(भोले नाथ को समर्पित )
12 अगस्त 2024 का ज्ञानप्रसाद
यह एक प्राकृतिक धारणा है कि यदि किसी के प्रयास को सराहना मिले तो उसका उत्साहवर्धन होता है जो उसे आने वाले कार्यों को करने के लिए ऊर्जा, साहस, शक्ति एवं Initiative प्रदान करता है। आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी की दिव्य रचना “अज्ञात की अनुभूति” पर प्रस्तुत की गयी लेख श्रृंखला के बाद हमारे परिवार के लिए डॉ साहिब ने जो सराहना भरे शब्द लिखे हैं,उनके लिए डॉ साहिब का धन्यवाद् करते हैं एवं साथिओं को बधाई देते हैं। लेख श्रृंखला लिखते समय प्राप्त हुआ डॉ साहिब का सूक्ष्म आशीर्वाद एवं अब प्राप्त हुआ प्रतक्ष्य Appreciation letter हमारे लिए एवं सभी परिवारजनों के लिए किसी सिल्वर,गोल्डन मैडल से कम नहीं है, यह तो हीरक मैडल है। एक बार फिर से डॉ साहिब का धन्यवाद् एवं साथिओं को बधाई। डॉ साहिब द्वारा लिखे गए शब्द, “सारा काम और परिश्रम तो आपका, नाम हमारा ? आंखों में आंसू आ गए।” उनके सरल एवं अति साधारण व्यक्तित्व को रिफ्लेक्ट कर रहे हैं।
इस लेख श्रृंखला से प्राप्त हुई ऊर्जा, गुरुदेव के मार्गदर्शन एवं निर्देश ने हमें कल से आरम्भ होने वाली एक और दिव्य लेख श्रृंखला की प्रेरणा दी है जिसका विस्तृत विवरण आप लेख में ही पढ़ें तो उचित रहेगा क्योंकि इस लेख शृंखला की पृष्ठभूमि को लिखते समय हमारे ह्रदय में बार-बार एक ही प्रश्न उठ रहा था कि इतना विस्तृत विवरण देने की क्या आवश्यकता है ? कहीं हमारे साथी Confuse और Bore ही न हो जाएँ ? इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं परम पूज्य गुरुदेव के ही शब्दों में अंकित किया जा सकता है:हम एक परिवार हैं और परिवार की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी प्राप्त करना परिवार के प्रत्येक सदस्य का अधिकार है। इस पृष्ठभूमि में दिव्यता तो है ही, रोचकता भी कम नहीं है।
तो आइए चलें आज की गुरुकक्षा की ओर जहाँ आज “साप्ताहिक विशेषांक” जैसी बातचीत होती दिख रही है।
***********************
डॉ ओ पी शर्मा जी का 10 अगस्त 2024 का आशीर्वाद पत्र :
आदरणीय त्रिखा जी, सादर प्रणाम। महाकाल की इस देवी योजना में आपकी श्रद्धा व समर्पण का फल है कि आप निरंतर परम पूज्य गुरुदेव के दर्शन को जो हृदय को छूने वाला होता है अपने माध्यम से विश्वभर में पँहुचा रहे हैं। 45 वर्षों में, महाकाल की कृपा से हमारे अंतःकरण ने जो अनुभव किया,परम पूज्य गुरुदेव जी के द्वारा दिया गया अनुदान ही है, उन्हीं की आंतरिक प्रेरणा से प्रस्तुतीकरण का भाव जगा। वर्ष 2013 में, श्रद्धेय डॉक्टर साहब एवं संध्या बहन जी ने प्रस्तुतीकरण का ऐसा आशीर्वाद दिया कि हमारा मनोबल बढ़ गया। 1970 से अनवरत लिखी जा रही दैनिक आध्यात्मिक डायरी का संकलन करने में लगभग 7 वर्ष लग गए। वर्ष 2021 में श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या जी ने उद्घाटन किया। आदरणीय डॉ अरुण जी,इस पुस्तक में मेरा अपना कुछ भी नहीं है। जब हमने 24वां समापन अंक पढ़ा तो परम पूज्य गुरुदेव जी की कृपा से सोचा कि सारा काम और परिश्रम तो आपका, नाम हमारा ? आंखों में आंसू आ गए।
आदरणीय डॉक्टर अरुण जी आपकी श्रद्धा व समर्पण बढ़ता जाए,आपको निरंतर परम पिताजी का प्रेम-प्रकाश और प्रेरणा मिलती रहे। आप लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत बनें। ऐसी प्रार्थना एवं मंगल कामनाओं सहित:
