वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 19वां लेख  

1 अगस्त 2024 गुरुवार का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 19 वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न,हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द कुछ ऐसा संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है।

आज के लेख सारांश बताने से पहले आइए कुछ अपडेट ले लें : 

1.हमारे परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण और बधाई की बात, हमारे ही समर्पित साथी आदरणीय अरुण वर्मा जी द्वारा नौबतपुर में  5 कुंडीय यज्ञ का सम्पन्न होना है। अरुण जी ने हमें लगभग 12 वीडियो भेजी हैं, इस सप्ताह की वीडियो कक्षा में,इन्हीं को एडिट करके प्रस्तुत करने की योजना है।   

2.आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी ने व्हाट्सप्प मैसेज करके कहा है कि हमारे ऊपर महाकाल की बड़ी कृपा है। यह मैसेज परिवार के एक एक सदस्य के लिए है क्योंकि हर किसी को गुरुदेव का निर्देश मिल रहा है जिसका पूर्ण श्रद्धा से पालन हो रहा है।  

शब्द सीमा से बंधे हुए केवल इतना ही कहा जा सकता है आज आदरणीय डॉ साहिब जीवन के दो आश्रम( ब्रह्मचर्य और गृहस्थ) पूर्ण कर, तीसरे आश्रम “वानप्रस्थ” में प्रवेश कर रहे हैं, इस दिव्य प्रवेश का चित्रण किसी सौभाग्यशाली को ही हो सकता है, जो हम सब हैं।     

प्रस्तुत है इस प्रवेश का आँखों देखा हाल। 

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24 मई 1987 वाले दिन प्रात: 7.00 बजे हम शान्तिकुञ्ज पहुँच गये। त्रिपदा-3 में रुके। वन्दनीया माताजी के दर्शन किये, उन्होंने समाचार लेने के उपरान्त चाय पिलाई, फिर परम पूज्य पिताजी ने ऊपर बुलवाया। परम पूज्य पिताजी बैठे थे, जैसे ही सीढ़ी से ऊपर गये, परम पूज्य पिताजी देख रहे थे, कहा, “आओ ओमप्रकाश”। उनकी वाणी से मधु टपक रहा था। उन्होंने घर का,गायत्री जी का,दोनों बच्चों मनु-विशाल का हाल पूछा, हमने कहा- आपकी कृपा से सब ठीक  है। 

इलाहाबाद कार्यक्रम का प्रवचन, अखबार एवं अन्य समाचार बताया  तो बहुत प्रसन्न हुए। कहने लगे- “बेटा! तुम्हारे आने से हम बहुत प्रसन्न होते हैं। हमारा खून एक छटाँक बढ़ गया, लगता है, हमेशा हमारे ही पास रहो।” उनकी परमकृपा देखकर आँखों में प्रेम के आँसू आ गये। कहने लगे, “बेटा! खाना खाकर सो लो।” 

दोपहर 12:00  बजे फिर ऊपर गये। नमन के पश्चात् पिताजी ने पूछा,”अभी रिटायरमेण्ट में कितना समय बाकी है”। हमने बताया 20 वर्ष नौकरी के बाद जनवरी 1990 में स्वैच्छिक सेवानिवृति ले सकते हैं। परम पूज्य पिताजी बहुत प्रसन्न हुए कहा, “बेटा ! लखनऊ से दिल्ली की तरफ आगे बढ़ो।” दो वर्ष के समय में खूब कार्य करना है। हमने कहा, “आप की कृपा एवं शक्ति से सब कर लेंगे।”

हमने परम पूज्य पिताजी से कहा, “इस गायत्री जयन्ती पर हमें विशेष रूप से शक्ति मिली है। आज तक यहाँ आने पर अनुभव होता  था कि माताजी के पेट में आ गये हैं। अब यह अनुभव होने लगा कि हर क्षण आप के पास ही बैठे हैं तथा शान्तभाव से मन-बुद्धि आपकी वाणी सुन रही है। परम पूज्य पिताजी ने कहा,“बेटा, आपका दायरा बढ़ गया।” हम पास बैठे थे, उनके सिर  के बाल खड़े थे तथा वे लगातार हमें देख रहे हैं। कुछ अनुभूतियाँ थीं जिन्हें परम पूज्य पिताजी के कर-कमलों में समर्पित कर दीं। पिताजी ने कहा, “हम एकान्त में पढ़ेंगे।” हमने कहा लेखनी साफ नहीं है, पिताजी ने कहा, “हमारी तो इससे भी  खराब है।” हम चुपचाप  हाथ जोड़कर बैठे रहे। थोड़ी देर बाद  बलराम भाई ने अध्यापकों की गोष्ठी में  हमसे प्रवचन के लिए  कहा। पूज्यवर की इच्छा से “राष्ट्र निर्माण में अध्यापकों की भूमिका” पर सन्देश सुनाया। अध्यापक सन्देश सुनकर नैतिक शिक्षा एवं अन्य पुस्तकों के  अध्ययन के लिए प्रेरित हुए। 

