हमारी सबकी आदरणीय एवं सर्वप्रिय बहिन सुमनलता जी द्वारा माह का अंतिम शनिवार हमारी “मन की बात” के लिए रिज़र्व करना,सच में हमारे लिए बहुत ही सम्मान की बात है जिसके लिए बहिन जी का धन्यवाद् करते हैं। माह के बाकि तीन शनिवार पूर्णतया परिवार के साथिओं के लिए रिज़र्व किये हुए हैं।
लगभग 6 माह पूर्व आद. सुमनलता बहिन जी के सुझाव का सम्मान करते हुए एवं अन्य साथिओं की सहमति से 27 अप्रैल शनिवार को “हमारे लिए रिज़र्व” किये गए सेगमेंट का प्रथम अंक प्रकाशित किया गया था।
आज का यह अंक प्रारम्भ करने से पहले ही कहना चाहेंगें कि हम कोई लेखक तो है नहीं, रिसर्च पेपर और थीसिस आदि लिखने/लिखवाने की बात अलग है; जब ज्ञानप्रसाद लिखने की बात आती है तो भावना और ह्रदय की बात आगे आ खड़ी होती है। गुरु के ज्ञान को समझना, अपने अंतर्मन में उतारना, ज्ञानप्राप्ति के बाद उठ रही भावनाओं को अपने अनेकों साथियों के हृदय के कोने-कोने में दस्तक लगाना, बहुत ही चुनौती भरी परीक्षा है।
हर बार की भांति आज भी इस अति विशिष्ट सेगमेंट को लिखने से पहले ह्रदय पटल पर विचारों की सुनामी बाढ़ जिस प्रकार ठाठें मार रही है उसे Summarize करके, कम से कम शब्दों में, अंतःकरण की भूख को तृप्त करने के लिए एक रोचक सी रेसिपी से उत्कृष्ट भोजन परोसना हमारे लिए एक बहुत बड़ी समस्या/चुनौती बन रही है। अगर हम कहें कि यह चुनौती केवल हमारे लिए ही नहीं होती बल्कि हमारे ह्रदय में विराजमान प्रत्येक परिवारजन के लिए भी होती है तो शायद अनुचित न हो। अगर ऐसा न होता तो 28 सितम्बर वाले पिछले अंक को 3500 शब्दों के विस्तृत कमेंट न पोस्ट हुए होते। 11 साथिओं के यह कमेंट केवल विस्तृत ही न होकर, ह्रदय की गहराईओं से निकली रक्तरंजित बूंदे थीं, ऐसी बूँदें जो किसी भी भावनाशील मनुष्य के नेत्रों से अश्रुधारा की बाढ़ ला दें। ऐसी Two-sided भावनाएं ही इस नन्हें से, छोटे से परिवार को “एक यूनिक परिवार” के विशेषण से सुशोभित करने का सामर्थ्य रखने में सहायक होती हैं।
जितनी चुनौती हमें इस “विशेष विशेषांक” को Compile करने में आती है उससे कहीं बड़ी चुनौती हमारे साथिओं को आती है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि अगर हमारे पास उनके ह्रदय के कोने में झांक कर देखने की समर्था हो, वहां उठते हुए विचारों का मूल्यांकन करने की शक्ति हो तो यही निष्कर्ष निकालता है कि उनके द्वारा लिखा गया एक-एक शब्द कोई साधारण शब्द नहीं है। एक-एक शब्द हर्ष, उल्लास,वेदना आदि की भावना को ठीक उसी तरह वर्णन कर रहा होता है जैसे एक अनुशासित परिवार में,सभी का सम्मान करते हुए, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष,शिशु-वरिष्ठ द्वारा रखा जाता है। हमारी नन्हीं सी पोती और आदरणीय कुसुम त्रिपाठी बहिन जी की “मानवीय मूल्यों की समर्पित शिष्या” काव्या बेटी के बारे में तो कह सकते हैं कि यदि किसी ने नियमितता का पाठ पढ़ना है तो उसी से सीख लें। सबसे छोटी सहकर्मी (काव्या) और वरिष्ठ (अनेकों) साथिओं के सहयोग ने ही इस परिवार को ऊपर उठाने में योगदान दिया, जिसके लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद् करते हैं।
अखंड ज्योति के जुलाई 1940 अंक में परम पूज्य गुरुदेव ने “साधकों का पृष्ठ” शीर्षक से एक सेक्शन का शुभारम्भ किया था जिसके अंतर्गत प्रकाशित होने वाले आरंभिक आर्टिकल साथिओं को आमंत्रित करके ही लिखवाए गए थे, बाद में इसे “ अपनों से अपनी बात” में परिवर्तित कर दिया गया था।
यहाँ हम आदरणीय अरुण वर्मा जी के उस कमेंट का रेफरेन्स दिए बिना नहीं रह सकते जो उन्होंने पिछले “विशेष विशेषांक” को रिप्लाई करते लिखा था। उन्होंने लिखा था कि आज का सन्देश भी गुरुदेव ने हाथ पकड़ कर ही लिखवाया है। अरुण जी के यह शब्द गुरुदेव की शक्ति और मार्गदर्शन को परिपक्व करते हैं जब हमने कुछ वर्ष पूर्व शनिवार वाले “अपने सहकर्मियों की कलम से” विशेषांक का शुभारम्भ किया था। बहिन सुमनलता जी ने महीने के अंतिम शनिवार को हमारे लिए रिज़र्व करके इस विशेषांक को और भी विशेष बना दिया, इसीलिए इसे “विशेष विशेषांक” के विशेषण से सम्मानित और सुशोभित किया जा रहा है।
