11 नवंबर 2024
आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है और इस दिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से अधिकतर गुरुदेव द्वारा रचित दिव्य साहित्य की लेख शृंखला का शुभारम्भ होता है। अपने समर्पित, श्रद्धावान एवं अति सम्मानीय साथिओं से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि आज केवल एक दिन के लिए शनिवार वाले विशेषांक को एक्सटेंड किया गया है। एक्सटेंशन का कारण हमारे साथिओं द्वारा प्रदान की गयी जानकारी है जिसे अगले शनिवार तक पोस्टपोन करना अनुचित लग रहा था।
सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं कि उन्होंने यथासंभव पावन छठ पर्व के प्रति जानकारी देकर हमारे निवेदन को माना है, हमारा सम्मान बढ़ाया है एवं ज्ञानरथ परिवार की मर्यादा का पालन किया है।आदरणीय मंजू मिश्रा बहिन जी,आदरणीय अरुण वर्मा जी द्वारा दी गयी जानकारी एवं अनेकों साथिओं के काउंटर कमैंट्स से बहुत कुछ जानने को मिला ।
आदरणीय बहिन विदुषी जी ने छठ पर्व के सन्दर्भ में आज एक महत्वपूर्ण जानकारी भेजी जिसे थोड़ा सा एडिट करके ( Comma, Full stop आदि) साथिओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
इसी तरह की एक और जानकारी आदरणीय चंद्रेश बहदुर जी द्वारा भेजी गयी है उसे भी एडिट करके प्रस्तुत किया गया है। यह जानकारी आंवला नवमी से सम्बंधित है। आदरणीय नीरा जी ने इसे जानने के लिए कमेंट करके आदरणीय चंद्रेश जी से जिज्ञासा व्यक्त की थी। भाई साहिब ने भी तुरंत रिस्पॉन्ड करके परिवार की प्रथा का पालन किया है। आदरणीय भाई साहिब ने अपने निवास के प्रांगण में आंवला वृक्ष की फोटो भी भेजी है जिसे शेयर कर रहे हैं।
आदरणीय चंद्रेश जी की बात हो रही है तो यहाँ यह बताना भी उचित रहेगा कि भाई साहिब की दो बेटी संवेदना और अपूर्वा एवं भाई साहिब का जन्म दिन आज,कल और परसों आ रहा है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर से तीनों को हार्दिक शुभकामना,बधाई एवं गुरुदेव का आशीर्वाद मिलता रहे। आशा करते हैं कि भाई साहिब की तरह बेटिओं को भी गुरुकार्य के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जायेगा।
अगली जानकारी में बहिन कुसुम त्रिपाठी जी ने तुला गोपाष्टमी के पर्व पर हुए तुलादान की जानकारी भेजी है जिसे साथिओं के समक्ष रखा गया है।
आज के इस Extended विशेषांक का समापन आदरणीय बहिन पूनम जी की छठ पर्व की जानकारी से कर रहे हैं। यह निम्नलिखित जानकारी इन पंक्तियों को लिखते समय अभी-अभी प्राप्त हुई है। बहुत बहुत धन्यवाद् बहिन जी। प्रस्तुत चित्रों में हम सबकी प्रिय संजना बेटी को भी देख रहे हैं।
1.पूनम जी की जानकारी :
मैं और संजना के पिताजी छठ पूजन करने के लिए शांतिकुंज हरिद्वार गये थे आज घर लौटेंगे । यह चार दिनों का महापर्व होता है । पहला दिन नहाय खाय होता है जिसमें अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाया जाता है । दूसरे दिन पूरे दिन का व्रत रख कर खरना का प्रसाद बनाया जाता है और चन्द्रमा डूबने के पहले खरना किया जाता है ।
तीसरे दिन ठेकुआ बनाया जाता है । ठेकुआ फल प्रसाद से शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसके बाद पारण किया जाता है ।
यह सूर्य उपासना का पर्व है । हरिद्वार में गंगा घाट पर छठ पूजा सपरिवार कर बहुत आनंद आया । यह सब परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से ही संभव हो पाया है । आप सभी का आशीर्वाद और प्यार सदा बना रहे यही परम पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना है । जय गुरुदेव
2.छठ पूजा की जानकारी- आदरणीय विदुषी बहिन जी का योगदान
सादर् सुप्रभातम्
सृष्टि संवत् 1,96,08,53,126
युगाब्द् संवत् 5,126
विक्रमी संवत् 2,081
दिन – गुरुवार
तिथि – षष्ठी
माह – कार्तिक
नक्षत्र – पूर्वाषाढ़
पक्ष – शुक्ल
ऋतु – हेमन्त
सूर्य – दक्षिणायन
दिनॉक 07 नवम्बर 2,024
पूर्ण विश्व के लिए मंगलमय हो।
(सूर्य षष्ठी, डाला छठ (बिहार) एवं चन्द्रशेखर वेंकटरमन जयन्ती)
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छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व
सूर्योपासना का वर्णन वेद में है।
बिहार में मुंगेर के महर्षि मुद्गल के आश्रम में पहली बार हुआ था छठ।
धौम्य ऋषि के कहने पर अज्ञातवास के समय द्रौपदी ने किया था यह व्रत।
42वें अध्याय में कृष्ण पुत्र साम्ब के मगध में सूर्य को अर्घ्य देकर कुष्ठ रोग से मुक्ति का वर्णन है।
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार सूर्योपासना का प्रारंभ नवपाषाण काल से प्रारंभ हो गया था। पौराणिक स्रोत में सूर्य उपासना का प्राचीनतम साक्ष्य ऋग्वेद में प्राप्त
होता है।
छठ व्रत का प्रारंभ बिहार में ही हुआ था। यहां के मुंगेर में त्रेता युग में महर्षि मुद्गल के आश्रम से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है।
प्रदीप
सेवा भारती पंजाब
सूर्य षष्ठी (कार्तिक शुक्ल षष्ठी/ सूर्य षष्ठी)
भारत में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी को गंगा-यमुना के तटवासी आर्य संस्कृति का प्रतीक महान पर्व सूर्य षष्ठी यानी छठ पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन वे अस्ताचल भगवान भास्कर की पूजा करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उदीयमान प्रत्यक्ष देव भगवान आदित्य को अर्घ्य देकर पूजन, अर्चन करते हुए अपनी और अपने देश की खुशहाली की कामना करते हैं।
