आज नवंबर माह का पहला शनिवार है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हमारे अधिकतर साथी दिवाली एवं उससे सम्बंधित पर्वों में व्यस्त हैं, यही कारण है कि इस बार साथिओं की तरफ से कुछ भी योगदान प्राप्त नहीं हुआ है।
कोई बात नहीं हमारे पास साथिओं के प्रेमपूरित अनेकों कमैंट्स सेव किये हुए हैं जिन्हें पढ़ते हुए कोई भी भावनाशील मनुष्य भावुक हुए बिना नहीं रह सकता, अचरज में पढ़े बिना नहीं रह सकता कि यह कैसा परिवार है जहाँ इतनी निष्ठा और समर्पण की बात हो रही है। वर्तमान समय में जहाँ अधिकतर लोगों में भगदड़ मची है, एक दूसरे को नीचा दिखा कर आगे बढ़ने की अंधी दौड़ लगी है, अपने ही साथिओं/सहपाठिओं को गिरा कर, पैरों तले रौंद कर आगे बढ़ने की होड़ लगी है, वहीँ ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सहकर्मी, निष्काम सहकारिता एवं सहभागिता का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करने में अनवरत कार्यरत है।
यह उस महान गुरु की शिक्षा का ही प्रभाव है जिसने कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का ऐसा सरल पाठ पढ़ाया कि देखते ही देखते अनेकों का कायाकल्प हो गया अर्थात उनकी काया तो मनुष्य जैसी ही दिखती है लेकिन अंतरात्मा में साक्षात् प्रभु का वास हो उठा, ऐसे साथिओं को हम नमन किये बिना नहीं रह सकते।
“ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार” नामक इस छोटे से, शैशवास्था में विकसित हो रहे परिवार में शनिवार का दिन एक उत्सव की भांति होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब गुरुदेव के शिष्य, गुरुकुल की सप्ताह भर की कठिन गुरुशिक्षा के बाद थोड़ा Relaxed अनुभव करते हैं, अपने साथिओं के साथ रूबरू होते हैं, उनकी गतिविधिओं को जानते हैं, हर कोई उत्साहित होकर, एक नन्हें शिशु की भांति भाग-भाग कर अपना योगदान देने का प्रयास करता है, गुरुकार्य का भागीदार बनता है एवं अपनी पात्रता के अनुसार गुरु के अनुदान प्राप्त करता हुआ स्वयं को सौभाग्यशाली मानता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब (हमारे समेत) लगभग सभी साथी कमेंट करने का महत्वपूर्ण कार्य भी थोड़ा Relax होकर ही करते हैं, आखिर वीकेंड और छुट्टी जैसा वातावरण जो ठहरा।
तो आइए चलें Tutorial room में जहाँ हमारी शनिवार की कक्षा होती है, कुछ अपनी कहें, कुछ साथिओं की सुनें और गुरुसत्ता का आशीर्वाद प्राप्त करें।
हमारा पूरा विश्वास है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में बहुत ही प्रतिभाशाली युवाशक्तियों का वास है, उन शक्तियों को जागृत करने की बड़ी आवश्यकता है और यह जाग्रति केवल प्रोत्साहन एवं प्रेरणा से ही संभव हो सकती है।
वैसे तो हर कोई ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के टाईमटेबल से भलीभांति परिचित है फिर भी समय-समय पर Revision करना किसी प्रकार से भी अनुचित नहीं है
प्रत्येक माह के पहले 3 शनिवार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के लिए रिज़र्व किये हुए हैं जब परिवार से सम्बंधित कोई भी जानकारी, प्रेरणा, प्रशंसा, प्रोत्साहन आदि प्रकाशित की जाती है। साथिओं का समर्पण एवं अपनत्व उनकी भागीदारी से प्रमाणित होता है जो हमारे पास लगभग 20 घंटे (4 घण्टे सोने के छोड़ कर), व्हाट्सप्प मैसेज, ऑडियो/वीडियो क्लिप्स, फ़ोन कॉल्स आदि के माध्यम से आते रहते हैं। माह के अंतिम शनिवार को साथिओं ने Exclusively हमारे लिए रिज़र्व करके जो सम्मान दिया है उसके लिए हम हृदय से आभारी हैं। अंतिम शनिवार को हमारे लिए रिज़र्व करने के पीछे साथिओं का लॉजिक था कि सारा महीना तो हम ही कहते रहते हैं एक दिन “ अरुण त्रिखा भाई साहिब” भी तो कुछ कहने दिया जाये।
पहले तीन शनिवार को साथिओं के योगदान से प्रकाशित होने वाले सेगमेंट को “विशेषांक” का विशेषण दिया गया तो अंतिम शनिवार वाला सेगमेंट स्वयं ही “विशेष विशेषांक” बन गया।
