https://youtu.be/L9sNLAephoQ?si=k9F9nc4O76_EN6hV (गुरुवार का शुभारम्भ गुरुपूजा के साथ)
8 अगस्त 2024 गुरुवार का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 23वां लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों भी क्यों न,हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द कुछ ऐसा संजोए हुए है कि सचमुच अमृत ही है। जो साथी अपने अनुभव एवं ज्ञान से इस लेख शृंखला में योगदान कर रहे हैं उनके हम ह्रदय से आभारी हैं।
आज का लेख, माता भगवती देवी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय आँवलखेड़ा की स्थापना में आदरणीय डॉ शर्मा जी के योगदान का वर्णन कर रहा है। ऑनलाइन मीडिया पर इस महाविद्यालय के बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 2019 में आंवलखेड़ा प्रवास के बाद हमने बहुत प्रयास किया कि कोई जानकारी प्राप्त हो लेकिन कोई सार्थकता हाथ न लगी। कॉलेज के प्रिंसिपल साहिब से भी संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। आज के लेख में आदरणीय डॉ साहिब के जीवन की अनेकों कक्षाओं की भी जानकारी है।
कैसा संयोग है कि इस शृंखला का समापन कल शुक्रवार को, 24वें अंक के साथ हो रहा है ,हम इस लेख शृंखला को 24 आहुति से कम नहीं मानते हैं। तो स्मरण करा दें कि इस शुक्रवार को साप्ताहिक वीडियो के स्थान पर इस शृंखला के अंतिम लेख के साथ समापन होगा,पूर्णाहुति होगी।
आज के लेख से सम्बंधित हमने कुछ चित्र भी संलग्न किये हैं, आशा है साथिओं के लिए उपयोगी होंगें।
तो आइए गुरुचरणों का स्मरण करते गुरुकक्षा की दिव्यता का आनंद प्राप्त करें।
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माता भगवती देवी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय आँवलखेड़ा की स्वीकृति एवं निर्माण कार्य का शुभारम्भ :
परम पूज्य गुरुदेव जी की इच्छा को क्रियान्वित करने के लिए श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी का मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेकर प्रयास का शुभारम्भ किया गया। करने वाले तो पूज्य गुरुवर ही थे लेकिन वोह हमारे छोटे से प्रयास का बड़ा श्रेय हमें देना चाहते थे, मार्ग स्वयं ही बनते चले गए और आज 2024 में माता भगवती देवी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय आँवलखेड़ा एक जाना पहचाना नाम है
भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी,आगरा के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता प्रोफेसर हरीश चन्द्र मेहरोत्रा एवं अन्य परिजनों के सहयोग से हम यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर डॉ. मंजूर अहमद जी से संपर्क स्थापित कर पाए एवं अपने गुरु, वरिष्ठ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं क्रान्तिकारी समाजोद्धारक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा करने को समर्थ हो पाए ।
वाईस चांसलर साहिब ने परम पूज्य गुरुदेव की पावन ऐतिहासिक जन्मस्थली आँवलखेड़ा एवं आसपास के क्षेत्रों में कन्याओं की शिक्षा की आवश्यकता आदि विषयों की जानकारी का मूल्यांकन किया, उसके बाद उन्होंने आँवलखेड़ा स्थित जन्मस्थली का दर्शन एवं गायत्री शक्तिपीठ पर आयोजित कार्यक्रम के साथ, डिग्री कॉलेज के प्रारम्भ होने की उपयोग्यता पर अन्य वक्ताओं के बाद Presidential भाषण देना स्वीकार किया। इस आयोजन के बाद तो महाविद्यालय के खुलने के सारे मार्ग खुलते ही गए। VC साहिब हमें नियमित एवं अनवरत रूप से, पूरा सहयोग और मार्गदर्शन देते गये। प्रदेश की राजधानी स्थित लखनऊ सेक्रेट्रिएट एवं Director Higher Education से तालमेल बिठाते हुए,आवश्यक कागजातों को पूरा करने के बाद वित्त विभाग की स्वीकृति मिल गयी। परम पूज्य गुरुदेव की महान् कृपा एवं प्रेरणा से ही UP गवर्नमेंट में Principal Secretary, Finance श्री नृपेन्द्र मिश्रा जी IAS ने पूज्यवर का कुछ साहित्य पढ़ा। उसके बाद जब हम मिश्रा जी के पास Financial sanction प्राप्त करने के लिए गए तो उन्होंने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा:
