8 अक्टूबर 2024 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद लेख मात्र 1600 शब्दों (मात्र 3 ही पन्नें ) का ही है। बड़े-बड़े ज्ञानवर्धक लेख पढ़कर अगर हमारे साथी ऊब गए हैं तो आज का लेख कुछ Relief दे सकता है।
आज के लेख की रचना के पीछे आदरणीय नीरा जी का उत्कृष्ट योगदान है जिसके लिए हम उनका ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। लेख पोस्ट होने के तुरंत बाद ही अगले दिन के ज्ञानप्रसाद लेख की विचारणा आरम्भ हो जाती है, जब नीरा जी ने देखा कि आज इस लेख श्रृंखला का समापन हो गया है तो स्वाभाविक प्रश्न कर दिया कि “कल के लेख में क्या आने वाला है ?” जब हमने 13 लेखों के सारांश का विचार सामने रखा तो सहमति पाकर मन प्रसन्न तो हुआ लेकिन खेद भी हुआ कि यह तो One-on-one निर्णय हुआ, बाकी के साथी क्या सोचेंगें। खैर साथिओं के सहमति-विचारों की आशा के साथ आगे बढ़ते हैं।
10 सितंबर 2024 को “ध्यान क्यों करें, कैसे करें?” शीर्षक से आरंभ हुई लेख श्रृंखला का कल 7 अक्टूबर 2024 को समापन हुआ। लगभग एक माह ( 27 दिन Exact) तक चली यह लेख श्रृंखला कितनों को लाभ पंहुचा पाई, कितनों ने ध्यापूर्वक, एकाग्रचित होकर पढ़ा, कितनों ने यह सोचकर,सरसरी निगाह से पढ़ा कि ध्यान तो हम रोज़ ही कर रहे हैं, कौन सा कुछ नया मिलने वाला है, कितनों ने पढ़ना तो दूर देखा भी नहीं, इसका स्पष्ट मूल्यांकन करना बहुत ही कठिन है लेकिन असंभव नहीं है। कल के लेख पर आद. बहिन रेणु श्रीवास्तव जी ने कॉमेंट करके लेखक के श्रम और साधना के लाभ की बात की है। उसी भावना से लिख रहे हैं कि इन लेखों को जिसने भी नहीं पढ़ा, उसका दुर्भाग्य और जिसने गुरु के निर्देश अनुसार ध्यान से पढ़कर अंतःकरण में उतार लिया, उसका सौभाग्य है । जिसने नहीं पढ़ा, उसको भी सौभाग्य प्रदान कराने का प्रयास सदैव जारी रहेगा ताकि अधिक से अधिक साथी गुरुज्ञान प्राप्त करके कौए से हंस बन पाएं, हंस प्रवृति से अपनी दृष्टि बदल पाएं क्योंकि नज़रें बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं, उन अभागों के घरों में भी ज्ञान का प्रकाश सुख शांति लाने में सफल हो। आद. चंद्रेश जी ने यह लिखकर कि “ध्यान के बिना जीवन की गाड़ी एक कदम नहीं चल सकती” इस विषय को इतना सरल कर दिया कि नतमस्तक हैं।
आज के लेख के दो भाग हैं:
पहले भाग में लेख श्रृंखला के सभी 13 लेखों का संक्षिप्त सारांश दिया गया है ताकि जिन साथियों ने इन लेखों को देखा तक नहीं है, इस Summary को ही देख लें, शायद कुछ लाभ मिल जाए। अखंड ज्योति के चार लेख जिनके आधार पर यह लेख श्रृंखला Design की गई थी उन्हें पढ़ना, समझना शायद कइयों के लिए आसान हो लेकिन ज्ञानप्रसाद की कक्षा में, गुरुचरणों में समर्पित होकर उदाहरणों के साथ अध्ययन करना अपनेआप में एक “यूनिक प्रक्रिया” है। यही कारण है कि 17000 शब्द संख्या बढ़कर 23400 हो गई। प्रत्येक लेख में लगभग 500 एडिशनल शब्द शामिल हो जाने का कारण लेख की सरल उदाहरण-युक्त चर्चा ही हैं जो लेख को रोचक और प्रैक्टिकल बनाते हैं।
प्रस्तुत है प्रथम भाग:
13. श्रद्धा-चरित्र-उद्देश्य की त्रिवेणी के बिना कुछ भी बात नहीं बनती। पात्रता का विषय , जिसे बार-बार दोहराया गया है, उदाहरणों सहित इसी पार्ट में चर्चित रहा।
