29 जुलाई 2024 सोमवार का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज 16वां लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों भी क्यों न,हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द कुछ ऐसा संजोए हुए है कि सचमुच अमृत ही है।
आज का लेख आरम्भ करने से पहले आदरणीय रेणु बहिन जी द्वारा लिखे गए शब्द और आज के लेख में डॉ शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक वाक्य बिल्कुल एक जैसा ही है, यह संयोग कैसे हो जाता है, हमारी अल्पबुद्धि इसे समझने में पूर्णतया असमर्थ है। यह तो समझ आता है कि वाक्य अति बहुचर्चित है लेकिन एक ही समय में दो स्थानों पर, एक जैसे भाव प्रकट होने, किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। वाक्य है: “ बरसाती नालों का जल बड़ी धारा बनकर नदी में प्रवाहित होकर महानदी बन जाता है”
आज के दिव्य लेख में आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी समर्पण की बात कर रहे हैं,समर्पण की ही बात आज के दिव्य प्रज्ञागीत में की गयी है।
डॉ साहिब की इस रोचक लेख शृंखला के बाद हम परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता के बीच हुए पत्रों के माध्यम से मार्गदर्शन प्राप्त कर पाएंगें। आजकल हम इन्हीं पत्रों का स्वाध्याय कर रहे हैं।
हमारे समर्पित साथी अरुण वर्मा जी हमें यज्ञस्थली से वीडियोस भेज कर अपडेट करे जा रहे हैं, बहुत प्रसन्नता हो रही है,ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के लिए यह बड़े ही गौरव का पल है। हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
आदरणीय संध्या बहिन जी ने संकल्प सूची से संबंधित कुछ सुझाव दिया है, इसे स्पेशल सेगेमेंट में साथिओं के समक्ष रखने का विचार है।
मासिक विशेषांक के अमृतपान से अनेकों कमैंट्स ने हमारा उत्साहवर्धन करके मार्गदर्शन किया है जिसके लिए हम साथिओं के सदैव आभारी रहेंगें।
इन्हीं UPDATES के साथ आज की गुरुकक्षा की ओर रुख करते हैं।
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समर्पण, विसर्जन, विलय
गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज में 40 दिवसीय अनुष्ठान काल में पूज्य गुरुजी के दर्शन की लाइन में खड़े होकर हम भी गुरुदेव के कक्ष में चरण नमस्कार के लिए गए । गुरुजी अपनी कुर्सी पर चश्मा लगाए लिख रहे थे, जैसे ही हम पहुँचे उनकी दिव्य दृष्टि हम पर पड़ी। हम उनके चरणों पर नतमस्तक होकर नीचे आये और जप में बैठ गये। जैसे ही हमने जप शुरू किया एवं भगवान् की उदारता, महानता को सोचकर अपनी इच्छाएँ, भावनाएँ उन्हीं में विलीन करते हुए समर्पित कीं , प्रेम की अश्रुधार बहती चली गयी और अन्तरात्मा कहती रही:
“आपके आदेशों, प्रेरणाओं पर जीवनभर चलते रहें, हम पर ऐसी कृपा करें ।”
उसके बाद गुरुदेव का प्रवचन प्रारम्भ हुआ । गुरुजी ने कहा:
“बिना शक्ति प्राप्त किये कोई व्यक्ति बड़ा नहीं बन सकता है,कहने का तात्पर्य है उपासना अर्थात् समर्पण।”
उपासना का अर्थ है पास बैठना, और समर्पण का अर्थ है अपना सर्वस्व अर्पित कर देना। हमारे मन में प्रश्न उठा,पास तो बैठे ही हैं, समर्पित क्या करें ? एकदम उत्तर मिला: समर्पण अपनी इच्छाओं का,भावनाओं का,दृष्टिकोण का। सब कुछ गुरुदेव के हाथों में सौंप कर, उन्हीं के आदेश, प्रेरणा एवं इच्छा पर चलना शुरू कर दें, उन्हीं की तरह महान् हो जायेंगे ।
समर्पण करने के बाद कैसे छोटा नाला नदी से मिलकर बड़ा हो जाता है। नल जब टंकी से जुड़ता है तो छोटा हो या बड़ा,जल बहने ही लगता है।यही है समर्पण।
