल में बैठी थी। एक टाटा सफारी गाड़ी तीव्र गति से सामने आ रही थी। उस गाड़ी ने हमारी गाड़ी में जोरदार टक्कर मारी। हमारी गाड़ी एकदम पिचक गयी और हम दोनों को काफी गंभीर चोटें आयीं। टाटा सफारी का ड्रायवर अपनी गाड़ी लेकर फरार हो गया। मैं तो एक्सीडेंट होते ही बेहोश हो गया। मेरी पत्नी को कुछ- कुछ होश था, लेकिन  हम दोनों गाड़ी में बुरी तरह फँस गये थे। अलीगढ़ जिले में उस दिन साम्प्रदायिक दंगों की वजह से कर्फ्यू  लगा हुआ था। सड़क पर एकदम सन्नाटा था, न कोई आदमी कहीं नजर आ रहा था, न ही कोई गाड़ी आ जा रही थी। इतनी देर में मेरी पत्नी ने देखा कि पूज्य गुरुदेव उनके पास खड़े हैं। गुरुदेव को वहाँ देखकर वह आश्चर्यचकित रह गयी, और अर्धमूर्छित सी अवस्था में वह गुरुदेव को बस देखती रही। उसके आस- पास जो कुछ हो रहा था, वह सब देख पा रही थी।

मेरी पत्नी ने  देखा कि गुरुदेव कार के बाहर लगातार टहल रहे थे, इतने में दो व्यक्ति आये और उन्होंने हम दोनों को हमारी कार का दरवाजा तोड़कर बाहर निकाला। मेरी जेब में लगभग 20,000 रु. थे। वो भी उन्होंने निकाले। मैं 3 सोने की अंगूठियाँ पहने हुए था, वे उतारी। फिर उन्होंने मेरी पत्नी के हाथों से चूड़ियाँ एवं अन्य गहने उतारे। साथ ही मेरी पत्नी से कहा कि बहन, किसी भी बात की चिन्ता मत करना। आपका एक भी रुपया व गहना गुम नहीं होगा। कुछ और भी है, तो हमें दे दो। आपका कुछ भी सामान गुम नहीं होगा।  इस बात को उन्होंने 3-4 बार दुहराया ताकि मेरी पत्नी को विश्वास हो जाये। मेरी पत्नी ने आँखों से इशारा करके बताया कि मेरे पति की ड्राइविंग सीट के नीचे सामान रखा है। उसमें एक अखबार में लपेटे हुए 4 लाख रुपए  रखे थे। उन दोनों ने वह धन भी निकाल लिया। मेरी पत्नी का पर्स भी सँभाला। गहने और पैसे मिलाकर लगभग 8 लाख रुपए  की सम्पत्ति थी।

फिर उन्होंने हम दोनों को अपनी गाड़ी में लादा। उस समय तक पूज्य गुरुवर बराबर मेरी पत्नी को हमारे पास खड़े दिखाई देते रहे। जब हम लोगों को वह व्यक्ति गाड़ी में लाद कर चल दिये, तो गुरुवर अन्तर्ध्यान हो गये। गुरुवर के अन्तर्ध्यान होने तक मेरी पत्नी ने उन्हें देखा। उसके बाद वह कब बेहोश हो गई, उसे नहीं पता। उन लोगों ने हमारे मोबाइल से ही हमारे सब रिश्तेदारों व मित्रों को हमारे ऐक्सीडेंट की सूचना भी कर दी।

मेरी दिल्ली वाली बेटी ने उन लोगों से कहा कि हम आपके बहुत- बहुत ऋणी हैं। मैं तुरंत पहुँच रही हूँ लेकिन  मुझे पहुँचने में कम से कम तीन घंटे लगेंगे, तब तक आप कृपाकर वहीं रहियेगा। हमसे मिले बिना नहीं जाइयेगा। वह लोग बोले कि हम लोग मुस्लिम हैं और यहाँ दंगा चल रहा है। हम दोनों पुलिस के किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते। मेरी बेटी ने जब बहुत अनुनय- विनय किया, तो उन लोगों ने कहा कि ठीक है, तुम्हारे आने तक हम तुम्हारे मम्मी- पापा की देखभाल कर रहे हैं लेकिन  हम तुमसे मिलेंगे नहीं। इसके बाद उन लोगों ने हमारा सब सामान, गहने व पैसे आदि नर्सिंग होम के डॉक्टर को दे दिये व कहा, “डॉ. साहब यह इन दोनों घायलों की अमानत है। इनके बेटी- दामाद कुछ देर में आने वाले हैं, आप कृपाकर सब सामान उन्हें दे दीजियेगा।” 

जैसे ही हमारी बेटी व दामाद नर्सिंग होम में पहुँचे, वैसे ही वे लोग दूसरे दरवाजे से निकल गये। हमारी बेटी व दामाद ने उन्हें बहुत खोजा लेकिन  वे कहीं नहीं मिले।

हमें आज भी यही आभास होता है कि वह दोनों व्यक्ति और कोई नहीं पुज्य गुरुदेव के भेजे देवदूत ही होंगे जिन्हें पूज्यवर ने हमें अस्पताल तक पहुँचाने का माध्यम बनाया। इसीलिये वे हमारे बच्चों के पहुँचते ही वहाँ से चले गये। कोई सामान्य व्यक्ति होते, तो हमारे बच्चों से अवश्य मिलते।

शाम तक हमारे सभी परिजन अलीगढ़ पहुँच गये और हमारी यथोचित चिकित्सा व्यवस्था हो गई। हमें इतनी गंभीर चोटें लगी थीं कि हमारे बचने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। परंतु गुरुदेव ने हमारे चारों ओर सुरक्षा चक्र बना दिया था, तो भला मृत्यु कैसे पास फटकती? हम दोनों को अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 28 दिन तक वहाँ भर्ती रहे। पत्नी और मेरे, दोनों के पैरों में रॉड डालनी पड़ी, कई ऑपरेशन हुए। हड्डियों के छोटे- छोटे टुकड़े प्लेट में रखकर जोडे गये फिर वह प्लेट अन्दर डाली गयी। कई महीने हमें स्वस्थ होने में लग गए। 

1 जून 2008 से मैंने शांतिकुंज में फिर से  अपना समयदान आरम्भ कर दिया। 

जय गुरुदेव


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