वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

शुक्ला बाबा जी के गुरु हरिहर बाबा की तपशक्ति का प्रमाण देती पांच घटनाएं 

अपने वचन का पालन करते हुए आज हम हरिहर बाबा की तपशक्ति का प्रमाण देती मात्र पांच घटनाओं का ही संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं।महापुरुषों के विषय में प्रमाण आदि शब्दों का प्रयोग करना कुछ अनुचित सा ही लगता है, यह तो अटूट विश्वास और श्रद्धा  ही है जो हमें उनके निकट  लाता  है। परम पूज्य गुरुदेव की अनंत कृपा ही है कि हमें महान व्यक्तित्वों का सानिध्य प्राप्त हो रहा है। 

कल वाले लेख में हम बहुत ही सरल वैज्ञानिक भाषा में समझने का प्रयास करेंगें कि मात्र 1.5 किलोग्राम वज़न का “मानव मस्तिष्क” कैसे कल्पवृक्ष की भूमिका निभाने में समर्थ है अर्थात वोह कुछ भी कर सकने में समर्थ है।       

वाराणसी के गंगा-तट पर स्थित असीघाट पर आज अनेक नागरिकों की भीड़ एकत्रित हुई थी। यहाँ मृत्युंजय होम हो रहा था, श्रद्धेय बाबा हरिहर विराजमान थे,स्वाहा स्वाहा स्वर से वातावरण मुखरित हो रहा था। अचानक 12:00 बजे आकाश  में बादल मंडराने लगे। रह- रहकर लोग आकाश की ओर देखते। भीड़ में हलचल हुई, एक ब्राह्मण ने कहा,

ठीक उसी समय हरिहर बाबा ने यज्ञकुंड के चारों ओर परिक्रमा करते हुए पंडितों से कहा,

पंडितों ने अपना मस्तक झुका लिया। कुछ देर बाद जोरों से बारिश शुरू हो गयी। लोगों ने आश्चर्य से देखा कि नदी, घाट, चारों ओर बारिश हो रही है लेकिन यज्ञस्थल पर पानी की एक भी बूँद नहीं गिरी। 

4:00 बजे होम कार्य समाप्त हुआ, होताओं और कार्यकर्ताओं ने भोजन किया । इसके बाद चार घंटे तक लगातार बर्षा होती रही। कोई भी बाहर नहीं निकल सका।

यहाँ हम साथिओं की पूर्वाज्ञा  के साथ,अपना व्यक्तिगत अनुभव शेयर करना चाहते हैं जो लगभग इसी तरह का था। 

हम सपरिवार शांतिवन जा रहे थे, हमारा बेटा गाड़ी ड्राइव कर रहा था। शांतिवन से लगभग 2-3  किलोमीटर पहले इतनी ज़ोर से वर्षा हुई कि क्या कहा जाए। कुछ समय पूर्व तो मौसम बिल्कुल साफ़ था,धूप खिली हुई थी। बेटे के लिए ड्राइव करना कठिन हो गया , गाड़ी साइड पर रोक  दी और शांतिवन के आयोजकों से फ़ोन करके पूछा  कि ड्राइव करना कठिन है, क्या वापिस चले जाएँ लेकिन उन्होंने कहा कि यहाँ पर तो कोई बारिश नहीं है,धूप खिली हुई है। 

अगर गुरु-शक्ति में विश्वास न होता तो हम कहते कि ऐसा तो होता ही रहता है, कोई बड़ी बात नहीं है।   

2.दशहरे के दिन हरिहर बाबा अपने भक्तों से घिरे बैठे थे। उनके सामने कुछ लोग भजन गा रहे थे। धीरे धीरे शाम हो गयी। भक्तों ने उनसे कहा, “महाराज, आज दशहरे  का त्यौहार है। दशाश्वमेघ घाट पर मूर्ति  विसर्जन हो रहा है और  इधर असीघाट पर बाबा का सत्संग,किसी भी  उठने की भी इच्छा नहीं हो रही। दूसरी ओर वर्ष भर  का पर्वोत्सव देखने की लालसा हो रही है। लोगों ने विश्वनाथ जी से अपना विचार रखा तो उन्होंने बाबा से निवेदन किया, “प्रभो, आपके इस कीर्तन के कारण लोग दशहरा उत्सव देखने से वंचित रह जाएंगें लेकिन आपका सत्संग कैसे छोड़ सकता है।” हरिहर बाबा ने हँसते हुए कहा,