आशा करते हैं कि इस सारांश से हमारे साथी जान गए होंगें कि पहले तीन शनिवार साथिओं के सामूहिक प्रयास से इस परिवार के उत्थान की दिशा की ओर होते हैं जबकि अंतिम शनिवार में हमारी अल्पबुद्धि से उठ रहे हमारे व्यक्तिगत विचार होते हैं, दोनों का उद्देश्य एक ही होता है- गुरुशिक्षा को जन-जन तक पंहुचाना, हर घर/परिवार में गुरुज्ञान से ज्ञान की ज्योति का प्रकाश फैलाना।
ऐसे ही विचारों को समर्थन प्रदान करते हमारी वरिष्ठ एवं आदरणीय बहिन रेणु श्रीवास्तव जी बता रही हैं कि हम-सब एक ही राह पर चलने वाले सहयात्री हैं और हमारी मंजिल अनंत है। हमारा अनुपम परिवार गुरुदेव के बताए मार्ग पर सतत् आगे बढ़ते हुए,अपनी क्षमता अनुसार समर्पित होकर कार्य कर रहा है । यहां सभी बराबर है तथा सबको बराबर सम्मान प्राप्त होता है। गुरु साहित्य ही सबसे बड़ा उपहार,धन-सम्पदा है जो अथाह ज्ञान सागर है। प्रत्येक साथी इस अथाह सागर से ज्ञान रूपी रत्न प्राप्त कर समाज को परिष्कृत करने का पुनीत कार्य कर रहा है।
ज्ञान ही गुरु मंदिर का प्रसाद है जिसे स्वयं ग्रहण करें तथा जन-जन में वितरण करें,अपना श्रम, समय और सेवा लोककल्याण में लगाएं। गुरुदेव ने अपना सारा जीवन तपा कर मानवता को समर्पित किया। अतः गुरु का आदेश कहें या अन्तर्वेदना,जन-जन तक उनके साहित्य, उनके विचारों को फैला कर लोकहित में, लोक-मंगल के लिए सहयोग करें। गुरुदेव से यदि आपकी अपेक्षाएं हैं तो गुरु चरणों की भक्ति, श्रद्धा, समर्पण, संकल्प और नियमितता का दान मांगे लेकिन गुरु के प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है उसे पूरा करें। गुरु साहित्य ही हमारी विरासत और वसीयत है।
“गुरु की छाया में शरण जो पा गया,उसके जीवन में सुमंगल आ गया” यही पंक्तियाँ आज के प्रज्ञागीत में दर्शित हैं।
इसी तरह के भावनात्मक विचार हमारी नियमित सहकर्मी बेटी स्नेहा ने व्यक्त किये और बता दिया कि ईश्वर से हर समय मांगने वाला भिखारी ही होता है, ईश्वर समर्पण और स्नेह के भूखे होते हैं। बेटी के निम्नलिखित शब्द अवश्य ही अनेकों को मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं :
“अगर कुछ मांगना ही है तो भक्ति ,निष्ठा ,समर्पण दीजिए। सेवा व्रत जप तप की शक्ति प्रदान कीजिए । सभी परिजनों पर अपनी कृपा बनाए रखिए । सभी को स्वस्थ सुखी कीजिए।”
समर्पण के सम्बन्ध में ही आद. संध्या जी लिखती हैं कि इस परिवार में साथिओं का आपसी संबंध किसी मामूली दुकानदार और बाज़ारू ग्राहक का नहीं है, जो कागज छाप कर बेचने वाले और वक्त काटने के लिये सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वालों के बीच में होता है।
बहिन जी ने लिखा था कि हम और आप महान पथ के पथिक के रुप में एक शक्तिशाली संबंध स्थापित कर चुके हैँ। हम सबने अपनी ही एक अलग सी,यूनिक दुनिया, एक अद्भुत परिवार बसाया हुआ है जो और कहीं दुर्लभ है I हम सब केवल भाई, साथी, मित्र ही नहीं है इससे कुछ अधिक हैं। जो संबंध सूर्य की एक किरण का दूसरी किरण से होता है वैसा ही संबंध हम सबका है। हम सब अलग-अलग होते हुए भी आपस में पूर्ण जुड़े हुए अनुभव करते हुए, एक नयी दुनिया, एक नया परिवार बनाये हुए हैँ, अपने गुरु का परिवार, जिसका नाम है “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार।” इस परिवार के समस्त परिजनों का एक ही उद्देश्य है: गुरु का नाम रोशन करना एवं गुरुवर के दिव्य विचारों को घर-घर पहुंचाना l
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ऐसे जिज्ञासु, ज्ञान पीपासु और आनन्द-खोजी पथिकों का जखीरा बनना चाहता है जो स्वयं आनन्द प्राप्त करते हुए अनेकों का मार्गदर्शन करने के लिये उत्सुक हो।
मांगने के बारे में बहिन जी ने भी वही बात कि अगर माँगना ही है तो गुरु-भक्ति, गुरु-श्रद्धा,गुरु-समर्पण, संकल्प, नियमितता का दान मांगिए, फिर गुरु के चमत्कार का आनंद लीजिए। बहिन जी ने बहुत ही सुन्दर बात कही है कि “अधिकार और दायित्व” का संतुलन बैठा कर चलना बहुत ही ज़रूरी है l
