23 अक्टूबर 2024 बुधवार का ज्ञानप्रसाद-उपासना-साधना-आराधना
17 अक्टूबर को “उपासना-साधना-आराधना (USA)” विषय पर आरम्भ हुई ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला परम पूज्य गुरुदेव द्वारा मार्च 1980 में युगतीर्थ शांतिकुंज के प्रांगण में दिए गए उद्बोधन पर आधारित है। लगभग 5000 शब्दों का यह उद्बोधन इसी शीर्षक से 32 पृष्ठों की पुस्तक फॉर्म में भी उपलब्ध है।
आज के लेख में गुरुदेव के उद्बोधन का “आराधना” का ही बचा हुआ भाग प्रस्तुत किया गया है, कमैंट्स साक्षी हैं कि हमारा प्रयास सफल हो रहा है ।
“गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है”, एक बहुचर्चित वाक्य है। आज के लेख में जब इसका वर्णन हुआ तो एकदम माथा ठनका कि इसे भी जानने का प्रयास किया जाए लेकिन समय और शब्दों की ज़ंजीरों ने हाथ जकड़े रखे।
सप्ताह का अंतिम लेख, कल (गुरुवार) वाला ज्ञानप्रसाद लेख इसी दिशा में एक प्रयास है, देखते हैं कि कामधेनु जो अपनी जन्म देने वाली माँ से भी अति लाभकारी होती है, गायत्री साधक के लिए क्या कुछ कर सकती है।
तो चलते हैं गुरुचरणों में समर्पित होकर गुरुकक्षा की ओर।
***********************
हम अपने पिता के वफादार बेटे हैं। हमने उनके धन को पाया है, क्योंकि हमने उनके नाम को बदनाम नहीं किया है। हमने अपने पिता की लाज रखी है। हमने अपने पिता के व्यवसाय को जिंदा रखा है। हमने उनके बगीचे को हमेशा हरा-भरा तथा अच्छा बनाने का प्रयास किया है। मनुष्यों को सुसंस्कारी तथा समुन्नत बनाने के लिए जो भी संभव था,उसे हमने पूरा किया है। हमारे पिता हमसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। युवराज वह होता है, जो अपने पिता जैसा ही हो जाता है। हम अपने पिता के युवराज हैं। हम अपने पिता के समकक्ष हो गये हैं। हमने पिता के आदेश को ब्रह्माण्ड में से रिफ्लेक्ट होती आवाज़ के रूप में देखा है। हमने जैसा कहा, वैसा ही सुनने को मिला। हमने कहा कि हमारे पास जो कुछ भी है, वह सब आपका है। गुरु की वाणी रिफ्लेक्ट होकर वापिस आयी तो उसने भी कहा जो कुछ हमारे पास है, वह सब तुम्हारा है।
ऐसा होता है समर्पण और गुरु के प्रति विश्वास !!!
भगवान् हमेशा बॉडीगार्ड के रूप में हमारे इर्द गिर्द फिरते रहते हैं। वह कहते हैं कि कभी भी हिम्मत मत हारना, साहस मत खोना,हम ढाल बनकर तुम्हारी सुरक्षा करेंगें, शत्रु को धूल में मिला देंगे। हमारा बॉडीगार्ड, पायलट की भांति हमारे आगे-आगे चलता है। हम उसके पीछे चलते हैं। हमारा पायलट आगे चलता है और हम मिनिस्टर की भांति सुरक्षित होकर शान से,बेफिक्र होकर चलते हैं।
यह हमारा प्रत्यक्ष चमत्कार है, जो आप देख रहे हैं।ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से समय-समय पर गुरुदेव की शक्ति पर मोहर लगाता प्रकाशन होता आया है। “अद्भुत,आश्चर्यजनक किन्तु सत्य” सीरीज के अंतर्गत प्रकाशित हुआ कंटेंट परम पूज्य गुरुदेव की शक्तियों का ही वर्णन है।
साधना से सिद्धि :
आध्यात्मिक क्षेत्र में सिद्धि पाने के लिए अनेक लोग प्रयास करते हैं लेकिन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि उन्हें सिद्धि क्यों नहीं मिलती है? साधना से सिद्धि पाने का क्या रहस्य है? इस रहस्य को न जानने के कारण ही प्रायः लोग खाली हाथ रह जाते हैं। मित्रो, साधना की सिद्धि होना निश्चित है।
साधना सामान्य चीज नहीं है। यह असामान्य चीज है। परन्तु साधना को साधना की तरह किया जाना परम आवश्यक है। साधना कैसी होनी चाहिए इस सम्बन्ध में हम आपको पुस्तकों का हवाला देने के बजाए “अपने स्वयं के जीवन को पढ़ने को कहते हैं।”
हमारा जीवन एक खुली पुस्तक के रूप में है। हमने साधना की है। हमें उसका परिणाम भी मिला है, अगर आप भी हमारी जैसी साधना करेंगे तो आपको भी वही परिणाम अवश्य मिलेगा जो हमें मिला। इस संदर्भ में हम निम्नलिखित दो घटनाएँ सुनाना चाहते हैं:
