2 अक्टूबर 2024, बुधवार का ज्ञानप्रसाद-स्रोत- अखंड ज्योति नवंबर,दिसंबर 2002 एवं जनवरी, फरवरी 2003
https://youtu.be/L9sNLAephoQ?si=Ojc4WDnHpu5ZrpRR (गुरु ध्यान को समर्पित है आज का प्रज्ञागीत)
“ध्यान क्यों करें, कैसे करें” विषय पर जून,1977 में गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज में परम पूज्य गुरुदेव ने अपने बच्चों की सुविधा एवं ट्रेनिंग के लिए एक विस्तृत उद्बोधन दिया। यह उद्बोधन अखंड ज्योति नवंबर, दिसंबर 2002 के दो अंक और जनवरी, फरवरी 2003 के दो अंकों में प्रकाशित हुआ ।इन चार अंकों के विशाल कंटेंट (लगभग 17000 शब्द) को आधार बनाकर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकक्षा में इस गुरुज्ञान को समझने का प्रयास किया जा रहा है। आज गुरुकक्षा में इस गुरुज्ञान श्रृंखला का 11वां पार्ट प्रस्तुत है।
वर्तमान लेख श्रृंखला की Tagline -ध्यानपूर्वक ध्यान देकर “ध्यान” करो, फिर कभी भी नहीं कहोगे कि “ध्यान” में मन नहीं टिकता,पूर्णतया सार्थक है।
आज के लेख में गुरुदेव “आंतरिक मिलन” की बात कर रहे हैं। “ध्यान” की प्रक्रिया में प्रवेश करने के लिए शरीर के मिलन से भी अधिक महत्वपूर्ण “आंतरिक मिलन”, “भावनात्मक मिलन” है। गुरुदेव हमें यह भी समझा रहे हैं कि यदि “ध्यान” का उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है तो उसे ध्यान के बिना भी हासिल किया जा सकता है लेकिन उस स्थिति में लाभ के बजाए हानि होने का अंदेशा रहता है।
तो प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद।
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“शक्ति” प्राप्त करने के लिए “ध्यान” की प्रक्रिया :
परम पूज्य गुरुदेव हमें बता रहे हैं कि अभी हम आपको ध्यान से सम्बंधित प्रारंभिक शिक्षा ही दे रहे हैं। ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि हमें विश्वास हो जाए कि आप अपना परिशोधन कर सकते हैं ? क्या आप अपना चिंतन और अपने विचार बदल सकते हैं ? यदि हाँ, तो हम आपको शक्ति दिलाएँगे। “ब्रह्मवर्चस् साधना” में हम आपको शक्ति देने के लिए बुलाते हैं, लेकिन आपके लिए शर्त यही है कि आप अपने वर्तमान जीवन का स्वयं ही परिशोधन कर लें, उसके बाद ही प्राप्त होने वाली शक्ति लाभदायक हो सकती है,आपका भला कर सकती है। परिशोधन बिना प्राप्त हुई शक्ति असहनीय होती है, हानिकारक होती है । “ब्रह्मवर्चस साधना” पर परम पूज्य गुरुदेव ने एक उत्कृष्ट रचना लिखी है जिसे अभी प्रारंभिक कक्षाओं का विषय बनाना अनुचित ही होगा।
शक्ति को प्राप्त करना कठिन नहीं है, उसका सदुपयोग करना कठिन है। हमारे परिवारों में घी (Fat) का बहुत प्रयोग होता है। हम में से हर कोई जानता है कि घी वाले पकवान हज़म होने में बहुत समय लगाते हैं इनका सेवन पहलवानों के लिए तो उचित है जो अखाड़े में जाकर, कसरत करके Calories burn कर लेते हैं लेकिन जो लोग Physical activity नहीं करते उनके लिए Fatty food का सेवन हानिकारक है। इस चर्चा के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि जिन लोगों की पात्रता विकसित नहीं हुई है, अगर वोह गुरु की शक्ति को ग्रहण कर लें,तो हानिकारक हो होगी। उन्हें गुरु शक्ति हज़म नहीं होगी।
सर्वश्रेष्ठ ध्यान : गुरु का ध्यान
परमपूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि “गुरु का ध्यान करना” एवं “गुरु के साथ ध्यान करना” सर्वश्रेष्ठ ध्यान है। गुरुदेव घंटों भर अपने गुरु के सम्मुख बैठे रहते हैं क्योंकि उन दोनों के बीच ऐसे सूत्र स्थापित हो गए हैं कि शरीर का पता ही नहीं चलता। गुरुदेव और दादागुरु,आपस में बैठे हुए दो व्यक्तियों की भाँति घंटों बात करते रहते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। गुरुदेव को क्या दिक्कत आ जाती है, क्या परेशानी आ जाती है और उसका क्या हल हो सकता है, सभी के समाधान इस मिलन में मिल जाते हैं।
गुरुदेव ने प्रातःकाल 4:00 से 5:00 बजे का समय अपने बच्चों के लिए, परिजनों के लिए सुरक्षित रखा है। इस टाइम स्लॉट में जब कभी भी किसी को आवश्यकता पड़ती है, गुरुजी से कोई बात पूछनी है, परामर्श करना है,कोई सलाह लेनी है, किसी शक्ति की आवश्यकता है या कोई सहायता की जरूरत है, तो उस समय चुपचाप उठकर बैठ जाना चाहिए। गुरुदेव उस समय बिल्कुल उसी प्रकार के “ध्यान” के लिए कहते हैं जैसे वोह अपने गुरु के साथ करते हैं। जिस प्रकार मैं अनुभव करता हूँ कि मैं अपने गुरु की गोदी में बैठा हुआ हूँ और वोह वे मेरे सिर पर हाथ फेरते जा रहे हैं, मुझे अपार सुख-शांति का अनुभूति होती है ठीक उसी तरह आप भी हमारे साथ बैठिए। गुरुदेव बता रहे हैं कि जब हमें गायत्री माता का ध्यान आता है तो मन डाँवाडोल हो जाता है क्योंकि यह हमारी कल्पना की हुई मूर्ति है। कल्पना Imagination मात्र ही तो होती है, उस पर विश्वास करना/न करना मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है। यही कारण है कि फिल्मों/टीवी सीरियलस से पहले “काल्पनिकता” का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है, इसके बावजूद अनेकों व्यक्ति उन पर विश्वास करते हुए इन्वॉल्व होते देखे जा सकते हैं।
इस चर्चा में हम मंदिरों की प्रतिमाओं के प्रति, हमारी पूजास्थली में ईश्वर के चित्रों आदि के प्रति कोई भी विचार नहीं रख रहे हैं ,यह सभी की अपनी-अपनी धारणा है, विश्वास है।
गुरुदेव दादागुरु के बारे में बताते हैं कि जिनको मैंने देखा है,जाना है, जिनके ऊपर मेरा विश्वास है, जिनको मैं भगवान मानता हूँ और मैं जिनका दास हूँ, उनके बारे में कल्पना जैसा संदेह उत्पन्न नहीं होता है, संकल्प−विकल्प उत्पन्न नहीं होते, मुझे किसी की काल्पनिक शक्ल नहीं बनानी पड़ती। जिन गुरुजी को मैंने जाना है, देखा है, परखा है, मेरे ऊपर उनकी अपार कृपा का भार है तो उनकी कही बात क्यों न मानूँ।
कल वाले लेख पर कमेंट करते हुए हमारे समर्पित अरुण भाई साहिब ने भी लिखा था कि उनका मन न तो माँ गायत्री पर और न ही सविता देवता पर केंद्रित होता हैं, उनके समक्ष गुरुदेव की ही छवि होती है।
गुरुदेव बताते हैं कि वंदनीय माता जी गायत्री माता का ध्यान करती हैं। हम अपने गुरु का ध्यान करते हैं। चौबीस घंटे हमको एक (हमारा गुरु) ही छवि दिखाई पड़ती है। जब हमारे आत्मोत्थान का द्वार खुलता है, तो हमको वही दाढ़ी दिखाई पड़ती है, वही चमक दिखाई पड़ती है, बड़ी−बड़ी तेजस्वी आँखें दिखाई पड़ती हैं, लंबे वाले बाल दिखाई पड़ते हैं। हमें वोह दिखाई पड़ते हैं जो न कभी खाते हैं, न कभी पीते हैं। हमारे गुरु का ध्यान सूक्ष्म शरीर की भांति काम करता रहता है, मैंने तो उन्हीं को भगवान भी मान लिया है, उन्हीं को गायत्री माता भी वही मान लिया है। मेरा मन उन्हीं पर एकाग्र रहता है।
ध्यान में एकाग्रता का क्या स्थान है ?
