वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ध्यान क्यों करें, कैसे करें ? पार्ट 13 

“ध्यान क्यों करें, कैसे करें” विषय पर जून,1977 में गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज में परम पूज्य गुरुदेव ने अपने बच्चों की सुविधा एवं ट्रेनिंग के लिए एक विस्तृत उद्बोधन दिया। यह उद्बोधन अखंड ज्योति नवंबर, दिसंबर 2002 के दो अंक और जनवरी, फरवरी 2003 के दो अंकों में प्रकाशित हुआ ।इन चार अंकों के विशाल कंटेंट (लगभग 17000 शब्द)  को आधार बनाकर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकक्षा में इस गुरुज्ञान को समझने का प्रयास किया जा रहा है। आज गुरुकक्षा में इस गुरुज्ञान श्रृंखला का 13वां   पार्ट प्रस्तुत है। 

वर्तमान लेख श्रृंखला की Tagline -ध्यानपूर्वक ध्यान देकर “ध्यान” करो, फिर कभी भी नहीं कहोगे कि “ध्यान” में मन नहीं टिकता,पूर्णतया सार्थक है। 

आज सोमवार को, सप्ताह के प्रथम दिन पर इस लेख शृंखला का अंतिम लेख प्रस्तुत करके समापन हो रहा है लेकिन हम अपने समर्पित साथिओं को बताना चाहेंगें कि इस विषय का समापन न समझा जाए। ऐसा इसलिए  कहना उचित समझा जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर इतना कुछ प्रकाशित हो चुका  है कि इसे समापन के बजाए “मध्यांतर” कहा जाए तो शायद अनुचित न हो। गुरुदेव ने स्वयं ही कुछ ऐसे प्रकाशन हमारे  हाथ में थमा दिए हैं कि आने वाले दिनों में “ध्यान” के विषय पर ही कुछ और अधिक  लिखने की प्रेरणा हो रही है। अभी तक तो हम सब थ्योरी ( कभी कभी प्रैक्टिकल) ही समझ रहे थे लेकिन अब समय आ गया है कि “चंचल मन” को समझा बुझाकर। एकाग्रचित, स्थिर करके  बिठा दिया जाए और उसे साधना के भिन्न-भिन्न स्तरों से परिचित कराया जाए। गुरुदेव अपने बच्चों की पात्रता से भलीभांति परिचित हैं, एक जगह लिखते हैं की अगर आप इस स्तर की साधना में सफल हो गए तो समझ लेना कि 75 % लक्ष्य पूर्ण हो गया। बचे हुए 25 % की अभी चिंता करने की ज़रुरत नहीं है।         

आज के लेख का Crux “श्रद्धा-चरित्र-उद्देश्य” की त्रिवेणी के इर्द गिर्द ही घूम रहा है। गुरुदेव समापन करते हुए विश्वास दिला रहे हैं कि स्वार्थ को छोड़ अगर इन तीनों को अपने जीवन में उतारा जाए तो आप वोह सबकुछ प्राप्त कर सकते हैं जो हमने अपने गुरु से प्राप्त किया। पात्रता की बात अनेकों बार हुई है, आज फिर हमारे स्वयं के विचारों से इस लेख  सरलीकरण किया गया है, आशा है अनेकों सहपाठिओं के लिए यह सरलीकरण सहायक होगा।

तो आइए सभ शिष्यगण गुरुचरणों में समर्पित होने के लिए गुरुकक्षा की ओर  प्रस्थान करें। 

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कर्मकाँड के साथ में जुड़े हुए विचार, विचारों के साथ जुड़ी हुई भावनाएँ, भावनाओं से ओतप्रोत, रसविभोर, हमारा जीवन आनंद से सराबोर हो जाए, तो उसका परिणाम हमारे जीवन में संत के रूप में सामने आएगा। यह सब करने के बाद आप देखिए कि संत बनते हैं कि नहीं बनते, ऋषि बनते हैं कि नहीं एवं  भगवान का अनुग्रह प्राप्त होता है कि नहीं।  

रामकृष्ण परमहंस ने जन्म−जन्माँतरों की उपासना की और विवेकानंद ने थोड़े ही दिनों में उनकी उपासना की शक्ति का फल प्राप्त कर लिया। आप भी हमसे वोह सब कुछ थोड़ी देर में ही  प्राप्त कर सकते हैं, जो हमने वर्षों की साधना से प्राप्त किया है।

अपनी वर्षों की लम्बी साधना के सन्दर्भ में गौमाता का निम्नलिखित उदाहरण देते हैं :    

