हमारी सबकी आदरणीय एवं सर्वप्रिय बहिन सुमनलता जी द्वारा माह का अंतिम शनिवार हमारी “मन की बात” के लिए रिज़र्व करना,सच में हमारे लिए बहुत ही सम्मान की बात है जिसके लिए बहिन जी का धन्यवाद् करते हैं। माह के बाकि तीन शनिवार परिवार के साथिओं के लिए रिज़र्व किये हुए हैं। अंतिम शुक्रवार युवा साथिओं के लिए रिज़र्व किया हुआ है लेकिन कल यानि 27 सितम्बर को उनकी तरफ से कुछ भी न प्राप्त होने के कारण अखंड ज्योति वाली वीडियो पोस्ट की गयी थी। अगले सप्ताह के स्पेशल सेगमेंट में इस विषय पर और बात करने की योजना है।
लगभग पांच माह पूर्व आद. सुमनलता बहिन जी के सुझाव का सम्मान करते हुए 27 अप्रैल शनिवार को “हमारे लिए रिज़र्व” किये गए सेगमेंट का प्रथम अंक प्रकाशित किया गया था।
आज इच्छा हो रही है कि अपने प्रिय साथिओं के समक्ष अपने हृदय को खोलकर रख दें, कुछ अपनी कहें,कमैंट्स के माध्यम से कुछ साथिओं की, सम्बन्धिओं की सुन लें।
सबसे पहले तो हम यह कहना चाहेंगें कि हमारा और आपका सम्बन्ध मामूली दुकानदार और बाज़ारू ग्राहक का नहीं है। हम कागज छाप कर बेचने वाले और आप वक्त काटने के लिए सस्ते मूल्य के समाचार पत्र लेने वाले नहीं हैं । हम और आप, दोनों ही एक “महान पथ के पथिक” के रूप में एक शक्तिशाली सम्बन्ध स्थापित कर चुके हैं। आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर किसी भी फॉर्म में प्रकाशित होने वाला कंटेंट गुरुदेव के दिव्य साहित्य के साथ-साथ परिवार के अनेकों सदस्यों के ज्ञान से भरपूर विचार,अनुभव और जिज्ञासाएं होती हैं। यह सभी प्रयास एक “सन्देश वाहिक सेवक” की भांति हैं। हम सभी लोग अपनी ही एक अलग सी दुनिया,अलग सा परिवार बसाए हुए हैं। हो सकता है इस परिवार के सदस्य धनी, विद्वान, बलवान, शक्तिशाली, अधिकारी, उच्च पद प्राप्त, सौभाग्यशाली हों; दीन, दरिद्र, अशिक्षित, रोगी, निर्बल, दुःखी, शक्तिहीन, पीड़ित, चिन्तित और साधनहीन हों; पुरुष,स्त्री, बालक, बालिका हों, लेकिन यह सब भेदभाव बाहरी एवं आवरण मात्र हैं। सब प्रकार की यह बाहरी स्थितियाँ एक प्रकार के कपड़े हैं। स्वयं चेक करके देख लीजिए: क्षण भर के लिए अपने कपड़ों को उतार कर बाहर रख दीजिए और बिल्कुल नंगे होकर इस परिवार की छोटी सी कुटिया में चले आइए। अब हम सब एक समान हैं।अब न तो कोई विद्वान है, न कोई अशिक्षित, न कोई सशक्त, न कोई रोगी है; स्त्री, पुरुष का भेद और आयु का भेद भी हम लोगों के बीच नहीं है। सब उस एक अखण्ड अमर,आदि अन्त रहित, सच्चिदानन्द महान तत्व के अंश हैं, जिसे राम, रहीम किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। ईश्वर अंश जीव, अविनाशी, हम शरीरधारी जीव मनुष्य उसी महासूर्य की किरणें हैं, उसी एक अखण्ड ज्योति की प्रकाश रश्मियाँ हैं। हम सब केवल भाई, सहोदर, साथी और मित्र ही नहीं बल्कि इससे “कुछ अधिक” ही हैं। जो संबंध सूर्य की एक किरण का दूसरी से है, सिक्के की एक पीठ का दूसरी है, शरीर के एक अंग का दूसरे से है वही सम्बन्ध हम लोगों के बीच में हैं। आप हमसे बहुत दूर स्थान पर बैठे हुए हैं, हमसे भिन्न स्थिति में हैं, शायद ही हम एक दूसरे को मिले हों, फिर भी आप और हम एक हैं, आत्मीय हैं, अभिन्न हैं। कभी-कभार, फ़ोन पर बात हो जाना, कुछ एक साथिओं के साथ कमैंट्स के माध्यम से मिलन हो जाना,इससे अधिक यह सम्बन्ध दिखता तो नहीं है लेकिन आत्मीयता ऐसी है कि विश्व के प्रत्येक साथी के पल-पल की जानकारी है। माना जा सकता है कि यूट्यूब, व्हाट्सप्प,ट्विटर, फेसबुक मैसेंजर,Reels, Story जीमेल, शांतिकुंज, ऋषिचिन्तन जैसी अनेकों साइट्स को ट्रैक करना किसी भी एक मानव के लिए संभव नहीं है लेकिन फिर भी जिस किसी का, कोई भी प्रश्न मिलता है तो उसका रिप्लाई करना गुरु की सच्ची भक्ति ही समझी जाती है।