परम पूज्य पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचार हृदय को छू गये। गुरुदेव की छोटी-छोटी पुस्तकों में पढ़ा कि शिक्षा और विद्या के विस्तार की नितान्त आवश्यकता है। शिक्षा के साथ विद्या भी आवश्यक है।
गुरुदेव के साहित्य के अध्ययन के फलस्वरूप श्री मिश्रा जी ने लोगों के योगदान को सराहते हुए शीघ्र ही वित्तीय स्वीकृति प्रदान कर दी।
अप्रैल 1998 से जून 1999 तक कॉलेज के भवन का निर्माण हो गया। 1999 में ही तत्कालीन उच्च शिक्षामन्त्री, श्री ओमप्रकाश सिंह द्वारा श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी की अध्यक्षता में उद्घाटन हुआ। उसका नामकरण “माता भगवती देवी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय आँवलखेड़ा ” के नाम से स्थापित हो गया। आज लगभग 1000 छात्राएँ वहाँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
इस दैवी योजना के साथ,हमारे जैसे अनेकों सहयोगियों को लोकसम्मान,आत्मसन्तोष एवं दैवी अनुग्रह प्राप्त हुआ,जो अनन्तकाल के लिए जीवात्मा का अंग बन गया।
जीवन साधना का निष्कर्ष, अनेकों कक्षाओं की उपलब्धियाँ:
परम पूज्य गुरुदेव,वन्दनीया माताजी, श्रद्धेय डॉ प्रणव जी एवं श्रध्या जीजी के स्थूल एवं सूक्ष्म सानिध्य में बिताया गया समय निम्नलिखित अनेकों कक्षाओं में बांटा जा सकता है :
पहली कक्षा: ब्रह्मचर्य एवं गृहस्थाश्रम। यह कक्षा आत्मविकास के शुभारम्भ के लिए उपयोगी रही।
दूसरी कक्षा: गृहस्थाश्रम। पारिवारिक, व्यावसायिक जिम्मेदारियों का निर्वाह
तीसरी कक्षा: इष्ट की प्राप्ति, दिव्य दर्शन 1980
चौथी कक्षा: समर्पण। परम पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी के प्रतक्ष्य मार्गदर्शन में उनके आदेशों का पालन करते हुए समय, प्रतिभा, प्रभाव, ज्ञान एवं साधन का सदुपयोग करना। गुरुदेव-माताजी कोई व्यक्ति नहीं, मिशन हैं।
पांचवीं कक्षा: देव संस्कृति खण्ड, प्रज्ञा पुराण भाग-4 के अनुसार जीवनक्रम की व्यवस्था को धारण करना ।
वर्ष 1994 से 1998 तक श्रद्धेय डॉक्टर साहब एवं श्रद्धेया जीजी के सीधे मार्गदर्शन में धर्मतन्त्र से लोकशिक्षण के कार्य के लिए UK, आयरलैण्ड, साउथ अफ्रीका, तञ्जानिया, युगाण्डा, डेनमार्क, फ्रांस, यूएसए,कनाडा आदि स्थानों पर जाना। वर्ष 1999 में जन्मस्थली आँवलखेड़ा में श्रद्धेय के आदेशों पर माता भगवती देवी राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय को स्थापित करके आगे बढ़ाने एवं व्यवस्थित कराने का कार्य करना।
वर्ष 2000 में भारत के 20 स्थानों पर महापूर्णाहुति सम्पन्न करने के बाद, जुलाई माह में UK,USA में भागीदारी करने हेतु जाना जहाँ आयोजित कार्यक्रमों में हज़ारों लोगों ने दीक्षा ली एवं अपने परिवार निर्माण हेतु संकल्प लिए।
2004 में ब्रह्मवर्चस की रजत जयंती पर वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का कार्यक्रम सम्पन्न करने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखण्ड आदि प्रदेशों में 120 दिन की प्रव्रज्या (सन्यास) करने के बाद शान्तिकुञ्ज वापस आये। 2005 से 2008 तक श्रद्धेय डॉक्टर साहब ने UK,आयरलैण्ड, फिनलैण्ड,ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में कार्यक्रम सम्पन्न कराने के लिए भेजा। इस तरह लगातार 2015 तक श्रद्धेय डॉक्टर साहब भारत और विदेशों में विभिन्न स्थानों पर भेजते रहे।