12. रावण, कुंभकर्ण, हिरणाक्ष्य आदि महारथियों के तप की बात हुई,स्वामी विवेकानंद का स्टोव वाला उदाहरण देकर प्रमाणित हुआ कि गुरु की शक्ति सुक्ष्म में भी कार्य करती है।
11. इस पार्ट में गुरू के साथ “शारीरिक मिलन” के बजाए, “आत्मिक मिलन”, “भावनात्मक मिलन” की बात की गई थी । ध्यान में एकाग्रता का बहुत बड़ा योगदान है । एकाग्र होकर ही ध्यान किया जा सकता है। गुरुदेव का तो दादागुरु के साथ मिलन था, वोह उन्हीं को ध्यान में देखते थे।जिन लोगों ने गुरुदेव को देखा है वोह गुरुदेव का ध्यान कर सकते हैं लेकिन जिन्होंने गुरुदेव को देखा तक नहीं हैं वोह “गुरुदेव के साहित्य का ध्यान” करके एकाग्रचित हो सकते हैं।
10. इस पार्ट में साकार और निराकार ध्यान की बात की थी। अर्जुन की देवलोक यात्रा में उर्वशी ने अर्जुन जैसा पुत्र पाने की बात की थी। इसी लेख में माता-पिता के प्यार की बात की गई थी जिसमें “एक आंख प्यार की एक आंख डांट की”, की बात हुई थी। इसी लेख में प्रारंभिक और अभ्यासी साधक की भी बात की गयी थी।
9.. इस पार्ट में “गलने और जलने” की बात की गई थी। दीपक स्वयं जल कर रोशनी प्रदान करता है, बीज गल कर विशाल वृक्ष बन कर कितनों को ही छाया के साथ-साथ फल भी प्रदान करता है। अमावस की रात में सितारों की बात, समुद्र में लाइट हाउस जैसे पथ प्रदर्शक की बात भी इसी लेख में हुई थी।
8. “एक समय पर एक ही तरह के चिंतन” के महत्व की बात 8वें पार्ट में की गई थी। Multitasking के सिद्धांत को नकारते हुए रोशन होने की बात इसी लेख में की गई थी। पूजास्थली में जल रहा दीपक प्रत्यक्ष प्रकाश के इलावा अक्ल के अंधों को मार्गदर्शन देने का प्रतीक है। तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात अंधकार से प्रकाश की बात भी इसी लेख में हुई थी।
7. गुरुदेव ने इस लेख में भगवान को अपना रिश्तेदार (अपना बेटा) बनाने की बात कही थी। इस लेख का संदेश “अपने साधनों एवम साधना का एक अंश भगवान के लिए” रखने वाली बात बहुत बड़ा संदेश है। लोकमान्य तिलक जी की सर्जरी वाली बात एकाग्रता का अतिविशिष्ट उदाहरण था।
6. “Rights and responsibilities” का तथ्य हर जगह यानि भगवान के साथ भी लागू होता है। पिता अपनी वसीयत में सारी विरासत इसी विश्वास के साथ दे देता है कि उसकी संतान वर्षों से अर्जित की हुई संपत्ति पर हक जमाने के साथ-साथ उसकी सम्पति की रक्षा भी करेगा। भगवान् ने हमारे समक्ष सारे ब्रह्माण्ड का कोष ही खोल कर रख दिया है, इस कोष की रक्षा करना हमारा ही परम कर्तव्य है।
5. “ध्यान के आध्यात्मिक और मेडिकल benefits” इसी लेख में वर्णित है। ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, स्ट्रेस जैसी बीमारियों के इलावा आत्म विश्वास,मानसिक तनाव, हिंसात्मक प्रवृति का शांत होना “ध्यान” करने के कुछ प्रत्क्षय लाभ हैं।
4. “तोरा मन दर्पण कहलाए” वाली बात बहुत ही रोचक थी। मन को “शरीर और आत्मा का सारथी” कहना बहुत ही उच्च चिंतन वाली बात थी। मन ही ईश्वर, मन ही देवता, मन से बड़ा न कोय, एक-एक शब्द के पीछे कैसा ज्ञान है, कहना संभव नहीं है।
3. मन को भगवान के साथ जोड़ने, अपने विचारों में लाने के सिवाय और कोई विकल्प है ही नहीं। जो-जो कर्मकाण्ड करें उसके मर्म को समझ कर अपने अंतःकरण में उतारना बहुत जरूरी है