डॉक्टर ओ पी शर्मा/ डॉक्टर गायत्री शर्मा
********************
डॉ साहिब के मैसेज पर हमारा रिप्लाई:
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ साहिब जी, एक-एक शब्द आपकी अंतरात्मा से हमारी अंतरात्मा को छू रहा है, अश्रुधरा overpower कर रही है, कुछ भी लिखा नहीं जा रहा है, कृपया अपना आशीर्वाद बनाए रखें, आप द्वारा रचित दिव्य ग्रंथ “अज्ञात की अनुभूति” में अभी बहुत रत्न छिपे हैं, गुरुदेव ने चाहा तो भविष्य में एक बार फिर से इस महान ग्रंथ पर रिसर्च करने का साहस मांगते हैं।
24 दिन लगातार, जैसे-जैसे इस दिव्य ग्रन्थ पर आधारित लेख प्रकाशित होते गए, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य अपनेआप को इस अमृतरूपी सागर में डूबा हुआ अनुभव करता रहा, हम सब सदैव आपके ऋणी रहेंगें। आप द्वारा लिखे गए शब्द, केवल हमारे लिए न होकर पूरे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के लिए हैं।
जय गुरुदेव
*********************
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से,आने वाले दिनों में प्रस्तुत होने वाले लेखों की पृष्ठभूमि:
लगभग 50 दिन,पूर्व आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी की दिव्य रचना “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित 24-अंकीय लेख श्रृंखला का प्रथम अंक 23 जून 2024 को प्रकाशित हुआ।
11वें अंक के बाद गुरुपूर्णिमा के चार अंक प्रस्तुत करने के बाद, “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित बाकि लेखों का प्रकाशन हुआ।
हमारे साथिओं के ह्रदय में प्रश्न उठ सकता है कि इस टाईमटेबल की चर्चा करना क्या अनुचित नहीं है, कतई नहीं क्योंकि जिनके समक्ष हम यह चर्चा कर रहे हैं,वोह हमारे आदरणीय हैं एवं इस समर्पित परिवार के मूल्यवान सदस्य हैं। परम पूज्य गुरुदेव के ही शब्दों में लिख रहे हैं : हमारे परिवारजनों को, परिवार से सम्बंधित,प्रत्येक गतिविधि को जानने का पूरा हक़ है। हमारे साथी बार-बार कमैंट्स की माध्यम से आने वाले लेखों के बारे में, टॉपिक के बारे में जानने की जिज्ञासा व्यक्त का रहे थे।
संकल्प और परिश्रम का युद्ध :
हमारे साथिओं को स्मरण होगा कि आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी की पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” में मस्तीचक वाले स्वर्गीय रमेश चंद्र शुक्ला जी के सम्बंधित Confusion उठा था। इस Confusion के समाधान के लिए हमनें तो गूगल सर्च पहले ही अंक यानि 50 दिन पहले से ही आरम्भ कर दिया था एवं इस रिसर्च का परिणाम था कि आदरणीय रामचंद्र सिंह जी पर आधारित गुरुपूर्णिमा लेख लिख पाए।
कहानी थोड़ी लम्बी अवश्य है, Please hold on :
इस कहानी से हम यह बताने की प्रयास कर रहे हैं कि परम पूज्य गुरुदेव कैसे ऊँगली पकड़ कर न केवल एक-एक शब्द लिखवा रहे हैं बल्कि आगे के लिए कड़े निर्देश भी दे रहे हैं ,इसीलिए हमने लिखा “संकल्प और परिश्रम का युद्ध”, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर जो ढूंढने थे :
क)18 माह पूर्व प्राप्त हुई “अज्ञात की अनुभूति” पुस्तक पर इतने दिन पहले लेख क्यों नहीं लिखे ?