परम पूज्य पिताजी से हमने कहा, “पिताजी, गायत्री जी के साथ हमारे विवाह का 21वाँ वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। वह हमेशा आपके कार्य के लिए हमारी आत्मा में रहे, साथ रहे।” परम पूज्य पिताजी ने कहा, “ऐसा ही होगा। वह न होती तो बच्चों को कौन देखता ? तुम इतना कार्य कैसे कर पाते। उसे कबीर का उदाहरण देना। 

परम पूज्य पिताजी का दर्शन कर चरणों पर सिर रखकर नमन किया। गायत्री जी का समाचार बताने के बाद अपनी अध्यात्मिक साधना की दैनिक डायरी पूज्य पिताजी के चरणों पर स्पर्श कराकर प्रस्तुत कर दी । डायरी देखकर पूज्य पिताजी अत्यन्त प्रसन्न हुए। लोकसाधना की पूरी बात बतायी। श्री श्रीपति मिश्रा मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश का जन्मदिवस मनाने की स्वीकृति एवं आशीर्वाद दिया, फिर कहा, “बेटा! आँवलखेड़ा जाकर देख लेना।”  

हमने जीवनक्रम के दो चरणों- ब्रह्मचर्य एवं गृहस्थ की  समाप्ति की बात कही। पिताजी ने कहा बेटा

हमने  पुन: अनुभूतियों का पत्रक दिया जिसे पिताजी ने रख लिया और  कहने लगे एकान्त में पढ़ेंगे। वार्ता के अन्त में हमने कहा, “पिताजी बच्चों का हमें ध्यान ही नहीं रहता।” पिताजी ने कहा, “हम पढ़ाएँगे, सब करेंगे, तुम मत सोचना। अब जाओ आराम करो।” हमने चरणों पर सिर रखा। आनन्द से मौन तृप्ति एवं अजीब स्तब्धता की अवस्था में कमरे में आये। विश्राम करके दोपहर 12:30 बजे जागने  के बाद मानसिक जप एवं ध्यान करने लगे। ध्यान में ही पिताजी ने बताया कि वानप्रस्थ आश्रम में क्या करना है ? पूज्यवर ने कहा, “बेटा, तीर्थ में पीला कपड़ा पहनना चाहिए। 

दोपहर 3:00 बजे लेखन समाप्त किया,उसके बाद प्रज्ञा पेय खरीदा और पिया। व्यवस्थापक कार्यालय में बैठे थे, माताजी का फोन आया, ओमप्रकाश को ऊपर भेज दो। गुरुदेव तो अंतःकरण में बैठे थे, जब जो आवश्यकता समझते हैं, वैसे ही सहयोग कर देते हैं। सरंजाम जुटा देते हैं। परम पूज्य पिताजी, वन्दनीया माताजी एवं दादा गुरुजी की आत्मा एक है। साक्षात् परब्रह्म के रूप में प्रत्यक्ष विराजमान हैं।  यह पूर्ण विश्वास हो गया कि वे ही साक्षी हैं, द्रष्टा हैं, श्रोता हैं, प्रेरणा देने वाले हैं, सहयोग दिलाने वाले हैं एवं वातावरण पैदा करने वाले हैं तो अब लिखकर क्या  देना है,वोह  सब जानते हैं। उनकी प्रेरणा से उनके बच्चों को, आत्मस्वरूप भाइयों तथा बहनों को उनका सन्देश अवश्य बताते रहेंगे ।

दूसरे दिन 12:00 बजे परम पूज्य पिताजी ने बुलवाया। ऊपर गये, परम पूज्य पिताजी लेटे हुए थे, समाधिस्थ थे। कहने लगे, “आइये डॉक्टर साहब।” अपना सिर उनके चरणों पर रख दिया उसके बाद पूज्यवर ने उठकर पंखा चला दिया। हमें साक्षात् परब्रह्म की अनुभूति हो रही थी । पिताजी ने पूछा, “कल से आजतक क्या किया ?” हमने कहा, “आपका ही ध्यान करते रहे। आंशिक व्रत रख रहे हैं, शाम को भोजन नहीं ले रहे हैं तथा आज प्रातः जब वन्दनीया माताजी के चरणों पर सिर रखा, आत्मा ने स्वतः माँगा-श्रवणकुमार से बढ़कर कार्य करते रहें।” पिताजी ने कहा, “ऐसा ही होगा।” हमने कहा, “यज्ञ में विचार उठा-धैर्य, श्रद्धा एवं विश्वास से कार्य करते रहें।” पिताजी ने कहा, “परमात्मा के यह  विचार तुम्हें हमेशा आते रहेंगे। हमारा शरीर नहीं रहेगा, फिर भी मिलते रहेंगे।” हमने कहा कॉलेज,विश्वविद्यालय में आपकी तपस्या की बात बताकर साहित्य का वितरण करेंगे क्योंकि काम साहित्य से ही बनेगा। 

