वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“उपासना-साधना-आराधना” लेख श्रृंखला का सारांश एवं आगे की रण नीति 

विश्वभर में फैले ऑनलाइन ज्ञानरथ  गायत्री परिवारजनों को उनके समय के अनुसार दीपावली की हार्दिक शुभकामना।

हम सबके  प्रिय एवं परम पूज्य गुरुदेव के समर्पित शिष्य आदरणीय श्रद्धेय डॉ साहिब के अवतरण दिवस की, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर  से भावपूर्ण शुभकामना एवं बधाई,  आज का प्रज्ञागीत उसी सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया है।     

आज के ज्ञानप्रसाद लेख में उपासना के विषय पर प्लैन किये गए सारांश को प्रस्तुत करने से पहले हम आदरणीय सुजाता उपध्याय बहिन जी द्वारा एनर्जी सेंटर्स से सम्बंधित उनके मन में उठ रहे  Confusion की संक्षित चर्चा करना चाहेंगें। 

एनर्जी सेंटर्स और तीनों  शरीरों के परस्पर सम्बन्ध के बारे में कल वाले लेख के ओपनिंग लाइन्स में भी सावधान रहने के लिए लिखा था। हमारे मन मस्तिष्क में पहले से ही उठ रही उथल पुथल को आदरणीय बहिन जी द्वारा भेजी गयी आधे-आधे घंटे की दो वीडियोस ने और भी तीव्र कर दिया। दोनों वीडियोस के लिंक नीचे दे रहे हैं एवं समर्पित साथिओं से निवेदन है कि जब भी  समय मिले इन वीडियोस को ध्यानपूर्वक देखकर, अपने अपने स्तर पर अतिरिक्त रिसर्च करके देखें कि स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर के किस चक्र के साथ किसका कनेक्शन है। हम भी अपने स्तर पर रिसर्च करते रहेंगें लेकिन जब तक हम किसी उचित (Solid) निष्कर्ष पर नहीं पंहुच पाते तब तक इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी को ही फाइनल समझना बेहतर होगा, हमें खेद है कि हम इस समय बिना रिसर्च किए  इस स्थिति में कुछ भी कहने में असमर्थ हैं।

आगे की रणनीति के बारे में संक्षेप से  कहना चाहेंगें कि सोमवार से कुछ छोटे-छोटे बहुत ही रोचक टॉपिक लेकर आने की योजना है।  यह कुछ ऐसे टॉपिक हैं जिनका हम सबके  जीवन से सीधा सम्बन्ध है। कुछ दिन पूर्व आदरणीय सरविन्द भाई साहिब ने कुछ विचार व्यक्त करने की इच्छा की थी,उनके विचारों को भी आने वाले दिनों में सादर निमंत्रण है। 

आइए अब चलते हैं “उपासना-साधना-आराधना” विषय पर कल ही समापन हुई लेख शृंखला के  सारांश की ओर। सारांश प्रकाशन का यह हमारा दूसरा प्रयास है, आशा करते हैं कि पहले प्रयास की भांति यह प्रयास भी हम सबके लिए लाभदायक सिद्ध होगा। सारांश और Revision का आईडिया हमने अपने विद्यार्थी जीवन से उधार लिया है जब हर रविवार को सप्ताह भर के सभी विषयों के चैप्टर्स को Revise किया जाता था। 

परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य पुस्तक पर आधारित “उपासना-साधना-आराधना” जिस लेख श्रृंखला का शुभारम्भ 17 अक्टूबर गुरुवार वाले दिन हुआ था,अगले सप्ताह 23 अक्टूबर को चार लेखों के बाद उसका समापन हुआ था। 

1.प्रथम लेख में गायत्री मंत्र के तीन भाग- प्रस्तावना, मेधा और प्रार्थना को समझने का प्रयास किया गया था। 

“प्रस्तावना” अर्थात Introduction part में जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ कि “ॐ भूर्भुवः स्वः” में  ब्रह्मांड के तीन लोकों का उल्लेख है। यह तीन लोक: 1) भूलोक/भौतिक लोक यानि हमारी पृथ्वी जिसमें हम सब वास करते हैं, 2) भुवलोक यानि अंतरिक्ष और 3) स्वर्गलोक यानि स्वर्ग/आध्यात्मिक जगत  दर्शाते हैं 

“मेधा” अर्थात Intelligence part  (तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि) के अनुसार हम सूर्य देवता/ सविता की उपासना करते हैं  जिसे “ज्ञान का प्रतीक” माना जाता है। यह भाग हमें उस “दिव्य ज्ञान” की ओर आकर्षित करता है जो हमारे अंतर्मन के अंधकार को दूर करता है और “आत्मज्ञान” की ओर जाने के लिए हमारा मार्गदर्शन करता है। 

“प्रार्थना” अर्थात  Prayer part (धियो यो नः प्रचोदयात्) के द्वारा हम अपनी बुद्धि को प्रेरित करने की प्रार्थना  करते हैं । यह हमें “उच्चतम सत्य” की खोज करने में सहायता  करता है और हमें अपने आत्मिक लक्ष्यों की ओर ले जाता है।