जब एकाग्रता जम जाती है तो क्या होता है ? वे मेरे समीप ही दिखाई पड़ते रहते हैं। मुझे अब यह अनुभव नहीं होता कि हम अपनी कोठरी में अकेले रहते हैं या दो रहते हैं। मुझे यह लगता है कि हम दो रहते हैं और एक साथ में रहते हैं। अब मुझे बिलकुल ऐसा लगता है कि राम−लक्ष्मण कभी रहे होंगे, अर्जुन और कृष्ण कभी रहे होंगे। मैं उसी राह में स्वयं को यह अनुभव करता हूँ कि हम दो व्यक्ति साथ−साथ रहते हैं साथ−साथ चलते हैं और साथ−साथ खाते हैं बिल्कुल उसी तरह जैसे माँ काली के साथ रामकृष्ण परमहंस खाते थे। हम भी ऐसे ही अपने भगवान के साथ खाते रहते हैं। गुरुदेव बता रहे हैं कि इस तरह की अटूट श्रद्धा, भावना एवं विश्वास केवल हम ही जानते हैं, इसे देखने के लिए हम जैसी आंख चाहिए।
क्या आप भी ऐसी निष्ठा से, एकाग्रचित होकर “ध्यान” सकते हैं? बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है।
यदि इस तरह का “ध्यान” नहीं लगता हो तो समझ लेना चाहिए कि गुरु के प्रति आपकी श्रद्धा और विश्वास नहीं है।
अगर सचमुच श्रद्धा और विश्वास नहीं है तो आप ध्यान मत करना।
अगर आपके अंदर श्रद्धा−विश्वास है तो आप ऐसे भी ध्यान कर सकते हैं कि हम गुरुजी के पास बैठे हुए हैं, उनकी गोदी में बैठे हुए हैं। वे हमको प्यार करते हैं, हमको सलाह देते हैं। थोड़े दिन आप ऐसे ही ध्यान करना। थोड़े दिनों के बाद हमारी और आपकी Vibrations मिलने लगेंगीं,आदान−प्रदान का सिलसिला, शुरू हो जाएगा, आपकी बातें हम तक आनी आरम्भ हो जाएंगीं और हमारी बातें आप तक जाती रहेंगीं। यह तभी संभव हो पाएगा जब आप और हम “वास्तव” में मिलना शुरू कर दें। मिलने के बाद भी गुरुदेव द्वारा एक Tag लगाया हुआ है। वोह यह है कि यदि गुरुदेव की एवं हमारी शक्लें ही मिलती रहेंगी, तो बात नहीं बनेगी। हमें भावना को भी मिलाना होगा , हृदय को भी मिलाना होगा और मस्तिष्क को भी मिलाना है। इस तरह अगर हम “भीतर” से मिलने की स्टेज तक पँहुच पाते हैं तो फिर हमारा और आपका आदान−प्रदान स्वयं ही चालू हो जाएगा।
यहाँ पर गुरुदेव हमें एक तथ्य से अवगत कराना चाहते हैं और वोह तथ्य है कि अगर ऐसा आंतरिक मिलन नहीं होता तो क्या ध्यान नहीं लगाया जा सकता। गुरुदेव ने तो दादागुरु के साथ साक्षत्कार किया था, वोह तो अपने गुरु के प्रति समर्पित थे, लेकिन उन लोगों का क्या जिनका कोई गुरु भी नहीं है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों साथी होंगें जिन्होंने गुरुदेव को देखा तक नहीं है, वोह किस को ध्यान में बिठाकर का “ध्यान” लगाएं, किसके साथ एकाग्रचित हों। क्या ऐसे साथी “गुरुदेव के साहित्य” को ही गुरु समझ लें,सूक्ष्म में गुरुदेव को अनुभव करें, उसके साथ ही ध्यान लगाएं।
हमारे अपने व्यक्तिगत विचार हैं कि ऐसे साथिओं के लिए जिन्होंने गुरुदेव को साक्षात् देखा नहीं है, उनके साथ समय नहीं बिताया है, गुरु की शक्ति का अनुभव अनेकों प्रकाशित अनुभूतिओं के माध्यम से किया जा सकता है । “ध्यान” के लिए गुरुदेव के साथ एकाग्रचित होने के लिए, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर होने वाला प्रकाशन ही बहुत है क्योंकि यह प्रकाशन उस विशाल प्रकाशन का ही अति संक्षिप्त सा रूप है। ऐसा कहना इसलिए उचित है कि केवल इस बात के आधार पर “ध्यान” लगाना छोड़ा तो नहीं जा सकता कि हमें तो किसी गुरु का सानिध्य प्राप्त ही नहीं हुआ है। सिख धर्म में तो उनकी धार्मिक पुस्तक “गुरु ग्रन्थ साहिब” को ही गुरु समझा गया है।
इस स्थिति में गुरुदेव स्वयं मार्गदर्शन देते हुए कहते हैं कि गुरु भी मिल सकता है, भगवान् भी मिल सकते हैं, यह कोई कठिन बात नहीं है, यदि कोई कठिन बात है तो वोह है “ध्यान” लगाना जो अनेकों की समस्या है। गुरुदेव तो यह प्रश्न भी पूछ रहे हैं कि अगर “ध्यान” नहीं भी लग पाता तो कौन सा पहाड़ टूटने वाला है। इतिहास अनेकों ऐसे महारथिओं से भरा पड़ा है जिन्होंने स्वयं को “ध्यान” लगाने में असमर्थ पाया लेकिन भगवान की कृपा पाने में सक्ष्म रहे और उस कृपा से न जाने क्या कुछ कर बैठे।
ऐसे महारथिओं के बारे में जानना बहुत ही रोचक रहेगा, जिसे हम कल तक के लिए पोस्टपोन करना ही उचित समझते हैं।
जय गुरुदेव
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कल वाले लेख को 511 कमैंट्स मिले,11 युगसैनिकों (साधकों) ने, 24 से अधिक कमैंट्स, आहुतियां प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है जिसके लिए सभी को बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग के लिए धन्यवाद्। जय गुरुदेव