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7 अगस्त 2024 मंगलवार का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 22वां लेख प्रस्तुत है।
आज का लेख तो सचमुच अमूल्य ज्ञानामृत ही है जिसे हमने बहुत ही परिश्रम से डुबकी मारकर ढूढ़ा है। इस लेख में दिए गए विवरण से हम इतना अधिक परिचित हो चुके हैं कि सारे Facts अनेकों बार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के इस दिव्य मंच पर प्रकाशित हो चुके हैं। जो भी हो आदरणीय डॉ साहिब ने “अज्ञात की अनुभूति” जैसी दिव्य पुस्तक की रचना करके हम सब पर बहुत बड़ा उपकार किया है। आज यूट्यूब पर डॉ साहिब का सराहना भरा कमेंट देखकर हमारा अंतःकरण ऊर्जा से परिपूर्ण हो गया।
तो आइए इस वार्ता का यहीं पे समापन करें और गुरुकुल की गुरुकक्षा की ओर कदम बढ़ाएं।
वन्दनीया माताजी का महाप्रयाण,अन्तिम दर्शन, उनका प्रत्यक्ष आदेश और संकल्प:
डॉ गायत्री शर्मा जी द्वारा लिखा गया विवरण :
शान्तिकुञ्ज आने के कुछ दिन बाद वन्दनीया माताजी से भेंट वार्ता और दर्शन न होने के कारण बार-बार उनके दर्शन और सेवा करने की मन में तीव्र इच्छा हो रही थी। शान्तिकुञ्ज रहते समय, राजकीय चयनराय चिकित्सालय में सीएमएस के पद का कार्य भी चल रहा था। सुबह 7:30 बजे अपनी एम्बेसडर कार से चिकित्सालय जाते थे और दोपहर 1:30 बजे तक वापस आ जाते थे। वापस आने के बाद अखण्ड दीप का दर्शन करने जाते थे ।
सितम्बर 1994 का महीना था, एक दिन जब ऊपर गये, श्रद्धेया जीजी कमरे से निकलीं और कहा आपको वन्दनीया माताजी बुला रही हैं। हमारी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। वन्दनीया माताजी के कमरे में गये, वह लेटी थी, उनके चरण स्पर्श करते ही श्रद्धा से अश्रुधार बहने लगी। हम कुछ बोल नहीं पा रहे थे । माताजी ने हमारा हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर कहा:
“तुम्हारा जीवन अब पूरी तरह से शान्तिकुञ्ज का है।” हमारे अन्दर से भाव निकला:
“करिष्ये वचनं तव” हम आपके ही थे, आपके ही रहेंगे। जन्म- जन्मान्तरों तक ऐसी कृपा करें। वन्दनीया माताजी ने सिर थपथपाया और हम आशीर्वाद लेकर बाहर आ गए । मन प्रसन्न था, लेकिन भारी था।
मात्र तीसरे ही दिन 19 सितम्बर 1994 पूर्णिमा, वाले दिन स्वघोषित, अपनी इच्छा से पार्थिव शरीर को त्याग कर अखण्ड दीपक में (जिसे गुरुदेव की आत्मा कहा जाता है) विलीन हो गयीं।
वन्दनीया माताजी का पावन अस्थिकलश (सजल श्रद्धा ):
21 सितम्बर 1994 श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी के आदेश से डॉ. गायत्री शर्मा टोली नायक एवं श्रीमती पद्मा पाण्डे, श्रीमती सुशीला अनघोरे एवं दो बहिनों समेत, पाँच बहिनों की टोली ने पावन अस्थिकलश लेकर शान्तिकुञ्ज से प्रस्थान किया। 22 सितम्बर को 4:00 बजे लखनऊ स्टेशन पर कार्यकर्ता भाई बहिनों ने अस्थि कलश का पूजन करके स्वागत किया और निर्धारित मार्ग से होती हुई कलश यात्रा, गायत्री शक्तिपीठ कुर्सी रोड पहुँच गयी। शाम को शक्तिपीठ प्रांगण में भव्य दीपयज्ञ सम्पन्न हुआ और पावन शक्ति कलश की सजल श्रद्धा के रूप में स्थापना हुई। 23 सितम्बर को प्रातः यज्ञ, दोपहर को कार्यकर्ता बहिनों की गोष्ठी, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण व सायं को बहनों के संगीत के बाद डॉ. गायत्री शर्मा जी ने वन्दनीया माताजी की तपस्या एवं हम बच्चों से उनकी अपेक्षा के बारे में बताया। 24 सितम्बर को टोली की विदाई हुई और अगले दिन टोली ने शान्तिकुञ्ज के लिए प्रस्थान किया ।
3 माह बाद गायत्री जी का ट्राँसफर वापस लखनऊ हो गया। हमें आभास हुआ कि माता जी ने अपने सान्निध्य के अन्तिम क्षणों का लाभ देने हेतु ही अपनी दिव्य शक्ति के कारण, नियमों के विपरीत हमारा ट्राँसफर हरिद्वार करवा दिया था। इसी वजह से वन्दनीया माताजी का अन्तिम आदेश हमें साक्षात् उनके श्रीमुख से सुनने को मिला, जो हमें समय-समय पर सम्बल प्रदान करता रहता है।