विश्व की अनेक श्रेष्ठ मानी जाने वाली प्रजातियां अपने को आर्यवंशी कहती हैं। जर्मनी के नाज़ी, ईरानी, फ्रांसीसी, इटेलियन सभी दावा करते हैं कि वे आर्यों के वंशज हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से किसी के पास आर्य संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक अवशेष कुछ भी नहीं है। गंगा-यमुना का अतिपावन तट ही आर्यों का इच्छित स्थल था। प्रत्यक्षदेव व विश्वदेवता के नाम से विख्यात भगवान भास्कर का पूजन-अर्चन पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के करोड़ों स्त्री-पुरुष अत्यंत पवित्रता से प्रतिवर्ष करते हैं। यह त्योहार जाति और संप्रदाय से परे है और भारत की अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण है।
ब्रिटिश काल में गिरमिटिया मजदूर के रूप में गए पूर्वांचल के भारतवंशियों ने अपने रीति-रिवाज, तीज त्योहार और प्रतीकों के बल पर सूर्य षष्ठी को विश्वव्यापी बना दिया है। छठ का महान त्योहार मॉरीशस, फिजी, त्रिनीडाड आदि अनेक देशों में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
गिरमिटिया इंग्लिश शब्द Agreement का बिगड़ा हुआ रूप है जिसमें दास प्रथा के अंतर्गत Bond लिखवाकर बिना वेतन मजदूरी कराई जाती थी।
पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के अस्ताचल सूर्य एवं सप्तमी को सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से प्रेषित होकर राजऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र नामक यजुष का प्रसव हुआ था। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए मन में गद्य यजुष की रचना की आकांक्षा लिए हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थीं।
ऐसे यजुष (ऐसा मंत्र जो Prose में होते हुए भी Poem जैसा गाया जाता है) को वेदमाता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। यह पावन मंत्र प्रत्यक्ष देव आदित्य के पूजन, अर्घ्य का अद्भुत परिणाम था। तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि परम पूज्य हो गई। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ पूजा, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
प्रदीप
सेवा भारती पंजाब
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3.आंवला नवमी के बारे में जानकारी- आदरणीय चंद्रेश बहादुर भाई साहिब का योगदान
कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु एवं शंकर जी की पूजा की जाती है। इस तिथि को आंवला नवमी के नाम से भी जानते हैं। क्या आपको मालूम है इसे आंवला नवमी क्यों कहते हैं ।
निम्नलिखित विवरण से जानिए पूरी कथा:
आंवले में भगवान विष्णु का वास होने के कारण आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इससे अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ के नीचे भगवान का ध्यान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है और जगत के पालनहार प्रसन्न होकर सब मनोकामना पूर्ण करते हैं।
इसको लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। आइये जानते हैं ।
धार्मिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी धरती पर निवास करने के लिए आईं। इस दौरान लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने की इच्छा हुई लेकिन दोनों की एक साथ पूजा करने के लिए उन्हें कोई उचित उपाय नहीं सूझ रहा था। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती है तो बेलपत्र शंकर जी को पसंद है। ऐसे में मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर अक्षय नवमी तिथि पर आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णुजी और शिवजी प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु और शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। इस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी, तभी से आंवला पूजन की शुरुआत हुई।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष की आराधना करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ पर भगवान विष्णु, शिव जी और माता लक्ष्मी तीनों का वास रहता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे खाना पका कर सबसे पहले भगवान विष्णु, भगवान शिव और मां लक्ष्मी को भोग लगाना चाहिए, इस भोग में आंवले का फल जरूर शामिल करें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और श्रद्धा अनुसार उनको दान दें।
मान्यता है कि ऐसा करने से धन-सम्पदा और सुख-शांति बढ़ती है। इसके बाद खुद भोजन करें और आंवले का सेवन करें।
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कल “गायत्री मंत्र लेखन” से सम्बंधित दो भाग का लेख प्रस्तुत करने की योजना है।
जय गुरुदेव
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शनिवार के स्पेशल सेगमेंट को 745 कमैंट्स मिले एवं 16 युगसैनिकों ने 24 से अधिक कमेंट करके ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की इस अनूठी एवं दिव्य यज्ञशाला की शोभा को कायम रखा गया है। सभी को हमारी बधाई एवं धन्यवाद।