भगवान् को अपनी मर्जी पर चलाने की इच्छा न करें। ऐसा न तो कभी हुआ है और न कभी हो सकता है।मनुष्य की पात्रता के अनुसार भगवान् ने उसे पहले ही बहुत कुछ दे दिया है। मनुष्य को चाहिए स्वयं को भगवान् की मर्जी पर समर्पित कर दे। एक बीज की भांति, भगवान् पहले लेते हैं और बाद में 1000 गुना अधिक देते हैं। आप भी बीज की तरह गलिए, पेड़ की तरह बढ़िए। बीज तो एक ही बोया जाता है लेकिन हजारों बन कर वापस आ जाते हैं। बस, आप अपना सब कुछ समर्पण कर दीजिए, फिर कमाल होता देखिए। इस तथ्य के अनेकों साक्षात् उदाहरण आपको अपने आस पास दिख जायेंगें।
प्रभुचरणों में दिया गया संकल्प पत्र :
परम पूज्य पिताजी, अन्तःकरण से सादर चरण वन्दन।
हम दोनों ने अनेकों बार यज्ञ में आहुति के माध्यम से तथा जप के समय और बाद में भावनात्मक रूप से अपनी आत्मा को अन्य सहयोगियों सहित, तीन संकल्प पत्रों के माध्यम से आपके चरणों में समर्पित किया है । हे प्रभो! अब इस जीवात्मा के स्वामी केवल आप ही हैं । आपके आदेश एवं प्रेरणा को ही हम अपने जीवन को पवित्र, प्रखर और उदार बनाते हुए हमेशा जीवन भर आज्ञा का पालन करते रहेंगे । स्वामित्व का भार न रहने तथा कोई इच्छा न रखने से हम आत्मानंद का अनुभव कर रहे हैं। मुझे तो केवल कार्य करना है, मॉडल चाहे कोई भी हो, वह जो चाहे कराये। यही है पूर्ण समर्पण, विसर्जन का फल, विलय अर्थात् आत्मकल्याण ।
धैर्य की परीक्षा :
विपरीत परिस्थितियों में भी अन्तःकरण में संकल्पों को निष्ठा के माध्यम से सत्य का बोध कराने में हमारा बहुत सारा समय लगा है।
“जब तक मन नहीं मानता, बुद्धि नहीं कहती, तब तक वह आनन्द नहीं आता। जबान तो बोलती है लेकिन जब तक आत्मा नहीं बोलती, तब तक बात नहीं बनती। जब आत्मा सहमति दे देती है, उसमें ज्ञान बैठ जाता है तभी असीम आनन्द की अनुभूति होती है।आत्मा और परमात्मा से मिलने की यही आवाज है। यह मिलन शाश्वत (सदैव रहने वाला) होता है, इसलिए साधक को हर कार्य में धैर्य रखना चाहिए, उतावलापन हिंसा है। हर कार्य अपने निर्धारित समय पर ही होता है। कबीर जी के बहुचर्चित दोहे “धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय” से कौन परिचित नहीं है। भगवान् तो भावना के भूखे हैं। जब वे देख लेते हैं कि भावना दृढ़ है, पवित्र है, सच्ची है, तभी अपने अनेकों अनुदान प्रदान करते हैं। परमात्मा अपनी सूक्ष्म दृष्टि से हमेशा ही सब कुछ देखते रहते हैं, हमारे साथ-साथ रहते हैं। वे मनुष्य को उसी के कर्मों का ही फल देते रहते हैं। इस फल को प्राप्त करने के लिए न तो कोई याचना करनी पड़ती है, न नाक रगड़नी पड़ती है। केवल सच्चे मन से, समर्पित भावना से कर्म ही करना होता है। परमात्मा महान् है, उदार है, न्यायपूर्ण तरीके से देता ही रहता है।”
पिछले दिनों हमारी अर्धांगिनी श्रीमती डॉ गायत्री जी की तथा हमारी जन्मों की तपस्या एवं सविता रूपी परम पूज्य पिताजी एवं परम वन्दनीया माताजी की कृपा से हम दोनों को इस दैवीय योजना में कुछ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अधिक श्रेय अर्धांगिनी गायत्री जी को ही जाता है, वे तो श्रद्धा एवं स्नेह की मूर्ति हैं। अप्रैल 1982 में गुरुदेव ने “बस्ती” के एक आयोजन में कहा कि गायत्री तुमसे अच्छी आत्मा है, वह सच है। उन्हीं की प्रेरणा से यह कलम चल रही है।
28 जून 1983 को लिखा गया डॉ. गायत्री शर्मा जी का संकल्प पत्र:
22 अप्रैल 1983 की अग्नि परीक्षा के बाद नया जीवन प्रारम्भ हुआ। यह जीवन हमें एक जाग्रत् आत्मा के रूप में मिला। इस जीवन को महान् कार्य में लगाकर अपना मानव जीवन सार्थक बनाने की उत्कट इच्छा है, जिसके लिए हम दोनों का जीवन आपके चरणों में समर्पित है।आप ही हम लोगों के माता-पिता और गुरु हैं।आपकीआज्ञा शिरोधार्य है।