यहाँ पर हम अपने विचारों को भी रखना चाहेंगें कि शायद कितनी ही बार हम Rights and responsibilities की बात कर चुके हैं। हम विश्वास से कह सकते हैं कि जिस किसी व्यक्ति ने भी परम पूज्य गुरुदेव की मास्टरपीस रचना “हमारी वसीयत और विरासत” जिसका इंग्लिश अनुवाद “Our wills and legacy” ध्यानपूर्वक पढ़ ली,उसे समझ लिया तो कभी भी, कुछ भी मांगने की बात नहीं करेगा। उसके पास समर्पित होने के सिवाय कोई भी विकल्प नहीं बचेगा। गुरुदेव द्वारा रचित 3200 से अधिक सभी रचनाओं को पढ़ने के लिए एक नहीं कई जन्म कम पड़ जायेंगें। तो इस स्थिति में हम सभी को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच की सभी गतिविधियों का आत्मसात करना ही बहुत बड़ा समर्पण होगा। जब संकल्प एवं समर्पण दृढ होते हैं तो भगवान भी दौड़े-दौड़े आते हैं,अनुदानों की झड़ी सी लगा देते हैं।
यह बातें केवल बाते नहीं है: इन्हें कभी भी,कहीं भी, किसी भी स्थिति में Try-test-certify (TTC) किया जा सकता है। घर-परिवार में,जॉब में, दोस्ती में,जहाँ कहीं भी समर्पण है वहां कुछ भी मांगने के आवश्यकता नहीं पड़ती। समर्पण की शक्ति से भगवान् भी भक्त के दास बन जाते हैं, देने को विवश हो जाते हैं।
हमारे साथिओं ने जब भावना में बहकर गोवर्धन उठाने की बात कही तो हमारे लिए कुछ भी कहने को बचा नहीं, हम पूरी तरह से निशब्द हो गए कि इतना बड़ा सम्मान देना शायद हमारे समर्पण के लिए ही है, हमारी श्रद्धा के लिए है, परस्पर स्नेह के लिए है,सेवा भाव के लिए है, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हम तो नतमस्तक हैं, अगर यह सब सत्य है तो बहुत ही संतुष्टि की बात है कि गुरु के कार्य में गिलहरी से भी कम योगदान देने से इतना उत्कृष्ट अनुदान मिला है।
आदरणीय मंजू बहिन जी ने तो पूजा करते-करते छवि में ज्ञानरथ को हांकने वाली बात लिख दी जिसमें गुरुदेव सबसे आगे, पीछे हम और उसके पीछे अनेकों समर्पित परिवारजन दिखाई दे रहे थे। बहिन जी की बात तो बिलकुल ही सत्य है- किसी भी क्रांति में, युद्ध में कमांडर-इन-चीफ ही सबसे आगे होता है, बाकी सेना तो केवल आर्डर ही फॉलो करती है। हम सभी भी अपने कमांडर-इन-चीफ, परम पूज्य गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर रहे हैं, जिसकी जितनी पात्रता (ट्रेनिंग, योग्यता) उतनी ही गुरुदेव के पास नज़दीकी एवं उतनी ही बड़ी ज़िम्मेदारी, आखिर युद्ध जीतने के लिए समर्पित विश्वासपात्र ही तो चाहिए। विचारक्रांति चुटकी बजाते ही, जादू की छड़ी की भांति, जादूगर के थैले में से निकल कर तो नहीं आएगी, इसके लिए कुछ एक मुट्ठी भर समर्पित साथिओं की ही आवश्यकता है। विशाल भारतीय सेना की भांति,ज्ञानरथ परिवार में चाहे 30-40 हज़ार सब्सक्राइबर्स क्यों न हों, 50 लाख Viewers क्यों न हों, युद्ध तो कमांडर -इन-चीफ एवं उसके साथ 10-20 अग्रिम पंक्ति वाले ऑफिसर्स ही जितवाते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि हम में से कितनों के अंदर 10-20 की अग्रिम पंक्ति में आने की प्रचंड ज्वाला भड़क रही है, कितनों का समर्पण एवं पात्रता गुरु को अपना दास बनाने की क्षमता रखता है ताकि दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द जी की भांति, गुरुदेव भी आपकी कोठरी में आकर आपको पिछले जन्मों के दर्शन करा दें। यह बात तो सत्य है कि हमारे पूर्व जन्मों के कर्म ही इस जन्म को दिशा दे रहे हैं क्योंकि जो कुछ अपने जीवन में इस समय घटित होता देख रहे हैं, इस जन्म के 40-50 वर्षों का तो हो नहीं सकता।
ज़रा सोचिये !!!!!!
*****************
आज 410 कमैंट्स मिले एवं 8 युगसैनिकों ने, 24 से अधिक आहुतियां (कमैंट्स) प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है। सभी का धन्यवाद्