वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनुष्य शरीर में नाभि का महत्व -पार्ट 1

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के संकल्पित साथी इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि इस परिवार में सोमवार का दिन एक अद्भुत सौभाग्य लेकर आता है। सप्ताह का प्रथम दिन होने के कारण और  रविवार की छुट्टी होने के कारण, इस दिन सभी साथी, परम पूज्य गुरुदेव के बच्चे एवं गुरुकक्षा के विद्यार्थी संचित ऊर्जा लेकर गुरुकुल में प्रवेश करते हैं। इस संचित ऊर्जा से गुरुकुल के  कण-कण का ऊर्जावान होना स्वाभाविक है क्योंकि गुरुदेव का प्रत्येक शिष्य उत्साहित एवं उत्सुक होता है कि आज कौन से नए विषय का शुभारम्भ हो रहा है। साथिओं की ओर से ऐसा उत्साह देखकर, हमारा स्वयं का उत्साह कई गुना बढ़ जाता है जो  हमें और अधिक समर्पण के साथ गुरुचरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने को प्रेरित करता है। हमारे  इस उत्साहवर्धन सहयोग के लिए हम अपने साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। 

प्रत्येक सोमवार हमारे लिए एक विशेष सौभाग्य लेकर आता है लेकिन इस सप्ताह का शुभारम्भ हमारे लिए (व्यक्तिगत हमारे लिए) एक दुर्भाग्य लेकर आ रहा है है। रुकिए, रुकिए ,ऐसी कोई बात नहीं है। दुर्भाग्य शब्द  शायद इतना Suitable न हो लेकिन हमारी स्थिति के अनुसार हमें और कोई शब्द फिट होता नहीं दिखा।  बात यूँ है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में इस सप्ताह का समापन बुधवार को ही होने वाला है, उसके बाद फिर कब Resume होता है केवल समय ही बता पायेगा।

हम दुर्भाग्य का शब्द इसलिए प्रयोग कर रहे हैं कि “अपनों” से बिना संपर्क किये रहना दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है।  नीरा जी अवश्य  ही अपडेट करती रहेंगी लेकिन कुछ न कुछ कमी तो रहेगी जो केवल हमारे स्वयं आने पर ही पूरी हो पायेगी।  

जिस समय आप बुधवार की मंगलवेला में ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कर रहे होंगें, हम अपना सामान  पैक करके Knee surgery के लिए हॉस्पिटल जाने की तैयारी कर रहे होंगें। हमारे साथिओं को स्मरण होगा कि हमारे दाएं घुटने की सर्जरी 2020 में हुई थी और अब बुधवार 27 नवंबर को बाएं घुटने की सर्जरी होना निश्चित हुआ है। अगर दोनों आँखों की सर्जरी को भी गिन  लिया जाये तो वर्ष 2024 की यह तीसरी सर्जरी है। आँखों की सर्जरी के बाद  तो हमने एक दिन के बाद ही ज्ञानरथ परिवार में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा दी थी लेकिन घुटने की सर्जरी Major सर्जरी होती है, इसमें समय तो लगेगा ही। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में तीन दिन पहले अपडेट करने का उद्देश्य केवल नियमितता, नियतता आदि मानवीय मूल्यों का पालन करना ही है। 

आइये देखें आज आरम्भ हो रहे किस गुरुज्ञान विषय  की भूमिका प्रस्तुत की जा रही है। 

जून 1993 की अखंड ज्योति में प्रकाशित लेख  “रिद्धि सिद्धि का द्वार  है नाभिचक्र यानि सूर्यचक्र” ने हमें इतना आकर्षित किया कि हमने कुछ  दिन पूर्व  अपनी लाइब्रेरी में  सेव करके रख लिया था।  कई बार पढ़ा, समझने का प्रयास किया, इधर उधर के Related विषयों को भी खंगाला और अब इस स्थिति में  हैं कि परिवार में इस विषय पर चर्चा की जाये। 

विज्ञान और अध्यात्म (आत्मा का अध्ययन) की विपरीत विचारधारा ने इतना Confusion डाला हुआ है कि ऐसे विषयों को समझने के लिए बड़े-बड़े शिक्षित लोगों को भी कठिनाई सहन करनी पड़ती है, हम सब तो आरंभिक कक्षा के विद्यार्थी हैं। विज्ञान को तो “आत्मा”  के अस्तित्व पर भी शंका है क्योंकि वह उसी पदार्थ पर विश्वास करता है जो दिखाई देता है, आत्मा दिखाई तो नहीं देती है। लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो दिखाई नहीं देता उसका अस्तित्व ही नहीं है। ईश्वर भी तो दिखाई नहीं देते तो क्या ईश्वर का भी अस्तित्व नहीं है ? अस्तित्व के होने  और न होने के, कभी न समाप्त  होने वाले युद्ध ने “नाभि की शक्ति” पर अनेकों  प्रश्नचिन्ह खड़े किये हैं , आने वाले ज्ञानप्रसाद लेखों में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास रहेगा। 

