वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 21वां लेख  

6 अगस्त 2024 मंगलवार  का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 21वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न,हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द कुछ ऐसा संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है।

हम सब जानते हैं कि हमारे गुरुदेव ने 2 जून 1990 वाले दिन, अपनी ही इच्छा से,अपने  स्थूल शरीर का त्याग किया था। इसी दिन गायत्री जयंती एवं गंगा दशहरा जैसे पावन पर्व भी थे। इस महत्वपूर्ण विषय पर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच  से ही कितना कुछ प्रकाशित हो चुका  है कि क्या कहा जाए।  

हमारा सौभाग्य है कि आज आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी की लेखनी से इस विषय पर बहुत ही संक्षेप में जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। 2 जून वाले दिन तो डॉ साहिब एवं गायत्री जी गुरुदेव से मिले ही, लेकिन उससे पहले भी, उन दिनों  संपर्क होता रहा ,हमने मात्र दो ही दिनों (24 अगस्त और 29 सितम्बर) का मार्गदर्शन शामिल करना उचित समझा ताकि हमारे साथी स्वयं जान जाएँ कि  ज्ञानरथ, जन्म दिवस, दीप यज्ञ आदि के पीछे उनका  क्या विज़न था  एवं वोह सम्पर्क के साधन कैसे सिद्ध हो सकते हैं। यहाँ पर हम अपना गोल्डन उद्घोष फिर से रिपीट करना चाहते हैं कि “जहाँ संपर्क समाप्त वहां सम्बन्ध अंत” इसीलिए हम बार-बार 24 आहुति संकल्प सूची (जो संपर्क का सूचक है) पर बल देते रहते हैं। 

इन्हीं शब्दों के साथ आइए गुरुकक्षा की और कदम बढ़ाएं। 

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2 जून 1990 को परम पूज्य पिताजी, दिव्य महाचेतना को सविता एवं अखण्ड दीपक की लौ में विलीन कर “व्याप्तं येन चराचरम्” की स्थिति में होकर सभी दिव्य आत्माओं को प्रेम, प्रेरणा, प्रकाश और मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। 

यहाँ हम शंकराचार्य जी द्वारा रचित गुरु की स्तुति करने वाला यह मन्त्र अर्थ के साथ लिखना उचित समझते हैं:

अखंड मंडला कारम व्याप्तं येन चराचरम् | तत्पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः |

भगवान जो अविभाज्य ( जिनका विभाजन नहीं हो सकता)  हैं,जिनका रूप संपूर्ण है, जो सजीव और निर्जीव दोनों रूपों में व्याप्त है। जिसने ऐसे भगवान के चरण देखे हैं,जिन्होंने परम के साथ एकता का अनुभव किया है, ऐसे गुरु को प्रणाम है।

यह मिशन सनसनाता हुआ अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ता चला जा रहा है। इस कथन की पुष्टि के लिए जनवरी 1988 की अखण्ड ज्योति पत्रिका में पृष्ठ 30 पर प्रकाशित “यह ज्योति फिर भी बुझेगी नहीं ” शीर्षक के अंतर्गत लेख एवं “परिवर्तन के महान् क्षण” पुस्तक में  “आश्वासन और अनुरोध” शीर्षक वाला लेख अद्भुत जानकारी से भरा है। 

हमने इस लेख में केवल इन प्रकाशनों के केवल स्क्रीनशॉट ही दिए हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर यह दोनों लेख अलग-अलग समय पर, अलग-अलग लेख शृंखलाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। अगर हमारे साथी इन लेखों को पढ़ना चाहें तो गूगल सर्च की सहायता ली जा सकती है। 

आइए अब लेख की और बढ़ते हैं। डॉक्टर साहिब बता रहे हैं :  

एक दिन पूर्व गायत्री जी भी लखनऊ से आ गयी थीं । वन्दनीया माताजी ने हम दोनों को पूज्य गुरुदेव जी के पास ऊपर भेजा । हम लोग ऊपर गये, गुरुदेव के चरणों पर सिर रखा। परम पूज्य पिताजी लेटे थे, थोड़ी देर में उठ कर बैठ गये। (संलग्न दिव्य चित्र को अवश्य देखें)  सिर में बीच के सारे बाल धीरे-धीरे खड़े हो गये। गायत्री जी हमारे दाहिने बैठी थीं। परम पूज्य पिताजी की आधी आँखें बन्द, आधी खुली थीं। गुरुदेव  ध्यान मुद्रा में गायत्री जी को देख रहे थे। हम तो हाथ जोड़कर उनकी लीला देख रहे थे, जब परम पूज्य पिताजी लेटे थे, हमें लग रहा था कि उन्होंने  शरीर की सारी चेतना को सिकोड़ लिया है। थोड़ी देर में जब उठकर बैठे, उनकी मुखाकृति भरती और बदलती चली गयी, वह सन्देश सुनाने लगे। हमारी समझ में इतना ही आया कि 

