21 नवंबर 2024 का ज्ञानप्रसाद
“हमारा धन्यवाद् स्वीकार कीजिये” शीर्षक से दिसंबर 1940 की अखंड ज्योति में प्रकाशित एक छोटे से, केवल 4 पन्नों के लेख को समझने के लिए भांति-भांति के उदाहरण देते हुए, वीडियोस का सहारा लेते हुए, क्रॉस रेफरेन्स को शामिल करते हुए आज इस समापन लेख को प्रस्तुत करते हुए हमारी प्यासी आत्मा तृप्त हुई अनुभव कर रही है।
इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये गए सभी लेखों की भांति आज भी सरलीकरण की प्रक्रिया में यथासंभव उदाहरण देकर समझने का प्रयास किया गया है। “योगक्षेमं बहाम्यहम्” के दो शब्द हम सबने अनेकों बार,LIC की बीमा पालिसी पर देखे होंगें लेकिन आज अखंड ज्योति के इस दिव्य लेख का सहारा लेकर समझने का प्रयास किया गया है। आशा है कि हमारा यह प्रयास भी साथिओं के ह्रदय तक हमारी भावना पंहुचाने में सफल रहेगा।
गुरुज्ञान को विश्व भर में फैले ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों के हृदयों में पंहुचाना हमारा मुख्य उद्देश्य है एवं गुरुदेव के ही शब्दों में सभी से निवेदन है कि इस प्रयास को और उत्तम कैसे बनाया जाये। आज के लेख का समापन गुरुदेव के इन्हीं शब्दों से हो रहा है। तो आइये बिना विलम्ब किये गुरुचरणों में समर्पित हो जाएँ, गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा में वितरित हो रहे ज्ञान का अमृतपान करके अपना कायाकल्प करने का प्रयास करें।
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अखंड ज्योति के प्रथम वर्ष की उपलब्धियों एवं कमज़ोरियों का लेख जोखा देते हुए परम पूज्य कह रहे हैं कि हमने “योगक्षेमं बहाम्यहम्” के सिद्धांत पर अपना विश्वास बनाये रखा, अटल विश्वास बने रहा कि जिसने इस दिव्य कार्य की प्रेरणा दी वही इसे आगे बढ़ाएगा।
आगे बढ़ने से पूर्व उचित रहेगा कि भगवद्गीता के 9वें अध्याय के 22वें श्लोक “योगक्षेमं बहाम्यहम्” का अर्थ समझ लिया जाये।
हमारे साथिओं ने श्लोक में अंकित दो शब्द Life Insurance Corporation of India (LIC) की Tagline में अवश्य देखे होंगें। यह शब्द चौराहों पर लगे LIC के विज्ञापनों में दो हथेलिओं के नीचे लिखे हुए हैं। इस श्लोक में भगवान् आश्वासन देते हैं कि
“जो मनुष्य एकमात्र मुझे लक्ष्य मान कर अनन्य-भाव से मेरा ही स्मरण करते हुए कर्तव्य-कर्म द्वारा पूजा करता है, जो सदैव निरन्तर मेरी भक्ति में लीन रहता है उस मनुष्य की सभी आवश्यकताऎं और सुरक्षा की जिम्मेदारी मैं स्वयं निभाता हूँ।”
गुरुदेव कहते हैं की अगर भगवान आश्वासन दे रहे हैं तो फिर हम किसी से याचना क्यों करें? यह हमारा काम नहीं है कि गुरु के आदेश अनुसार तप का विशुद्ध कर्तव्य पूरा करने के साथ-साथ झोली भी पसारते फिरें। हमें अपने “नरसी भगत’ वाले ‘साँवलिया शाह” पर अटूट विश्वास है। वह हमारी परीक्षा ले रहे हैं। आज नहीं तो कल उन्हें इस अर्थसंकट से निकालना ही पड़ेगा।