हमारे पति यदि अपना पूर्ण समय आप के चरणों में समर्पित करें, तो भी हमें कोई आर्थिक समस्या न होगी। हम लोगों की हार्दिक इच्छा है कि हम दोनों में से कोई एक अपना पूर्ण समय, आपके चरणों में समर्पित कर अपना जीवन धन्य बनाये । दोनों बच्चों की पारिवारिक जिम्मेदारी पूरी होते ही दोनों,अर्थात् हम भी अपना पूर्ण समय आपके चरणों में समर्पित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं ।
हमारे जलने से जो घाव हो गये थे, उनमें से दाहिने हाथ की कोहनी के ऊपर का घाव ठीक नहीं हो रहा है। बाएँ हाथ का घाव ठीक हो रहा है और सब ठीक है। दाहिने हाथ के घाव से हमें थोड़ी चिन्ता है ।आप चाहेंगे तो जल्दी ठीक हो जायेगा । चि. मनु एवं विशाल का प्रवेश यहाँ काल्विन ताल्लुकेदार कॉलेज में कराने का प्रयास कर रहे हैं।
(डॉ. गायत्री शर्मा)
जिम्मेदारियों से जल्दी मुक्त हो जाओगे :
28 जून 1983 की शाम को हम तथा अवस्थी जी लखनऊ से चलकर शान्तिकुञ्ज आ गये । अगले दिन प्रातः परम पूज्य गुरुदेव के दर्शन किए एवं दीक्षा के समय हम भी बैठे रहे, फिर से दीक्षित हुए। उसके बाद परम पूज्य गुरुदेव ने कहा, “हमारे डॉक्टर साहब आ गये? हमने कहा, “हाँ, और चरणों पर सिर रखा। पूज्य गुरुदेव ने गायत्री जी का हाल-चाल पूछा। हमने उनका पत्र पूज्य पिता के चरणों में रखा और उसके बाद उन्हें दे दिया । पूज्यवर ने कहा, “खाना खा लो।” आराम करने के बाद 11:00 बजे फिर से बुलाया। परम पूज्य गुरुदेव ने हमारे सामने पत्र पढ़ा और कहा, “गायत्री जी, अब वो गायत्री नहीं हैं ।” फिर कहने लगे, “तुम पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ, हमारी तरह पूर्वजन्म के जो अच्छे संस्कार जमा हैं, वोह तुम्हें ढकेलते रहते हैं।” हनुमान,अर्जुन के उदाहरण देकर समझाया । कहने लगे, “हमारी तरह तुम भी जल्दी ही पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाओगे। अभी नौकरी नहीं छोड़नी है, छुट्टी लेकर इतवार को अन्य जिलों में जाओगे तथा गोष्ठी लोगे। तुमको सब जगह प्रज्ञा क्लब बनाना है, लेकिन नाम तो प्रज्ञा (क्लब) नहीं देंगे, ये मानकर चलना है। तुम्हें यही करना है, नौकरी जब कहेंगे,तभी छोड़ना । अभी तुम्हारे व्यक्तित्व एवं नौकरी का प्रभाव है। बच्चों के लिए जहाँ भी अच्छी जगह एडमिशन हो जाए, करा दो। चिन्ता मत करना, सब ठीक होगा ।” हमने कहा, “हम बिलकुल चिन्ता नहीं करेंगे, आपकी महान् कृपा है ।”
उसके बाद सायं 4:30 बजे हम माताजी के पास गये। वन्दनीया माताजी ने भी वही बात कही, “तुम वहीं से छुट्टी लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में जाओ और विचारशील व्यक्तियों के बीच गोष्ठी लो।”
परम पूज्य पिताजी ने कहा,“अकेले जाओगे ?” हमने कहा, “किसी एक और को साथ ले लेंगे, अवस्थी जी का गला अच्छा है, एक संगीत, फिर प्रवचन | गुरुजी ने कहा,“ठीक है।” प्रात: 11 बजे ही कह चुके थे, गाँव के लिए अलग, शहरों के लिए अलग लिस्ट बना रहे हैं। तुम गाँव के लिए नहीं हो,तुम्हें हर विचारशील व्यक्ति को संगठित करना है जैसे रोटरी क्लब है, लायंस क्लब है। प्रज्ञानन्द को तो अभी हमने विदेश के 74 देशों के लिए रख दिया है। हमने कहा “हम चाहते हैं पूरे भारतवर्ष में आपकी बात को पहुँचा दें। परम पूज्य ने कहा, “ऐसे ही करते रहो।”
शेष अगले अंक में।
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जुलाई माह के अंतिम शनिवार वाले विशेषांक के अमृतपान से 501 टोटल कमैंट्स, 32 मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। गोल्ड मेडल रेणु बहिन जी को जा रहा है,बहिन जी को बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं
