28 अगस्त 2024 का ज्ञानप्रसाद
अखंड ज्योति के फ़रवरी 2003 अंक में प्रकाशित “छोटी सी खोपड़ी, पर है चमत्कारी” लेख ने हमें ऐसा आकर्षित किया कि हमने यह लिंक सेव करके रख लिया था। संकल्प लिया कि विज्ञान को एक तरफ रखकर OGGP मंच पर इस लेख को सरल करके प्रस्तुत करेंगें जिससे अनेकों भटके हुए देवताओं को राहत मिल सके।
सामान्य व्यक्ति तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि छोटी सी दिखाई देने वाली खोपड़ी इतनी चमत्कारी भी हो सकती है। खोपड़ी में सुरक्षित मस्तिष्क अनेकानेक क्रिया-कलापों का संचालक ही नहीं बल्कि अनंत क्षमताओं की जन्मस्थली है। मस्तिष्क के सन्तुलन होने पर ही व्यक्ति अपनी प्रतिभा का सामान्य उपयोग कर पाता है। मस्तिष्क में व्याप्त अनेकों Power centres के जाग्रत होने पर उच्चकोटि की समर्था के प्रमाण मिलते हुए देखे गए हैं । इच्छा शक्ति से कुछ भी प्राप्त कर लेना, ऑंखें बंद करके घर बैठे ही “अखंड दीप” के दर्शन कर लेना (दूरदर्शन) जैसी अनेकों प्रमाणिक घटनाएँ इसी तथ्य का उदघोष करती हैं कि “मानवी मस्तिष्क असीम सम्भावनाओं/शक्तियों का भाण्डागार है।” उसकी छाँव में बैठ कर यदि सही माने में साधना की जाए, तो कल्पवृक्ष की उपमा 100% चरितार्थ हो सकती है। वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी मनुष्य को कामना है ।
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मानव शरीर की संरचना अपनेआप में इतनी विलक्षण और विस्मयकारक है कि उसका जितना भी विश्लेषण किया जाय, उतना ही अधिक यह तथ्य स्पष्ट होता जाता है कि ईश्वर ने इस अदभुत यन्त्र का निर्माण किसीअति महत्त्वपूर्ण प्रयोजन के लिए ही किया होगा।
इतनी अधिक एवं विशिष्ट रिसर्च के बावजूद मानव शरीर के बारे में जितनी जानकरी अभी तक उपलब्ध हो पायी है उसे न के बराबर ही कहा जा सकता है। हाड- मांस के चलते फिरते शरीर का सबसे अधिक विलक्षण अंग अगर किसी को कहना हो तो “मस्तिष्क” को ही कहा जा सकता है। मानव शरीर की समस्त गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु उसका मस्तिष्क ही है। शरीर का यह अंग इतना डेलिकेट है कि परम पिता परमात्मा ने स्वयं इसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खोपड़ी जैसी बंद डिब्बी में सुरक्षित किया हुआ है। खोपड़ी नामक यह डिब्बी भी ऐसी कि अगर साधारण मनुष्य को समझाने के लिए कहा जाए कि यह मानव शरीर का सबसे मज़बूत भाग है तो शायद अनुचित न हो। विज्ञान के विद्यार्थिओं यां वैज्ञानिकों के लिए ऐसा कहना गलत ही हो लेकिन हम जैसे अनगढ़ों के लिए यही ठीक है।
मानव शरीर में हो रही प्रतक्ष्य/अप्रतक्ष्य, सभी गतिविधियों/क्रियाकलापों का अधिष्ठाता यह 3 पौंड यानि लगभग 1.5 किलोग्राम वज़न वाला मस्तिष्क ही है। अगर नार्मल व्यक्ति के वज़न ( 80-90 किलोग्राम) के साथ मस्तिष्क के वज़न की तुलना की जाए तो इसका वज़न मात्र 2 प्रतिशत ही निकल कर आता है। कितना विस्मयकारी तथ्य है कि यह 2 प्रतिशत वाला Organ ही सब कुछ कण्ट्रोल कर रहा है। इस एक ही Organ से एक साथ इतनी अधिक प्रकार की गतिविधियां सम्पन्न हो रही हैं जिसका अनुमान लगाना लगभग असंभव ही है।