यह शब्द हमारे एवं गायत्री जी के हृदय में बैठ गये, आज भी कभी-कभी आवाज आती है। उस समय पूज्य गुरुदेव जी के शरीर में जो बाहरी  परिवर्तन हमने देखा, हमारे 23 वर्षों के चिकित्सकीय अनुभव के अनुसार कोई महान् चेतना ही अपनी  शक्ति एवं साधनों पर इतना आश्चर्यजनक नियन्त्रण कर सकती है। दूसरे शब्दों में वह महान् सविता रूपी आत्मा जब चाहे शरीर से अपनी चेतना को निकाल दे और जितना चाहे उतना शरीर में रोके रखे अर्थात् प्रकृति उनकी इच्छा के अधीन है। हमारे मन, बुद्धि और अन्तरात्मा ने यह अनुभव किया।

इसीलिए गायत्री जयन्ती जैसे ऐतिहासिक महान् पर्व पर जैसे ही वन्दनीया माताजी ने प्रवचन सभागार में अपना प्रवचन समाप्त किया और हाथ फैला कर माँगा:

तो परम पूज्य पिताजी ने अपनी चेतना को सविता में विलीन कर दिया, युगान्तरीय चेतना में विलीन होकर विश्वव्यापी हो गये ।

2 जून 1990 गायत्री जयन्ती वाले  दिन सविता में विलीन होने के पूर्व ही परम पूज्य गुरुदेव जी ने अनेकों गोष्ठियों में भारत के 6  स्थानों (लखनऊ, जयपुर, पटना, कोरबा, अहमदाबाद एवं भोपाल) पर ब्रह्म दीपयज्ञ सम्पन्न करने का संकेत दे दिया था। ।

4 जून 1990 को शान्तिकुञ्ज से पावन अस्थिकलश लेकर हमने अपने चार सहयोगियों के साथ लखनऊ के लिए प्रस्थान किया। 

अस्थिकलश वाला चित्र भी आज के लेख में संलग्न किया हुआ है। 

5 जून 1990 को चार बाग रेलवे स्टेशन पर वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में मेजर वी. के. खरे, इंजी. आर के त्रिवेदी, डॉ. गायत्री शर्मा एवं सैकड़ों कार्यकर्ता भाई-बहिनों द्वारा पावन अस्थिकलश का भव्य स्वागत किया गया तथा सजी हुई कार पर व्यवस्थित कर विभिन्न स्थानों पर स्वागत होता गया। गायत्री शक्तिपीठ, कुर्सी रोड पर आगमन हुआ जहाँ विधिवत् पूजन के बाद प्रखर प्रज्ञा के रूप में पावन कलश स्थापित किया गया। 6 जून 1990 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में उत्तरप्रदेश के विभिन्न जिलों से आये एवं लखनऊ के हजारों कार्यकर्ताओं की गोष्ठी सम्पन्न हुई। 7 जून को प्रातः भव्य कलशयात्रा के बाद सायंकाल 24000 वेदी ब्रह्म दीपयज्ञ सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में शासन के विभिन्न अधिकारीगण, माननीय विधानसभा अध्यक्ष और वरिष्ठ मन्त्रियों ने भाग लिया। कैबिनेट मन्त्री चौधरी नरेन्द्र सिंह जी ने परम पूज्य वेदमूर्ति श्रीराम शर्मा आचार्य जी का स्वतन्त्रता संग्राम में विशेष योगदान से लेकर सम्पूर्ण सामाज के नैतिक,बौद्धिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भूरि-भूरि प्रशंसा की। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा: 

शिक्षामन्त्री सैयद सिब्ते रजी जी ने अपने उद्बोधन में कहा:

ज्ञातव्य है कि 1987 में शांतिकुंज में हुई उत्तरप्रदेश के  प्रधान अध्यापकों की ट्रेनिंग माननीय सिब्ते  रजी जी ने सम्पन्न कराई थी। यह कार्यक्रम बड़ा ही प्रेरक और सफल हुआ। लोगों में श्रद्धा का विकास हुआ। हजारों लोगों ने समयदान का संकल्प लिया था । 

8 जून को टोली की विदाई  हुई, हम लोग शान्तिकुञ्ज वापस आ गये ।

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार से सम्बंधित निर्देश: 