गुरुदेव की सूक्षम शक्ति द्वारा डॉ गायत्री शर्मा जी की आंवलखेड़ा चिकित्सालय में पोस्टिंग करवाना :
1984 में परम पूज्य गुरुदेव जी ने डॉ गायत्री जी से पूछा कि बेटी तुम्हारी पोस्टिंग आँवलखेड़ा नहीं हो सकती। डॉ गायत्री जी ने कहा, “कैसे होगी ?” पूज्यवर चुप रहे।
हमारा एवं अन्यों का अनुभव है कि
“गायत्री के सिद्ध पुरुष पूज्य आचार्य जी ने जो सोचा वह प्रकृति में अंकित हो गया।” समय आने पर गुरुदेव इच्छा पूरी हुई। जून 1995 में प्रमुख सचिव, श्रीमती काण्डपाल, IAS ने डॉ गायत्री जी को बुलाया और कहा: राज्यपाल जी की इच्छा है कि आँवलखेड़ा का चिकित्सालय जल्दी बन जाये और तुम आगरा मण्डल की एडिशनल डायरेक्टर बनकर चली जाओ। डॉ.ओ. पी. शर्मा भागदौड़ करके सचिवालय से रिलीज करवा देंगे, काम बन जायेगा। हमने यह सूचना श्रद्धेय डॉक्टर साहब को दी। श्रद्धेय जी ने कहा कि यह गुरुजी की इच्छा है।
विभिन्न शासकीय व्यवस्थाओं में सभी के सहयोग से आँवलखेड़ा का कार्य ठीक तरीके से सम्पन्न हुआ। मार्च 1995 में तत्कालीन राज्यपाल, उत्तर प्रदेश श्री मोतीलाल बोरा जी द्वारा वरिष्ठ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा जी की जन्मस्थली को आदर्शग्राम घोषित करके श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया बहिन जी की गरिमामयी उपस्थिति में “एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र”, 30 बेड के चिकित्सालय का भूमिपूजन, हुआ। परम पूज्य गुरुदेव जी की इच्छा पूर्ण होते दिखी। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा था कि आंवलखेड़ा ग्राम में एक चिकित्सालय बन जाये तो बहुत अच्छा होगा।
अगस्त 1995 में डॉक्टर गायत्री शर्मा एवं आगरा मण्डल के 5 जिलों के सीएमओ की उपस्थिति में श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या जी ने भूमिपूजन किया एवं निर्माण प्रारम्भ हुआ। 1997 में पहले श्रद्धेय डॉक्टर साहब व श्री रमापति शास्त्री, स्वास्थ्य मन्त्री, उत्तरप्रदेश ने माता भगवती देवी शर्मा राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का निरीक्षण किया। 3 माह के बाद मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश , सुश्री मायावती ने उद्घाटन किया। उद्घाटन में डॉक्टर गायत्री शर्मा, तत्कालीन निर्देशक चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश एवं श्री डी. एस. मिश्रा IAS जिलाधिकारी, श्री एल. पी. मिश्रा IPS, एस. एस. पी. एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी, आगरा उपस्थित रहे।
परम पूज्य गुरुदेव की इच्छाशक्ति ने जनहित के लिए चिकित्सालय बनवा कर सभी को शान्ति प्रदान की । सहयोगियों ने इस ऐतिहासिक कार्य में योगदान देकर अपने को धन्य महसूस किया ।
परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण के बाद :
संकल्प श्रद्धाञ्जलि समारोह:
अक्टूबर 1990, परम वन्दनीया माताजी के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन एवं श्रद्धेय प्रणव जी एवं श्रद्धेया शैल बहन जी की उपस्थिति में 108 कुण्डीय यज्ञ के माध्यम से संकल्प श्रद्धाञ्जलि समारोह का आयोजन राज्य स्तरीय विभूतियों एवं देश-विदेश के लाखों कार्यकर्त्ताओं की उपस्थिति में विशेष दैवी अनुदान के साथ, 21वीं सदी उज्ज्वल भविष्य के संकल्प के साथ सम्पन्न हुआ । अन्तिम दिन वन्दनीया माताजी ने हमें अपने उद्बोधन के पूर्व सञ्चालन की आज्ञा दी। वन्दनीया माताजी के चरणों पर सिर रखकर, उनका आशीर्वाद लेकर सन्देश सुनाने की हिम्मत हुई । उद्बोधन में केवल इतना ही कहा:
प्रज्ञा अवतार के द्वारा भगवान् बुद्ध का छूटा हुआ कार्य नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक क्रान्ति के रूप में पूरा किया जा रहा है। परिवर्तन का चक्र चल रहा है। वन्दनीया माताजी साक्षात् पार्वती जी के रूप में विराजमान हैं, जिनको लाखों बच्चे अपनी सच्ची माता के रूप में अनुभव करते हैं। वन्दनीया माताजी से निवेदन है कि वे हम सब बच्चों को वह दृष्टि दें “दिव्यं ददामि ते चक्षुः” ताकि परिवर्तन के चक्र को देख सकें और पूर्ण समर्पित होकर कार्य करते हुए स्वयं को एवं समाज को धन्य बना सकें।
