वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 17वां लेख  

30   जुलाई  2024 मंगलवार  का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 17वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न,हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द कुछ ऐसा संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है।

आज के लेख में समर्पण और श्रद्धा की बात हो रही है ,संकल्प पत्र को अनेकों बार  समर्पित करने का कारण बताया गया है। आदरणीय डॉ साहिब आज भी उतने ही समर्पित हैं, संलग्न चित्र से दिख रहा है। वर्ष 2024 की गुरुपूर्णिमा पर लिया गया चित्र स्वयं ही सब कुछ वर्णन कर  रहा है। आज ही के लेख में डॉ साहिब  फैमिली फोटो भी शामिल किया गया है। 

आदरणीय बहिन सुमनलता जी ने बिलकुल ही सत्य लिखा है कि अगर यह पुस्तक प्रकाशित न हुई होती तो हमें डॉ साहिब के बारे में इतनी जानकारी कहाँ से प्राप्त होती। 

हमें तो ऐसा अनुभव हो रहा है कि आदरणीय लीलापत शर्मा जी की भांति डॉ साहिब को भी गुरुदेव ने पग-पग  पर मार्गदर्शन प्रदान किया। 

आइए चलते हैं गुरुकक्षा की ओर।

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बार-बार संकल्प पत्र समर्पित करने के पीछे मूल कारण श्रद्धा ही  है। यही श्रद्धा पात्रता को उभारती है,इसी से बार-बार परम पूज्य पिता परमात्मा का आशीर्वाद एवं अनुदान अनवरत मिलता रहता है।

संकल्प पत्र

हे परम पूज्य पिताजी,

हार्दिक चरण वन्दन ।

हार्दिक प्रार्थना है कि आप इस जीवात्मा को उपासना, साधना एवं लोभ, मोह, अहंकार रहित आराधना का कार्य कराते हुए जन-जन को आप द्वारा बताए निर्देश पर चलते हुए, तीनों शरीरों का विकास कर उनको मानव जीवन का ध्येय प्राप्त कराने तथा इस आपत्तिकालीन समय में धन्य बन जाने के लिए, आपके द्वारा दी गयी शक्ति को पूरे भारतवर्ष में वितरित करने में समर्थ बनाएँ।

आप से विनम्र प्रार्थना है कि अपनी बेटी गायत्री को जल्दी ही पूर्ण स्वस्थ करने की कृपा करें, जिससे जन-कल्याण के कार्यक्रमों को इस शरीर से जल्दी ही करना प्रारम्भ कर सके ।

प्रभो चरणों में समर्पित ।

21 नवंबर 1983 को यज्ञ के बाद प्रात: 9.00 बजे हमारा जन्मदिन मनाया गया, 40 वर्ष समाप्त हो गए। प्रभु चरणों में समर्पित,इस नए जन्म पर लोभ, मोह, अहंकार को त्यागकर पूर्ण आदेशों का पालन करते हुए जन-कल्याण में रत रहने का संकल्प लिया। बिना किसी आशा से, केवल माली की तरह कार्य करने का संकल्प लिया । योगः कर्मसु कौशलम् के सिद्धान्त पर चलते रहने का संकल्प लिया जिसका अर्थ है कि यदि व्यक्ति काम करने के दौरान काम के फल के बारे में सोचेगा तो निश्चित ही उसका फल कभी भी अच्छा नहीं आएगा। लेकिन यदि व्यक्ति अपना पूरा ध्यान अपने कर्मों में लगाता  है और उस कर्म को अच्छे तरीके से करें तो उसका निश्चित ही फल अच्छा होता है।

प्रात: यज्ञ के उपरान्त परम पूज्य ने ऊपर बुला लिया। ऊपर छत पर श्री रामसहाय शुक्ला जी और श्री शिवप्रसाद मिश्रा जी ने स्वस्तिवाचन इत्यादि का कर्मकाण्ड करवाया। परम पूज्य आकर सामने बैठ गये। दोनों हाथों को उठाकर जब व्रत ले रहे थे, हमें ऐसा लग रहा था कि दाहिनी हथेली में कुछ चुन-चुनाहट लग रही है। हम प्रभु में समाधिस्थ थे। प्रतिज्ञा के बाद ही कुछ बेहोशी सी हो गयी, उठते ही लुढ़क गये लेकिन चोट बिलकुल नहीं आयी। उसके बाद उठकर परम पूज्य पिता के चरणों में नमन किया, उन्होंने कलावा बाँधा, पीठ, सिर थपथपा कर आशीर्वाद दिया। कार्यक्रम समाप्त हुआ.

