28 अक्टूबर 2024 सोमवार का ज्ञानप्रसाद
9 सितम्बर 2024 को “ध्यान” के विषय पर आरम्भ हुए लगभग 27 लेखों का विस्तृत अमृतपान करने के बाद साथिओं के पास शायद ही कोई ऐसा प्रश्न हो जिसका उत्तर Unanswered रह गया हो।
आज सोमवार को ध्यान के अंतिम चैप्टर की ओर अग्रसर होने का समय आ गया है। इस सप्ताह में इस विषय का सुखद समापन होने की सम्भावना तो है लेकिन उसके बाद वाले लेख इतने रोचक और ज्ञानवर्धक हैं कि हमारे मन में उठ रही उत्सुकता का वर्णन करने के लिए हमारे पास शब्द ही नहीं हैं।
आज का लेख “सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि” के ओपनिंग रिमार्क्स लिए हुए है।
ज्ञानप्रसाद लेखों द्वारा सबसे सरल,सुगम और सबसे कठिन ध्यान प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन किया गया है, साधक अपनी समर्था के अनुसार जहाँ से आरम्भ करना चाहे कर सकता है, लेकिन लेखों का उद्देश्य तभी पूर्ण समझा जायेगा जब “शुभारम्भ” हो पायेगा।
आज का ज्ञानप्रसाद लेख आरम्भ करने से पहले कुछ ऐसे अपडेट शेयर करने की आज्ञा चाहते हैं जिसके प्रति हम में से किसी का भी कण्ट्रोल नहीं है, बिन बताए ही ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण पल हमारे अंतःकरण को झकजोड़ देते हैं।
परिवार में दो दुःखद घटनाएं हुई हैं : आदरणीय निशा भारद्वाज जी के जेठ जी के दामाद की मृत्यु और आदरणीय सरविन्द जी के मामा जी की मृत्यु से सारा परिवार ही शोकसंतप्त है। हमारे पास भाव संवेदना के शब्द कहने के सिवाय और कोई विकल्प ही नहीं है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर से दोनों परिवारों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करने के लिए गुरुदेव से निवेदन है।
शनिवार को प्रकाशित हुए “विशेष विशेषांक” के सम्बन्ध में जो कमेंट पोस्ट हुए उन सभी को “मात्र कमेंट” कहना अनुचित होगा। सभी कमेंट ऐसी भावना व्यक्त कर रहे थे जैसे लिखने वाले ने अपना दिल ही खोल कर रख दिया हो। गुरुदेव का “प्यार,प्यार और केवल प्यार” का उद्धघोष प्रतक्ष्य सार्थक होता दिख रहा था। अपने बच्चों में, परिवार में, सहकारिता, प्रेम और सम्मान की भावना देख कर अपने गुरुदेव कितना प्रसन्न हो रहे होंगें, इन्हें शब्दों में वर्णन करना हमारे लिए लगभग असंभव ही है। अधिकतर कमेंट हमारे सम्मान में बहुत कुछ कहते दिखे, यह तो पोस्ट करने वालों की महानता है लेकिन हम बार-बार कहते आये हैं, आज फिर से कह रहे हैं, हम बिलकुल ही साधारण से, आप जैसे इंसान हैं। चलो आपकी बात मान ही लें, अगर साथिओं की दृष्टि में हम सम्मानीय हैं तो उसका श्रेय भी मेरे गुरु को ही जाता है जिसने हम जैसे नाचीज़ को फर्श से उठा कर अर्श पर बिठा दिया ,यह है मेरे गुरु की शक्ति। अगर अब भी गुरु की शक्ति पर कोई प्रश्नचिन्ह लगाता है तो उसका कुछ नहीं हो सकता। परिवार के अनेकों साथी गुरुदेव पर विश्वास करके बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं जबकि शंकित लोग इधर से उधर गुरु का मूल्यांकन करते, एक जगह से दूसरी जगह भटकते फिर रहे हैं।
हमने बहुत प्रयास करके कुछ एक साथिओं के कमेंटस को रिप्लाई करने का प्रयास किया लेकिन क्या करें शब्द ही कम पड़ गए, हो सकता है अपनी शक्ति बटोर कर नवंबर के अंक में कुछ लिख पाएं, तब तक के लिए क्षमा याचना के इलावा कुछ कहना कठिन ही होगा। सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्।
इसी अपडेट के बाद अब समय आ चुका है कि गुरुचरणों में समर्पित होकर गुरुकुल की गुरुकक्षा में अमृतरूपी गुरुज्ञान की जन्मघूंटी की कुछ बूँदें अपने गले में उतार ली जाएँ। हमारा विश्वास है कि इस ज्ञानामृत की एक-एक बूद जिसने ग्रहण कर ली, उसका कायाकल्प सुनिश्चित है, अनेकों साधक इस तथ्य के प्रतक्ष्य साक्षी हैं।