नाभि को सूर्यचक्र,ब्रह्मस्थान, मणिपुर चक्र आदि कई नामों से प्रयोग किया गया है लेकिन “नाभि” और “नाभि चक्र” एक नहीं हैं, दोनों  में अंतर् है। पेट पर  दिखने वाले Belly button को नाभि कहते हैं लेकिन “नाभिचक्र” शरीर के  अदृश्य Energy centers में से एक है। यह मेरुदंड (Spinal cord) के नीचे स्थित होता है। 

योगशास्त्रों में नाभि को सूर्यचक्र कहा है और  उसे उतना ही महत्व दिया गया है जितना वैज्ञानिक लोग  Atom  में न्यूक्ल्यिस को और  सौरमण्डल में सूर्य को देते आये हैं । हो सकता है शरीर शास्त्री इसे पूरी तरह न समझ पाने के कारण उतना महत्व न दें लेकिन  आत्म विज्ञानियों के लिए इसका चुम्बकत्व आजीवन बना रहता है। अध्यात्म विद्या के मर्मज्ञों के अनुसार सबसे पहले मानवीय प्राण नाभि केन्द्र से स्पन्दित ( Vibrate)  होकर हृदय से टकराता है। हृदय और फेफड़ों में रक्त शोधन करके सारे शरीर में संचार करने में सहायता करता है।

लेकिन यह तो प्राण की स्वाभाविक क्रिया भर है। जब उसे मानसिक संकल्प एवं अंतर्मन की चेतना (अंतश्चेतना)  के साथ जोड़ दिया जाता है तो वह अधिक चेतन और अधिक सक्ष्म  होकर “विशेष शक्ति सम्पन्न” बन जाता है। 

अध्यात्म के इस महत्वपूर्ण तथ्य को समझने के लिए हमें बाल्यकाल के एक बहुचर्चित खेल का सहारा लेना पड़ेगा जिसे हम सबने कभी न कभी अवश्य खेला होगा। गुब्बारे के इस खेल का संक्षिप्त सा  विवरण निम्नलिखित पंक्तियों में दिया गया है :   

हम सब जानते हैं कि हमारे आसपास ,चारों तरफ प्रवाहित हो रही हवा में इतनी अधिक शक्ति नहीं होती जितनी कि गुब्बारे के अंदर भरी हवा में होती है।अक्सर देखा गया है कि जब उसी हवा को  किसी गुब्बारे में बंद करके छोड़ा जाता है तो वह गुब्बारा ऊर्ध्वगामी बनकर, ऊपर उड़ जाता है। अगर उस गुब्बारे में Helium यां Hydrogen गैस भर दी जाती है तो वह और अधिक ऊंचाई तक उड़ता  रहता है।  इस प्रयोग से देखा जा सकता है कि गुब्बारे में बंद वायु, स्वतंत्र वायु की तुलना में अधिक शक्तिशाली बन जाती है। हवा से भरे गुब्बारे के फटने पर आवाज़ का आना भी इसकी शक्ति का ही प्रमाण है।इसी से मिलता जुलता बाल्यकाल का एक और खेल कागज़ के लिफाफे को आग लगा कर उड़ाना भी होता रहा है।   

जिस प्रकार गुब्बारे में बंद हवा अधिक शक्तिशाली होती है, उसी प्रकार जब “मन” को शुभ संकल्पयुक्त “चेतना” से भरकर प्राण से जोड़ दिया जाता है, तो उसका स्वरूप उच्चस्तरीय  “आध्यात्मिक शक्ति” में बदल जाता है।

नाभि को  “प्राण का उद्गम (Origin)”,अर्थात Central point  केवल अध्यात्मवादी ही नहीं मानते वैज्ञानिक भी इस तथ्य से सहमत हैं। माँ के पेट (गर्भाशय -Uterus)  में भ्रूण (Foetus) का पोषण उसके शरीर से होता है। एक नन्हें से बुलबुले से अपने जीवन का शुभारम्भ करने वाला भ्रूण तेज़ी  से बढ़ना प्रारम्भ करता है। निर्वाह एवं अनवरत पोषण के लिए उसे जिस भंडार की आवश्यकता है, वह अनुदान शिशु को माता के शरीर द्वारा अपनी “नाभि के मुख” से मिलता है। माँ द्वारा खाया जाने वाला आहार रक्त बन कर निरंतर भ्रूण का विकास करता जाता है, यह विकास यात्रा तब तक अनवरत चलती रहती है जब तक शिशु इस संसार में आँखें नहीं खोल लेता। जन्म के समय जिस ट्यूबनुमा पाइप (Umbilical cord)  को काटकर माता व शिशु को अलग किया जाता है यही पाइप वह द्वार है जिससे माँ के शरीर से आवश्यक रस-द्रव्य शिशु  के शरीर में आते रहते हैं । नौ माह की पूरी अवधि में शिशु अपनी सारी जरूरतों की पूर्ति इसी “नाभि” से करता है।