ख)आदरणीय रमेश चंद्र शुक्ला जी के नाम से Confusion क्यों हुआ ? ऐसा इसलिए था कि
आदरणीय रामचंद्र सिंह जी के नाम का जन्म होना था। 2024 की गुरुपूर्णिमा के चार लिखने का सौभाग्य इस परिवार को ही मिलना था।
प्रश्न क) के सम्बन्ध में हमारे समर्पित भाई अरुण जी ने पहले ही लिख दिया है कि डॉ साहिब की पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 18 माह तक रुके रहना केवल इस बात का साक्षी है कि गुरुदेव ने हमें 5 कुंडीय यज्ञ के लिए मार्गदर्शन एवं शक्ति प्रदान करनी थी।
हमारी रिसेर्च यहीं पर ही नहीं रुकी :
आदरणीय रामचंद्र सिंह जी से सम्बंधित दो लेखों का जनवरी एवं फरवरी 2003 की अखंड ज्योति पत्रिका में प्रकाशन होना इस बात का साक्षी है कि गुरुदेव का निर्दश है कि केवल गुरुपूर्णिमा के चार लेख लिख कर ही स्वयं को संतुष्ट न कर लेना, बेटा अभी हमने आपसे बहुत बड़ा कार्य करवाना है। हमने तो अपने साथिओं के साथ मंच पर शेयर भी कर दिया था कि डॉ साहिब की पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला के बाद परम पूज्य गुरुदेव और वंदनीय माता जी के पत्रों पर आधारित “मार्गदर्शन लेखों” की श्रृंखला आरम्भ करनी है लेकिन गुरुदेव की आज्ञा के आगे हम अपनी कैसे चला पाएं, यह तो संभव ही नहीं है।
हुआ कुछ ऐसे :
अखंड ज्योति के उपरोक्त लेख गुरुकथामृत शीर्षक के अंतर्गत अंक 38 और 40 के रूप में प्रकाशित हुए थे। माता जी के पत्र अखंड ज्योति में ही उसी शीर्षक के अंतर्गत अक्टूबर 2002 में अंक 53 में प्रकाशित हुए थे। 38,40,53 गुरुकथामृत अंकों को देख कर जिज्ञासा उठी कि अवश्य ही इस श्रृंखला का शुभारम्भ यानि गुरुकथामृत अंक 1 भी अवश्य ही होगा। गुरुदेव ने हमारी रिसर्च योग्यता को देखते हुए आदेश दिया कि बेटा अरुण,पहला अंक ढूढ़ कर लाने की ,परीक्षा की घड़ी आ गयी है। हमने back रिसर्च करके ढूढ़ ही लिया कि गुरुकथामृत शृंखला का प्रथम अंक अगस्त 1999 की अखंड ज्योति में प्रकाशित हुआ था।
हमारे साथी पूछ सकते हैं :
क) इतनी कठिन रिसर्च का उद्देश्य क्या था ?
ख) 25 वर्ष पुरानी अखंड ज्योति पत्रिकाओं से क्या मिलने वाला था ?