हमारे पाठक इस बहुप्रचलित किंवदंती से भलीभांति परिचित होंगें कि कल्पवृक्ष के नीचे बैठने से समस्त मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति होती है। कल्पवृक्ष के बारे में इंटरनेट पर इतना विस्तृत साहित्य उपलब्ध है, इतने दावे उपलब्ध हैं कि सच्चाई को जानने के प्रयास कम और विज्ञापनबाजी अधिक है। लोगों ने तो अमृतमंथन से प्राप्त होने वाले इस वृक्ष को अपने घरों में उगाने तक के दावे कर डाले हैं, यह दावे कितने सत्य हैं, कितनों को इन घरेलु कल्पवृक्षों के नीचे बैठने से मनवांछित फल प्राप्त हुए हैं, यह तो वही जाने, लेकिन मानव मस्तिष्क को कल्पवृक्ष की संज्ञा देना अनुचित नहीं होना चाहिए। इस दावे के लिए मात्र एक ही निम्नलिखित उदाहरण पर्याप्त है :
हम में से हर कोई मॉर्निंग यां इवनिंग वाक के लिए तो जाता ही होगा। कई बार ऐसा हुआ होगा कि अचानक मौसम ख़राब हो जाता है, आंधी/तूफ़ान जैसी स्थिति बन जाती है, हमारा मन विचलित हो जाता है, अनेकों प्रकार के प्रतक्ष्य/अप्रतक्ष्य विचार मन में आना आरम्भ हो जाते हैं। सबसे सामान्य प्रतक्ष्य क्रिया जिसका हमें सामना करना पड़ता है वोह है तेज़ हवा, धूल भरी आंधी। इस स्थिति में हमारा मस्तिष्क “एक ऑटोमैटिक सिग्नल” देता है जिससे हमारी आँखें खुद ही बंद हो जाती हैं। इस क्रिया को विज्ञान की भाषा में Reflex action कहते हैं। धूल भरी आंधी से आँखों को बचाने की क्रिया द्वारा,हमारे मन की कामना न केवल पूरी हुई बल्कि बिना कहे ही पूरी हुई।
इस उदाहरण से यही निष्कर्ष निकलता है कि आधुनिक समय में कल्पवृक्ष का अस्तित्त्व तो संदिग्ध ही है लेकिन मस्तिष्क के रूप में, ईश्वर ने मानवीय कलेवर के नंदनवन में एक “प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष” प्रदान किया है, जिसकी आराधना से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है, जिसकी उसे कामना है।
अभी हमारी हमारी कामना थी कि हमारी आँखें धूल भरी आंधी से बच जाएँ, मस्तिष्क रुपी कल्पवृक्ष ने बिना कहे ही इस कामना की पूर्ति कर दी।
शरीर रूपी काय-कलेवर जिसे हम प्रतक्ष्य देख रहे हैं,माँ के गर्भ से ही जन्मा है लेकिन भले-बुरे,नरपशु,आतंकवादी,बलात्कारी,महामानव, देवमानव, अतिमानव का जन्म कहाँ से होता है ?
हम सब जानते हैं कि यह बहुत ही गंभीर विषय है।ज्यों ज्यों मनुष्य विकास की सराहनीय उपलब्धिओं के साथ आकाश के तारे तोड़ लाने को सक्ष्म हुए जा रहा है, वहीँ पर उसका व्यक्तित्व ऐसे स्तर को गिरे जा रहा है जिससे हम सब भलीभांति परिचित हैं। जानते हुए भी अनजान बनने को कबूतर द्वारा आँखें बंद करने जैसा न कहा जाये तो और क्या है ?