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परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य रचना “जीवन साधना की चिंतन पद्धति” में प्रकाशित लेख “सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि, Complete and easy method of worship” आरंभिक साधकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण लेख है। यह लेख एवं ऐसे ही कुछ लेख समय-समय पर साधकों की सुविधा के लिए अखंड ज्योति में प्रकाशित होते आये हैं ताकि गुरुदेव के बच्चों को किसी प्रकार की कोई कठिनाई न आये।
इस लेख में गुरुदेव बता रहे हैं कि उपासना का महत्व और आवश्यकता समझ लेने के बाद इस अनिवार्य आवश्यक कृत्य को आरम्भ करने में तनिक भी विलम्ब न करना चाहिए। यों तो उपासना के लिए किसी भी पद्धति को अपनाया जा सकता है क्योंकि श्रद्धा और भावना के अनुरूप सभी उपासनायें समान रूप से लाभदायी सिद्ध होती हैं लेकिन हमारी दृष्टि में और निज के अनुभवों के आधार पर हम कह सकते हैं कि वेदमाता,देवमाता, विश्वमाता माँ गायत्री का आंचल पकड़ना हर दृष्टि से लाभप्रद है। हम तो इतना भी कह सकते हैं कि जब अन्य उपासनाएँ गायत्री-संध्या के बिना वांछित लाभ नहीं पहुंचा सकतीं, उन उपासनाओं को करते समय भी माँ गायत्री का दामन पकड़ना पड़ता है तो क्यों न गायत्री मंत्र की उपासना को ही अपनी नित्य उपासना और इष्ट उपासना बनाया जाय।
गायत्री मन्त्र की उपासना हर दृष्टि से लाभप्रद है, यह समझ लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति को नियमित गायत्री उपासना अविलम्ब प्रारम्भ कर ही देनी चाहिए।
उपासना के लिए समय न मिलने की बात आत्म प्रवंचना युक्त (Self deceptive) अर्थात स्वयं को धोखा देने के लिए बनाई हुई है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन, पूरे दिन के 24 घण्टे का समय ही मिलता है। उसका उपयोग महत्वपूर्ण कार्यों में ही करना समझदारी है। कम महत्व के कार्यों में कटौती करके सभी लोग समय निकाल ही सकते हैं। यदि आलस्य, अवसाद में नष्ट होने वाले समय को ही बचा लिया जाए, तो भी पर्याप्त समय निकल सकता है।
समय आभाव के सन्दर्भ में हम आदरणीय चिन्मय भैया जी की बात कई बार रेफर कर चुके हैं, साथिओं की आज्ञा से एक बार फिर से रिपीट कर सकते हैं। भैया जी से अपने प्रथम रेडियो इंटरव्यू में हमने प्रश्न किया था कि इतनी वव्यस्तता में आपको सभी कार्य निश्चित समयानुसार करने के लिए समय कैसे मिल जाता है। सुबह आप देव संस्कृति यूनिवर्सिटी में अपनी क्लास के विद्यार्थिओं का Viva ले रहे होते हैं और रात को आपका लंदन हीथ्रो एयरपोर्ट पर स्वागत हो रहा होता है। उनका रिप्लाई हमें आज तक स्मरण है, “त्रिखा जी Time management तो करना ही पड़ता है।” इसी तरह की एक और घटना का वर्णन करना चाहेंगें, इस धारणा के साथ कि हमें अपने साथिओं की पूर्वसम्मति प्राप्त है। किसी आयोजन में एक ही टेबल पर हम दो परिवार के चार साथी बैठे थे, हम दोनों और वोह पति-पत्नी। इस दम्पति के साथ टेबल शेयर करने का हमारा पहला ही संयोग था। भाई साहिब की आयु लगभग 85 वर्ष की होगी। वैसे तो गुरुदेव की बात उन्हें आदर सम्मान मिलना सुनश्चित करने के बाद ही करते हैं लेकिन दम्पति की ओर से पूछे जाने पर हमने अपनी दिनचर्या का संक्षिप्त सा वर्णन दिया ,बहिन जी ने कुछ अनमनी सी रूचि तो दिखाई लेकिन भाई साहिब का रूखा सा बर्ताव ही दिखा। भाई साहिब जो भी कार्य करते हों, उसका महत्व नहीं है लेकिन इस आयु में भी यह कहना कि हमें