वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

14  सितम्बर  2024,शनिवार का “अपने सहकर्मियों की कलम से” का साप्ताहिक विशेषांक

आज का साप्ताहिक विशेषांक रफ़्तार फिल्म के बहुचर्चित गीत “संसार है इक नदिआ, दुःख सुख दो किनारे हैं” के साथ आरम्भ हो रहा है। हमारी शोकातुर, समर्पित, आदरणीय सुजाता उपाध्याय बहिन को हम सभी भाई बहिनों के सहारे  की आवश्यकता है। हम संकल्प लेते हैं कि बहिन जी के इकलौते भाई के देहावसान से उत्पन हुई दुःख की घड़ी में हम सब उनके साथ हैं, बहिन जी अपनेआप को अकेला न समझें। गुरुदेव शक्ति प्रदान कर रहे हैं और हम गुरुदेव के दूत बन कर बहिन जी के साथ हैं। लेकिन क्या करें, गीत स्वयं ही  बता रहा है कि दुःख सुख दो किनारे हैं, यही जीवन का Crux है, जीवन चलने का नाम, Life must go on के साथ आज का यह विशेषांक उसी शक्ति से आरम्भ करते हैं जिससे आगे भी करते आये हैं।  सप्ताह अंत की यह गुरुकक्षा भी अन्य गुरुकक्षाओं की भांति, गुरुभक्ति, गुरुकार्य, गुरु के समक्ष लिए संकल्पों को दर्शाती है। 

आज की कक्षा का  शुभारम्भ  आदरणीय सुजाता बहिन जी की  पोस्ट से कर रहे हैं  जिसे उन्होंने  इस वर्ष फरवरी में शेयर किया था। इस पोस्ट को उचित स्थान न मिलने के कारण यहाँ शेयर कर रहे  हैं, जिसके लिए हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। 

उसके बाद चिरंजीव आशीष जी की “क्षमापना” को स्थान मिला है। 

आज के इस विशेषांक का समापन कुछ निवेदन, कुछ सुझाव आदि से हो रहा है। 

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1.सुजाता बहिन जी का योगदान : 

परम पूज्य गुरुदेव से उनके एक प्रियजन ने कहा: 

‘‘गुरुदेव! मैं आपका काम खूब करना चाहता हूँ, बहुत अच्छा करना चाहता हूँ, लेकिन वैसा हो नहीं पाता। कभी बाहर की बाधाएँ अड़ जाती हैं, कभी भीतर की कमजोरियाँ अटक जाती हैं। आप ऐसी कृपा करें कि ये दोनों तरह की बाधाएँ बीच में न आएँ। ’’

पूज्य गुरुदेव स्नेह से बोले, ‘‘बेटे! तुम्हारी भावना तो बहुत अच्छी है, लेकिन कृपा की भी तो अपनी मर्यादाएँ होती हैं। यह बताओ, “कोई अवतारी महापुरुष ऐसा हुआ है जिसके जीवन में बाहरी बाधाएँ न आई हों? कोई साधक ऐसा हुआ है जिसके अंदर की कमजोरियों ने अड़ंगे न डाले हों?’’ प्रश्नकर्त्ता निरुत्तर थे। गुरुवर पुनः बोले, ‘‘बेटे ! जब राम और कृष्ण के जीवन में बाहरी बाधाएँ आईं , वे स्वयं उनसे अछूते न रह पाए, तो हमारे लिए दुनिया का क्रम क्यों बदलेगा? जब दुर्वासा, विश्वामित्र जैसे तपस्वियों को आन्तरिक दुर्बलताओं ने सताया, तो वे हमें क्यों छोड़ देगी ?’’ प्रश्नकर्त्ता कुछ सोचकर बोले,‘‘ठीक है गुरुदेव, वे आएँगी, लेकिन हम जैसे साधक उनसे अपने बलबूते कैसे निपट सकेंगे! उसके लिए आपकी कृपा, आपकी शक्ति, आपका मार्गदर्शन आदि की जरूरत तो रहेगी ही।’’ गुरुदेव ने कहा,‘‘ठीक है। वह हम देंगे। जितना जरूरी है उतना देंगे, किन्तु तुम उसे रखोगे कहाँ ? इसके लिए तो पात्रता चाहिए ?  

पात्रता यानि तुम्हारा व्यक्तित्व।  उसमें दो तरह का विकास जरूरी है: 1. पवित्रता 2. समर्थता। पात्र बहुत बड़ा  है, योग्यता बहुत है, किन्तु भाव-विचार मलीन है तो बात कैसे बनेगी ? पवित्रता  बालक जैसी है  लेकिन सामर्थ्य-योग्यता कम है तो बड़े काम कैसे होंगे ?

और एक बात ध्यान में रखो। परिष्कार-विकास का यह क्रम सतत,अनवरत,लगातार   चलना बहुत  जरूरी है। सूक्ष्म जगत में प्रदूषण बहुत है, भावों और विचारों को पवित्र-परिष्कृत बनाए रखने के लिए उसी तरह प्रयास जरूरी है, ठीक उसी तरह जैसे शरीर को स्वच्छ रखने के लिए उसे बार-बार धोना पड़ता है, हम रोज़ाना नहाते हैं, साफ़ कपड़े पहनते हैं । फिर हमारे काम का स्तर क्रमशः बढ़ता रहेगा, अतः  एक काम पूरा होते ही अगले कार्य के लिए कौशल एवं सामर्थ्य का विकास करते रहना जरूरी होगा।