हम और आप सभी अलग-अलग होते हुए भी आपस में पूर्ण (Oneness) अनुभव करते हुए एक नई दुनियाँ बसाए हुए हैं, एक नया परिवार बनाए हुए हैं: अपने गुरु का परिवार जिसका नाम है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार।
सभी साथिओं का एक ही उद्देश्य है-गुरु का नाम रोशन करना, घर-घर में गुरु के विचार स्थापित करने।
जब हम नई दुनियाँ की बात करते हैं तो एकदम प्रश्न उठता है कि इसमें नया क्या है? औरों की तरह हम भी तो वही काम कर रहे हैं जो वोह कर रहे हैं, तो नयापन कहाँ है? नयापन तब आता है या लाया जाता है जब नए-नए प्रयोग किए जाते हों। विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण, सदैव कुछ अलग, कुछ नया, कुछ अनूठा करने की ही जिज्ञासा उठती रहती है।एक वैज्ञानिक के प्रयासों में कुछ सफल हो जाते हैं कुछ असफल रहते हैं, हमारे साथ भी ऐसा ही होता रहता है, सफलताओं से शक्ति प्राप्त करके, असफलताओं को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़े जा रहे हैं। नवीन प्रयासों में से “यूट्यूब पर Full- length लेख प्रकाशन एक सफल प्रयास समझा जा सकता है। जहाँ तक हमें ज्ञान है, ऐसा लेख प्रकाशन शायद ही किसी अन्य चैनल पर दिखा हो। हमारे साथिओं ने कई बार ऐसा ही अनुभव किया है।
इन प्रयोगों को करने में आत्मिक आनन्द मिलना ,आत्मिक तृप्ति होना स्वाभाविक है । हमें ऐसा अनुभव होता है कि चारों ओर आनन्द का महासागर लहलहा रहा है। इस आनंद को साथियों के साथ शेयर करते समय यही आशा की जाती है कि उन्हें भी ज्ञान के इस विशाल महासागर में डुबकी लगाकर आनंद आता होगा। कोई शंका/ संदेह नहीं कि अनेकों ऐसे भी होंगें जिन्होंने अपने मुँह पर ऐसी पट्टी बाँध रखी है कि सामने रखे हुए अमृतकलश को चखना तो दूर, खोल कर देखने के बजाए।, आत्मा की भूख को शांत करने के लिए त्राहि- त्राहि चिल्ला रहे हैं, दर- दर की ठोकरें खा रहे हैं। कभी एक का द्वार खटखटाते हैं तो कभी दूसरे का, चमत्कार की खोज में भटक रहे ऐसे अनेकों साथी हीरे जैसे जीवन का नाश किये जा रहे हैं।
1957 की मूवी “एक साल” का सुपरहिट गीत “सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया” शायद ऐसों के लिए ही लिखा गया था। ऐसी स्थिति में “बहती गंगा में हाथ धो लो” जैसे मुहावरे बहुत ही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ऐसे जिज्ञासु, ज्ञान पिपासु और आनन्द खोजी पथिकों का जखीरा बनना चाहता है जो स्वयं आनंद प्राप्त करते हुए अनेकों का मार्गदर्शन करने के लिए उत्सुक हों। इस जखीरे के सभी राहगीर,यथासंभव आनन्द-मार्ग, ईश्वर-भक्ति और सदाचार की राह पर चलते हुए सच्ची शान्ति ढ़ूँढ़ने का प्रयत्न करेंगे। सब साथी एक दूसरे को अपना अनुभव बताने और सहयोग देने को तत्पर हैं और तत्पर रहेंगें, ऐसा हमारा अटल विश्वास है।
गायत्री परिवार के बारे में अक्सर पूछा जाता है कि क्या यह कोई संस्था है? नहीं, बिल्कुल नहीं। विदेशी प्रजातन्त्र की नकल करके जिस प्रकार की संस्थायें आजकल बन रही हैं, गायत्री परिवार हरगिज उस तरह की कोई संस्था नहीं है। यही बात ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के बारे में भी कही जा सकती है । हमारे कुटुम्ब में गिने-चुने साथी हैं जो सदैव एक दूसरे के हित को अपना हित समझते हुए कार्यरत हैं । यदि यह संस्था की परिभाषा है तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार भी संस्था हो सकती है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी प्रयास केवल एक ही बिंदु के आसपास घूमते हैं और वह यह कि कोई भी परिवारजन अनन्त आनन्द से वंचित न रहे,किसी का भी हृदय विकारों की भट्टी न बना रहे। इस परिवार के पास और कुछ देने को हो न हो लेकिन गुरु का ज्ञान एवं उससे प्राप्त होने वाले अनंत आनंद के भंडार भरा पड़ा है । यह ऐसा अमूल्य धन है जिसे पाकर और कुछ पाना शेष रह ही नहीं जाता। ज्ञानप्राप्ति के बाद मनुष्य अंतर्मुखी