उद्देश्य बताने से पहले यह बता दें कि यह हमारे गुरु का निर्देश था और हमारे लिए गुरु के निर्देश से ऊपर कुछ हो ही नहीं सकता।
अक्सर कहा जाता है कि “Everything happens for a reason” हर किसी कार्य के पीछे कोई महत्वपूर्ण राज़ छुपा होता है
तो क्या थी गुरुदेव की योजना ? अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण योजना ही रही होगी, अगर ऐसा न होता तो “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित कठिन, परिश्रम युक्त लेख शृंखला के साथ-साथ इतनी परिश्रम भरी रिसर्च करवाना कोई साधारण कार्य नहीं है।
तो यही है गुरुदेव की महत्वपूर्ण योजना जिसके अंतर्गत हमने ऐसे-ऐसे दुर्लभ लेख पढ़ डाले, इतने दिव्य लेख पढ़ डाले ( हमने क्या पढ़े,गुरुदेव ने पढ़वा लिए ) जिनके बारे में जानने की हमारी वर्षों से इच्छा थी।
अब तो मस्तिष्क में इतना संघर्ष है कि किसे पहले प्रस्तुत किया जाए और किसे बाद में, हमारा अटल विश्वास है कि इस स्थिति में भी गुरुदेव का निर्देश ही कार्य करेगा।
“मार्गदर्शन पत्रों” वाले लेख देखे तो वो बड़े दिव्य प्रतीत हुए, तपोभूमि मथुरा की स्वर्ण जयंती एवं गुरुदेव/माता जी की प्रतिमा आवरण वाले लेख देखे तो उन पर ही मन बैठ गया, ध्यान साधना तो हम सब करते ही हैं लेकिन जब गुरुदेव का अपने बच्चों को सिखाने वाला लेख देखा तो कुछ और ही ख्याल आया,आदरणीय लीलापत शर्मा जी के महाप्रयाण का लेख देखा तो आँखों में आंसू आ गए,गुरुदेव के महाप्रयाण के बाद मातृवाणी के अंतर्गत माताजी का सन्देश इतना कुछ कह गया कि हम तो पूर्णतया निशब्द हैं।
उपरोक्त विवरण केवल कुछ एक लेखों से सम्बंधित है जिन्हें हमने नियमित ज्ञानप्रसाद कार्य के साथ-साथ, समय निकाल कर सरसरी निगाह से देखा है। न जाने ऐसे कितने ही लेख पढ़ डाले होंगें, इतने अधिक थे, इतने दिव्य थे कि हमें सेव भी नहीं किए लेकिन सब हमारे मन- मस्तिष्क में पिक्चर बनाये हुए हैं। हमें अपने गुरु पर पूरा विश्वास है, वही ऊँगली पकड़ कर राह दिखते जायेंगें।
इसी विश्वास के साथ, गुरुदेव के ही मागदर्शन अनुसार कल वाला लेख “मातृवाणी” से सम्बंधित प्रथम लेख होगा जो अखंड ज्योति अगस्त 2002 की अखंड ज्योति में प्रकाशित हुआ था। वंदनीय माता जी इस लेख में कह रही हैं कि जिस किसी ने भी इन लेखों को ठीक से पढ़ लिया, उसके मन में गायत्री परिवार से सम्बंधित कोई भी प्रश्न बाकि नहीं रहेगा।
इन्हीं शब्दों के साथ, आपको कल के लेख की प्रतीक्षा करने के लिए छोड़ते जाते हैं, जय गुरुदेव
**************
आज की संकल्प सूची ने हमारे सुझाव को सम्मान देते हुए, केवल एक ही दिन में प्रभाव दिखा दिया जिसके लिए सभी साथिओं के अथक प्रयत्न को नमन करते हैं। “संकल्प सूची” नाम से आरम्भ किया गया यह प्रयास आज एक नए रूप में उभर का सामने आया है, आशा करते हैं पहले की तरह आदरणीय सुमनलता बहिन जी इसका भी नामकरण अवश्य ही कर देंगीं।
35 साथिओं में से 21 ने 24 आहुतियां प्रदान करके एक ऐसा संकल्प पूरा किया है कि यज्ञकुंडों से उठ रहे धूम्र ने सारे विश्व को सुगन्धित कर दिया है। सभी साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् एवं बहुत बहुत बधाई।