बस इसी पर वाणी रुक गयी। वन्दनीया माताजी ने सिर थपथपा कर आशीर्वाद दिया। मंच पर विराजमान,श्रद्धेय डॉक्टर साहब ने भी अपनी प्रसन्नता व्यक्ति की ।
वन्दनीया माताजी ने प्रारम्भिक प्रवचनों में कहा कि जो शक्ति हमारे पास है, आज हम बाँट देते हैं, खाली हो जाते हैं। उन्होंने 1991 वसन्त पञ्चमी से 1992 वसन्त पञ्चमी पर्व तक सारे विश्व में “शक्ति साधना वर्ष” मनाये जाने की घोषणा की।
27 जून 1991 को तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा वन्दनीया माताजी की अध्यक्षता में मुख्य न्यायाधीश श्री रंगनाथ मिश्रा जी, सञ्चार मन्त्री डॉक्टर सञ्जय सिंह, श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी की गरिमामयी उपस्थिति में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के सम्मान में भारत सरकार द्वारा एक रुपये का डाक टिकट जारी किया गया ।
वर्ष 1992 देव संस्कृति दिग्विजय अभियान, शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के तत्त्वावधान में आयोजित “महायज्ञ श्रृंखला आयोजन” के पूर्व 10 जून को गुरुदेव की पावन जन्मस्थली, आँवलखेड़ा की पावन रज को हाथ में लेकर देव संस्कृति की रक्षा के लिए लाखों कार्यकर्त्ताओं ने शपथ ग्रहण की।
प्रथम अश्वमेध यज्ञ 8,9,10 नवम्बर 1992 ,सवाई माधव सिंह स्टेडियम जयपुर में आयोजित किया गया जो वन्दनीया माताजी की अध्यक्षता एवं श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी की मञ्च पर गरिमामय उपस्थिति में आरम्भ हुआ। इसके अन्तर्गत दीक्षा एवं विभिन्न प्रकार के संस्कार सम्पन्न हुए तथा देवसंस्कृति की रक्षा के लिए समयदान-अंशदान का संकल्प लिया गया ।
इस प्रकार 27 अश्वमेध यज्ञ, जिसमें से चार यज्ञ विदेशों में ( लिस्टर (यूके),टोरण्टो (कनाडा), लासएञ्जिल्स (यूएसए) शिकागो (यूएसए)) में सम्पन्न हुए।
हमारे साथी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अश्वमेध यज्ञ की श्रृंखला का 47वां यज्ञ 2024 में मुंबई में संपन्न हुआ है।
वन्दनीया माताजी के महाप्रयाण के बाद:
4 से 7 नवम्बर 1995 को 27वाँ, 1251 कुण्डीय अश्वमेध यज्ञ पूज्य गुरुदेव की पावन जन्मस्थली आँवलखेड़ा में श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। आँवलखेड़ा में 1 नवम्बर 1995 को उस समय भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी. वी. नरसिम्हा राव जी ने स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं महान् समाज सुधारक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के कीर्ति स्तम्भ का लोकार्पण कर राष्ट्र को समर्पित किया।
श्रद्धेय डॉक्टर साहब एवं श्रद्धेया शैल बहिन जी के आशीर्वाद से, हमने जनवरी 1996 में अपने निवास त्रिपदा-19, शान्तिकुञ्ज में नौ दिवसीय अनुष्ठान सम्पन्न किया जिसमें आध्यात्मिक अनुदान के रूप में अनुभूति हुई कि पूरे कार्यक्रम की सफलता का आधार पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी की चेतना, स्वयं ही थी। गुरुदेव और माता जी ही प्रेरक, कर्ता, द्रष्टा एवं समर्थ सहयोगी के रूप में साथ रहे।
“अन्त:करण में संकेत हुआ कि इन बिन्दुओं का नियमित अभ्यास करना है ताकि वह सच्चाई संस्कार के रूप में ह्रदय में बैठ जायेगी। आज 24 वर्षों के अभ्यास से, “एक सफल आध्यात्मिक विद्यार्थी” के रूप में आभास होने लगा है और पुरुषार्थ करने पर सफलता एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है।
आज की संकल्प साधना में निम्नलिखित 10 साथी सफल हुए हैं।
रेणु श्रीवास्तव,वंदना कुमार,सुजाता उपाध्याय,सुमनलता,संध्या कुमार,चंद्रेश बहादुर, नीरा त्रिखा,विदुषी बंता,अरुण वर्मा,सरविन्द कुमार
सभी को हमारी बधाई एवं सहयोग के लिए धन्यवाद्
