वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ध्यान करने के अनेकों लाभ

अगर कोई आपसे पूछे कि “ध्यान” करने के कौन-कौन से लाभ हैं तो उसे इस स्वरचित लेख की कॉपी थमा दीजिए। आज के लेख में Medical benefits के इलावा अनेकों लाभ की चर्चा है। अखंड ज्योति के लेखों पर आधारित लेख शृंखला कल से फिर आरम्भ हो रही है।

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जीवन में किये जाने वाले प्रत्येक कार्य की भांति “ध्यान” भी बहुत ही आवश्यक है। यह बिल्कुल ही गलत धारणा है कि ध्यान करने वाले कोई संत, महात्मा टाइप के प्राणी होते हैं ,जो नार्मल दुनिया से बहुत दूर चले गए होते हैं, जिन्हें दुनिया से कोई लगाव नहीं रहता,उनके जीवन में कोई मौज मस्ती ,एंजॉयमेंट नहीं होती एवं वोह बहुत ही नीरस प्राणी होते हैं।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सारे कार्य करिए लेकिन 24 घंटे में से मात्र 10-15 मिंट स्वयं को जानने, समझने के लिए भी निकालिए, अपने लिए स्वार्थी हो जाइए, फिर देखिए आपकी पर्सनालिटी में कैसा कायाकल्प होता जाएगा। मनुष्य को सारी दुनिया की चिंता है लेकिन स्वयं के बारे में बिल्कुल अनजान है, इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी। बहुत बार कह चुके हैं कि “ध्यान” आत्मा की खुराक है; जिस प्रकार भौतिक शरीर के लिए नियमितता से भांति-भांति के व्यंजन खाते हैं , कभी थोड़ी सी नियमितता से “आत्मा के भोजन” का भी ख्याल रखें।

“ध्यान” के समर्थन में तो बार-बार बहुत कुछ कहा जा चुका लेकिन अगर किसी को इस “रामबाण” के प्रति प्रेरित करना है तो उसका सबसे महत्वपूर्ण counter-question होगा कि “मैं ध्यान क्यों करूँ ?”

वर्तमान में चल रही लेख श्रृंखला के शीर्षक के दो भाग हैं, पहला-ध्यान क्यों करें ? और दूसरा- ध्यान कैसे करें ? हम सभी जानते हैं कि आने वाली कईं गुरुकक्षाओं में ऐसे अनेकों प्रश्नों के सटीक उत्तर मिलने वाले हैं लेकिन बेसिक प्रश्न “ध्यान क्यों करें ?” का उत्तर यहीं पर प्राप्त कर लेना उचित होगा। हमारा विश्वास है कि उद्देश्य समझ लेने से लेख शृंखला और अधिक रोचक और सरल प्रतीत होगी।

आज के लेख में “ध्यान” करने के लाभों की पूरी लिस्ट देखकर ऐसा आभास होता है कि इसके बिना गुज़ारा ही नहीं है। स्वयं को जानने का अर्थ भगवान को जानना ही है क्योंकि हम उन्हीं का तो अंश हैं, जब वोह हमारे साथ हैं तो कोई भी समस्या कैसे रह सकती है।

“ध्यान” करने से “आत्मविश्वास” आता है ,निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है,करुणा का प्रादुर्भाव होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य स्वयं को जान पाता है अर्थात वह जान पाता है कि “मैं क्या हूं ?” ध्यान (meditation) करते समय आप कुछ समय के लिए बाहर की दुनिया से पूरी तरह से कट जाते हैं और अपने अंदर की दुनिया (मन) को गहराई से अनुभव कर पाते हैं । ध्यान करने के कुछ समय बाद जब मन पूरी तरह से शांत हो जाएगा तब आपको अपने बारे में भी सोचने की इच्छा उठने लगेगी, थोड़ा “आत्मज्ञान” होने लगेगा, अपना true-self आपको दिखने लगेगा, अपनी सच्चाई समझ आने लगेगी, वही सच्चाई जिसे आप समाज के बीच में उलझ कर न जानने की अंजान कोशिश करते आ रहे थे।

हम तो विश्वास से यहाँ तक कह सकते हैं कि अगर कोई व्यक्ति उग्रवाद/आतंकवाद की हिंसात्मक मानसिकता से ग्रसित है,वोह भी कम से कम 30 दिन रोज़ आधे घण्टे अच्छे से “ध्यान” करने पर हिंसा त्याग कर सामान्य नागरिक का जीवन जीने लगेगा।

तनाव को दूर करने के लिए “ध्यान” बहुत ही प्रभावशाली प्रक्रिया है । तनाव तो कोई अच्छा गाना सुन कर भी कम हो सकता है । ध्यान करने से सिर्फ मानसिक तनाव ही कम नहीं होता बल्कि एक ऐसा एकांत अनुभव होता है जिससे अधिकतर लोग अपने पूरे जीवन वंचित रह जाते हैं।

“मन” सब कुछ जानना चाहता है, बस “स्वयं” को जानने की कोशिश नहीं करना चाहता, क्योंकि उसे पता है कि वोह अपने अंदर कितनी कमियां, कितने दोष छिपाए बैठा है। मनुष्य इन कमियों से मुँह मोड़ना चाहता है, वोह तो “Take it easy, “who cares”, “eat,drink and be merry” वाली स्थिति में ही यह अनमोल जीवन व्यतीत करना चाहता है क्योंकि अगर इन सब कमियों/दोषों से सामना हो गया तो शायद वोह खुद से भी आंखें नहीं मिला पाएगा। अरे मुर्ख जिस “मन” में यह सब छिपा कर बैठा है, वहीं तुम्हारा पिता, परम पिता परमात्मा का वास है। तुम स्वयं को तो बुद्धू बना सकते हो, भगवान को नहीं।


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