उस समय तो हमने गुरुदेव का 1940 वाला लेख देखा तक नहीं था, तो हुई न यह भी गुरुदेव की ही योजना।
जिन साथिओं को परम पूज्य गुरुदेव की विश्व्यापी शक्ति के प्रति ज़रा सी भी शंका है, उनके लिए गुरुदेव को समझने के लिए ऐसे छोटे-छोटे उदाहरण बहुत ही लाभदायक हो सकते हैं। इसी सन्दर्भ में आदरणीय महेंद्र जी के शब्द स्मरण हो रहे हैं जिन्हें आत्मसात करना ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक साथी का धर्म एवं कर्तव्य है :
“कौन बताएगा कि मेरा गुरु कितना शक्तिशाली है ? यह बताना हम बच्चों का ही कर्तव्य है।”
आज के इस विशेष विशेषांक के आरम्भ में ही लिख चुके हैं, फिर से लिख रहे हैं कि न तो हम कोई लेखक हैं और न ही हमारी लेखनी ऐसी है जिससे हम किसी को प्रभावित कर पाएं, बस जब लिखना आरम्भ करते हैं तो पता नहीं कैसे गुरु ऊँगली पकड़ कर लिखवा लेते हैं, फ़ोन पर भी जब बात करना आरम्भ करते हैं तो ऐसा अनुभव होता है पता नहीं वर्षों के बिछड़े मिले हों, हम भूल ही जाते हैं कि किसी का समय बर्बाद हो रहा होगा।
लेखनी के बहाव में आज हम आदरणीय सुमनलता बहिन जी द्वारा समय-समय पर हमारे लिए प्रयोग किये गए सम्बोधनों( विशेषणों) के बारे में अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं। सुमनलता बहिन जी ने अवश्य ही इतने विशेषण प्रयोग किये हैं कि शायद कहीं डिक्शनरी ही कम न पढ़ जाए। संध्या बहिन जी जैसे अनेकों साथी भी पीछे नहीं हैं। संध्या बहिन जी ने निम्नलिखित स्टेटमेंट लिख कर हमें तो दुविधा में डाल दिया :
“अरुण भाई साहिब गोवर्धन उठाए हैं,हम तो मात्र छड़ी थामे हैं।”
साथिओं द्वारा प्रयोग किये जा रहे निम्नलिखित सभी संबोधन हमारे लिए एक चैलेंज/चुनौती का सन्देश लेकर आते हैं :
“ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के संस्थापक, गुरु स्वरूप, गुरु जी, प्रधानाध्यापक, शिष्य शिरोमणि, मनीषी,संयोजक, प्रकाशक, सेलिब्रिटी, अध्यक्ष, व्यवस्थापक,निर्माता , निर्देशक, ज्ञानदाता, लेखक, प्रस्तोता, जीवनदानी, निष्काम कर्मयोगी,मनस्वी-लेखक,शिक्षक,प्राचार्य, Trained शेफ”
इससे कदापि इंकार नहीं किया जा सकता यह विशेषण हृदय की गहराईओं से निकल कर आये हैं जिनके प्रति आभार प्रकट करने के लिए हमारे पास शब्दों का दुर्भिक्ष जैसा ही प्रतीत होता है लेकिन हम भी अपने ह्रदय से एक बात कहना अपना धर्म समझते हैं :
जब भी कोई नया विशेषण प्रयोग होता देखते हैं तो शरीर में एक सिहरन, एक इलेक्ट्रिक करंट सी दौड़ जाती है कि हमारे लिए “एक नई चुनौती की दस्तक” है। बाल्यकाल से ही (शायद हमारे Genes में ही है ) शब्दों के पीछे जाना, उनकी मीन मेख निकालना, उनका विश्लेषण करना एक “बुरी” आदत सी बन चुकी है। शायद इसी आदत ने हमसे न जाने कितने ही लेख लिखवा लिए, रिसर्च पेपर लिखवा लिए और इन पंक्तियों को भी लिखवा रही है।
उदाहरण के लिए अगर बहिन जी ने प्रधानाध्यापक शब्द का प्रयोग किया है तो एकदम इस शब्द के साथ जुड़े सभी उत्तरदाईत्व आँखों के सामने घूमते चले जाते हैं और एक नवीन/अद्भुत ऊर्जा का संचार होकर, रक्तगति इतनी तेज़ हो जाती है कि और भी उत्कृष्ट और उच्चस्तरीय गुरुकार्य करने का सन्देश उजागर होता है। हमारे साथी जानते हैं कि दैनिक ज्ञानप्रसाद लेख,साप्ताहिक वीडियोस, साप्ताहिक विशेषांक,वीडियो शॉर्ट्स, दैनिक शुभरात्रि/दिव्य सन्देश और यहाँ तक कि दैनिक कमैंट्स में भी क्वालिटी का Compromise बिलकुल नहीं होता। कहीं पर भी Cut/paste/post वाली धारणा का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि जिनके समक्ष यह “आत्मा का भोजन” परोसा जा रहा है, कोई ऐसे वैसे साधक नहीं हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति कराना हमारा ही कर्तव्य है। बहिन जी ने अगर हमें प्रिंसिपल की उपाधि देकर सम्मानित किया है तो उस उपाधि का पालन करना हमारा ही कर्तव्य है। कर्तव्यनिष्ठा का पालन न करने के कारण बहिन जी यां हमारे साथी हमें Fire करने से तो शायद बख़्श दें लेकिन सबसे बड़े निरीक्षक/न्यायाधीश, परम पूज्य गुरुदेव से कैसे बच पायेंगें।