प्रव्रज्या से साधकों को अनुदान की प्राप्ति:
गुरुदेव के मार्गदर्शन में 18 बार,लगभग 1600 दिन के लिए, विदेश प्रवास का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रत्येक बार कार्यक्रम सम्पादन में आन्तरिक आदेश के अनुसार सवा लक्ष्य का अनुष्ठान सम्पन्न हुआ। परम पूज्य गुरुदेव की आत्मा ही भगवान् कृष्ण, भगवान् राम के रूप में थी, इसी समय के दौरान आत्मिक आभास हुआ। परम पूज्य गुरुदेव ऋषियों के ऋषि हैं, जिन्होंने वन्दनीया माताजी को अपना दाहिना हाथ कहा है। वन्दनीया माताजी सारे ऋषियों की माता एवं श्रद्धा की केन्द्र हैं। यही भवानी एवं पार्वती की तात्विक विवेचना है। परम पूज्य गुरुदेव की आत्मा ही सत्य के रूप में है, प्रखर प्रज्ञा माता जी का ही स्वरूप है और वह निराकार है ।
ज़नवरी 1988 की अखण्ड ज्योति में परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं:
“शरीर छोड़ने के बाद क्षण भर के लिए हम निराकार हो जायेंगे, उसके बाद उस स्थिति से अपने को उबार लेंगे और अखण्ड दीपक की ज्वलन्त ज्योति में समा जायेंगे, वही हमारी प्रतिमा होगी। बाद में वन्दनीया माताजी भी देर-सबेर उसी में समाहित हो जाएँगी और अखण्ड दीपक हम लोगों का संयुक्त स्वरूप होगा।”
पूज्यवर के वचनों का आभास हो गया कि शान्तिकुञ्ज द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों को श्रद्धा और निष्ठा से सम्पन्न करने पर दिव्य अनुदानों की प्राप्ति होती है। साधकों को ज्ञान के रूप में यही दिव्य अनुदान की प्राप्ति है।
शास्त्र कहता है कि अनुभूति ही ज्ञान है शेष मात्र जानकारी है। ज्ञान का अनुदान मिलने पर ही श्रद्धा एवं विश्वास का विकास होता है, जो आचरण और व्यवहार में परिलक्षित होने लगता है।
तुलसीदास जी कहते हैं:
भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तः स्थमीश्वरम् ।।
अर्थात
श्रद्धा मनुष्य जीवन के उन आधारभूत सिद्धान्तों में से एक है जिससे वह पूर्ण विकास की ओर गमन करता है। श्रद्धा न हो तो मनुष्य सफलतायें प्राप्त करके भी आत्मिक सुख प्राप्त न कर सकेगा क्योंकि जिन गुणों से आध्यात्मिक सुख मिलता है उनकी पृष्ठभूमि श्रद्धा पर ही निर्भर है। शंकर विश्वास है तो भवानी श्रद्धा । दोनों की उपासना से ही सिद्धि या अंतःकरण में स्थित परमात्म देव के दर्शन सम्भव होते हैं।
शिवत्व अर्थात् जीवन के बुरे तत्वों का संहार-ईश्वर प्राप्ति का प्रमुख कारण है किन्तु शिव अकेला अपूर्ण है उसे उमा भी चाहिए। उमा अर्थात् गुणों का अभिवर्द्धन। शिव का अर्थ है असुरता का संहार और भवानी का अर्थ है भावनाओं का परिष्कार | शिव के रूप में विश्वास दृढ़ होता है, कठिन होता है लेकिन भवानी के रूप में श्रद्धा सरल और सुखदायक होती है। अतः विश्वास जगाना हो तो श्रद्धा की शरण लेनी चाहिए। श्रद्धा साधना को सरल बना देती है, सुख रूप कर देती है।
श्रद्धा-विश्वास से ही आन्तरिक उल्लास, उत्साह, पूर्णता एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है। यही है रिद्धि, बाहरी सफलता एवं लोकसम्मान ही सिद्धि है।
इन्हीं दिव्य उपदेशात्मक शब्दों के साथ आज 23वें लेख का समापन हो रहा है।
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आज की संकल्प साधना में निम्नलिखित 11 साथी सफल हुए हैं।
रेणु श्रीवास्तव,सुजाता उपाध्याय, सुमनलता, संध्या कुमार,चंद्रेश बहादुर, नीरा त्रिखा,अरुण वर्मा,पूजा सिंह,मंजू मिश्रा,राधा त्रिखा,अनिल मिश्रा
सभी को हमारी बधाई एवं सहयोग के लिए धन्यवाद्