महाप्रयाण से पहले हम परम पूज्य गुरुदेव से अनेकों अवसरों पर मिलते रहते थे, मार्गदर्शन प्राप्त करते रहते थे। 

24 अगस्त 1989 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन परम पूज्य पिताजी ने हम दोनों को ऊपर बुलाकर गायत्री जी को संगीत का अभ्यास करने को कहा  और हमसे  से कहा कि तुम्हें कार्यक्रमों में ऐसे प्रामाणिक और निष्ठावान् व्यक्तियों का चयन करना है, जो साइकिल के द्वारा भी जनसम्पर्क की योजना को क्रियान्वित कर सकें। गायत्री जी से उन्होंने कहा बच्चों को 1 साल और देख लो, फिर हम देखेंगे। शाम को ट्रेन से गायत्री जी लखनऊ चली गयीं ।

गोष्ठी में परम पूज्य गुरुदेव ने ज्ञानरथों को चलाकर, साहित्य को जन-जन तक पंहुचाने की बात की । ज्ञानरथ को जिन्दा करना है । वह मोबाइल  शक्तिपीठ की तरह 21वीं सदी में कार्य करेंगें । साप्ताहिक सत्संग के दौरान जन्मदिवस नियमित रूप से मनाया जाये । कीर्तन में “घर- घर अलख जगायेंगे, हम बदलेंगे ज़माना” आदि गीत के माध्यम से हमारे विचारों का घर-घर विस्तार करना है। अखण्ड ज्योति पत्रिका को स्वयं पढ़ें एवं भगवान् का सन्देश अन्यों को नियमित रूप से पढ़ाएँ ।

गुरुदेव ने  उपस्थित लोगों को बताया कि जन्मदिन मनाने का कार्य डॉक्टर ओमप्रकाश ने लखनऊ में अनेक स्थानों पर किया और सुल्तानपुर में ज्ञानरथ सक्सेना ने चलाया ।

29  सितम्बर 1989 को गुरुदेव ने निर्देश दिया कि  

कार्यक्रम के बाद जब तुम लोग जयकारा लगवाना, तो शान्तिकुञ्ज की जय ! 21वीं सदी उज्ज्वल भविष्य ! भारत माता की जय ! का नारा लगवाना। गुरुजी माताजी का नहीं, क्योंकि परम पूज्य गुरुदेव ने  शान्तिकुञ्ज को अपनी काया के रूप में परिणत कर दिया है। 

  • 21वीं सदी का आन्दोलन हमारे जीवन का अन्तिम है। इसको मानकर चलना कि शासन और समाज की व्यवस्था सब बदल जायेगी।
  • शिविरों में 100 से 500 कार्यकर्त्ताओं का लक्ष्य लेकर चलना चाहिए। व्याख्यान में केवल काम की ही बातें करनी चाहिए।
  • त्याग का लाभ तुम्हें, भगवान् और जनता को मिलना चाहिए।
  • महिलाएँ आज की परिस्थिति में क्या करें, इन बातों को बताना चाहिए, न कि पुरानी गाथाओं को ।
  • तारतम्य बिठाने से कार्य में प्रगति आ जाती है।
  • तीर्थ का स्वरूप क्या हो ? उससे बड़ा पुण्य फल और किसी का भी नहीं है।
  • 50 साल वाला कार्य 10 साल में कर लेना है।
  • एक करोड़ व्यक्तियों को बढ़ाना है । तुम लोगों की श्रद्धा और निष्ठा इसी के काम आयेगी
  • बेटा, चाहे नींद पूरी कर पाओ या न कर पाओ, आराम मिले या न मिले, यह आपत्तिकाल का समय है।
  • विकास, विकास और विकास। यह धुन सवार रहनी चाहिए। फिर गुरुदेव ने भगवान् बुद्ध के साथ कुमारजीव का उदाहरण दिया और कहा वह चीन में हावी हो गया, वैसी कल्पना करो दीपयज्ञ जनसम्पर्क है, वहीं के लोग करें।
  • हर किसी का जन्मदिन दीपयज्ञ के माध्यम से ही कराया जाए। 
  • साप्ताहिक प्रज्ञामण्डल,गोष्ठिओं आदि में दीप  यज्ञ  के महत्व की बात अवश्य की जाए।

आज के लेख का समापन यहीं पर होता है 

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आज की संकल्प साधना में केवल निम्नलिखित 5  साथी ही सफल हो पाए हैं  : 

रेणु श्रीवास्तव,वंदना कुमार,,सुजाता उपाध्याय,सुमनलता,संध्या कुमार। 

सभी को हमारी बधाई एवं सहयोग के लिए धन्यवाद्


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