19 नवंबर 2024 का ज्ञानप्रसाद
“जब तक मेरे भीतर रक्त की अंतिम बूँद, प्राण का अंतिम भाग और जीवन का अंतिम क्षण है तब तक मैं भारत और भारतीय संस्कृति की सेवा करता रहूँगा और आध्यात्मिक पत्रकारिता मेरे माध्यम से नए आयाम प्राप्त करेगी।”, परम पूज्य गुरुदेव का यह दिव्य सन्देश आदरणीय हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ हुई उस वार्तालाप का एक अंश है जिसके माध्यम से अखंड ज्योति पत्रिका का जन्म हुआ था। परम पूज्य गुरुदेव द्वारा बोले गए यह शब्द आज के लेख के साथ संलग्न की गयी वीडियो का हिस्सा हैं।
शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जो गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली “कल्याण पत्रिका” के संपादक आदरणीय पोद्दार जी के व्यक्तित्व से परिचित न हो। बाल्यकाल में हमने देखा है कि हमारे परिवार के बुज़ुर्ग (दादा दादी, नाना नानी ) इस पत्रिका का ठीक उसी प्रकार सम्मान किया करते थे जैसे हमारी मम्मी ने अंतिम श्वास तक अखंड ज्योति पत्रिका का किया। उनके लिए अखंड ज्योति एक बहुमूल्य आभूषण था जो उनके पार्थिव शरीर को अंतिम पलों तक सुशोभित करती रही।
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (जिन्हें भाई जी भी सम्बोधित किया जाता रहा है ) और श्रीराम जी (परम पूज्य गुरुदेव) के बीच हुई दिव्य वार्ता को दर्शाती वीडियो जिसमें अखंड ज्योति पत्रिका का अवतरण की बात की जा रही है, इसके लिए आदरणीय मीरा शर्मा बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। बहिन जी ने अपने यूट्यूब चैनल “सनातन अखंड ज्योति” पर एक अति दुर्लभ जानकारी प्रकाशित करके हम सब पर एक बहुत बड़ा उपकार किया है। हमारे अथक प्रयास के बावजूद वीडियो का ओरिजिनल सोर्स ढूंढना सफल न हो पाया । ऐसी स्थिति में बहिन जी की रिसर्च पर विश्वास करना ही उचित समझा गया है।
साथिओं के समय का सम्मान करते हुए, आज का ज्ञानप्रसाद लेख बिलकुल ही छोटा कर दिया है और संकल्प की भीख मांग रहे हैं कि दो महान आत्माओं के बीच हुई वार्ता का विवरण अवश्य हृदयंगम करें, स्वयं देखें कि 100 वर्ष पूर्व कैसी-कैसी महान विभूतियों ने अपने रक्त की दिव्यता से भारतवर्ष की भूमि को सींचा है।
अगर साथिओं का निर्देश मिला तो आने वाले समय में यह पांच मिंट की वीडियो (यां पूरी 12 मिंट की) अपने चैनल पर अपलोड कर देंगें, आज समय आभाव के कारण इतना ही बन पाया है।
अखंड ज्योति के “प्रथम वर्ष की गाथा” की पृष्ठभूमि कल प्रस्तुत की गयी थी, इससे पहले कि गुरुदेव के शब्दों में ही इसके बारे में जानकारी दी जाये, इतना अवश्य कहना चाहेंगें कि गुरुदेव प्रथम वर्ष का लेखा-जोखा ऐसे दे रहे हैं जैसे कि परिवारजनों से कोई ऑडिट करवाना हो। यही है पारदर्शिता, Transparency जिसका हर जगह, परिवार में, समाज में, रिश्तों में शोर मचा हुआ है, हर कोई शंका, संशय का शिकार बना बैठा है।
आइये संकल्प लें कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री गायत्री परिवार का एक भी सदस्य शंका और संशय रुपी कैंसर से ग्रस्त नहीं होगा और “परिवार” के असली रूप को चरितार्थ करेगा।
इन्ही शब्दों के साथ गुरुकुल की आध्यात्मिक गुरुकक्षा का गुरुचरणों में समर्पित होकर शुभारम्भ होता है।
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“हमारा धन्यवाद् स्वीकार कीजिये” शीर्षक से दिसंबर 1940 की अखंड ज्योति में प्रकाशित लेख
में परम पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं :
इस अंक के साथ अखंड-ज्योति का पहला वर्ष समाप्त हो रहा है। इस अवसर पर हम अपने प्रेमी पाठकों को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते जिनकी गुण ग्राहकता, सहानुभूति तथा सद्भावनाओं के कारण यह पत्रिका इतनी उन्नति कर सकी है। हिन्दी के अखबारी संसार में अख़बारों और पत्रिकाओं की “बाल मृत्यु” बहुत प्रसिद्ध है। आये दिन नये अखबार निकलते हैं और बन्द हो जाते हैं। जन्म के कुछ ही दिन बाद घाटा उनकी गर्दन आ दबोचता है और वे बेचारे दम तोड़ देते हैं। “अखंड-ज्योति” भी ऐसे आक्रमण से बची रही हो, सो बात नहीं है; उसे भी ऐसे मर्मान्तक आक्रमणों (Deadly attacks) को सहना पड़ा है लेकिन पाठकों के जिस प्रेम की अमर घूंटी को पीकर वह जीवित है और जीवित रहेगी उसके लिये अपने पाठकों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करना और धन्यवाद देना “हमारा प्रथम कर्तव्य” है।