एक कलम मिली, संकल्प पत्र नयी कलम से भरकर 22 नवंबर 1983 को परम पूज्य पिता को समर्पित कर दिया।

7 फ़रवरी 1984,मंगलवार वाले दिन वसंत पंचमी थी उस दिन एक बार फिर हमने संकल्प पत्र समर्पित किया :   

हे परमपिता परमात्मा,

आप ही हमारे माता-पिता, ज्ञान-द्रव्य सब कुछ हैं। इस वसन्त पर्व पर हमारा पूर्ण आध्यात्मिक जन्म दिन हुआ। उसी दिशा में “मातृवत् परदारेषु, परद्रण्येषु लोष्ठवत्, आत्मवत् सर्वभूतेषु ” यम, नियम, प्रत्याहार पर चलते  हुए विवेकपूर्ण विधि से, सामयिक परिस्थितियों से निपटते हुए, आपके द्वारा दी गयी अनुभूतियों को जन-जन में देवत्व जगाने तथा सभी क्रियाकलापों को आगे बढ़ाने में, पृथ्वी पर स्वर्गीय परिस्थितियों को पैदा करने में पूरे तन, मन, धन से लगे रहेंगे। पूर्ण समय एवं सम्पूर्ण धन को आप द्वारा निर्देशित कार्यों में सुनियोजित विधि पर चलते हुए समाज में लगाते रहेंगे ।

हे प्रभो ! पूर्ण परिपक्व समर्पण होते ही आपने अकथनीय आनन्द प्रदान किया है। आप से आन्तरिक प्रार्थना है कि अपने इस पुत्र को आत्मिक एवं मानसिक शक्ति देते हुए, आन्तरिक शत्रुओं को दूर करते हुए करने का निर्देश देते रहें । प्रभो! आप द्वारा ही दी गयी अर्धांगिनी गायत्री तथा दोनों बच्चे चि.मनीष एवं चि. विशाल आप को ही समर्पित हैं।

दर पर तेरे आन खडे हैं बने साँवली नाथ,

तुझ बिन मेरा और न कोई लाज तिहारे हाथ ।

परम पूज्य पिता को देने के लिए संकल्प पत्र प्रात: 6:15 पर लिखा, परमपिता ने प्रातः ही बुला  लिया और संकल्प पत्र पढ़ा ।

प्रातः यज्ञ के बाद परम पूज्य पिताजी ने अपना हाथ दिखाया, उसकी सिंकाई हुई । छूकर देखा गया। श्रद्धेय डॉ. प्रणव भाईसाहब भी बैठे थे । हमने परम पूज्य पिताजी का एक्सरे देखा। दोनों हाथों की हड्डियाँ बहुत मजबूत थीं, उनमें कैल्शियम की बिल्कुल कमी नहीं थी। हमने श्रद्धेय डॉ. प्रणव जी से कहा कि तारीख डालकर रख लेना चाहिए, बाद में काम आएगा । लोग तपस्या की शक्ति देखेंगे ।

गायत्री तीर्थ, शान्तिकुञ्ज से 17 मार्च 1984 रात को  प्रस्थान करना था। प्रातः परम पूज्य पिताजी ने बुलाकर तिलक किया और कार्य बताया: 

प्रात: 6.10 बजे पूज्य गुरुदेव ने बुलवाया- हमारी अन्तरात्मा में हिलोरे उठ रही थीं, हम आनन्दित हो रहे थे कि भगवान् का दर्शन करने जा रहे हैं। ऊपर गये, पूज्य गुरुदेव अपने साधना कक्ष में टहल रहे थे। रोशनी बन्द थी, लाइट जलाई और पूछा, “क्या हाल है ? तख्त  पर लेट गयेऔर कहने लगे, “तू तो ऋषि बन जा, सन्त बन जा, ऋषि से बढ़कर कुछ भी  नहीं है।” हम अपनी भावना को अपने गुरु से मिला दिये हैं। हम और वोह  एक ही हैं, कोई अन्तर नहीं है। वे कपड़े नहीं पहने हैं, हम कपड़े पहने हैं। तू ऋषि बन जा । इससे  बड़ा कोई पद  नहीं है। हमारी कोई महत्त्वकांक्षा नहीं है, तू भी महत्त्वकांक्षा न रख। फिर हमने कहा: हम पूर्णरूप से आप में समर्पित हैं। फिर हमने अपना संकल्प पत्र दे दिया। पूज्य गुरुदेव भगवान् ने रख लिया और कहा, “हम देखेंगे।” हमने कहा, “हम आपके विचार, कार्यक्रमों द्वारा जन-जन तक पहुँचा देंगे।” पूज्यवर ने कहा कि कार्यक्रम बदलते रहते हैं। हमने कहा, “जब जो आप कहेंगे वही करेंगे, बीच में हमने कहा- अब हम नौकरी ज्वाइन नहीं करेंगे। रुपये की कोई बात नहीं । पूज्य गुरुदेव ने कहा- रुपये की कोई बात नहीं है, वह तो है। “