“तो यह बात है, उतनी दूर जाने की जरुरत क्या है,सभी लोगों से कह दो कि  

वहां का सारा दृश्य यहाँ बैठे-बैठे भी देखा जा सकता है।” कुछ ही पलों में नाव पर बैठे सभी लोगों ने देखा कि उनका नाव दशाश्वमेघ घाट पर है।  वहां का सारा दृश्य दिखाई दे रहा है। असीघाट घाट पर मौजूद सभी लोगों ने बाबा को देखा लेकिन आसपास अन्य जितनी नौकाएं थीं उन पर सवार दर्शकों ने बाबा को नहीं देखा । यह दृश्य देखकर सभी भक्त आनंद विभोर हो उठे। शिष्य विश्वनाथ जी ने कहा, “भगवन, आपकी महिमा अपरम्पार है । आज मैं तथा आपके सभी भक्तजन धन्य हो गए।”

ठीक इसी समय बाबा का एक भक्त राधे असीघाट पर आया तो देखा कि बाबा तो यहां बैठे हैं। वापिस घर आने पर राधे के भाईयों ने कहा, “असीघाट जाना तेरे लिए बेकार हुआ.बाबा तो दशाश्वमेघ घाट पर दशहरे का उत्सव देख रहे थे। राधे को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। भाइयों ने कहा, “घाट पर चलो, जिन लोगों ने बाबा को वहां देखा है, उनसे गवाही दिला देता हूँ।” राधे को उनके कहने पर विश्वास नहीं हुआ। दशाश्वमेघ घाट पर आकर उसने लोगों से इस घटना के बारे में पूछा तो सारी बातें सुनकर राधे चकित रह गया।

महाराजाकुमार विजयानगरम काशी के प्रतिष्ठित पुरुष थे। ब्रिटिश शासन काल के जितने गवर्नर काशी आते थे, वे इनके यहाँ ठहरते थे।महाराजा संतानहीन थे। कभी कभी हरिहर बाबा का दर्शन करने जाते थे। एक बार उन्होंने बाबा के समक्ष अपना दर्द प्रकट कर ही दिया। बाबा ने कहा, 

यह आदेश पाकर महाराजा ने दो दिन मालपुए और दो दिन रसगुल्लों का भंडारा किया। इसके बाद रानी साहिबा ने महल में भंडारे का प्रबंध किया और बाबा को आने का अनुरोध किया। बाबा पालकी पर सवार हो कर रवाना हुए। असी नाले के पास नागफनी (cactus) का जंगल था। फलस्वरूप पालकी ढोनेवालों से लेकर अनेक भक्तों के पैरों में नागफनी के कांटे धंस गए। इस घटना को देखकर तुरंत बाबा के मुख से निकल गया, “कल से नागफनी का नाश हो जाएगा, इसके बाद किसी को इस पौधे से कष्ट नहीं होगा।” दूसरे  दिन कौतुहलवश कई लोग यह दृश्य देखने गए तो पाया कि रातोंरात नागफनी न जाने कहाँ गायब हो गयी। 

यह समाचार पूरे काशी नगर में जंगल की आग की भांति फैल गया। महाराजाकुमार विजयनगरम के यहाँ नगर के अधिकाँश सन्यासी, ब्राह्मण और अब्राह्मानों ने उस दिन भोजन किया।  हरिहर बाबा ने रानी साहिबा को आशीर्वाद दिया और 10  माह बाद वे संतान की जननी बनी। 

वर्ष 1925  की घटना है, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुछ उद्दंड छात्रों ने उपद्रव मचाया।  वे जूता पहनकर बाबा के बजरे (खुली नाव) पर चढ़ आये। मल्लाहों ने उन्हें डांटा, बात बढ़ गयी और मारपीट होने लगी।  इसके बाद लड़के ईट पत्थर फेंकने लगे। बजरे पर बैठे कई लोगों को चोट आयी। बाबा ने दुःखी  होकर कहा, 

आदेशानुसार बजरा खोल दिया गया।  कुछ दूर असीघाट पर आते ही बाबा ने कहा, “यहाँ रोक दो।”` बाबा के साथ हुई दुर्घटना का समाचार सब ओर फ़ैल गया।  लड़कों की उद्दंडता पर सारा शहर उफनने लगा।  मालवीय जी के पास खबर पहुंची।  वे तुरंत आये और सारे लड़कों की ओर से क्षमा मांगने लगे। बाबा ने अप्रसन्न होकर कहा, 

मालवीय जी इस शिकायत पर क्या जवाब देते। उन्होंने कहा, “मैं लड़कों के इस अपराध के लिए आपसे क्षमा मांगने आया हूँ।  वे आपकी ही संतान हैं, बच्चों की उद्दंडता को माता पिता क्षमा करतें हैं वरना वे पाप मुक्त कैसे होंगे? अगर उन्हें ज्ञान होता तो वे ऐसा गलत कार्य करते ही क्यों ?