1.हमारे पहले गुरु महामना मदनमोहन मालवीय हैं। पिताजी हमें उनके पास यज्ञोपवीत एवं दीक्षा दिलाने के लिए बनारस ले गये थे। मालवीय जी ने काशी में हमें यज्ञोपवीत पहनाया और दीक्षा देने के साथ बहुत-सी बातें बताईं। उस समय हमारी आयु मात्र 9 वर्ष की थी लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा उनमें से दो बातें हमें अभी भी स्मरण हैं। पहली बात उन्होंने कहा कि हमने जिस गायत्री मंत्र की दीक्षा दी है, वह “ब्राह्मणों की कामधेनु” है। हमने पूछा कि क्या यह अन्य लोगों की कामधेनु नहीं है? उन्होंने कहा कि नहीं, ब्राह्मण जन्म से नहीं, कर्म से होता है। जो ईमानदार, नेक, शरीफ है तथा जो समाज के लिए, देश के लिए, लोकहित के लिए जीता है, उसे “ब्राह्मण” कहते हैं। जो मनुष्य एक औसत भारतीय की तरह जीता है तथा स्वयं को समाज के लिए समर्पित कर देता है उसे “ब्राह्मण” कहते हैं। हमने मालवीय जी के सामने संकल्प लिया था कि हम “ब्राह्मण” का जीवन जिएँगें। हमने प्रारंभ से ही वैसा जीवन जिया है।
2.हमारे दूसरे आध्यात्मिक गुरु सर्वेश्वरानन्द जी हैं,जो हिमालयवासी हैं और जो सूक्ष्म-शरीरधारी हैं, उन्होंने हमारे घर में प्रकाश के रूप में आकर दीक्षा दी। पहले उन्होंने हमें पूर्व के तीन जन्मों की बातें दिखाईं, उसके बाद उन्होंने हमें गायत्री मंत्र की दीक्षा दी। हमने कहा कि गायत्री मंत्र की दीक्षा तो हम पहले से लिए हुए हैं, फिर दोबारा लेने का क्या अर्थ है? उन्होंने कहा कि आपके पहले गुरु ने यह कहा था कि गायत्री ब्राह्मणों की है। अब हम तुम्हें “बोओ और काटो” का मंत्र बताते हैं। एक ऐसा मंत्र जिसका पालन करते हुए हमने अपने पिता की सम्पत्ति को भी लोकमंगल में लगा दिया। दादागुरु ने चार चीजों को भगवान् के खेत में लगाने के लिए कहा। समय, श्रम, बुद्धि (जो भगवान् से मिली है) और धन (जो संसार में कमाया जाता है)। गुरुदेव बता रहे हैं कि ये चारों चीजें हमने समाज में लगा दीं। इसके द्वारा हमारी दैनिक पूजा, उपासना,साधना और आराधना हो गयी। हमारे ब्राह्मण-जीवन का यही चमत्कार है। यही हमारी पूजा है।
गुरुदेव द्वारा किए गए समयदान के बारे में जानने के लिए हमने गुरुदेव के 75 वर्ष की 75 पन्नों की पुस्तक का लिंक दिया है, 1987 में प्रकाशित हुई इस वीडियो को देखकर हमारे साथी स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि उन्होंने 75 वर्षों में क्या किया है, कितना किया है।
भगवान् अच्छाइयों का समुच्चय हैं ,उन्हीं को समर्पण करके हमने सब कुछ किया है। हमारी उपासना और साधना ऐसी है कि हमने जिन्दगी भर धोबी के तरीके से स्वयं को धोया है और अपनी कमियों को चुन-चुनकर निकालने का प्रयत्न किया है। समाज को ऊँचा उठाने के लिए की ही आराधना की है। अपने मुख से अपनी बढ़ाई कहना उचित नहीं है। आप यहाँ आइए और दूसरों के मुख से सुनिये। हम सामान्य व्यक्ति नहीं हैं, असामान्य व्यक्ति हैं। हमें यह सब उपासना, साधना और आराधना के द्वारा मिला है। आप भी अगर इन तीनों चीजों का समन्वय अपने जीवन में करेंगे, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको “साधना से सिद्धि” अवश्य मिलेगी।
“साधना से सिद्धि” का टॉपिक बहुत ही विस्तृत और उच्च लेवल के ज्ञान वाला है, इसे पासिंग रेफरन्स की तरह समझना अनुचित है लेकिन इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि साधना से सिद्धि का मर्म क्या है।
अगर साधना क्रिया है तो सिद्धि उसकी प्राप्ति है। सागर के तल से मोती प्राप्त करने को सिद्धि का नाम दे सकते हैं। आइए चलते चलते,निम्नलिखित कथा से साधना से सिद्धि का आईडिया ही ले लें :