2.शरीर की स्वच्छता से भी ऊपर है, आत्मा की स्वच्छता। स्वच्छ करने के बाद ही मां बेटे को गले लगाती है। भगवान भी “साधक की आत्मा का मूल्यांकन, स्वच्छ होने के बाद ही करते हैं, उसके बाद ही गले लगाते हैं। मनुष्य के अस्तित्व के तीन भाग और 3 प्रकार के मनुष्य शरीर;स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर की जानकारी अति उत्तम थी। केले के तने की परतें , प्याज के छिलकों की परतें, बनियान से लेकर जैकेट के उदाहरण अति उत्तम थे।
1. क्रिया और विचार, मन और शरीर,आत्मा और परमात्मा के समन्वय (unification) को ध्यान कहते है। जब तक यह समन्वय नहीं होगा तब तक ध्यान नहीं होगा, एकाग्रता नहीं होगी, स्थिरता नहीं होगी, Concentration नहीं होगी तो ध्यान केवल एक शारीरिक प्रक्रिया बनकर रह जाएगी। पहलवान वाला लाभ तो शायद मिल जाए इससे अधिक और कुछ भी मिलने वाला नहीं है। योग की स्थिति कभी भी नहीं आएगी, सब व्यर्थ ही जायेगा।
इसीलिए एक परिश्रमी विद्यार्थी की भांति, जिसे टॉप ही करना है, की धारणा से बार-बार निम्नलिखित तथ्य को Tagline बना कर बल दिया जाता रहा:
ध्यानपूर्वक ध्यान देकर “ध्यान” करो, फिर कभी भी नहीं कहोगे कि “ध्यान” में मन नहीं टिकता,पूर्णतया सार्थक है
दूसरा भाग “ध्यान के विषय पर ही” कल से आरंभ होने वाली लेख श्रृंखला की पृष्ठभूमि है।
यदि हम कहें कि प्रस्तुत किए गए 13 लेखों की सहायता से हम केवल ज्ञान की नर्सरी कक्षा में स्थिर होकर बैठने में सफल हुए हैं तो शायद गलत न हो। अगर हम इस बाल-कक्षा में दिए गए छोटे-छोटे Test (Assignments), activity, projects सफलता पूर्वक कर पाए तो समझ लेना चाहिए कि यह 13 कक्षाएं सार्थक रहीं।
“ध्यान साधना” का विषय इतना विशाल और विस्तृत है कि यदि इसे जीवन भर की Exercise कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्या कोई ऐसा कार्य है जिसमें ध्यान-एकाग्रता की आवश्यकता नहीं है ? शायद कोई भी नहीं। इस विशाल विषय को कुछ एक लेखों में बांध पाना असम्भव तो है, लेकिन जितना भी प्राम्भिक प्रयास हम कर पाते हैं, लाभकारी ही रहेगा। शायद कठिन एवं नए-नवीन प्रयोग हमारे DNA में ही रच बस चुके हैं।
13 लेखों के ज्ञान का मूल्यांकन कल वाले लेख से ही हो जाएगा जब उस ज्ञान की सहायता से “प्रारंभिक ध्यान साधना” का प्रयास किया जायेगा। उसके बाद “प्रौढ़ ध्यान साधना” और फिर “उच्चस्तरीय ध्यान साधना” के लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की योजना है । गुरुदेव ने अपने बच्चों की सुगमता के लिए ध्यान इस यात्रा में एक स्थान पर ऐसा भी लिखा है कि यदि साधक इस स्टेज को पार कर लेता है तो समझ लेना चाहिए कि 75% यात्रा पूर्ण हो गई। उसके आगे की कठिन चढ़ाई की चिंता अभी नहीं करनी चाहिए।
यही है कल के लेख की रूपरेखा।
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कल वाले समापन लेख को 564 कमैंट्स मिले, 12 युगसैनिकों (साधकों) ने, 24 से अधिक आहुतियां (कमैंट्स) प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है जिसके लिए सभी को बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग के लिए धन्यवाद्। जय गुरुदेव