बाबा ने कहा, 

इसके बाद मालवीय जी दुखित  भाव से वापिस चले गए।  इस घटना के तीन दिन बाद ब्रिटिश सरकार की ओर से मालवीय जी को नोटिस प्राप्त हुआ कि जिस जमीन पर आप विश्वविद्यालय बनाने जा रहे हैं, उसे दो महीने के भीतर खाली कर दीजिये, भारत सरकार वहां सैनिकों के लिए छावनी बनाने का निश्चय कर चुकी है।  इस नोटिस को पाते ही मालवीय जी के होश उड़ गए।  तत्कालीन सभी नेताओं को बुलाकर मालवीय जी ने इमरजेंसी  मीटिंग की।  काफी देर तक विचार करने पर भी कोई हल नहीं निकला।  सदस्यों में एक प्रोफ़ेसर बाबा के भक्त थे।  उन्हें सारी घटना मालुम हो गई थी। उनके मन में शंका  उत्पन्न हुई कि कहीं यह समस्या बाबा के कोप के कारण तो नहीं हुई है।  उन्होंने सुझाव दिया कि हम सब चलकर हरिहर बाबा से प्रार्थना  करें।  संतो के आशीर्वाद से असंभव भी संभव  हो जाता है।  उस दिन छात्रों ने उत्पात किया था, शायद उसी का यह परिणाम है।  सभी बाबा के चरणों में निवेदन करने पहुंचे। सारी बात सुनने के बाद बाबा ने कहा, 

एक सप्ताह बाद सरकार की ओर से दूसरी सूचना आयी कि पहले भेजे गए  नोटिस को रद्द किया जाता है। जब यह पत्र मिला तो लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सभी लोग एक बार फिर बाबा के पास कृतज्ञता प्रकट करने गए और कहा कि हम आपके लिए यहीं घाट पर एक कुटिया बना देना चाहतें हैं। 

बाबा ने कहा, 

मालवीय जी के प्रयत्न से श्री घनश्याम दास बिरला ने उक्त घाट का जीर्णोद्धार कराया था। 

वर्ष 1948  में भयंकर बाढ़ आई थी, नगर में नाव द्वारा आवागमन हो रहा था। सरकारी आदेश जारी हुआ कि कोई भी नाव उस पार नहीं जायेगी। यात्रियों से भरी कई नौकाएं डूब गयीं थीं। चारों ओर जल पुलिस का पहरा लग गया। “तुलसीघाट” पर रिलीफ कैंप था। पुलिस के बड़े-बड़े अफसर चारों ओर देख रेख कर रहे थे। 

रात के 3:00  बजे बाबा की नाव उस भयंकार बाढ़ में गंगा पार रवाना हुई। बाबा निबटने जा रहे थे।शिष्य विश्वनाथ ब्रह्मचारी नाव चला रहे थे।

“कौन जा रहा है?”सिपाही गरजा।

नाव से कोई जवाब नहीं आया। अफसर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। तभी पुलिस के एक अफसर ने सलाम करते बोला, “यह हरिहर बाबा की नाव है। वे इस क्षेत्र को पवित्र समझते हैं,इसलिए प्रतिदिन उस पार शौच जाते हैं । ऐसे महात्मा पर गोली न चलवायें।”

उस पार निबटने के बाद बाबा वापिस आने लगे। बीच गंगा में आकर विश्वनाथ ब्रह्मचारी ने कहा, “बाबा,अब चप्पू नहीं चल रहा, नाव कैसे खेउं ? नाव उस पार लगाना कठिन हो रहा है।”

हरिहर बाबा ने कहा, 

विश्वनाथ ब्रह्मचारी बाबा के आज्ञानुसार चप्पू छोड़कर राम-राम जपने लगे। नाव धीरे- धीरे बहती हुई असीघाट की ओर बढ़ गयी। बीच गंगा के भंवर में जब नाव चक्कर काट रही थी तो खड़ी पुलिस ने कहा कि आज बाबा की जलसमाधि होगी। थोड़ी देर बाद जब नाव किनारे पर सुरक्षित लगी तब अंग्रेज जिलाधीश Clair नाव पर आए और उन्होंने बाबा के चरणों पर अपनी टोपी रख दी।

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428  टोटल कमैंट्स, 26  मेन कमैंट्स और 11 संकल्पधारी कमैंट्स से आज की संकल्प सूची सुशोभित हो रही है, सभी को बधाई एवं धन्यवाद्। 


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