हमारे जीवन का पूरा समय भगवान् के निर्देशन में ही बीता। किसी की सहायता करने में अत्यधिक खुशी का अनुभव होता है। भगवान् के आवाहन पर (जिन्होंने हमें पूर्ण रूप से तैयार किया) कम से कम 2 महीने का समयदान, पूज्यवर जो कहेंगे पूर्ण रूप से, उन्हीं की आज्ञा का पालन करेंगे। भगवान् की इच्छा ही हमारी इच्छा है। हमने स्वयं को,अन्तरात्मा से उन्हीं को समर्पित कर दिया है। जिन्होंने कई जन्मों से बनाया है, सब उन्हीं का है, मेरा कुछ नहीं है। समर्पण के बाद अन्दर से (पूज्य गुरुदेव के सन्देश के बाद) इतना हार्दिक उल्लास हुआ कि बताया नहीं जा सकता है। इतना आनन्द का अनुभव हुआ  जो व्यक्त नहीं किया जा सकता है। भगवान् स्वयं देख रहे हैं, साक्षी हैं वे जिन्होंने पूरा अध्यात्म दिया।  चिकित्सक उन्होंने बनाया, मोटर मैकेनिक उन्होंने बनाया, सब उन्हीं को समर्पित है, मेरा कुछ भी नहीं है ।

समयदान तथा अन्य कार्यों के लिए जब महाप्रज्ञा का आवाहन हुआ, तो मस्तिष्क में पूरा चक्र,8 वर्ष की आयु से घूम सा  गया, सब कुछ इसी दिन के लिए दिया गया है। भगवान्,यह  सब आपका है। अपनी आत्मा तथा शरीर को परमार्थ कार्य में लग जाने से धन्य मानकर,भगवान के सामने,अन्दर से प्रेम के आँसू आने लगे तथा अन्दर से आवाज आयी: माता तथा पिता आप धन्य हैं, जिनके शरीर में यह शरीर मिला और भगवान् के कार्य में लग गया।

हमारी आज तक के जीवन की सच्ची कहानी बताती है कि भगवान्, महाप्रज्ञा ही अपने कार्य के अनुरूप सहजबोध (इंटुइशन-Intuition ) कराते हैं। वह लाखों देवात्माओं को पात्रता के अनुसार गढ़कर लोकहित का कार्य करवा  रहे हैं और साधारण मनुष्य को भी धन्य बना रहे हैं। अब इस परिवर्तन के बाद लाखों वर्ष  कोई परिवर्तन नहीं होगा। यह भगवान् का अन्तिम अवतार है । हमारा आह्वान महाप्रज्ञा ने ठीक समय पर किया और  हमें भी अनुदानों के सदुपयोग का अवसर प्राप्त हुआ। अब भारतीय संस्कृति जो मानव को सच्चा रास्ता, सुख, शान्ति प्रदान करने के लिए सक्षम है, की रक्षा के लिए गुरुवर का सन्देश जन-जन तक पहुँचाने में अपना प्रभाव, समय, भावना एवं साधन को लगाकर जीवन को सार्थक करते हुए कई जन्मों तक स्वयं को, परिवार  एवं समाज को धन्य बना सकते हैं।

पूरी घटना यह बताती है परमात्मा वही करता है जो पूर्णरूप से जीवात्मा  के लिए अच्छा होता है। भले ही क्षणिक स्वार्थ की पूर्ति न हो ।

परोक्ष सविता रूपी गुरुसत्ता का एवं प्रत्यक्ष भगवान् का जैसा आदेश होगा, हमारा पूरा जीवन उन्हीं के कार्य में लगेगा, जिन्होंने हमें भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन प्रदान किया। इस दिव्य भाव के साथ, परम शान्ति एवं उल्लास से अन्तःकरण भर गया । 

प्रभु चरणों में समर्पित।

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कल वाले लेख  के अमृतपान से 408  टोटल कमैंट्स, 43  मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। संध्या और सुजाता बहिन जी दोनों ही 33 और 31 आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडल प्राप्त कर रही हैं ,दोनों बहिनों  को बधाई एवं  सभी साथिओं का योगदान के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं। 


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