यदि कोई इस गंभीर विषय पर रिसर्च करना चाहे तो उसे चेतन( Conscious),अचेतन (Unconscious) और अवचेतन(Subconscious) मन की परतों को कुरेदना पड़ेगा। यही वोह रहस्यमय परते हैं जहाँ अच्छे-बुरे व्यक्तित्व जन्म लेते हैं। हमारी माँ, दादी, नानी मूर्ख नहीं थीं जो गर्भवती बहु के कमरे में दिव्य चित्र लगाने को कहती थीं, दिव्य वातावरण की सलाह देती थीं।
विचारक, वैज्ञानिक, मनीषी, कलाकार, दार्शनिक साहित्यकार जैसी अनेकानेक विलक्षण प्रतिभाओं के उभरने का केन्द्र मस्तिष्क ही है। मस्तिष्क के गड़बड़ाने से ही मनुष्य मूर्ख, पागल,सा बन जाता है तथा किसी काम का नहीं रहता। शारीरिक दृष्टि से पूरी तरह से समर्थ रहते हुए भी वह असमर्थों,असहायों जैसा जीवन बिताता है। इसके उलट,शारीरिक दृष्टि से अनेकों बीमारीओं से जूझ रहा मनुष्य,मानसिक तौर से संतुलित रहता है एवं सदा ऊर्जावान, स्फूर्तिवान एवं प्रसन्नचित्त रहता है।
यहाँ हमें गुरुदेव का अमूल्य वचन स्मरण हो रहा है, “जिस दिन मनुष्य का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है, उसी दिन उसका अंत हो जाता है।”
तो हुआ न मानव मस्तिष्क एक कल्पवृक्ष?
शरीर के इस महत्त्वपूर्ण केन्द्र के जाग्रत् हो जाने पर अनेकानेक उत्कृष्ट संभावनाओं के द्वार खुल जाते है। भौतिक एवं आत्मिक दोनों ही स्तर की विभूतियाँ मुट्ठी में बंद की जा सकती है। शरीर के विभिन्न तंत्रों व अवयवों पर उनकी विभिन्न गतिविधियों के संचालन पर मस्तिष्क का ही प्रत्यक्ष।अप्रतक्ष्य कण्ट्रोल है। उच्च स्तर की आध्यात्मिक उपलब्धियों को न भी गिना जाय,फिर भी दैनिक जीवन के विविध क्रिया-कलाप कम महत्त्वपूर्ण और आश्चर्यजनक नहीं है। सोचने, विचारने, सुख-दुःख की अनुभूति, विविध उलझन भरी समस्याओं की जटिल गुत्थी सुलझाने में इसकी तत्परता और कुशलता देखते ही बनती है। यह एक ऐसा आज्ञाकारी नौकर है कि बिन मांगें ही, कामनाओं को पूर्ति के लिए, अपनी सलाह देने को तत्पर रहता है।
तो हुआ न कल्पवृक्ष ?