हो जाता है। जब वह अपना आत्म निरीक्षण करता है , एकान्त में बैठकर स्वयं को सब से अलग, अकेला अनुभव करता है तो फिर विचार करता है कि उसने “शरीर रूपी कपड़े” जो स्थूल शरीर है, उसे उतार कर अलग रख दिया है। मोहमाया के सभी बंधन तोड़कर जब वह एक कुशल डाक्टर की भाँति अपने “सूक्ष्म शरीर” का परीक्षण करता है, अच्छी तरह तलाश करता है तो उसे अपने अंदर बैठे न जाने कितने ही शैतान के दूत छिपे बैठे दिखते हैं। यही आत्म-निरिक्षण, उसे अपने असली रूप को भली प्रकार परखने का अवसर देता है। यही वोह स्थिति होती है जब मनुष्य सोचता है कि असल में वोह क्या था और क्या बन गया है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक प्रयास ऐसा ही गुरुज्ञान प्रदान करने की चेष्टा में कार्यरत है। यह प्रयास तभी संभव होगा जब सभी परिवारजन अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को एक तरफ रख कर, समस्त विश्व की, ब्रह्माण्ड की चिंता करेंगें। हमारा विश्वास है कि कुछ समय तक लगातार अन्तर्मुखी होने के बाद हम सबकी पीड़ा एक हो जाएगी। कोई सुजाता बहिन जी, अरुण भाई साहिब, सुमनलता बहिन जी आदि अकेले नहीं दिखाई देंगें बल्कि सभी एक ही गुरु की संतान, एक ही कुटुंब के समर्पित सदस्य प्रतीत होंगें। हमारे गुरुदेव की यही पीड़ा है कि उनका एक-एक बच्चा सुखमय-आनंदमय जीवन व्यतीत करे।
एक आज्ञाकारी संतान कि भांति हम अपने परमपिता,अपने गुरु की पीड़ा को अनदेखा कैसे कर सकते हैं? गुरुदेव ने सारा जीवन तपअग्नि में झुलसकर इस मानवता के लिए, अपने बच्चों के सुखी जीवन के लिए प्रत्यक्ष प्रयास किए। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सच्चे सदस्य केवल वही साथी हो सकते हैं जो गुरुदेव की अंतर्वेदना को अनुभव करते हुए, उनके विचारों को घर-घर में पंहुचाने का कार्य करेंगें। गुरुदेव ने तो सब कुछ इतना सरल कर दिया है कि क्या कहा जाए। उन्होंने तो बना-बनाया हलवा हमारे आगे रख दिया है, हमें केवल श्रेय लेना है । अगर हमसे इतना भी नहीं हो पाता तो यकीनन कोई बहनेबाज़ी है। गुरुदेव ने अनेकों बार, अनेकों स्थानों पर लिखा है कि जो कोई भी मेरा कार्य करता है,ऐसे सदस्यों की आत्मा को चूमता हुआ, उनको अपनी छाती से लगाने को हमारा कोमल हृदय व्याकुल है।
गुरुदेव ने अपनी वसीयत में समस्त विरासत तो हमारे नाम कर दी लेकिन हमारा भी परम कर्तव्य है कि हम अधिकार और उत्तरदायित्व (Rights and responsibilities) को बैलेंस करके चलें। माता-पिता के अनुदान भी उसी बच्चे को प्राप्त होते हैं जो अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाता है। बिन मांगे मोती मिले,मांगे मिले न भीख।
अंत में इतना ही कहना चाहेंगें कि अगर कुछ मांगना ही है तो गुरुभक्ति, गुरुश्रद्धा,समर्पण, संकल्प, नियमितता का दान मांगिए और फिर देखिये कैसे चमत्कार होते हैं। हमारे गुरुदेव स्वयं इस तथ्य के साक्षात् उदाहरण हैं।
हमारी अंतरात्मा से निकल रहे यह शब्द अनवरत निकले ही जा रहे हैं लेकिन क्या करें समय-सीमा और शब्द-सीमा की निष्ठुर बेड़ियाँ हमें अपने साथिओं से ऐसे अलग कर रही हैं जैसे किसी नवजात शिशु को अपनी माँ के वक्षस्थल से अलग किया जा रहा हो।
आज के इस विशेषांक का समापन करते हुए हम करबद्ध निवेदन करते हैं कि यहाँ व्यक्त किए गए सभी विचार हमारे व्यक्तिगत हैं, इन्हें स्वीकार/अस्वीकार करना साथिओं का अपना अधिकार है, अनजाने में कोई भी त्रुटिपूर्ण बात लिखी गयी हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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कल प्रकाशित हुई वीडियो को 514 कमैंट्स मिले,13 युगसैनिकों (साधकों) ने, 24 से अधिक कमैंट्स, आहुतियां प्रदान करके ज्ञान की इस दिव्य यज्ञशाला का सम्मान बढ़ाया है जिसके लिए सभी को बधाई एवं सामूहिक सहकारिता/सहयोग के लिए धन्यवाद्। जय गुरुदेव