अनेकों साधकों की विकलता है कि साधना तो बहुत की लेकिन सिद्धि नहीं मिली। तप तो बहुत किया लेकिन तृप्ति नहीं मिली। सालों-साल लगातार साधना करने के बाद वे सोचने लगते हैं, क्या साधना का विज्ञान मिथ्या है? क्या इसकी तकनीकों में कोई त्रुटि है? ऐसे अनेकों प्रश्न कंटक उनके अन्तःकरण में हर पल चुभते रहते हैं। निरन्तर की चुभन से उनकी अन्तरात्मा में घाव हो जाता है जिससे वेदना रिसती रहती है, यह चुभन और रिसन की पीड़ा बड़ी ही असह्य होती है, यह दर्द बड़ा ही दारुण होता है ।
महायोगी गोरखनाथ जी इस पीड़ा का समाधान बताते हुए कहते हैं : हमारा एक युवा शिष्य एक दिन ऐसी ही पीड़ा से ग्रसित था। वेदना की विकलता की स्पष्ट छाप उसके चेहरे पर थी। एक छोटे से नाले को पार करके वह एक खेत की मेंड़ पर हताश बैठा था। रात प्रायः बीत गयी थी। खेतों पर सुबह का सूरज फैलने लगा था। पास से गुजरती बैलगाड़ी की आवाज सुनकर चाँदनी के फूलों सी बगुलों की पात सूरज की ओर उड़ गयी। शिष्य ने बड़ी ही निराश नजरों से ऊपर देखा। तभी उसे पास के खेत से हम आते दिखाई दिए। चरणों पर सिर रखकर प्रणाम करते हुए उसने पूछा, “गुरुदेव! मेरी वर्षों की साधना निष्फल क्यों हुई? भगवान् मुझसे इतना रूठे क्यों हैं?” हम हँसे और कहने लगे:
“पुत्र! कल मैं एक बगीचे में गया था। वहाँ कुछ दूसरे युवक भी थे। उनमें से एक को प्यास लगी थी। उसने बाल्टी कुएँ में डाली, कुआँ गहरा था। बाल्टी खींचने में भारी श्रम करना पड़ा। लेकिन जब बाल्टी लौटी तो खाली थी। उस युवक के सभी साथी हँसने लगे। मैंने देखा, यह बाल्टी तो ठीक मनुष्य के अन्तःकरण जैसी है इसमें छेद ही छेद हैं। यह तो बस कहने भर को बाल्टी थी, उसमें छेद ही छेद थे। बाल्टी कुएँ में गयी, पानी भी भरा लेकिन सब बह गया। वत्स! साधक के मन की भी यही दशा है। इस “छेद वाले मन” से कितनी ही साधना करो, छेदों के कारण सिद्धि नहीं मिलेगी, कितना ही तप करो पर तृप्ति नहीं मिलेगी । सिद्धि और तृप्ति चाहिए तो पहले मन के छेदों को मिटाओ। अपने दोष, दुर्गुणों को दूर करो। पहले संयम, उसके बाद साधना और फिर जाकर सिद्धि।
यही है साधना से सिद्धि का मर्म ।
अपने मन की बाल्टी ठीक हो तो साधना सिद्धिदायी होती है। मन की बाल्टी में छेद हो तो तप तो खूब होता है,तृप्ति नहीं मिलती। भगवान् कभी भी किसी से रूठे नहीं रहते। बस साधक के मन की बाल्टी ठीक होनी चाहिए। कुआँ तो सदा ही पानी देने के लिए तैयार है। उसकी ओर से कभी भी इन्कार नहीं होता ।
इस कहानी के बाद आइए फिर से गुरु चरणों में समर्पित हो जाएँ।
गुरुवर हमसे कह रहे हैं :
आप अपना सामर्थ्य केवल अपने परिवार के लिए ही मत खर्च कीजिए बल्कि कुछ हिस्सा भगवान् के लिए भी रिज़र्व कर दीजिये। साथ ही हम यह भी कहते हैं कि “बोइये और काटिये”। फिर देखिये कि जीवन में क्या-क्या चमत्कार होते हैं। आप अपना श्रम, समय, साधन जनहित में, लोकमंगल में, पिछड़ों को ऊँचा उठाने में लगाएँ। अगर आप इतना करेंगे, तो विश्वास रखिये आपको “साधना से सिद्धि” मिल सकती है। हमने इसी आधार पर सब कुछ पाया है और आप भी पा सकेंगे, परन्तु आपको सही रूप से इन तीनों को पूरा करना होगा। आपकी साधना तब तक सफल नहीं होगी, जब तक आप हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलेंगे। यदि आप हमारे कंधे से कंधा मिलाकर और कदम से कदम मिलाकर चल सकें, तो हम आपको यकीन दिलाते हैं कि आपका जीवन धन्य हो जाएगा, आने वाली पीढ़ियाँ आपको श्रद्धापूर्वक याद रखेंगी।
उपासना-साधना-आराधना लेख श्रृंखला का समापन
***************
कल वाले लेख को 609 कमैंट्स प्राप्त हुए, 16 युगसैनिकों (साधकों) ने 24 से अधिक आहुतियां (कमैंट्स) प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है, हमारी हार्दिक बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग के लिए धन्यवाद्।अति सराहनीय
जय गुरुदेव