साथिओं से निवेदन है कि इस सन्दर्भ में मात्र 50 सेकंड के निम्नलिखित यूट्यूब लिंक को भी देख लें : 

जन्म लेते ही शिशु का रोना/  हाथ पैर चलाना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वोह Activity है जिससे रक्त संचार आरंभ हो जाता है। हृदय से खून फेफड़ों में जा पहुँचता है और वे अपना काम शुरू कर देते है।

प्राणवायु को अपने रक्त में, शरीर वातावरण में खींचना, स्वावलंबन/आत्मनिर्भरता का प्रथम चरण नवजात शिशु स्वयं पूर्ण करता है। अब माता के गर्भाशय में बैठे “प्लेसेण्टा” रूपी फेफड़ों की उसे आवश्यकता नहीं रहती। माँ व बालक के बीच संबंध स्थापित करने वाली  नाल को काट कर किया जाता है। नवजात शिशु की जीवन यात्रा अपने ढर्रे पर चलने लगती है। माता का सहयोग समाप्त होते ही उस केन्द्र (नाभि) की उपयोगिता समाप्त हो जाती है। स्थूल दृष्टि से चिकित्सकों की दृष्टि  में इस केन्द्र की उपयोगिता एक सामान्य निशान  के रूप में ही रह जाती है। कुछ बेकार, “निष्क्रिय अंगों” के माध्यम से नाभि लिवर  से जुड़ी रहती है। शरीरगत विकास की दृष्टि से नाभि की भूमिका तो समाप्त हो जाती है लेकिन जब कभी भी लिवर  पर दबाव पड़ता है, उसमें रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। उस समय  यही  “निष्क्रिय अंग” जीवंत हो जाते हैं और शरीर की अनेकों बीमारीओं का समाधान करते हैं। 

हमारे वरिष्ठ साथी जिन्हें  हम “पुरातन पीड़ी के रत्न”  भी कह कर सम्मानित कर सकते हैं जानते हैं कि  शरीर  की अनेकों बीमारीओं का उपचार केवल “नाभि” से ही सम्बंधित है। दादी माँ के घरेलु नुस्खों में अक्सर नाभि के खिसकने (धरण) से, पेट की अनेकों बीमारीओं का समाधान केवल नाभि में भांति-भांति के तेल लगाने से संभव होता देखा गया है। इतना ही नहीं ,शरीर की किसी भी बीमारी का समाधान नाभि से बताया गया है, इसीलिए तो इसे शरीर का केंद्रबिंदु कहा गया है। आने वाले लेखों में  इस सन्दर्भ में भी चर्चा होने की सम्भावना है।     

यह पुरातन ज्ञान किसी अंधविश्वास पर आधारित नहीं है क्योंकि विज्ञान स्वयं कहता है कि नाभि के साथ  शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में जाने वाली 72000 नाड़िओं का कनेक्शन है। एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर रात को दृष्टि  न के बराबर होने लगी। जाँच करने पर  यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखें  ठीक है लेकिन  बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख नहीं पायेंगे।

आज के लेख के साथ एक चित्र संलग्न कर रहे हैं जिसमें 72000 नाड़िओं को दर्शाया गया है। देखा जा सकता है कि शरीर का कोई भी भाग ऐसा नहीं है जिसका नाभि से कनेक्शन नहीं है। यहाँ पर यह बताना आवश्यक रहेगा कि यह चित्र केवल देखने भर के लिए है, इसे समझ पाना, इसकी डिटेल में जाना एक विस्तृत विज्ञान का विषय है। 

उपरोक्त चर्चा से यह बात स्पष्ट होती है कि “नाभि प्रकृति की अद्भुत देन” है। 

इन्हीं  शब्दों के साथ नाभि से सम्बंधित इस चर्चा का मध्यांतर  होता है,कल इसी विषय पर कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य लेकर उपस्थित होंगें। तब तक के लिए जय गुरुदेव। 

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शनिवार वाले विशेषांक   को केवल 419  कमैंट्स मिले, 9  युगसैनिक 24 यां 24 से अधिक कमेंट कर पाए।सभी को हमारी बधाई एवं धन्यवाद।


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