यहाँ हम अपने साथिओं को बताना चाहेंगें कि गुरुदेव के संरक्षण में विकसित हुए मसूरी इंटरनेशनल स्कूल के  Emblem पर भी  Prayer part “धियो यो नः प्रचोदयात्” ही अंकित है। 

अगर हमारे साथी अपने फ़ोन के होम पेज पर गायत्री मंत्र के यह तीन भाग सेव कर लें तो एक दो दिन में ही अर्थ स्मरण हो जायेगा।  

प्रथम अंक में ही बताया गया था कि उपासना-साधना-आराधना की त्रिवेणी में स्नान करने में  कौए से हंस बनने की शक्ति है। उपासना का अर्थ पूर्ण समर्पण के साथ पास बैठना हैं। ग्वाल बाल, रीछ वानर आदि के उदाहरण देकर समर्पण के विषय को समझने का प्रयास किया गया था। समर्पण से उनके अंदर ऐसी  शक्ति आ गयी कि गोवर्धन पर्वत उठाने और समुद्र के ऊपर रामसेतु बनाने में समर्थ हो गए। 

समर्पण के यह उदाहरण देकर जहाँ गुरुदेव हमें प्रेरित कर रहे हैं वहीँ सावधान भी करते हैं  कि कृपा करके आप  मछली पकड़ने वाले ,जाल बिछाने वाले,चिड़िया पकड़ने वाले साधक मत  बनना। ऐसे साधक मत बनना जो आटे की गोली और चावल के दाने फेंककर मछली को फाँस लेते, पकड़ लेते हैं । आप ऐसे उपासक मत बनना, जो भगवान् को फांसने  के लिए तरह- तरह के प्रलोभन फेंकते हैं।

भगवान रुपी “पावर जनरेटर” से तार जोड़ने की बात इसी लेख में बताई गयी थी। तार जोड़ने के बाद ही भगवान की शक्ति का प्रवाह आरम्भ होता  है। 

2.शृंखला के दूसरे अंक में “साधना” का अर्थ बताया गया था। 

साधना का अर्थ होता है “साध लेना, स्वयं को  सँभाल लेना, स्वयं को सीधा करना, तपा लेना, गर्म कर लेना, परिष्कृत कर लेना, शक्तिवान बना लेना, यह सभी अर्थ साधना के हैं। सर्कस के जानवरों का उदाहरण दिया गया था।  भगवान् के  प्रेम और आशीर्वाद में रंग जाने की बात भी की गयी थी, उस रंग में रंगने के बाद कुछ करने को बचता ही नहीं है। पात्रता को विकसित करने का प्रश्न इतना महत्वपूर्ण है कि आए दिन इस मंच पर पात्रता की बात होती रहती है। पात्रता विकसित करने के लिए आत्मसुधार अति आवश्यक है। वाल्मीकि के उदाहरण से बताया गया कि  ने जब उन्होंने अपना आत्मसुधार किया तो वोह भगवान् के परमप्रिय भक्त हो गये। उनकी वाणी में ऐसी शक्ति आ गयी कि डकैती तक  छोड़ दी। कहने का अर्थ  है कि आप स्वयं को धोकर इतना निर्मल बना लें कि भगवान् आपको प्यार करने को  विवश हो जाएँ । सर्वविदित सिद्धांत के अनुसार जीभ पर काबू रखने की , ईमानदारी की कमाई खाने की , बेईमानी से दूर रहने की, जीवन में सादा जीवन उच्च विचार लाने की बात पर बल दिया गया था । पेट भरने  के लिए दो मुट्ठी अनाज और तन ढँकने के लिए थोड़ा-सा कपड़ा चाहिए, जो सहज ही प्राप्त हो सकता है। 

आत्मसुधार की यह बातें किसी को भी बताई जाएँ तो एक ही प्रतिक्रिया मिलेगी, “यह किसको नहीं पता? फ्री में भाषण नहीं चाहिए।” अगर पता है तो शुद्ध  एवं पवित्र जीवन क्यों नहीं बिताते,औसत भारतीय का जीवन  क्यों नहीं बिता पाते, क्यों IPhone से ही पेट भरता है, साधारण फ़ोन से  नहीं । इसका कारण है कि मनुष्य बड़ा बनने की भागदौड़ में लगा हुआ है। गुरुदेव ने बहुत ही सरल सा सूत्र दिया था कि बेटे तू करता वही है जो तू चाहता है, लेकिन होता वही है जो ईश्वर चाहते हैं। एक बार वोह करके देख जो ईश्वर चाहते हैं फिर वही होगा जो तू चाहता है।