बेटे! यह अनिवार्य शर्ते हमने भी पूरी करने का जी तोड़ प्रयास किया है और हमारे गुरु ने हमें भरपूर अनुदान दिए हैं। हम भी तुम्हें वह सब देते रह सकेंगे, जिसके सामने बाहरी बाधाएँ और आंतरिक कमजोरियाँ छोटी पड़ती चली जाएँ। 

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2.चिरंजीव आशीष जी का योगदान : 

क्षमापना : 

आज संवत्सरी के पावन पर्व पर  पूरे वर्ष में हमारे द्वारा की गयी कोई गलती या बात से,जाने-अनजाने में किसी का मन दुखा हो,कुछ गलत लगा हो, या हमारे कारण किसी का उद्वेग हुआ हो,या किसी भी प्रकार का कष्ट हुआ हो तो आप सबसे क्षमा मांगते हुए, सभी राग द्वेषों को दूर करते हुए हम मन, वचन ऒर काया से सपरिवार क्षमा याचना करते हैं।  

बारम बार खमत खामणा

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3.हमारे निवेदन : 

सबसे बड़ा निवेदन उन साथिओं की ओर  केंद्रित है जिनकी जानकारी यां तो उसी दिन पंहुचती है, यां ठीक से नहीं पंहुच पाती है। इस केटेगरी में जन्म दिवस, विवाह दिवस आदि  शुभदिन की जानकारी शामिल है। उसी दिन जानकारी भेजने के कारण परिवार में शेयर करना  अस्मभव होता है।  ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि भारतीय समय से हमारा समय (कनाडा समय) 10:30 घंटे पीछे है। सुबह 8:00 बजे जानकारी मिलने का अर्थ होता है कि की उस समय भारत में शाम के 5:30 बजे होते हैं, दिन का अंत तो लगभग होने को ही होता है। यह बात पहले भी कर चुके हैं लेकिन एक बार फिर से करबद्ध निवेदन है कि कम से कम  एक दिन पहले भेज दें तो बड़ी कृपा होगी। 

Messages की बात हो रही है तो  “किसी का भी नाम न लेने की प्रवृति” की अवहेलना करनी पड़ रही है जिसके लिए करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। हमारी नियमित बहिन वंदेश्वरी साहू (उमा साहू) जी का चार शब्दों का मैसेज आया “भाईजी छोड़कर चले गए”  इस मैसेज से क्या अर्थ निकाला जाए ? हमने मैसेज करके पूछा “ बहिन जी मैसेज क्लियर कर दें ताकि हम परिवार में शेयर कर सकें, बड़ी कृपा होगी। आज तक इसका कोई भी रिप्लाई नहीं आया है।

इसी तरह का एक मैसेज आज ही प्राप्त हुआ है, इंग्लिश में मैसेज है, कोई सेंस नहीं बनती है, कोई guess नहीं लगाया जा सकता। 

बार- बार कहते आये हैं कि हिंदी में लिखने का प्रयास करें,ऑटो ट्रांसलेट off करें तो बहुत कुछ हो सकता है। आज के युग में सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध होने के बावजूद भी अगर कोई प्रयास न किया जाए तो फिर बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है, केवल आँखें खोलने  की आवश्यकता  है, थोड़ी गंभीरता की आवश्यकता है। यह गुरुकार्य है, इसमें लापरवाही का अर्थ है गुरुभक्ति में समर्पण की कमी। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार समर्पित साथिओं का एक बहुत ही छोटा सा जमावड़ा है, गुरुकार्य के लिए ज्ञानदान, समयदान, विवेकदान, प्रतिभादान आदि इस परिवार के मुख्य उद्देश्य हैं, बाकी सभी कार्य, मात्र शिष्टाचार एवं मानवीय मूल्यों के पालन के लिए ही हो रहे हैं। 

यहाँ हम उन साथिओं की निष्ठा और श्रद्धा को नमन किये बिना नहीं रह सकते जिनके योगदान से यह ज्ञानरथ सरपट दौड़े जा रहा है। ईश्वर ने हमें सूक्ष्मदृष्टि जैसी कोई शक्ति तो प्रदान नहीं की है लेकिन फिर  भी आँखें बंद करने पर उन समर्पित साथिओं का  टाईमटेबल दिख ही जाता है। 

हमारे समर्पित साथी नीरा जा का टाईमटेबल तो प्रतक्ष्य दिखता  रहता है, अगर उनके बारे में  लिखें तो फिर  बढ़ाई वाली बात आ जाती है लेकिन  एक दिन रात 11:30 बज रहे थे और ज़िद यही लगी थी कि  नहीं यह कमेंट लिखकर ही सोना है, ऐसी ज़िद ही सच्ची गुरुभक्ति है। ऐसी ज़िद के बाद जो मानसिक तृप्ति होती है उसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता, यह तो गूँगें का गुड़ है। 

लेखन के समय हम कई बार सोचते हैं कि हमें इतनी आंतरिक प्रसन्नता क्यों  होती है ? हम कोई बड़ा कार्य भी नहीं कर रहे। कहीं साथिओं से अपनी बढ़ाई होने का लालच तो नहीं है, गुरुदेव से प्रार्थना  करते हैं कि हमें इस दुष्प्रवृति से कोसों दूर रखें।

आज के विशेषांक का समापन ज्ञानरथ वाली वीडियो पर कमेंट करके करते हैं कि वीडियो के अंत में जहाँ गुरुदेव ज्ञानरथ की बढ़ाई कर रहे हैं, क्या यह बढ़ाई ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की नहीं है ? Just kidding 

जय गुरुदेव, हैप्पी वीकेंड। 


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