मस्तिष्क की विभिन्न विलक्षणताओं के विषय में जो नवीन शोध निष्कर्ष सामने आ रहे हैं, उनके अनुसार मस्तिष्क में ऐसे सूक्ष्म केन्द्र (Microscopic centres) विद्यमान हैं जो भयंकर शारीरिक-मानसिक पीड़ाओं का निवारण कर सकते हैं। सुप्त एवं मूर्च्छित स्थिति में पड़े रहने के कारण इन Microscopic centres के सामर्थ्य का परिचय नहीं मिल पाता, इसलिए इन्हें जगाना बहुत ही ज़रूरी है। ध्यान की प्रक्रिया इसमें बहुत ही लाभकारी सिद्ध मानी गयी है।
मस्तिष्क के किसी भी भाग में तनिक भी गड़बड़ी होने से समूचा शरीर तथा मनःसंस्थान प्रभावित होता है। प्रायः इन परिस्थितियों में लोग Pain killers, Antidepressants जैसी नशीली दवाएं धड़ल्ले से उपयोग किये जा रहे हैं। इन दवाओं की Addiction से ऐसी स्थिति आ जाती है कि मनुष्य इनके बिना रह ही नहीं सकता।
चिकित्सा विज्ञानियों का मत है कि मानव मस्तिष्क में ही कुछ ऐसे Cells उपलब्ध हैं जो दर्द को कम करने,तनाव को कण्ट्रोल करने एवं अन्य अनेकों बीमारीओं का इलाज करने में सक्ष्म हैं। शरीर के किसी भी भाग में उठने वाली, कोई भी समस्या मस्तिष्क नामी मास्टर से छुपी नहीं रह सकती। हमारे पाठक स्वयं प्रैक्टिकल करके देख सकते हैं कि क्या कोई ऐसी समस्या है जिससे हमारा मस्तिष्क प्रभावित न होता हो, शायद कोई भी नहीं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के लेखों के माध्यम से हमने बार-बार मस्तिष्क को समस्याओं से दूर रखने के लिए, मस्तिष्क से कूड़ा-कर्कट निकाल फेंकने के लिए, मस्तिष्क को Declutter करने के लिए निवेदन किये हैं। जब तक ऐसा नहीं होगा, मस्तिष्क परिष्कृत नहीं होगा, तब तक ज्ञानप्रसाद लेख, गुरुसत्ता का दिव्य साहित्य निरर्थक ही रहेगा। हम एक गुरु से दूसरे गुरु की तलाश में ही भटकते रहेंगें।भटकते हुए हम जिस भी गुरु के पास जाएंगें वोह समर्पण मांगेगा, पात्रता चैक करेगा, जो हमने विकसित ही नहीं की। अतः हीरे जैसा जीवन ऐसे ही अविश्वास में नष्ट हो जायेगा।
परामनोविज्ञान (Parapsychology) पर रिसर्च कर रहे मूर्धन्य विद्वानों का मत है कि “ध्यान प्रक्रिया” द्वारा मस्तिष्क के भीतर अनेकों प्रकार के रसायनिक परिवर्तन किए जा सकते है तथा मस्तिष्कीय क्रिया-कलापों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
मस्तिष्क की विशेषता-विचित्रता का यह एक छोटा सा पक्ष है। सामान्य व्यक्ति तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि छोटी सी दिखाई देने वाली खोपड़ी इतनी चमत्कारी भी हो सकती है। दैनिक जीवन में होने वाले अनेकानेक क्रिया-कलापों की वह संचालक ही नहीं बल्कि अनंत क्षमताओं की जन्मस्थली भी है। असन्तुलन की स्थिति में तो सामान्य शारीरिक, मानसिक क्रिया-कलाप भी ठीक तौर से सम्पन्न नहीं हो पाते। सन्तुलन होने पर व्यक्ति अपनी प्रतिभा का सामान्य उपयोग कर पाता है। अधिकाँश भाग प्रसुप्त होने के कारण इसकी विलक्षणताओं का परिचय नहीं मिल पाता है। मस्तिष्क के जाग्रत होने पर अतीन्द्रिय सामर्थ्य के प्रमाण भी मिलते देखे गए है। इच्छा शक्ति दूरदर्शन, अदृश्यदर्शन आदि की अनेको प्रमाणिक घटनाएँ इसी तथ्य का उदघोष करती है कि मानवी मस्तिष्क असीम सम्भावनाओं/शक्तियों का भाण्डागार है । उसकी छाँव में बैठ कर यदि सही माने में साधना की जा सके, तो कल्पवृक्ष की उपमा शत-प्रतिशत चरितार्थ हो सकती है। इससे वह सभी कुछ प्राप्त किया जा सकना सम्भव है, जिनकी उससे आशा की जाती है।
समापन
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459 टोटल कमैंट्स, 38 मेन कमैंट्स और 8 संकल्पधारी कमैंट्स से आज की संकल्प सूची सुशोभित हो रही है, सभी को बधाई एवं धन्यवाद्।