गुरुदेव बताते हैं कि गाय 24 घंटे घास खा कर, हज़म करके दूध पैदा करती है, उसका बछड़ा ( यहाँ तक कि मनुष्य भी)  पैदा हुए दूध को कुछ ही मिंटों में पीकर तृप्त हो जाता है। जिस प्रकार गाय अपना दूध बछड़े को पिला  कर संतुष्ट होती है वैसे  ही हम अपनी “साधना का ज्ञान” अपने बच्चों को बांटने में उत्सुक रहते हैं। परम पूज्य गुरुदेव ज्ञान को बाँटने के पीछे एक बहुत बड़ी शर्त रख रहे हैं और वोह शर्त यह है कि कोई भी अनुदान फ्री में नहीं मिलता। हम सब जानते हैं कि गाय से दूध प्राप्त करने के लिए किसान को कितनी कढ़ी मेहनत करनी पड़ती है तब कहीं जाकर दूध प्राप्त होता है। इस मेहनत को परम पूज्य गुरुदेव “पात्रता” की परिभाषा देते हैं। सरल हिंदी भाषा में पात्रता का अर्थ पात्र यानि बर्तन से समझा जा सकता है। चम्मच,गिलास,जग, सरोवर आदि सभी की पात्रता अलग-अलग होने के कारण Capacity भी अलग-अलग है। इसी तथ्य को नौकरी का उदाहरण देकर भी समझा जा सकता है। जितनी बड़ी Qualification and experience उतनी बड़ी नौकरी। एक तरफ तो बेरोज़गारी का रोना रोया जाता रहता है, दूसरी तरफ Employer रो रहा है कि  Suitable candidate मिलना बहुत कठिन है। इसका अर्थ वंदनीय माता जी की उस वीडियो से समझा जा सकता है जहाँ वोह कह रही  हैं की गाय के थन दूध पिलाने के फट रहे हैं, दुग्धपान करने वाला  कोई “सुपात्र” तो मिले। ऐरे गैरे को तो दूध नहीं पिलाया जा सकता है। हर किसी को तो गाय का दूध हज़म भी नहीं होता, नवजात शिशु को तो माँ पानी मिला कर दूध देती है, कहीं उसका पेट न ख़राब हो जाए। गुरु के अनुदान भी पात्रता Check  करने के बाद ही मिलते हैं, ठीक उसी तरह जैसे नौकरी का Process आरम्भ करने  से पहले Candidate के Certificate आदि Check किये जाते हैं।      

परम पूज्य गुरुदेव पात्रता को विकसित (To attain the qualifications for a job) करने का आग्रह  रहे हैं। आम जीवन में तो जैसे-तैसे सिफारिश आदि चला कर नौकरी मिल जाती है लेकिन गुरु के दरबार में केवल वही सफल होता है जिसने सही मायनों में सच्ची कठिन साधना से अपनी पात्रता विकसित कर ली है।बिना पात्रता विकसित किए “साधना के अनुदान” प्राप्त करने का अर्थ ठीक उसी तरह है जैसे किसी सिफारशी को उच्च पद दे दिया जाए, और फिर जो परिणाम मिलते हैं वोह हम सब आए दिन देख रहे हैं। यह तो  गलत हाथों में ज्ञान देना जैसा होगा। ऐसा करने से साधना के अनुदानों का दुरूपयोग तो होगा ही, बच्चों को भी कोई लाभ नहीं होगा। 

पात्रता विकसित करने के लिए “अटूट श्रद्धा” का होना बहुत ही आवश्यक है। “अटूट श्रद्धा” ही पात्रता का मापदंड है।  मनुष्य जितनी भी घंटी बजा ले, हवन कर लें, व्रत आदि कर ले, Loud music चलाकर अपनी भक्ति का विज्ञापन कर ले,सच्ची उपासना वही है जो अंतकरण से निकलती है। भगवान के आदेशों (आदर्शों) पर चलने को ही श्रद्धा/विश्वास का नाम दिया गया है। भगवान पर विश्वास के आधार पर यदि आप श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए, आदर्शवादी जीवन जीने के लिए तैयार होते हैं, तो आप अपनी नाव उस पार तो ले जाएँगे ही, अन्य असंख्यों को भी तार देंगे,अपनी नाव पर बिठाकर ले जाएँगे।