3.तीसरे अंक में बताया गया था कि सच्ची आराधना “बोना और काटना”  है, न कि  मंदिर में घंटी बजाना। गुरुदेव ने अपने शरीर पर  एक लेबोरेटरी की भांति प्रयोग किये और जो परिणाम प्राप्त  हुए वोह  हम बच्चों के लिए प्रस्तुत किये । “बोओ और काटो” के सिद्धांत को गुरुदेव ने दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द जी का उदाहरण देकर समझाया। दादा गुरु का रेफरेन्स देते हुए गुरुदेव कहते हैं कि दादा गुरु ने 1926 को हमारे घर की कोठरी में आकर हमसे कहा कि बेटे फ्री में खाने एवं भिखारी की तरह माँगने की विद्या छोड़कर बोने और काटने की विद्या सीख,उन्होंने बताया  कि तुम्हें 24 वर्ष तक गायत्री के 24 महापुरश्चरण करने होंगे, जौ की रोटी एवं छाछ पर रह कर निर्वाह करना  होगा। उन्होंने जो भी विधि बतायी, हमने उसे नोट कर लिया । बोने और काटने की बात समझाते हुए उन्होंने कहा कि यह सारा विश्व ही भगवान् का खेत है। इसे ही “विराट्ब्रह्म” कहते हैं। अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी “विराट्ब्रह्म” का दर्शन कराया था।

हमारे ही परिवार का “बोने और काटने का साक्षात् उदाहरण” हमारी समर्पित आदरणीय साथी सुमनलता बहिन जी के द्वारा आदरणीय अरुण जी का सहायता करने का न केवल रेफरेन्स दिया बल्कि विस्तृत लेख का लिंक भी दिया गया था। 

इसी अंक में दो मालिओं की कथा भी  बताई गयी थी जिसमें एक ने तो मात्र राजा का चित्र लगा कर तिलक आदि ही किया जब कि दूसरा पूरे समर्पण भाव से खेती करता रहा, परिणाम हम सबने देख ही लिया था कि जो  हर कार्य को समर्पित होकर  करता है उसे ही फल पाने का हक़ मिलता है, ऐसे ही समर्पण की इस परिवार में आवश्यकता है।  

यहाँ गाँठ बांधने वाली यह बात है कि क्या गुरुदेव ने हमें दिव्य चक्षु दिए और हमने विराटब्रह्म के दर्शन किये ? 

4.चौथे अंक में गुरुदेव “साधना से सिद्धि” की बात करते हैं। गुरुदेव अपने जीवन के 75 पन्नों को पढ़ने की बात करते हैं, इससे सम्बंधित दिव्य, बहुचर्चित वीडियो भी इसी अंक में प्रस्तुत की गयी थी  गुरुदेव बताते हैं कि अगर साधना क्रिया है तो सिद्धि उसकी प्राप्ति है। सागर के तल से मोती प्राप्त करने को सिद्धि का नाम दे सकते हैं।

इसी लेख में चर्चा की गयी थी कि अनेकों साधकों की विकलता  है कि “साधना तो बहुत की लेकिन  सिद्धि नहीं मिली। तप तो बहुत किया लेकिन  तृप्ति नहीं मिली।” सालों-साल लगातार  साधना करने के बाद वे सोचने लगते हैं, क्या साधना का विज्ञान मिथ्या है? क्या इसकी तकनीकों में कोई त्रुटि है? ऐसे अनेकों प्रश्न कंटक उनके अन्तःकरण में हर पल चुभते रहते हैं। निरन्तर की चुभन से उनकी अन्तरात्मा में घाव हो जाता है जिससे वेदना रिसती रहती है, यह चुभन और रिसन की पीड़ा  बड़ी ही असह्य होती है, यह दर्द बड़ा ही दारुण होता है । तकनीक की त्रुटि को समझने के लिए गोरखनाथ जी द्वारा दिया गया  “बाल्टी में छेद” का उदाहरण बहुत ही रोचक एवं शिक्षाप्रद था , 

साथिओं को कहानी तो अवश्य ही स्मरण हो आयी होगी,यही है साधना से सिद्धि का मर्म । “मन की बाल्टी” ठीक हो तो साधना सिद्धिदायी होती है। मन की बाल्टी में छेद हो तो तप तो खूब होता है,तृप्ति नहीं मिलती। भगवान् कभी भी किसी से रूठे नहीं रहते। बस साधक के मन की बाल्टी ठीक होनी चाहिए। कुआँ तो सदा ही पानी देने के लिए तैयार है। उसकी ओर से कभी भी इन्कार नहीं होता ।

इस श्रृंखला के साथ-साथ सामान्य गायत्री साधना, सरलतम गायत्री साधना (जिसमें स्लाइड्स भी प्रस्तुत की थीं ताकि उनकी सहायता से सामने रखकर गुरुदेव के निर्देशों का पालन किया जाये), कठिनतम गायत्री साधना जिसे केवल शांतिकुंज में ही किसी की निगरानी में किया जा सकता है और  सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि को भी यथासंभव समझने का प्रयास किया गया था। 

समापन, इतिश्री

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कल वाले ज्ञानप्रसाद को 555  कमैंट्स प्राप्त हुए,13 साधकों ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान करके ज्ञानयज्ञ का पुण्य प्राप्त किया है जिसके लिए सभी का धन्यवाद् करते हैं। 

जय गुरुदेव


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