“अखंड ज्योति अखण्ड है वह खंडित नहीं होगी। तेल ख़तम हो जायगा तो बत्ती जलेगी, बत्ती निबट जायगी तो जीवट (साहसिक जीवन) जलेगी। जब तक जीवन रहेगा,जलता ही जायगा। अपने पड़ोसियों तक प्रकाश पहुँचाने के लिये टिमटिमाता रहा जायगा।”
अखंड ज्योति के पाठकों को अपना रोना सुनाकर उनके प्रफुल्लित हृदय पर दुःख की रेखा दौड़ाने की हमारी कोई इच्छा नहीं थी लेकिन प्रसंगवश सच्चाई को परिवार से छिपाया न जा सका। हमें इस सम्बन्ध में और किसी से कुछ नहीं कहना है।
“परिवार से हमें एक ही बात की “याचना” करनी है और वह यह है कि हमारे पवित्र उद्देश्यों के प्रचार में मदद करें। यह कर्तव्य जितना हमारा है उतना ही हर एक पाठक का है। यह एक पवित्र पुण्य कर्तव्य है जो हम सबको करना ही चाहिये। आत्मज्ञान के महान मिशन को मनुष्य मात्र तक तभी पहुँचाया जा सकता है जब जंजीर की सभी कड़ियाँ अपना-अपना विस्तार करें। जो ज्ञान आप तक पहुँच रहा है उसे दूसरों तक पहुँचाइए। आप जब अखंड ज्योति को पढ़ लें तो दूसरों को पढ़ने के लिए दें। जो पढ़े नहीं हैं, उन्हें पढ़कर सुनावें, जिनकी इस विषय में रुचि नहीं है उनमें रुचि उत्पन्न करें, जो ग्राहक बन सकें उनसे बलपूर्वक इसके लिये अनुरोध करें। 1.50 रुपया मूल्य सब दृष्टियों से कम है इन घाटे के दिनों में इस मूल्य को और कम करना और भी कष्टप्रद है फिर भी यदि कोई जिज्ञासु असमर्थ हो और ग्राहक बनना चाहते हों तो उतना ही पैसा दे दें जितना वे दे सकते हैं। जो उधार ग्राहक बनना चाहें वे भी बन सकते हैं, सुविधानुसार पैसे चुका दें। हमें प्रत्येक पाठक की ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार द्वारा गुरुदेव की इसी याचना का ज्ञानप्रसाद लेखों, वीडियोस, शार्ट वीडियोस, दिव्य संदेशों, शनिवार के विशेषांक, फ़ोन कॉल्स आदि के माध्यम से बार-बार स्मरण कराया जाता है। बार-बार करबद्ध निवेदन किया जाता है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रकाशित होने वाला प्रत्येक कंटेंट गुरु के चरणों में समर्पित ज्ञानप्रसाद है, इसका अमृतपान करते समय यह समझा जाये कि यह एक निस्वार्थ भावना का पुरषार्थ है न कि विज्ञापन यां वाहवाही लूटने का सरल और सस्ता साधन है। विज्ञापन के सम्बन्ध में परम पूज्य गुरुदेव ने स्वयं नवंबर 1978 की अखंड ज्योति लिखा :
“अखंड ज्योति में एक भी विज्ञापन नहीं छपता जबकि अन्य पत्रिकाओं की प्रायः आधी आमदनी विज्ञापन में ही होती है। सोचा यह गया है कि पत्रिकाओं को मात्र विक्रेताओं की मण्डी बनाकर उनके लाभांश में जो टुकड़ा मिल जाता है, उसे महत्व न दिया जाए और किसी प्रकार कागज छपाई का मूल्य पाठकों से लेकर उन्हें सर्वोत्कृष्ट पाठ्य सामग्री पहुँचाई जाय। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की “कल्याण पत्रिका” का भी यही दृष्टिकोण था। अखण्ड-ज्योति ने भी विज्ञापन न छापने की नीति अपनाकर उसी मार्ग का अनुसरण किया है।”