तो समय ही नहीं मिलता, पता नहीं कब दिन चढ़ता है और कब रात हो जाती है, हम तो काम को छोड़ना चाहते हैं लेकिन काम हमें नहीं छोड़ता, बहुत सारे लोग हम पर आश्रित हैं। उनकी दृष्टि में हम कोई निम्नस्तर के Hand to mouth जीवन व्यतीत करने वाले प्राणी थे। Making the long story short – ऐसे ही लोग हैं जिन्हें समय का आभाव रहता है,millions और billions की सम्पति अर्जित करने के बाद भी धन और सम्पति के साथ ऐसे चिपके बैठे हैं,धन अर्जन को ही सब कुछ मानते हैं जैसे यह सब अपने साथ ले जाएंगें।
बड़ी ही सावधानी से, शब्दों की मर्यादा का पालन करते हुए हम अपने अंतःकरण की गहराईओं से कहना चाहेंगें कि मेरे गुरु की शिक्षा ऐसे लोगों के लिए नहीं है, मेरा गुरु इतना सस्ता नहीं है कि इतने सस्ते विज्ञापन में बिक जाए, इनके जीवन का अंत तो मृगतृष्णा की अंधी भागदौड़ में ही भागते-भागते हो जायेगा लेकिन “समय जैसी अमूल्य निधि” हाथ न लग पायेगी।
धन्य हैं हमारे छोटे से परिवार के समर्पित साथी जिन्हें हमारे फकीर गुरु ने बाढ़ग्रस्त मथुरा की नालिओं में हाथ डाल कर निकाला, साफ़ करके, हीरे जवाहरात की भांति सम्मान देकर ऐसा कायाकल्प किया कि सभी एक ही स्वर में कह उठते हैं, “गुरु का कार्य सर्वोपरि है, उसके लिए हमारे पास समय ही समय है” क्योंकि वोह उस गुरु का कार्य कर रहे हैं जो अपने बच्चे की पीड़ा को देखकर,खाना छोड़कर कंधे पर उठाकर हॉस्पिटल पंहुचाता है, आइए परम पूज्य गुरुदेव को सभी सामूहिक नमन करें और “सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि” की और कदम बढ़ाएं।
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“सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना” पद्धति अपनाने के लिए साधक को लगभग 45 मिनट का समय लगाना चाहिए। उसमें 30 मिनट का समय जप एवं ध्यान के लिए तथा शेष समय आगे पीछे के अन्य कर्मकाण्डों के लिए निर्धारित रखना चाहिए। प्रारम्भ में जिनसे इतना न बन पड़े वे न्यूनतम 10 मिनट से भी शुरुआत कर सकते हैं। उसमें केवल एक माला जप के लिए 6 मिनट तथा शेष 4 मिनट में षट्कर्म- (1) पवित्रीकरण, (2) आचमन, (3) शिखाबन्धन, (4) प्राणायाम, (5) न्यास, (6) पृथ्वी पूजन,आदि कृत्य पूरे किए जा सकते हैं।
उपासना आरम्भ करने से पूर्व, नित्यकर्म से निवृत्त होना,शरीर, वस्त्र और स्नान उपकरणों की अधिकाधिक स्वच्छता के लिये तत्परता बरतना आवश्यक है। स्नान और धुले वस्त्र बदलने से “मन में पवित्रता” का संचार होता है, चित्त प्रफुल्लित रहता है। आलस्यवश मलीनता को लादे रहने से मन भारी रहता है, उपासना से जी उचटता है, जंभाई आती है ऊब लगती है और अधिक बैठना भारी पड़ता है। स्थान और पूजा उपकरणों की मलीनता से मन में अरुचि उत्पन्न होती है और उत्साह घटता है।
इसलिए आवश्यक है कि उपासना स्थल को, पूजा के पात्र उपकरण आदि को स्वच्छ करने की बात को महत्व दिया ही जाना चाहिए। अधिक ठण्ड, बीमारी, पानी का अभाव, स्थान की असुविधा जैसी कठिनाइयां उत्पन्न हो जाने पर तो बिना स्नान के, हाथ मुंह धोकर भी पूजा पर बैठा जा सकता है लेकिन सामान्य स्थिति में आलस्यवश ऐसी उपेक्षा नहीं बरती जानी चाहिए। बीमारी की यां अन्य विवशता की परिस्थितियों में, सफर में बिना कुछ क्रियाकृत्य किए भी मानसिक उपासना की जा सकती है।
आज के लेख का यहीं पर समापन होता है, कल यहीं से आगे चलेंगें।
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शनिवार के स्पेशल सेगमेंट को 538 कमैंट्स प्राप्त हुए, 10 साधकों ने 24 से अधिक आहुतियां प्रदान करके ज्ञानयज्ञ की शोभा बड़ाई है जिसके लिए सभी का धन्यवाद् करते हैं।
जय गुरुदेव