अखंड ज्योति, छपे कागज़ों को बेचने और व्यापार करने के उद्देश्य से नहीं निकाली गई है। इस दिव्य पत्रिका का अपना एक मिशन है,उद्देश्य है। सम्राटों के सम्राट,सच्चिदानन्द भगवान् के उत्तराधिकारी, ईश्वर के राजकुमार को महान शक्ति प्रदान की गयी है। परमात्मा में जो गुण हैं, वही मनुष्य में भी भर दिए गए हैं किन्तु जिस प्रकार एक शेर का बच्चा भेड़ों के साथ रहकर स्वयं को भेड़ समझने लगा था वही दशा “माया के स्पर्श ” से मनुष्य की हो चुकी है।
अखंड ज्योति का मिशन है कि ईश्वर का राजकुमार (हर शेर) अपने वास्तविक स्वरूप को जाने-पहचाने और अपने अधिकारों का दावा पेश करे। अखंड ज्योति का उद्देश्य उस दर्पण के समान है जिसमें सौंदर्यवान-देहधारी अपना रूप देखकर प्रसन्नता एवं गर्व अनुभव करते हैं। यह हम पर निर्भर है कि हम इस दर्पण में राक्षस को देखें यां देवता को देखें। जिसकी जैसी भावना एवं प्रवृति मनुष्य वैसा ही अपने को देखकर गर्व महसूस करता रहता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की सुप्रिसद्ध पंक्ति से भला कौन अपरिचित है: जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
गुरुदेव बता रहे हैं कि यदि हम सम्राट सच्चिदानन्द की संतान हैं, उन्हीं की तरह दिखते हैं तो फिर स्वयं में देवत्व का दर्शन क्यों न करें। अखंड ज्योति का अवतरण इस उद्देश्य से हुआ है कि जिस वस्तु की तलाश के लिए युगों-युगों से मनुष्य मारा-मारा फिर रहा है, उसे अपने अन्दर प्राप्त करे।
“हमारे लिये यह प्रभु की सच्ची भक्ति है कि उसके पुत्रों को प्रभु की गोद तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयत्न करें।”
गत एक वर्ष से हमने दर-दर पर अपने इसी उद्देश्य का अलख जगाया है। फकीरों की तरह अलख जगाने के लिए सशरीर हम हर द्वार पर न पहुँच पाए, कोई बात नहीं लेकिन कागज के पत्रों पर अपने विचार और अपनी आन्तरिक भावनाओं को लपेट-लपेट कर हमने दूर देशों तक भेजा, क्या यह प्रयत्न व्यर्थ गया? नहीं। अपने अज्ञान के कारण संसार के दारुण दुःखों से पीड़ित जनसमूह ने, सत्यमार्ग को खोजने वाले जिज्ञासुओं ने, कान खोलकर सुना कि अखंड ज्योति आखिर कहती क्या है ? इस एक वर्ष में करीब चौथाई लाख (25000) व्यक्तियों के घर वह कई-कई बार अलख जगाने पहुँची, जिन्होंने इस अलख को सुना उनमें से बहुतों ने उसे प्यार किया, आश्रय दिया और छाती से लगा लिया।
इन पंक्तियों को लिखते समय अखंड ज्योति का उदार परिवार शरीर सहित हमारे निकट नहीं बैठा है परन्तु उनकी अत्यंत पवित्र और उच्च भावनाओं को हम अपने चारों ओर मँडराते देख रहे हैं। इतना बहुमूल्य पुरस्कार पाकर हम स्वयं को धन्य मान रहे हैं और वह धन्य ध्वनि हमारे मानस तन्तुओं में झंकृत होकर प्रतिध्वनि के रूप में अखंड ज्योति के लिये शुभकामना करने वाले समस्त सदस्यों के लिये प्रेरित हो रही है। यही हमारा विनम्र धन्यवाद, प्रेम और आशीर्वाद है पाठक इसे स्वीकार करें।
अखंड ज्योति का प्रथम वर्ष कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा। आध्यात्मिक तत्व के विशिष्ट पहलुओं पर विचार-विनिमय करने के लिये देश विदेश से कोई 18000 व्यक्तियों के 38040 निजी पत्र आए। इन सब का अपनी योग्यता के अनुसार विस्तारपूर्वक समाधान किया गया। यह सज्जन कृपापूर्वक उत्तर के लिये टिकट भेजते रहे हैं लेकिन जिन्होंने नहीं भेजे उनके लिए लिफाफे भेजने में कार्यालय को 194 रुपये अपनी जेब से खर्च करने पड़े। 300 के करीब जिज्ञासु अपनी रुचियों के अनुसार इनसे परामर्श लेकर कर अनेकों समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। हम जानते हैं कि आज के लेख में कुछ repetition है लेकिन इसके इलावा और कोई विकल्प नहीं है।
इससे आगे कल वाले लेख में।
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कल वाले लेख को 472 कमैंट्स मिले एवं 11 युगसैनिकों ने 24 से अधिक कमेंट करके ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की इस अनूठी एवं दिव्य यज्ञशाला की शोभा को कायम रखा गया है। सभी को हमारी बधाई एवं धन्यवाद।