इसी अंक में गुरुदेव लिखते हैं :
“अखण्ड-ज्योति में जिस-तिस की, जहाँ-तहाँ से संकलन करके लिखी गयी पाठ्य सामग्री नहीं छपती। उसकी एक-एक पंक्ति के पीछे अगाध अध्ययन एवं प्रयोक्ताओं का अनुभव भरा रहता है। इस पाठ्य सामग्री को अधिकतम लेखनी का अमृतोपम पुण्य प्रसाद कहा जा सकता है। शरीर को भोजन, वस्त्र आदि की सुविधा देने की तरह ही आत्मा की भूख-प्यास बुझाना भी अति आवश्यक है और उसके लिए सद्ज्ञान सामग्री की तलाश करते हैं, उनके लिए स्वाध्याय सामग्री अखण्ड-ज्योति से उत्कृष्ट स्तर की अन्यत्र मिल सकना कठिन है। इसे चन्दन, पुष्पों द्वारा एकत्रित किया हुआ “परम पौष्टिक मधु संचय” कह सकते हैं।”
गुरुदेव द्वारा अपनाए गए विज्ञापन न छापने के सिद्धांत को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के यूट्यूब चैनल और वेबसाइट के संदर्भ में कहा जाए तो स्व-बढ़ाई (Self-praise) जैसी बात समझी जाएगी लेकिन Demonetize करने यानि चैनल पर प्रकाशित होने वाली वीडियोस पर कोई भी विज्ञापन न चलाना इसी दृष्टि से किया गया है। अगर चैनल पर प्रकाशित हुई किसी वीडियो पर विज्ञापन चल रहा है तो वह ओरिजिनल Contributor की ज़िम्मेदारी है।
अखंड ज्योति के प्रथम वर्ष की इस लेख श्रृंखला का समापन करते हुए परम पूज्य गुरुदेव निम्नलिखित इच्छा व्यक्त कर रहे हैं :
आज गत वर्ष के अन्त और नवीन वर्ष के आगमन की संध्या में हमारी एक और भी इच्छा हो रही है वह यह कि
“अखण्ड ज्योति के सभी प्रेमी पाठक अपने कुशल समाचार व अपनी आध्यात्मिक आकाँक्षायें हमें लिख भेजें और गत वर्ष के अखण्ड ज्योति के कार्य की निष्पक्ष समालोचना करते हुए बताएं कि इसको और अधिक उत्तम कैसे बनाया जा सकता है।”
हमें एक पत्र लिखने में पाठको का एक लिफाफा अवश्य खर्च होगा लेकिन इसमें हम लोग एक दूसरे के हृदयों के अधिक निकट आ जायेंगें । हमें पता है कि हमारे प्रेमी पाठक अपने प्रेम-सम्बन्ध का इस वर्ष-संध्या के उपलक्ष्य में एक पत्र द्वारा अपने प्रेम सम्बन्ध का परिचय अवश्य देंगे।
अन्त में हम अपने समस्त परिवार से अपनी एक वर्ष की त्रुटियों के लिये क्षमा माँगते हैं और उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि भविष्य में उत्तमोत्तम सामग्री एवं सद्भावनाओं के साथ अपना अलख जगाने का कार्य अधिकाधिक उत्साह के साथ जारी रखेंगे। आपने पिछले वर्ष जो सहयोग दिया है और आगे देने वाले हैं उसके लिये एक बार पुनः हमारा हार्दिक धन्यवाद स्वीकार कीजिये।
जय गुरुदेव, समापन
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कल वाले लेख को 361 कमैंट्स मिले,केवल 5 युगसैनिकों ने ही 24 से अधिक कमेंट करके ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की इस अनूठी एवं दिव्य यज्ञशाला की शोभा को कायम रखा है। सभी को हमारी बधाई एवं धन्यवाद।