गुरुदेव  श्रद्धा के साथ ही चरित्र और  उद्देश्य की भी बात करते हैं। श्रद्धा,चरित्र और उद्देश्य  की त्रिवेणी से किसी उच्च उद्देश्य के लिए भगवान् से मांगने पर अवश्य ही अनेकों अनुदान प्राप्त होते हैं। जब कोई बालक अपने पिता से धन माँगता है तो पहला प्रश्न यही पूछा  जाता है “किसलिए” अर्थात क्या उद्देश्य है। जब पिता को विश्वास हो जाता है कि बालक ऐसे उद्देश्य के लिए धन मांग रहा है जिसमें लाभ ही लाभ है अर्थात उसकी Investment की Return अच्छी है तो पिता सहर्ष धन दे देता है। ऐसी लाभदायक Investment के लिए पिता Loan लेकर भी देने को तैयार रहता है। यह बात भगवान् के अनुदान प्राप्त करने के लिए भी शत प्रतिशत सत्य है।भगवान् भी अपने अनुदान देने से पहले सुनिश्चित करते हैं किआपका उद्देश्य क्या है। आप ऊँचे उद्देश्य के लिए भजन कीजिए, चरित्रवान बनिए, श्रद्धा से अपना अंतःकरण का परिशोधन कीजिए। भजन की मात्रा कम/ज्यादा हो, इससे कोई पहाड़ नहीं टूटने वाला। श्रद्धापूर्वक किये गए थोड़े से भजन में भी चमत्कार हो सकते हैं, शर्त केवल यही  है कि उसमें खाद−पानी देने और निराई का क्रम निरंतर जारी रखा जाए । गाँधी जी केवल आधा घंटा ही नियमितता से भजन करते थे। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में नियमितता और एकाग्रता का पाठ अनवरत पढ़ाया एवं स्मरण कराया जाता है क्योंकि ज्ञान-साधना (ज्ञानप्रसाद लेखों का अध्ययन) उन्हीं के लिए सिद्ध होती दिख रहा  है जो परिवार के नियमों का पालन कर रहे हैं।    

साधना के ही संदर्भ में अक्सर देखा गया है कि घर की गृहणी जिसका मुख्य काम परिवार का पालन पोषण हुआ करता था सूर्योदय से पूर्व उठकर, नहा धोकर, पूजा पाठ करके सुनिश्चित करती रही है कि परिवार के एक एक सदस्य का ख्याल रखा जाए। ऐसी नारिओं को ज्ञान था कि यह सारा विश्व  भगवान का विशाल खेत है इसमें निस्वार्थ भाव से बीज बोना ही सच्ची साधना है। दूसरी तरफ ऐसी भी गृहणियां देखी  गयी हैं जिन्हें परिवार की कोई चिंता/फिक्र नहीं है, वोह चाहे भूखे पेट जाएँ, विज्ञापनरूपी भजन कीर्तन सबसे आवश्यक हैं, हमने अपने जीवन में ऐसे दृश्य भी देखे हैं जहाँ गायत्री मंत्र के उच्चारण को बीच में रोक कर बच्चों को डांटा भी जा रहा है,गालियां भी दी जा रही थीं। ऐसी साधना  से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है।  

हमें यहाँ गुरुदेव का महत्वपूर्ण निर्देश/सन्देश गाँठ बाँध लेना चाहिए : 

अगर आप “श्रद्धा-चरित्र-उद्देश्य” की त्रिवेणी को धारण कर सकते हों तो ऋषियों की परंपरा से लेकर हमारी परंपरा तक, सब में एक ही बात चली आई कि भगवान का अनुग्रह आपको मिलेगा ही मिलेगा, भगवान का प्यार आपको मिलेगा ही। 

यहाँ प्रकाश और छाया के सिद्धांत  को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आप प्रकाश की ओर चलेंगे, तो छाया पीछे-पीछे  आ ही  जाएगी। छाया की ओर चलेंगे, तो प्रकाश भी नहीं रहेगा और छाया भी नहीं रहेगी। गुरुदेव बताते हैं कि  मैंने इसी आधार को सारे जीवन में  दिमाग में उतारा और  व्यवहार में लाया । जो आप आज देखते हैं  इसी आधार का परिणाम है जिसकी नाव में बैठकर मैं स्वयं भी  पार लग गया और असंख्यों को भी पार लगा दिया। आप भी यह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं  लेकिन शर्त यही है कि “आपका अध्यात्म सही” हो। 

इस उद्बोधन का समापन करते हुए मुझे विश्वास है कि आप सही अध्यात्म से परिचित हुए होंगें और उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करेंगें। मुझे आशा है कि आप इस पर विचार करेंगे और उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढालने की कोशिश करेंगे। अगर आप ऐसा कर सके तो मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि आपकी साधना सफल होकर रहेगी, आपका ध्यान अवश्य  ही लगेगा। 

समापन 

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शनिवार वाले विशेषांक  को 536  कमैंट्स मिले, 12  युगसैनिकों (साधकों) ने,  24 से अधिक आहुतियां (कमैंट्स)  प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है जिसके लिए सभी को बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग  के लिए धन्यवाद्। जय गुरुदेव


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