Rights and responsibilities, वसीयत और विरासत (Will and inheritance) की बात तो अनेकों बार हो चुकी है, आगे भी होती रहेगी कि अगर बहिन जी यां हमारा कोई भी साथी हमारा Right समझ कर हमें कोई उपाधि/पद प्रदान करता है तो, पद ग्रहण करने से पहले ज़िम्मेदारी आती है। गुरुदेव की संतान होने में तो हमें गर्व अनुभव करना ही चाहिए। संतान को अपने माता पिता की सम्पति, वसीयत बिना एफिडेविट लिखे भी मिल जाती है लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह उठता है कि क्या संतान उस सम्पति का सदुपयोग कर रही है।
परम पूज्य गुरुदेव का जीवन एक खुली पुस्तक की भांति है,वोह इतने दयालू हैं कि उन्होंने अपना विशाल “अमूल्य ज्ञानकोष” हमारे लिए न केवल खोल कर फ्री में उपलब्ध करा दिया बल्कि Copyright की धारा को भी हटा दिया। एक बार शांतिकुंज में किसी ने परम पूज्य गुरुदेव से Copyright violation की शिकायत तो गुरुदेव कहने लगे “कोई बात नहीं बेटे , मेरे साहित्य का प्रचार ही तो हो रहा है, अगर कोई गलत काम करेगा, मेरे विचारों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करेगा तो उसे स्वयं ही फल मिल जायेगा” यही कारण है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर प्रकाशित होने वाले प्रत्येक कंटेंट के साथ Source अवश्य अंकित होता है।
आदरणीय सुमनलता बहिन जी एवं अन्य साथिओं का विशेषण के लिए आभार तो व्यक्त करते ही हैं लेकिन निवेदन भी करते हैं कि हर विशेषण के साथ Attached परीक्षा के कारण उठ रही तेज़ रक्तगति का भी कोई उपाय ढूंढ कर बताएं। परीक्षा से हमें बाल्यकाल से लेकर आज तक बहुत ही डर लगता है, आज भी अगर किसी परीक्षा में Appear होना पढ़ जाए तो शायद फेल ही हो जाएँ
साथिओं से करबद्ध निवेदन है कि अगर आपने ज़िम्मेदारी दी है तो हमारा मूल्यांकन भी आपके हाथों में ही है। इस परिवार के समर्पण की झलक हमारे यूट्यूब चैनल की निम्नलिखित Tagline से दर्शित होती है :
“हम अंतिम श्वास तक परम पूज्य गुरुदेव को समर्पित होने का संकल्प लिए हैं।
यह चैनल गायत्री परिवार एवं परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा जी को समर्पित है”।
गुरुदेव को विश्व के कोने कोने में स्थापित करना हमारा परम कर्तव्य है। हम आपकी आशाओं पर कितना उतर पाए हैं यह आप (केवल आप) ही बता सकते हैं और अगर आप संतुष्ट है तो अगला कदम गुरु के विचारों के प्रचार का ही है, इससे कम में बात बनने वाली नहीं है। समझा जा सकता है कि आज के युग में तरह-तरह की परिस्थितिओं में दरवेश जैसे गुरु के विचारों को, बिना किसी विज्ञापन के प्रचार करना, घर घर में पहुँचाना कोई सरल कार्य नहीं है लेकिन अगर आज के “कंप्यूटर युग” में कुछ नहीं हो सकता तो फिर कभी भी न हो पायेगा। पितातुल्य हमारे गुरुदेव एवं मातातुल्य वंदनीय माँ ने जो कष्ट सहे उससे हम सब भलीभांति परिचित हैं।
केवल पहला कदम उठाने की ही आवश्यकता है उसके बाद तो गुरुदेव स्वयं ही संभाल लेंगें।
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प्रेरणा बेटी के पॉडकास्ट को 508 कमैंट्स प्राप्त हुए, लेकिन शुक्रग्रह के प्रकोप ने संकल्प सूची को मात्र 9 युगसैनिकों तक सिकोड़ दिया, जैसी प्रभु इच्छा। सभी का धन्यवाद्। जय गुरुदेव