1.ऐसा करना कि हर क्षण हमारे में, प्रकाशस्वरूप परमात्मा में, विलीन होकर हमारे  पेट में बैठे हो।  ऐसा आभास करना, हम  ही द्रष्टा एवं श्रोता हैं। सब अन्दर बैठ कर देख रहे हैं, बोल रहे हैं। हम ही  विश्व को चलाने वाले हैं।अपनी आत्मा को मन से सराहना तथा महसूस करना कि हम विश्वपिता और विश्व को चलाने वाली शक्ति से जुड़े हैं, वही सहयोग दिलाएगी। उसी शक्ति  की प्रेरणा से मन-बुद्धि को स्थिर रखकर चलना है। हम कहते हैं कि तुम अपना शरीर ठीक रखना, बोलेंगे हम,करोगे तुम। इसका अर्थ यह है कि तुम शरीर, मन, बुद्धि आदि शान्त, पवित्र और  स्थिर रखना। सब हम बोल कर करायेंगे ।

2.हमारी तरह दृढ़ संकल्प,परमात्मा में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास बनाये रखना ।

3. हर क्षण आत्मस्वरूप का ध्यान रखना, प्रकाश का ध्यान बातचीत करते समय भी रखे रहना ।

4.अपने को हमेशा स्वयंसेवक ही  समझना ।

5.हमारे सभी गुणों को (ॐ भूःभुवः स्वः महः ओउम् भूरः ओउम् भुवः, ओउम् स्वः,ओउम् महः, ओउम् जनः, ओउम् तपः, ओउम् सत्यम्।) को मनन कर इन्हीं पर नित्य चलते रहना। 

परम पूज्य पिता जी ने कहा : 

अब तुम तृतीय महत्त्वपूर्ण आश्रम,वानप्रस्थ आश्रम  में पँहुच गए हो, सफलता की चरम सीमा पर पहुँचना है। ऊपर लिखे एक से पाँच बिंदुओं तक पूर्ण रूप से चलना। टोली में सभी भाई एक साथ रहने का प्रयास करना। महिलाओं से हँस कर बात न करना, उनकी अनावश्यक प्रशंसा मत करना। हमारा ध्यान करते हुए ही बातचीत करना और प्रेरणा देना । समाज बहुत बुरा है, तुम हमारे प्यारे बच्चे हो, जिसने मर्यादा का पालन किया है। हम हर क्षण तुम्हारे अन्दर बोलते हैं। चरम सीमा तक कार्य करके हमारे पास आ जाओगे। हम जब जो चाहेंगे, वही होगा। हम नचायेंगे, तुम नाचोगे । अब आज से “तुम” नहीं हो, तुम्हारा अस्तित्व  समाप्त। केवल हम विचार के रूप में तुम्हारे अन्दर बैठ रहे हैं। भगवान् (हम) श्रेष्ठ विचार ही हैं, केवल प्रेरणा और सिद्धान्त हैं, जो अजर हैं,अमर हैं। तुम भी अजर हो,अमर हो, तुम हमेशा हमारे साथ रहे हो, हमारे ही साथ रहोगे। गायत्री की भी आत्मा तुम्हारे साथ रही है, वह अब भी रहेगी तथा तुम्हारे हर कार्य में साथ देती रहेगी। इस तीसरे चरण में तुम दोनों आत्माएँ एक होकर हमारे तरीके से कार्य करके अमर हो जाओगे। 

परम पूज्य पिताजी ने हम पर कृपा करके यह भी बता दिया कि वोह दोनों (परम पूज्य गुरुदेव जी एवं  वन्दनीया माताजी) एक आत्मा हैं। इस बात को गुरुदेव ने जनवरी 1988 की अखण्ड ज्योति के पृष्ठ  30 पर लिख दिया है, हमने इस पृष्ठ का कुछ अंश आज के लेख के साथ संलग्न किया है। 

तुम एक क्षण भी चिन्ता मत करना, बस हमें देखना,हमारी सुनना,हमारी मानना,वही करना जो हम कहेंगें।  किसी की मत सुनना, किसी से प्रभावित मत होना। हमसे यानि परमात्मा से,यानि उच्च विचारों से बड़ा एवं  महान् कौन है ? कोई भी नहीं। तुम जो चाहोगे वही होगा क्योंकि तुम्हारे अंदर बैठा परमात्मा ही सब कुछ कराएगा। 

बस अब तैयार हो जाओ। तुमने अच्छे तरीके से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश किया है । हम मानसिक रूप से हम बहुत प्रसन्न हैं। 

परम पूज्य पिताजी की आँखों में कृपा के  आँसू थे।

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कल वाले लेख  के अमृतपान से 496 टोटल कमैंट्स, 37 मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। हमारी समर्पित बहिन सुजाता जी  40  आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडल प्राप्त कर रही हैं ,उन्हें  बधाई एवं  सभी साथिओं का योगदान के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।


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